विनता विश्वनाथन

इस साल की शुरुआत में कनाडा के वैज्ञानिकों ने घोषणा कर दी थी कि वे किलोग्राम को पुनर्परिभाषित करने के काफी करीब पहुँच चुके हैं। यह सूचना बहुत-सी जिज्ञासाएँ पैदा करती है, जैसे - किलोग्राम को पुनर्परिभाषित करने का मतलब क्या है? आखिर किलोग्राम को फिर से परिभाषित करने की ज़रूरत क्या है? मौजूदा किलोग्राम में ऐसी क्या गड़बड़ है?

पुराने किलोग्राम के साथ समस्या यह थी कि उसमें बदलाव आ गया था। करीब 20 साल पहले नाप-तौल पर काम करने वाले वैज्ञानिकों ने पाया कि द्रव्यमान के इस पैमाने का वज़न कुछ कम हो गया है। आइए देखते हैं कि यह सब हुआ कैसे।

अगर हम किलोग्राम या 1 किलो की बात करें तो यह लगभग 1 लीटर पानी के द्रव्यमान के बराबर होता है। किलोग्राम पैमाना वास्तव में तय हुआ 1889 में, जब प्लैटिनम-इरीडियम के 39 मि.मी. व्यास और लगभग चार से.मी. लम्बे बेलन के वज़न को एक किलोग्राम का मानक पैमाना माना गया। यह अन्तर्राष्ट्रीय प्रोटोटाइप किलोग्राम है जो एक किलोग्राम को परिभाषित करने के लिए एक मात्र उपलब्ध सन्दर्भ सामग्री है।

उच्च घनत्व और कम सतह क्षेत्रफल की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए इस बेलन को 90 प्रतिशत प्लैटिनम और 10 प्रतिशत इरीडियम धातु के मिश्रण से बनाया गया। ये धातुएँ अक्रिय हैं जिसके चलते बेलन के क्षरण और प्रदूषित होने का खतरा भी कम है। किसी भी अन्य प्रकार की क्षति से बचाने के लिए इस प्रोटोटाइप को पेरिस स्थित अन्तर्राष्ट्रीय मापतौल ब्यूरो के मुख्यालय पर उच्च सुरक्षा में रखा गया है। इस प्रोटोटाइप में थोड़ा भी परिवर्तन हुआ नहीं कि दुनिया भर के सारे वज़न पल भर में गलत हो जाएँगे।

सारी दुनिया में इस प्रोटोटाइप की कई आधिकारिक प्रतिलिपियाँ हैं। प्रत्येक 40 साल के बाद ये सारी प्रतिलिपियाँ पेरिस लाई जाती हैं और इनके द्रव्यमान का, प्रोटोटाइप से मिलान किया जाता है। ऐसी ही एक प्रक्रिया के दौरान 1992 के बाद वैज्ञानिकों ने पाया कि इन प्रतिलिपियों का वज़न प्रोटोटाइप से ज़्यादा है। हालाँकि, यह कहना मुश्किल था कि वास्तव में प्रोटोटाइप का द्रव्यमान कम हुआ है या प्रतिलिपियों के द्रव्यमान में इज़ाफा या फिर दोनों ही में थोड़ा-थोड़ा उतार-चढ़ाव। पता चला कि बहुत-सी सावधानियाँ बरतने के बावजूद प्रोटोटाइप अपेक्षाकृत रूप से हल्का हो गया है। हालाँकि, इसके कारणों का पता नहीं चल पाया। पर इतना तो है कि प्रोटोटाइप के वज़न में 1 ग्राम के 2 करोड़वें हिस्से के बराबर भार की कमी आई है। अगर तुलना करें तो यह भार नमक के एक कण के भार से भी कम होगा।

किलोग्राम प्रोटोटाइप के भार में यह कमी मेरे और आपके लिए तो शायद बहुत तुच्छ हो पर इसके चलते द्रव्यमान की परिभाषा ही बदल जाएगी और साथ ही बदल जाएँगी वो सभी मात्राएँ और इकाइयाँ जो द्रव्यमान से सम्बद्ध हैं। गौरतलब बात यह है कि किलोग्राम, मापन के उन सात मूलभूत मात्रकों। में से एक है जिनके आधार पर शेष सारे मात्रक तय किए जाते हैं। प्रमुख मसला ही यह है कि किलोग्राम बदल सकता है यह समझ में आया याने कि - किलोग्राम ही एक मात्र ऐसी एस.आई. यानी इंटरनेशनल स्टैण्डर्ड इकाई है जिसमें माप की परिशुद्धता और स्थिरता का अभाव है जो कि किसी भी मानक इकाई की अनिवार्य विशेषता होती है। चूँकि परिभाषा ही यही है कि इस प्रोटोटाइप का द्रव्यमान एक किलोग्राम है इसलिए किसी के लिए भी इसके द्रव्यमान में बदलाव या त्रुटि को नापना संभव नहीं है।

इन वर्षों में, अन्य एस.आई. इकाइयों को मौलिक स्थिरांकों का इस्तेमाल कर पुन:परिभाषित किया जा चुका है। इसका मतलब है कि ये इकाइयाँ अब प्रकृति के सार्वभौमिक पैमानों के आधार पर परिभाषित की जा चुकी हैं जो कि सटीक हैं और समय के साथ परिवर्तनशील भी नहीं। बतौर उदाहरण, मीटर जिसका पैमाना पहले पेरिस में रखी प्लैटिनम-इरीडियम छड़ की लम्बाई था उसे 1983 में प्रकाश द्वारा 1/299,792,458 सेकण्ड में तय की गई दूरी के साथ बदल दिया गया। हम जानते हैं कि प्रकाश की गति नियत है, अब इससे मीटर एक सार्वभौमिक इकाई में तब्दील हो गया। इसी तरह एक सेकण्ड को 1967 में पुनर्परिभाषित किया गया - सीज़ियम परमाणु के  शून्य केल्विन ताप पर 9,192,631,770 दोलन में लगे समय के रूप में।

