भारत डोगरा
संयुक्त राज्य अमरीका में राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी ने अपना निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि पौधों की विविधता को बचाने का एकमात्र विश्वसनीय उपाय उन्हें उनके प्राकृतिक परिवेश में बचाना है।
पौधों की विविधता धरती पर हर जगह एक-सी नहीं पाई जाती है। विश्व में कुछ स्थान ऐसे हैं जहां प्राकृतिक रूप से पौधों की विविधता बहुत अधिक है और कुछ स्थानों पर बहुत कम। पौधों की अत्यधिक विविधता की दृष्टि से समृद्ध स्थान ही बायोटेक्नॉलॉजी के लिए प्रकृति के बड़े खज़ाने हैं। पौधों की विविधता के ये स्थान मुख्य रूप से गर्म जलवायु के देशों में है। आर्थिक दृष्टि से देखें तो पौधों की विविधता के ये स्थान मुख्य रूप से गरीब या विकासशील देशों में हैं।
यह बहुत दुख की बात है कि जैव विविधता की दृष्टि से बहुसंपन्न ऐसे अनेक देशों में जैव विविधता को बनाए रखने पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया व पिछले कुछ दशकों में तो इस जैव विविधता का बहुत तेज़ी से विनाश हुआ है। इसका एक मुख्य कारण है बड़े पैमाने पर वनों की कटाई। कृषि की तकनीक में ऐसे बदलाव किए गए हैं जिनके कारण अनेक विविध किस्मों के स्थान पर बड़े-बड़े क्षेत्र में एक या दो किस्मों का ही प्रसार हुआ। या जिन किस्मों का प्रसार हुआ उनका जेनेटिक आधार एक-सा था।
तकनीक के इसी बदलाव से जुड़ी हुई एक अन्य बात यह थी कि कीटनाशक व खरपतवारनाशक दवाओं व अन्य रसायनों के उपयोग में बहुत वृद्धि हुई। इससे जैव विविधता को बहुत क्षति पहुंची और बहुत-से ऐसे पौधों व जीवों का पतन हुआ जो कृषि की उत्पादकता व भूमि का उपजाऊपन बढ़ाने में सहायक हो सकते थे। जो पौधे अधिक मूल्यवान हैं या सीमित मात्रा में उपलब्ध रह गए हैं, उनकी तस्करी से भी पौधों की विविधता के पतन में तेज़ी आई है।
वैज्ञानिक पीटर रेवन ने बताया है कि पौधों की विभिन्न किस्मों और जंतुओं की परस्पर निर्भरता के चलते होता यह है कि पौधे की हर किस्म के लुप्त होने पर 10-30 पौधों या जंतु किस्मों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाता है।
पौधों की विविधता के इस तेज़ पतन को देखते हुए अनेक वैज्ञानिकों ने इस विविधता को बचाने का मुख्य उपाय यह सोचा कि इन किस्मों को या उनके जनन द्रव्य को प्रयोगशालाओं में या इस उद्देश्य के लिए बनाए गए विशेष संग्रहण गृहों (जिन्हें ‘जीन बैंक’ कहा जाता है) में संरक्षित कर लिया जाए। पिछले कुछ दशकों में इस सोच को बहुत बल मिला है तथा दुनिया भर में, विशेषकर अमीर देशों में, जीन बैंक तेज़ी से स्थापित किए गए हैं।
पर क्या पौधों की विविध किस्मों और उनके जनन द्रव्य को प्रयोगशालाओं और जीन बैंकों में संग्रह कर लेने मात्र से पौधों की विविधता बच जाएगी? अनुभव से पता चला है कि कभी लापरवाही के कारण, कभी बिजली देर तक गुल रहने से, कभी वातानुकूलन खराब होने से ठंडक न रहने के कारण, कभी आग लग जाने या ऐसी ही किसी दुर्घटना से प्रयोगशालाओं या जीन बैंकों में रखे ऐसे अमूल्य संग्रह कुछ ही समय में नष्ट हो गए। माइकेल पेरेलमन नामक लेखक ने बताया है कि तीन रेफ्रिजरेटर कम्प्रेसर खराब होने से ही पेरू देश में मक्का के जनन द्रव्य का एक मुख्य संग्रह नष्ट हो गया। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राज्य अमरीका में राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी ने अपना निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि पौधों की विविधता को बचाने का एकमात्र विश्वसनीय उपाय उन्हें उनके प्राकृतिक परिवेश में बचाना है।
