पूरे उत्तरी अमेरिका में पीली गाने वाले चिड़िया (येलो वार्बलर) पर हुए अध्ययन से यह पता चला है कि यदि उनके जीन्स उन्हें नए, ज़्यादा रहने योग्य प्राकृतवास टटोलने में मदद करते हैं तो वे गर्माती धरती के साथ ज़्यादा अच्छी तरह तालमेल बैठा सकेंगी।
जलवायु परिवर्तन के चलते सभी जंगली जीवों के लिए अपने क्षेत्र या इलाके को लेकर यह सवाल बना हुआ है कि क्या उन्हें वहीं बने रहना चाहिए या पलायन कर जाना चाहिए? अब एक अध्ययन में यह पाया गया है कि हो सकता है कि नएपन की मांग करने वाले दो परिवर्तित जीन्स कुछ वार्बलर्स के लिए नए इलाकों में जीवन-रक्षक प्रवास को आकर्षक बना सकते हैं बजाय उनके अन्य साथियों के जो वहीं टिके रहकर अपनी विलुप्ति का खतरा उठाते हैं।
उपरोक्त दोनों जीन्स डीआरडी4 और डीईएएफ1 का सम्बंध मनुष्यों, मछलियों और अन्य पक्षियों में नएपन की चाहत से देखा गया है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की रैचेल बे के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने पूरे उत्तरी अमेरिका में येलो वार्बलर्स चिड़ियाओं की 21 अलग-अलग आबादियों की 229 चिड़ियाओं का अध्ययन कर पाया कि इन दोनों जीन्स का उत्तरजीविता पर सबसे शक्तिशाली प्रभाव है।
ये दो परिवर्तित जीन गुणसूत्र क्रमांक 5 पर स्थित होते हैं। ये उन आबादियों में सबसे कम पाए गए जो जलवायु परिवर्तन की वजह से विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी हैं। यदि बे की टीम का निष्कर्ष सही है तो यह पहली बार होगा कि दो विशिष्ट जीन्स प्रवास और नएपन की चाहत से जुड़ेंगे। अन्य शोधकर्ताओं के अनुसार यह अध्ययन जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन को समझने में एक बड़ा कदम हो सकता है।
बे और उनके साथियों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के साथ अनुकूलन वही जीव सबसे पहले कर पाएंगे जो अपने व्यवहार को तेज़ी से बदल सकते हैं। वैसे यह अध्ययन काफी सीमित पैमाने पर किया गया है किंतु इससे यह संभावना उजागर होती है कि व्यवहार परिवर्तन की क्षमता के ऐसे जीन्स को पहचानकर हम उन प्रजातियों और आबादियों की पहचान करके संरक्षण के कुछ कदम उठा सकेंगे जो जलवायु परिवर्तन के साथ अनुकूलन में सबसे फिसड्डी साबित होने वाले हैं। (स्रोत फीचर्स)