आधुनिक (रासायनिक खेती) से पहले हम खेतों में नाइट्रोजन नामक पोषक तत्व की उपलब्धि के लिए तीन स्रोतों पर निर्भर थे - आसमानी बिजली, नाइट्रोजन को स्थिर करने वाले बैक्टीरिया और कुदरती खाद। कुदरती खाद के मामले में समुद्री पक्षियों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी। दरअसल, लाखों समुद्री पक्षी अपनी बीट के ज़रिए जो नाइट्रोजन व फॉस्फोरस ज़मीन पर लाते थे उसे इतना मूल्यवान समझा जाता था कि उसे ‘सफेद सोना’ कहा जाता था। समुद्री पक्षियों की बीट को गुआनो कहते हैं और जेम्स बॉण्ड के एक उपन्यास डॉ. नो का विषय गुआनो द्वीप है जहां गुआनो का अवैध व्यापार चलता है।
किंतु शायद किसी ने हिसाब लगाने की कोशिश नहीं की थी कि ये समुद्री पक्षी कितनी खाद समुद्रों से ज़मीन पर पहुंचाते हैं। नेचर कम्यूनिकेशन्स में प्रकाशित एक अध्ययन में पक्षियों के इस योगदान की गणना की गई है। अध्ययन के मुताबिक प्रजनन कर रहे लगभग 80 करोड़ समुद्री पक्षी और इनके चूज़े साल भर में 5 लाख 91 हज़ार टन नाइट्रोजन का उत्पादन करते हैं। यदि इसमें उन पक्षियों का योगदान जोड़ दिया जाए जो प्रजनन नहीं कर रहे होते हैं, तो समुद्री पक्षियों द्वारा समुद्र से ज़मीन पर लाई जाने वाली नाइट्रोजन की मात्रा 38 लाख टन बनती है। इसकी तुलना में मत्स्याखेट के ज़रिए मनुष्य द्वारा समुद्र से लाई गई नाइट्रोजन कहीं कम होती है। नाइट्रोजन के संदर्भ में समुद्री पक्षियों का यह योगदान नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले बैक्टीरिया के 75 प्रतिशत के बराबर है।
इसके अलावा ये पक्षी हर साल 99 हज़ार टन फॉस्फोरस भी मल के साथ त्याग करते हैं जो एक ज़रूरी पोषक पदार्थ है। और तो और, पक्षियों द्वारा बीट के रूप में छोड़ी गई 12 प्रतिशत नाइट्रोजन और 22 प्रतिशत फॉस्फोरस सहजता से घुलनशील होते हैं और पौधों के लिए उपयोगी होते हैं। इसलिए समुद्री पक्षियों की बस्तियां सचमुच पोषण के ‘हॉट स्पॉट’ हैं। इन स्थानों से बहकर जाने वाला पानी अत्यंत ‘पौष्टिक’ होता है। शोधकर्ताओं के अनुसार अंटार्कटिका और उसके आसपास के द्वीपों पर यह बात खास महत्व रखती है क्योंकि वहां के समुद्री पक्षी बड़े होते हैं और उनकी प्रजनन अवधि भी लंबी होती है। (स्रोत फीचर्स)