मौलिक इकाइयों की ये नई व्याख्याएँ ‘जनरल कॉन्फ्रेंस ऑन वेट्स एंड मेज़र्स’ द्वारा दी गई हैं जिसमें दुनिया भर के देशों के सदस्य हिस्सेदार होते हैं। परन्तु किलोग्राम मानव निर्मित धात्विक बेलन के पैमाने पर आधारित रहा था-1992 तक। उसके बाद से किलोग्राम की बेहतर परिभाषा और पैमाने की तलाश जारी है।
कोशिश यह है कि इस मौजूदा सन्दर्भ प्रोटोटाइप को किसी मूलभूत स्थिरांक से सम्बद्ध कर दिया जाए जो स्थिर हो और जिसे दुनिया के किसी भी कोने में उच्च सटीकता से मापा जा सके।

शुद्ध सिलिकॉन पर निगाहें
रसायन शास्त्रियों की नज़रें नियतांक के लिए सिलिकॉन के एक अणु के द्रव्यमान पर टिकी हैं। जर्मनी के शोधकर्ताओं ने शुद्ध सिलिकॉन के पूरी तरह गोल और एक किलो वज़न के गोले के साथ इस दिशा में कदम बढ़ाए हैं। वैज्ञानिकों की कोशिश है कि सिलिकॉन क्रिस्टल में अणुओं के बीच की दूरी का सटीक अनुमान और सिलिकॉन के गोले के सही आकार का पता लगाकर इसमें सिलिकॉन के अणुओं की संख्या का आकलन किया जा सकता है। इसके बाद सिलिकॉन के एक अणु के द्रव्यमान को आधार बनाकर किलोग्राम की नई व्याख्या की जा सकेगी। वास्तव में, यह शोध एवोगेड्रो नियतांक के आकलन को लेकर शुरू हुई थी, किलोग्राम को पुनर्परिभाषित करने में इस विधि की सम्भावना का सुझाव तो बाद में आया। हालाँकि, उच्च शुद्धता वाले सिलिकॉन का गोला बनाना एक चुनौतीपूर्ण काम है। साथ ही इस गोले में सिलिकॉन अणुओं की संख्या का सही-सही आकलन कर पाना एक दूसरी बड़ी चुनौती है।

सिलिकॉन-गोला या वॉट तुला
एक अन्य अवधारणा के मूल में ‘वॉट तुला’ है जो कि एक भौतिक शास्त्रीय पहल है। मूलत: द्रव्यमान को विद्युत-चुम्बकीय बल (वॉट) के आधार पर मापने के लिए इस विचार को स्थापित किया गया था किन्तु आजकल प्लांक नियतांक को अधिक निश्चितता के साथ मापने के लिए इस पैमाने का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसका मतलब है कि आगे चलकर द्रव्यमान को ‘वॉट’ में मापा जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो किलोग्राम को प्लांक नियतांक के ज़रिए प्रदर्शित किया जा सकेगा।

पिछले अक्टूबर मे सी.जी.पी.एम. (Conference Generale des Poids et Mesures, CGPM ) ने यह निर्णय लिया कि किलोग्राम को प्लांक नियतांक के पैमाने पर नए सिरे से परिभाषित किया जा सकता है। हालाँकि, रसायन शास्त्रियों के दृष्टिकोण को भी पूरी तरह नकारा नहीं गया है बल्कि इसका इस्तेमाल भौतिक विज्ञान से प्राप्त परिणामों को सत्यापित करने के लिए किया जाएगा। यह इसलिए सम्भव हो पाया क्योंकि एवोगेड्रो नियतांक और प्लांक स्थिरांक के बीच सीधा सम्बन्ध है।

इस साल के फरवरी महीने में ही कनाडा के मेट्रोलॉजिस्ट्स (metrologists) ने एवोगेड्रो नियतांक का मान सिलिकॉन के परमाणु भार को आधार बनाकर प्रकाशित किया। इस तरीके से ज्ञात एवोगेड्रो नियतांक का मान उसके पूर्वज्ञात मान के बहुत ही करीब उतरा। इसका मतलब है कि प्रत्येक अध्ययन के बाद एवोगेड्रो नियतांक का मान और सटीक होता जा रहा है। वॉट तुला में होने वाले शोधन का मतलब है कि प्लांक नियतांक का मापन अब और अधिक सटीकता से हो पा रहा है। रसायन शास्त्रीय और भौतिक शास्त्रीय तरीकों से प्राप्त होने वाले प्लांक नियतांक के मान में अन्तर लगातार कम होता जा रहा है। किलोग्राम को पुनर्परिभाषित करने की दिशा में आखिरी कदम से पहले ज़रूरत होगी प्लांक स्थिरांक के मान पर आम सहमति की, इसकी अनिश्चितता के स्वीकार्य स्तर की पहचान करने की और साथ ही इन पर अन्तर्राष्ट्रीय रज़ामन्दी की।
तब तक तो हमें किलोग्राम पैमाने के लिए पेरिस में, ज़मीन से 60 फीट भीतर सुरक्षित रखे प्लैटिनम-इरीडियम के बेलन पर निर्भर रहना होगा।


विनता विश्वनाथन: ‘संदर्भ’ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: अम्बरीष सोनी: ‘संदर्भ’ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।