आजकल स्कूली बसों के संदर्भ में जीपीएस काफी चर्चा में है। जीपीएस यानी ग्लोबल पोज़ीशनिंग सिस्टम एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें पृथ्वी और पृथ्वी के बाहर की किसी भी जगह की स्थिति का निर्धारण उपग्रहों की मदद से किया जाता है। कम से कम तीन उपग्रहों से प्राप्त सूचनाओं का मिला-जुला उपयोग करके यह बताया जा सकता है कि कोई बिंदु कहां है। अब वैज्ञानिकों ने एक ऐसी ब्रह्मांडीय जीपीएस प्रणाली के विचार पर काम करना शुरू किया है जो उपग्रहों की मदद के बगैर, अंतरिक्ष में कहीं भी स्थिति का निर्धारण कर सके। इसमें पल्सर का उपयोग किया जाएगा। शुरुआती प्रयोगों ने इस प्रणाली की व्यावहारिकता दर्शाई है।
पल्सर मृत हो चुके तारों के अवशेष होते हैं जो लगातार घूर्णन करते रहते हैं और समय के एक निश्चित अंतराल पर रेडियो तरंगें छोड़ते रहते हैं। पिछले वर्ष नवंबर में नासा ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पल्सर आधारित जीपीएस की संभावना को टटोला था। न्यूट्रॉन स्टार इंटीरियर कंपोज़ीशन एक्सप्लोरर (नाइसर) वास्तव में मृत तारों के पदार्थ का अध्ययन करने के लिए शुरू किया गया है। नाइसर ने एक प्रयोग में पल्सर से आने वाले विकिरण के समय में होने वाले अत्यंत अल्प अंतर के आधार पर स्वयं अपनी स्थिति निर्धारित करने का प्रयास किया। इस स्थिति के निर्धारण में मात्र 5 किलोमीटर की त्रुटि हुई।
इससे पहले चीन ने पल्सर आधारित मार्ग संचालन के परीक्षण हेतु एक उपग्रह छोड़ा था XPNAV-1। इसने 6500 प्रकाश वर्ष दूर स्थित पल्सर से निकलने वाले एक्सरे संकेतों का विश्लेषण करके स्थिति निर्धारण का प्रयास किया था। इसी प्रकार से नासा ने जून 2017 में सेक्सटेंट नामक प्रयोग में पल्सर के उपयोग की संभावना को टटोला है।
उक्त सारे प्रयोगों का निष्कर्ष है कि जल्दी ही हम ऐसे अंतरिक्ष यान बना सकेंगे जो अपनी स्थिति पता करने के लिए पृथ्वी से भेजे गए संकेतों पर निर्भर नहीं रहेंगे। पृथ्वी को संकेत भेजकर उनके लौटने का इन्तज़ार करने में बहुत समय लगता है। यदि ऐसा हो पाया तो सौर मंडल से बाहर के अंतरिक्ष अभियानों में बहुत मदद मिलेगी। (स्रोत फीचर्स)