फिलहाल जीन बैंकों और प्रयोगशालाओं पर ही जैविक विविधता को बचाने की अधिक ज़िम्मेदारी डाली जा रही है जो अपने आप में एक अंसतोषजनक स्थिति है। गरीब देशों के लिए तो यह स्थिति विशेष रूप से असंतोषजनक है, क्योंकि जीन बैंकों व प्रयोगशालाओं के संग्रह का बहुत बड़ा भाग अमीर देशों में है, वहां की सरकारों या बड़ी कंपनियों के नियंत्रण में है। इस तरह जहां एक ओर गरीब देशों की वनस्पति विविधता उनके अपने यहां के वनों व खेतों से विभिन्न कारणों से लुप्त होती जा रही है, वहीं जीन बैंकों के माध्यम से अमीर देशों और वहां स्थित बड़ी कंपनियों को यही सम्पदा उसकी भरपूर जानकारी के साथ उपलब्ध है।
पौधों की विविधता के क्षेत्र मुख्य रूप से गरीब देशों में होने के कारण प्राय: अमीर देशों के वैज्ञानिकों को यहां के पौधों की सम्पदा की सहायता लेनी पड़ी, ताकि वे अपने देश में फसल की ऐसी किस्में ला सकें जो खतरनाक बीमारियों, कीट-पतंगों आदि से बचने की क्षमता रखती हों।
1970 के दशक में संयुक्त राज्य अमरीका के कृषि विभाग ने इस बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी कि गरीब देशों के पौधों की सम्पदा से वहां की कृषि को कितनी सहायता मिली है। खीरे की किस्में मुख्य रूप से कोरिया, बर्मा व भारत से ली गई तो फली की किस्में मेक्सिको, सीरिया व तुर्की से। मटर में बीमारी से बचाव के लिए पेरू और ईरान की पौध सम्पदा का सहारा मिला। वहां के पालक को महामारी के प्रकोप से बचाने के लिए भारत, ईरान और तुर्की के पौधों की सहायता मिली। तम्बाकू में एक भयानक बीमारी को इथिओपिया से प्राप्त पौध सम्पदा से ही बचाया जा सका।
यहां तक तो आपत्ति की कोई बात नहीं थी। यदि हमारे यहां के पेड़-पौधों से किसी और का भला हो जाए, तो इसमें हमारा क्या जाता है। किंतु यह अस्वीकार्य है कि कोई आपको लूटना चाहे तो लूटने दो। जब बात यहां तक पहुंचने लगे तो ज़रूरी है कि हम सचेत हो जाएं और अपने हितों की रक्षा करें।
वन विनाश और फसलों की पुरानी किस्मों को बड़े पैमाने पर हटाने वाली खेती की नई तकनीक के कारण अनेक गरीब देशों में प्राकृतिक तौर पर उपलब्ध पौधों की विविधता तेज़ी से सिमटती गई, पर इससे पहले ही पौधों की इस विविधता का संग्रहण अमीर देशों की प्रयोगशालाओं और जीन बैंक नामक विशेष संग्रहण गृहों में हो चुका था। अब दूसरों के यहां से लाई गई पौध सम्पदा के आधार पर वे नई किस्में और बीज प्राप्त करने लगे तथा इसके लिए उन्हीं देशों से मोटे दाम मांगने लगे जहां से वे पौध सम्पदा को आरंभ में लाए थे।
कीन्या से दालों व फलियों की कुछ किस्में ऑस्ट्रेलिया नि:शुल्क ले जाई गर्इं। बाद में इस पौध सम्पदा के आधार पर जो बीज ऑस्ट्रेलिया में विकसित किए गए, उन्हें वापिस कीन्या को व्यापारिक दरों पर बेचा गया। इसी तरह लीबिया से चारा फसल की किस्में ऑस्ट्रेलिया भेजी गई व बाद में इन पर आधारित बीज लीबिया को व्यापारिक दरों पर बेचे गए। संयुक्त राज्य अमेरिका ने पेरू से टमाटर की एक जंगली किस्म प्राप्त की जिससे अमेरिका में टमाटर की चटनी जैसे खाद्य पदार्थ बनाने वाले उद्योग को 80 लाख डॉलर का लाभ हुआ, पर इस लाभ का कुछ भी हिस्सा पेरू को नहीं मिला।
मैडागास्कर के पेरीविंकल पौधे से संयुक्त राज्य अमेरिका में इतनी दवाइयां बनाई जाती हैं कि उनसे प्रति वर्ष 16 करोड़ डॉलर की आमदनी होती है। गरीब देशों के पौधों से बनाई कितनी ही दवाएं बहुत ऊंचे दामों पर वापिस गरीब देशों को बेची जाती हैं या इनकी बिक्री का मुनाफा, रॉयल्टी वगैरह बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अमीर देशों को वापिस भेजा जाता है।
