गोरेपन के क्रीम तो खूब बिकते हैं मगर बहुत अधिक गोरापन भी चिंता का विषय है, शायद काले या सांवलेपन से ज़्यादा। अब वैज्ञानिक गोरेपन को कम करने के लिए क्रीम बनाने में कुछ आगे बढ़े हैं।
दरअसल, त्वचा की कोशिकाओं को उनकी रंगत मिलेनीन नामक एक पदार्थ से मिलती है। यह पदार्थ त्वचा को पराबैंगनी किरणों के दुष्प्रभाव से बचाता है। इसलिए जिनकी त्वचा में मिलेनीन नहीं बनता उन्हें पराबैंगनी किरणों से खुद को बचाने के लिए सनस्क्रीन का उपयोग करना पड़ता है। त्वचा की सतह के नीचे कुछ विशेष कोशिकाएं मिलेनोसोम का निर्माण करती हैं। ये मिलेनोसोम मिलेनीन का उत्पादन करते हैं, उसका भंडारण करते हैं और उसका परिवहन भी करते हैं। मिलेनोसोम नामक इन रचनाओं को त्वचा की अन्य कोशिकाएं - किरेटिनोसाइट - सोख लेती हैं और अपने केंद्रक के आसपास पराबैंगनी किरणों को रोकने वाला कवच बना लेती हैं। किंतु एल्बिनिज़्म और विटिलेगो (सफेद दाग) जैसी बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों में मिलेनीन उत्पादन में गड़बड़ी होती है और उन्हें पराबैंगनी किरणों से खतरा रहता है।
सैन डिएगो स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कृत्रिम मिलेनोसोम बनाने में शुरुआती सफलता प्राप्त की है। नाथन गियानेशी के नेतृत्व में काम करते हुए इस टीम ने डोपामीन नामक रसायन को एक क्षारीय घोल में भिगोया। डोपामीन शरीर में तंत्रिकाओं के बीच संवाद का रसायन होता है। इस तरह से उपचारित करने पर मिलेनीननुमा नैनोकण प्राप्त हुए जिनका कवच और केंद्रीय भाग डोपामीन के एक पोलीमर से बने थे। जब इन पोलीडोपामीन नैनोकणों को तश्तरी में किरेटिनोसाइट कोशिकाओं के साथ रखा गया तो त्वचा की कोशिकाओं ने इन्हें सोख लिया। शोधकर्ताओं ने एसीएस सेंट्रल साइन्स नामक शोध पत्रिका में बताया है कि जब पोलीडोपामीन युक्त इन कोशिकाओं को तीन दिन तक पराबैंगनी किरणों के संपर्क में रखा गया तो इनमें से 50 प्रतिशत कोशिकाएं जीवित बची रहीं जबकि सामान्य (नैनोकण-रहित) कोशिकाओं में से मात्र 10 प्रतिशत जीवित बच पार्इं।
इन प्रयोगों के आधार पर टीम को यकीन है कि कोशिकाएं इन नैनोकणों को मिलेनीन मानकर चलती हैं और ये पराबैंगनी किरणों से सुरक्षा भी प्रदान करते हैं। अब यह समझने का प्रयास होगा कि कोशिकाओं इन्हें कैसे सोखती हैं ताकि इस तकनीक की मदद से सनस्क्रीन विकसित किए जा सकें और विटिलेगो जैसी तकलीफों का इलाज भी खोजा जा सके। (स्रोत फीचर्स)