डॉ. विजय कुमार उपाध्याय
हिपार्कस का जन्म युरोप के विथीनिया में निकाइया नामक स्थान पर हुआ था। यह स्थान मर्मांरा समुद्र के पूरब में स्थित है। उनकी जन्म तिथि, मृत्यु तिथि तथा मृत्यु स्थान के सम्बंध में आज किसी को भी ठीक-ठीक मालूम नहीं है। कुछ विद्वानों के मतानुसार हिपार्कस द्वारा खगोल विज्ञान सम्बंधी अंतिम पर्यवेक्षण 127 वर्ष ईसा पूर्व में किए गए थे।
हिपार्कस के जीवन एवं उनके द्वारा किए गए कार्यों की अधिकांश जानकारी आज हमें ईसा बाद पहली शताब्दी में स्ट्रैबो आमास्या नामक वैज्ञानिक द्वारा लिखे गए ग्रंथों से मिलती है। टॉलेमी ने भी अपनी पुस्तकों में हिपार्कस की चर्चा बार-बार की है। उनके विचार में हिपार्कस अपने समय का एक प्रसिद्ध तथा महान खगोलविद एवं गणितज्ञ था।
हिपार्कस ने मुख्य रूप से पृथ्वी की गति के सम्बंध में अपने सिद्धांत प्रतिपादित किए। उनके द्वारा प्रतिपादित सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत विषुवों के अयन (प्रेसेशन ऑफ इक्विनॉक्सेज़) के सम्बंध में था। यह सिद्धांत पृथ्वी की धुरी की दिशा में परिवर्तन से सम्बंधित है। हिपार्कस ने एक पुस्तक की रचना की थी ‘प्रेसेशन ऑफ इक्विनॉक्सेज़’। उन्होंने काफी लम्बे समय तक किए गए पर्यवेक्षणों के आधार पर इस ग्रंथ की रचना की थी। उन्होंने बहुत ध्यानपूर्वक विभिन्न तारों की स्थिति का अध्ययन किया तथा अपने आंकड़ों की तुलना डेढ़ सौ वर्ष पूर्व के अलेक्ज़ेंड्रिया निवासी निमोयारिस द्वारा एकत्रित आंकड़ों से की। बेबीलोनिया के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए पर्यवेक्षणों से प्राप्त आंकड़ों से भी उन्होंने अपने आंकड़ों की तुलना की। उन्होंने पाया कि तारों के खगोलीय देशांतर में कुछ अंतर आ गया है। यह अंतर प्रयोगिक अशुद्धियों के कारण नहीं था। इस प्रकार हिपार्कस इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह अयन गति के कारण है। वार्षिक परिवर्तन दर 45 सेकंड से 46 सेकंड के बीच पाई गई। आधुनिक जानकारी के अनुसार यह परिवर्तन 50.06 सेकंड प्रति वर्ष है।
उपर्युक्त खोज के आधार पर हिपार्कस ने सायन वर्ष (ट्रॉपिकल ईयर) का लगभग सही मान बताया था। सायन वर्ष का अर्थ है वह काल जिसके दौरान सूर्य प्रत्यक्ष रूप से किसी विषुवत से चल कर पुन: उसी विषुवत पर आता है। साथ ही साथ हिपार्कस ने नक्षत्र वर्ष (साइडरियल ईयर) का भी सही मान बताया। नक्षत्र वर्ष वह काल है जिसके दौरान सूर्य किसी एक निश्चित तारे से चल कर पुन: उसी तारे के सामने आ जाता है। हिपार्कस ने सायन वर्ष का जो मान बताया वह आधुनिक निर्धारित मान से सिर्फ छ: मिनट अधिक था।
हिपार्कस संसार के पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने तारों का सूची पत्र (कैटलॉग) तैयार किया था। इस सूची पत्र में विभिन्न तारों के नाम तथा खगोलीय अक्षांश एवं देशांतर दिखाए गए हैं। हिपार्कस ने विभिन्न तारों की स्थितियों की माप बहुत ही शुद्धतापूर्वक की थी। इस प्रकार की शुद्ध माप हिपार्कस के पूर्व किसी भी गणितज्ञ या खगोलविद द्वारा नहीं की गई थी। हिपार्कस द्वारा संकलित खगोलीय आंकड़ों का उपयोग आगे चलकर टॉलेमी तथा एडमंड हैली जैसे प्रसिद्ध खगोलविदों द्वारा किया गया। उस काल में तारों की सूची तैयार करना एक महान पाप का काम माना जाता था। हिपार्कस ने इन अंधविश्वासों पर ध्यान नहीं देते हुए अपना अध्ययन कार्य जारी रखा। तारों की सूची तैयार करने में हिपार्कस का उत्साह एवं अभिरुचि तब पैदा हुई थी जब उन्होंने 134 वर्ष ईसा पूर्व एक नए तारे को देखा। इससे उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि तारों की संख्या स्थिर नहीं है।
हिपार्कस ने लगभग पांच वर्षों के कठिन परिश्रम के बाद 129 ईसा पूर्व में आठ सौ पचास तारों का सूचीपत्र तैयार कर लिया। इन तारों की कांति (ब्रााइटनेस) को आंकने के लिए एक पैमाने का उपयोग किया गया था। इस पैमाने में तारक कांतिमान की छ: इकाइयां दी गई थीं। हिपार्कस द्वारा तैयार की गई तारों की सूची उस काल के लिए खगोल विज्ञान सम्बंधी सर्वोत्तम कृति मानी जाती है।
