राधेश्याम थवाईत

ग्यारह बच्चों की उपस्थिति वाला एक कमरा जहाँ पाँचवीं कक्षा के 4, चौथी कक्षा के 4 तथा कक्षा तीसरी के 3, कुल 11 बच्चे बैठे थे। प्रवेश करते ही सभी बच्चे खड़े होकर अभिवादन करते हैं। मैं सभी को बैठने के लिए कहता हूँ। कुछ अनौपचारिक बातचीत और कक्षा 5 के बच्चों की गणित की अभ्यास पुस्तिका देखने के बाद मेरे मन में विचार आया कि बच्चों से स्थानीय मान के बारे में बातचीत शुरु  की जाए इसलिए मैंने कक्षा 5 के बच्चों को सम्बोधित कर कहा, “चलो स्थानीय मान के कुछ सवाल हल करते हैं।” सभी बच्चों ने बड़े उत्साह से कहा, “यस सर।

मैंने ब्लैकबोर्ड पर एक सवाल लिखा: 48,567 का स्थानीय मान बताओ?
बच्चों से पूछा, “इस सवाल को कौन बनाएगा?”
कक्षा के सभी बच्चों ने हाथ ऊपर किए और कहा, “मैं बनाऊँगा, मैं बनाऊँगा।” कक्षा 4 के बच्चों ने भी हाथ खड़े करके अपनी हामी जताई थी।
मैंने एक बच्ची को सवाल हल करने के लिए बुलाया। वह बच्ची ब्लैकबोर्ड के पास आई और कुछ इस तरह सवाल हल करने लगी:
उपर्युक्त तरह से सवाल हल करते समय बच्ची, एक शब्द भी नहीं बोली, बस चुपचाप लिखती रही।
अब मैंने उससे पूछा, “ये सवाल तुमने अपनी कॉपी में हल किया है?”

बच्ची ने कहा, “हाँ।”
मैंने कहा, “ज़रा मिलाकर तो देखो।”
बच्ची ने जैसे ही ब्लैकबोर्ड पर बनाए सवाल का कॉपी से मिलान किया, उसने तुरन्त कहा, “ये तो पूरा गलत है।”
मैंने कहा, “अब क्या करोगी?”
बच्ची ने पूछा, “दोबारा बनाऊँ?”
मैंने कहा, “बनाओ।”
बच्ची पुन: सवाल हल करने लगी।
इस बार उसने सवाल इस तरह हल किया:
7 का स्थानीय मान है 7
6 का स्थानीय मान है 60
5 का स्थानीय मान है 500
8 का स्थानीय मान है 8000
4 का स्थानीय मान है 400000
इस बार भी सवाल हल करते समय बच्ची, एक शब्द भी नहीं बोली, बस चुपचाप लिखती रही।
मैंने कहा, “शाबास!” और पूछा, “पिछली बार तुमने क्यों गलती की?” बच्ची ने कहा, “भूल गई थी और उल्टा बना दी।”
लेकिन अब भी मेरे मन में प्रश्न था कि बच्ची को स्थानीय मान आता है कि नहीं? इसलिए मैंने पुन: ब्लैकबोर्ड पर लिखी संख्या के एक-एक अंक पर उंगली रखते हुए पूछा:

(4 पर उंगली रखकर) “इसका स्थानीय मान?” बच्ची ने कहा- 4
(8 पर उंगली रखकर) “इसका स्थानीय मान?” बच्ची ने कहा- 8
(5 पर उंगली रखकर) “इसका स्थानीय मान?” बच्ची ने कहा- 5
(6 पर उंगली रखकर) “इसका स्थानीय मान?” बच्ची ने कहा- 6
(7 पर उंगली रखकर) “इसका स्थानीय मान?” बच्ची ने कहा- 7
अन्य बच्चों से भी मैंने ऐसे ही सवाल किए; सभी ने इसी तरह से जवाब दिए।
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि बच्चे एक ही सवाल के दो अलग-अलग उत्तर क्यों दे रहे हैं? लिखित में सही और मौखिक में गलत।
मैंने सभी बच्चों को पुन: एक सवाल दिया - 5212 का स्थानीय मान बताओ।
सभी बच्चों ने फिर से सवाल अपनी-अपनी कॉपी में लिखकर ठीक-ठीक हल कर दिया तथा मौखिक पूछने पर पुन: गलत जवाब देते रहे।