कुछ समय पहले संयुक्त राष्ट्र के खाद्य व कृषि संगठन ने संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग के संग्रहण गृहों में रखी गई गेहूं की किस्मों का एक अध्ययन किया। यहां 27 देशों से एकत्रित गेहूं की किस्में पाई गई जिनमें से 22 गरीब देश थे। इनमें से 14 गरीब देश ऐसे थे जिनके यहां गेहूं की कुछ किस्में यहां अमेरिका में तो उपलब्ध थीं, पर इन देशों में ये किस्में अब उपलब्ध नहीं थीं, कम से कम वहां के वैज्ञानिकों को आसानी से उपलब्ध होने वाले संग्रहित रूप में तो नहीं ही थीं।
एक ओर तो जीन बैंक में पौध सम्पदा का संग्रहण अपने-आप में पौध सम्पदा को सुरक्षा नहीं दे सकता, क्योंकि रोग, दुर्घटना, लापरवाही आदि से यह संग्रह नष्ट हो सकते हैं। दूसरी ओर, गरीब देशों की स्थिति तो इस दृष्टि से विशेष रूप से संवेदनशील है, क्योंकि उन्हें यह भी पता नहीं है कि अन्तर्राष्ट्रीय संग्रहों में जितनी पौध सम्पदा उपलब्ध है वह आवश्यकता पड़ने पर उन्हें बेरोकटोक प्राप्त हो सकेगी या नहीं। अधिक संभावना इसी बात की है कि अपने ही यहां की सम्पदा पर आधारित बीजों के लिए उन्हें मोटी रकम खर्च करनी होगी। गरीब देशों की इस स्थिति पर इस विषय के प्रख्यात लेखक पैट राय मूनी ने लिखा है कि किसी के लिए भी सब अंडे एक टोकरी में रखना उचित नहीं होता, तिस पर तीसरी दुनिया के देशों को तो सब अंडे किसी दूसरे की टोकरी में रखने को कहा जा रहा है।
कृषि में जैव विविधता कुछ वर्षों में कितनी तेज़ी से लुप्त हुई है, इसके बारे में अब अनेक देशों से आश्चर्यजनक जानकारी मिल रही है। वर्ष 1949 में चीन में गेहूं की लगभग दस हज़ार किस्में उपलब्ध थीं। 1970 के दशक में इनमें से मात्र एक हज़ार किस्में ही खोजी जा सकीं। दक्षिण कोरिया में 14 फसलों के बारे में अधिक व्यापक अध्ययन से बहुत चौंका देने वाले परिणाम मिले हैं। जिन खेतों में यह अध्ययन किया गया वहां 1985 और 1993 के बीच एक दशक से भी कम समय में इन फसलों की 74 प्रतिशत किस्में लुप्त हो गई।
यदि इतिहास के पृष्ठों में हम कुछ और पीछे जाएं तो और भी चिंताजनक जानकारी मिलती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में वर्ष 1804 और 1904 के बीच सेब की 7098 किस्में उगाए जाने की जानकारी उपलब्ध है। इनमें से 86 प्रतिशत किस्में अब सेब के बगीचों में तो क्या, लुप्त हो रही प्रजातियों के लिए विशेष रूप से बनाए गए जीन बैंकों में भी उपलब्ध नहीं हैं। इसी तरह बंदगोभी की 95 प्रतिशत, मक्का की 91 प्रतिशत, मटर की 94 प्रतिशत और टमाटर की 81 प्रतिशत किस्में लुप्त हो चुकी हैं।
ये आंकड़े संयुक्त राष्ट्र के कृषि व खाद्य संगठन के सचिवालय द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट से लिए गए हैं।
आनुवंशिक विविधता के स्थान पर एकरूपता आने का उदाहरण बताते हुए रिपोर्ट कहती है कि एफ-1 संकरित धान की फसल 1979 में चीन में पचास लाख हैक्टर पर फैली थी और 1990 में यह बढ़कर एक सौ पचास लाख हैक्टर तक पहुंच गई और इसका आनुवंशिक स्रोत एक-सा है। इससे होने वाले नुकसान का उदाहरण देते हुए रिपोर्ट बताती है - कैलीफोर्निया (अमेरिका) में अंगूर की बेलों की आनुवंशिक एकरूपता के कारण उनमें एक गंभीर बीमारी इतनी तेज़ी से फैलने लगी कि इन्हें उखाड़कर दूसरी बेलें लगाने में करोड़ों डॉलर खर्च करने पड़ रहे हैं।