सूर्य एवं चंद्रमा सम्बंधी अपने ग्रंथ में हिपार्कस ने अपने पर्यवेक्षणों के साथ-साथ अपने पूर्व के कुछ वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध के आंकड़े उपयोग किए थे। उन्होंने दिखाया कि गतिशील उत्केन्द्र तथा अधिचक्र तंत्र (एपिसाइकिल सिस्टम) समतुल्य हैं। दोनों तरीकों से सूर्य की स्थिति ठीक-ठीक निर्धारित की जा सकती है। हिपार्कस ने उस काल के दौरान लोगों के बीच प्रचलित उस मान्यता का समर्थन किया जिसके अनुसार सूर्य रवि मार्ग (एक्लिप्टिक) पर अनवरत एक कक्षा में घूमता रहता है। उन्होंने रवि मार्ग के झुकाव का पुन: अध्ययन करके जो मान निकाला वह आधुनिक मान से सिर्फ पांच मिनट अलग है।
सूर्य की तुलना में चंद्रमा की गति अधिक जटिल है। इसी कारणवश पर्यवेक्षण के दौरान कई प्रकार की अनियमितताओं को ध्यान में रखना पड़ता है। हिपार्कस ने चंद्रमा की गति में उस असमानता को ध्यान रखा जो चंद्रमा के दीर्घवृत्ताकार परिक्रमा पथ के कारण उत्पन्न होती है। उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त के द्वारा दूज के चांद (नया चांद) तथा पूर्णिमा के चांद (पूरा चांद) की गति की व्याख्या काफी संतोषजनक ढंग से की जा सकती है।
हिपार्कस ने सूर्य एवं चंद्रमा के आपसी सापेक्षिक आकार एवं उनके बीच की दूरी की गणना करने का प्रयास किया था। इसके पूर्व भी अनेक खगोलविदों ने दोनों के आकार एवं उनके बीच की दूरी तथा दोनों के आकार के आपसी अनुपात के बारे में अनुमान लगाया था। उदाहरण के तौर पर एरिस्टार्कस नामक एक प्राचीन वैज्ञानिक के अनुमान के अनुसार यह अनुपात 20:1 था। आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार यह अनुपात 393:1 है।
हिपार्कस ने इस अनुपात का अनुमान लगाने के लिए एरिस्टार्कस की विधि का उपयोग किया था। इस विधि में चांद पर पृथ्वी की छाया की चौड़ाई मापी जाती है। इस काम के लिए चंद्रग्रहण के दौरान चांद के ऊपर पृथ्वी की छाया के पारगमन का समय अंकित किया जाता है। परन्तु इस विधि में लम्बन दोष होता है और इस प्रकार जो दूरी निर्धारित की जाती है उसमें कुछ अशुद्धि रह जाती है। उन्होंने बताया कि पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी की तुलना में सूर्य की दूरी बहुत अधिक है। उन्होंने सूर्य का आयतन पृथ्वी के आयतन का 1880 गुना बताया था। आधुनिक जानकारी के अनुसार सूर्य का आयतन पृथ्वी के आयतन का लगभग 13 लाख गुना अधिक है।
हिपार्कस ने खगोल विज्ञान के अतिरिक्त गणित के क्षेत्र में भी काफी शोध किए तथा महत्वपूर्ण योगदान दिए। त्रिकोणमिति के क्षेत्र में उन्होंने काफी गवेशणा की तथा इस सम्बंध में कुछ उपयोगी सूत्र प्रतिपादित किए। उन्होंने चापों तथा जीवाओं की एक सारणी तैयार की। उन्होंने वृत्तीय त्रिभुजों के हल के लिए एक उपयोगी विधि विकसित की। कुछ विद्वानों का तो यहां तक मानना है कि समतल ज्यामिति में जिसे आज हम टॉलेमी के सिद्धांत के नाम से जानते हैं, वह वस्तुत: हिपार्कस द्वारा ही विकसित किया गया था।
सिर्फ खगोल विज्ञान एवं गणित ही नहीं अपितु भूविज्ञान जैसे विषय में भी हिपार्कस का योगदान काफी महत्वपूर्ण एवं सराहनीय था। उन्होंने इरेटोस्थनीस के भूविज्ञान सम्बंधी कार्यों एवं सिद्धांत की आलोचना की। उन्होंने स्वयं इन क्षेत्रों में शोध एवं विकास का काफी महत्वपूर्ण कार्य किया तथा उससे सम्बंधित अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। उनके द्वारा किए गए शोध एवं विकास के कार्यों में प्रमुख था भूसतह पर किसी स्थान के सही निर्धारण के लिए गणित के सूत्रों एवं सिद्धांतों का उपयोग करना। किसी स्थान के अक्षांश को निर्धारित करने के लिए उन्होंने सर्वप्रथम उस स्थान के सबसे लम्बे दिन की अवधि तथा सबसे छोटे दिन की अवधि का अनुपात मालूम किया तथा मानक स्थान से तुलना कर अक्षांश का मान निर्धारित किया। इसी प्रकार किसी स्थान के देशांतर को मालूम करने के लिए हिपार्कस ने जो विधि अपनाई उसके अनुसार सूर्य ग्रहण के दौरान यह मालूम करना पड़ता था कि वहां ग्रहण कब प्रारम्भ हुआ तथा कब समाप्त हुआ। उसके बाद किसी मानक स्थान से तुलना कर उस स्थान का देशांतर बताया जा सकता था। यह विधि छोटे क्षेत्र के लिए बिलकुल सही थी, परन्तु बड़े क्षेत्र तथा काफी दूरी पर स्थित स्थानों के लिए उपयुक्त नहीं थी। इसकी वजह यह थी कि उस काल के दौरान वि·ा स्तर पर न तो कोई मानक काल था और न समय की माप के लिए कोई भरोसेमंद उपकरण उपलब्ध था। (स्रोत फीचर्स)