अब मैंने उस बच्ची को 212 लिखने के लिए कहा। बच्ची ने लिखा - 20012
कारण जानने के लिए मैंने बच्चों से पूछा, यहाँ तो 8 का स्थानीय मान 8000 लिखा है लेकिन जब मैं पूछता हूँ तो कहते हो 8, ऐसा क्यों?”
तो एक बच्चे ने कहा, “वो तो मैडम ने सिखाया है। एक-एक शून्य बढ़ाते जाओ, स्थानीय मान बनता जाता है।”
स्थिति की तह तक पहुँचने के लिए हमने शिक्षिका से बात की और उनसे स्थानीय मान का एक सवाल कक्षा में समझाने के लिए निवेदन किया।
उन्होंने ‘4312 का स्थानीय मान बताओ’ को इस तरह बताया।
शिक्षिका ने समझाना शुरु  किया, “देखो मैं बताई थी न, सबसे पहले हम इधर से शु डिग्री करते हैं, इकाई से।
...... 2 का स्थानीय मान है 2, इसमें शून्य नहीं लगाना है;
1 का स्थानीय मान है 10, एक शून्य लगा दिया;
3 का स्थानीय मान है 300, दो शून्य लगा दिए;
4 का स्थानीय मान है 4000, तीन शून्य लगा दिए, बस इसी तरह अंकों को लिखते जाओ और शून्य बढ़ाते जाओ, संख्या का स्थानीय मान निकल आता है।......”

क्या आप संख्या बुलवाते भी हैं?
एक कक्षा में गुरुजी ने श्याम पट पर गुणा का सवाल लिखा-
126
× 24
चौथी या पाँचवीं कक्षा की एक लड़की ने आकर इस सवाल को आराम से, कुछ ही मिनट में हल कर दिया।

126
×24
--------
504
2520
--------
3024

पर वह यह संख्या ठीक से पढ़ नहीं पाई। पूछने पर बोली,
“तीस हज़ार चौबीस।”
गुरुजी को बड़ा अचम्भा हुआ और वे झेंप से गए।
क्रियाएँ करवाने और स्थानीय मान बुलवाने के फेर में हम कहीं बच्चों से बड़ी संख्याएँ पहचानने का मौका छीन तो नहीं रहे हैं?


शिक्षिका ब्लैकबोर्ड पर जब सवाल हल कर रही थी तब बच्चे साथ ही दोहराते जाते थे; जैसे - एक शून्य, दो शून्य, तीन शून्य आदि।
इस तरह की कक्षा प्रक्रिया को देखकर बहुत-से सवाल मन में आते हैं, जैसे:
-- क्या बच्चों को संख्या की पहचान है?
-- क्या बच्चे स्थानीय मान समझते हैं?
-- बच्चे लिखित में स्थानीय मान ठीक-ठीक कर लेते हैं लेकिन मौखिक में नहीं। ऐसा क्यों?
-- क्या शिक्षिका द्वारा स्थानीय मान समझाने की प्रक्रिया उचित है? आदि।
एक अहम सवाल, वर्तमान परीक्षा व्यवस्था में स्थानीय मान पर पूछे गए सवाल को यदि कोई बच्चा उपरोक्त यंत्रवत प्रक्रिया से हल करता है और उसे पूरे अंक मिलते हैं तो क्या हम उसे सीखना या उसका सही-सही मूल्यांकन कह सकते हैं?


राधेश्याम थवाईत: छत्तीसगढ़ शैक्षिक सन्दर्भ केन्द्र (एकलव्य फाउण्डेशन), रायपुर में कार्यरत।
सभी चित्र: जितेन्द्र ठाकुर - एकलव्य, भोपाल में डिज़ाइन एवं प्रोडक्शन इकाई में कार्यरत।