यह तो काफी अच्छी तरह रिकॉर्ड किया जा चुका है कि आर्कटिक सागर के बर्फ के सिकुड़ने की वजह से ध्रुवीय भालू (Ursus maritimus) के घूमने-फिरने का इलाका सीमित हो गया है। किंतु इस बात की छानबीन काफी कम हुई है कि बर्फ के खिसकने का क्या असर हो रहा है। हाल ही में ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में यूएस भूगर्भ सर्वेक्षण के जॉर्ज डर्नर और उनके साथियों ने इस मामले में नई जानकारी प्रस्तुत की है।
डर्नर और उनके साथियों ने ब्यूफोर्ट और चिचुकी सागर के बीच 1987 से लेकर 2013 तक के बर्फ के खिसकने के आंकड़ों का विश्लेषण किया। साथ ही उन्होंने 273 ध्रुवीय भालुओं की गतिविधि के आकड़ों को भी देखा। इन भालुओं को रेडियो कॉलर पहनाई गई थी जिसकी मदद से इनकी गतिविधियों पर 24x7 पैनी नज़र रखी जा रही थी।
टीम ने पाया कि 1987 से बर्फ के पश्चिम की ओर खिसकने की रफ्तार बढ़ी है। इसके साथ ही ध्रुवीय भालुओं को सील का शिकार करने के लिए पूर्व की ओर तेज़ रफ्तार से या ज़्यादा लंबे समय तक चलना भी दिख रहा है। शोधकर्ताओं का मत है कि बर्फ के खिसकने की वजह से इन भालुओं को ज़्यादा दूरी तय करनी पड़ रही है। इस अतिरिक्त गतिविधि के लिए उन्हें अतिरिक्त भोजन की ज़रूरत होगी। अनुमान है कि इस अतिरिक्त कार्य के लिए प्रत्येक भालू को प्रति वर्ष तीन अतिरिक्त सील मछलियों की ज़रूरत होगी। यह ग्लोबल वार्मिंग का असर है जो भालुओं की कार्यिकी पर दबाव डाल रहा है। (स्रोत फीचर्स)