गैर सरकारी संगठनों के लीपज़िग (जर्मनी) में हुए एक सम्मेलन में किसानों द्वारा जैव विविधता बचाने पर एक दस्तावेज़ तैयार किया गया जिसमें कृषि और खाद्य क्षेत्र में पेटेंट अधिकारों की कड़ी आलोचना की गई। इस दस्तावेज़ में कहा गया है कि बौद्धिक संपदा अधिकारों के रूप में नई दीवारें खड़ी की जा रही हैं जो किसानों को जैव विविधता सम्बंधी अधिकारों से वंचित कर रही हैं। बौद्धिक संपदा अधिकारों से स्थानीय समुदाय और विश्व समुदाय स्तर पर जानकारी और संसाधनों के आदान-प्रदान में बाधा उत्पन्न होती है। जैव विविधता को केवल जीन बैंकों में कैद कर नहीं बचाया जा सकता। इसे तो किसान समुदाय अपने खेत-खलिहानों में ही ठीक तरह से संरक्षित कर सकते हैं। किसानों के इन प्रयासों में पेटेंट अधिकारों से बाधा पहुंचती है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां सामूहिक संसाधनों का निजीकरण करने का प्रयास कर अनेक समुदायों में आपसी मतभेद उत्पन्न कर रही हैं।
इस आलोचना के साथ गैर सरकारी संगठनों ने अपने लिए एक कार्यक्रम भी तैयार किया है जिसमें किसानों के अधिकारों को स्पष्ट कानूनी स्वीकृति दिलवाने, जीन बैंकों में बंद पौध संपदा तक किसानों की पहुंच सुनिश्चित करने, किसान और आदिवासी समुदायों के संरक्षण प्रयासों को प्रतिष्ठित करने और बौद्धिक संपदा अधिकारों के विकल्प खोजने को महत्व दिया गया है।
जर्मनी में हुए इस सम्मेलन में जर्मनी के ही एक किसान जोज़फ एल्ब्रोट ने वर्तमान कानूनों को लेकर अपना कड़वा अनुभव बताया कि जब उन्होंने बाज़ार में बिक रहे बीजों से असंतुष्ट होकर पर्यावरण के प्रति अधिक अनुकूल बीज तैयार किए और इन बीजों की किसानों में लोकप्रियता देखते हुए उन्होंने इन्हें अनेक किसानों को देना आरंभ किया तो उन पर बीज सम्बंधी वर्तमान जर्मन कानूनों के अंतर्गत रोक लगाई गई और जुर्माना भी किया गया। इस उदाहरण से पता चला कि बीजों और जैव विविधता के संरक्षण में किसानों की भूमिका की व्यापक स्वीकृति के बावजूद उनके द्वारा किए गए संरक्षण प्रयासों में वर्तमान कानूनों द्वारा कितनी बाधाएं उपस्थित की जा सकती हैं।
इस तरह के उदाहरण बढ़ते जा रहे हैं जहां गरीब देशों से ले जाई गई पौध संपदा के आधार पर अमीर देशों की कंपनियां पेटेंट लेती जा रही हैं। पहले यह माना जाता था कि विकासशील देशों की जो संपदा प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय स्तर के जीन बैंकों में रखी हुई हैं, कम से कम वह मुनाफे के दृष्टिकोण से पेटेंट से मुक्त रहेगी, पर अब यह उम्मीद भी खत्म हो रही है। यह ठीक है कि ये जीन बैंक या इन्हें नियंत्रित कर रही संस्थाएं स्वयं इस पौध संपदा के आधार पर पेटेंट नहीं ले रही हैं पर विभिन्न अनुसंधानों के लिए इस संपदा को प्राप्त कर इनका इस्तेमाल पेटेंट प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है। इस तरह अप्रत्यक्ष रूप से इन अंतर्राष्ट्रीय स्तर के जीन बैंकों में गरीब देशों से लाई गई बहुत-सी पौध संपदा का उपयोग अब इस तरह से करना संभव हो गया है कि बाद में इनके आधार पर इन गरीब देशों से ही मुनाफा वसूला जाएगा और अमीर देशों में पहुंचाया जाएगा।
इस तरह जहां एक ओर जैव विविधता के लुप्त होने का संकट है और उसके संरक्षण के लिए प्रयास करना ज़रूरी है, वहीं इस बात का ध्यान रखना भी ज़रूरी है कि संरक्षण के प्रयास पर कौन हावी हो रहा है और इसे अपने संकीर्ण हितों की ओर मोड़ने का प्रयास कर रहा है। वास्तव में संरक्षण के नाम पर मुनाफा कमाने के ज़बर्दस्त, व्यापक प्रयास हो रहे हैं और इस कारण वास्तविक सही भावना से होने वाले संरक्षण कार्य को बहुत क्षति पहुंच रही है। अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में सभी संरक्षण की बातें करते हैं पर शक्तिशाली निहित स्वार्थों का वास्तविक प्रयोजन मुनाफा होता है इसलिए कथनी और करनी में बहुत अंतर आ जाता है। (स्रोत फीचर्स)