डॉ. विजय कुमार उपाध्याय
पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों में भूसतह से कुछ ऊंचाई पर स्थित वायुमंडल में कभी-कभी आकर्षक रंगीन प्रकाश की छटा दिखाई देती है जिसे ‘ध्रुवीय प्रकाश’ अथवा ‘मेरु ज्योति’ कहा जाता है। अंग्रेज़ी में इसे ‘औरोरा’ कहते हैं। औरोरा मूलत: लैटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘प्रभात’। उत्तरी गोलार्द्ध में इसे औरोरा बोरियालिस तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में औररोरा ऑस्ट्रेलिस कहा जाता है।
ध्रुवीय प्रकाश प्राय: हरे-पीले पर्दे की आकृति में दिखाई पड़ने वाली प्रकाश की एक पट्टी है। कभी-कभी यह प्रकाश गहरे लाल रंग के दहकते अंगारे के रूप में भी दिखाई पड़ता है। यह प्रकाश उस प्रकाश से मिलता-जुलता है जो विद्युत डिस्चार्ज के कारण उत्पन्न होता है। कभी-कभी तीव्र ध्रुवीय प्रकाश के साथ-साथ वायुमंडल में सनसनाहट तथा गड़गड़ाहट सुनाई पड़ती है। यह दृश्य प्राय: सूर्य की सतह पर सौर ज्वाला के उद्गार के एक दिन बाद दिखाई पड़ता है। सौर ज्वालाएं उस समय अधिक पैदा होती हैं जब सौर धब्बों की संख्या बढ़ जाती है। सौर धब्बों की अधिकतम संख्या प्रत्येक 11 वर्षों के अंतराल पर देखी जाती है।
काफी प्राचीन काल से ही लोग ध्रुवीय प्रकाश का अवलोकन करते तथा उसके सम्बंध में अटकलें लगाते आए हैं। आदि मानव ने ध्रुवीय प्रकाश के सम्बंध में अनेक कल्पनाएं कीं तथा कई कहानियां गढ़ीं। कुछ लोगों की धारणा थी कि ध्रुवीय प्रकाश स्वर्ग में खेला जाने वाला गेंद का खेल है। इस खेल में एक टीम अच्छी आत्माओं की तथा दूसरी टीम बुरी आत्माओं की रहती है। प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने आज से लगभग ढाई हज़ार वर्ष पूर्व अपने ग्रंथ मीटियोरोलॉजिका में बताया था कि कभी-कभी रात में जब आकाश साफ रहता है तो अंतरिक्ष में अनेक प्रकार के रंगीन प्रकाश दिखाई पड़ते हैं। इन रंगों के बारे में अरस्तू ने बताया था कि सूर्य की गर्मी के कारण शुष्क वाष्प भूसतह के ऊपर उठती है। भूसतह से काफी ऊपर उठने पर यह वाष्प सूर्य की गर्मी से प्रज्वलित हो उठती है। इसके कारण विभिन्न रंगों के प्रकाश पैदा होते हैं। वस्तुत: रंगीन प्रकाश से सम्बंधित जिस दृश्य की चर्चा अरस्तू ने की थी वह उत्तरी ध्रुवीय प्रकाश की थी।
इसी प्रकार चीन में लगभग 2600 वर्ष ईसा पूर्व लिखे गए एक ग्रंथ में ध्रुवीय प्रकाश की चर्चा मिलती है।
ध्रुवीय प्रकाश की उत्पत्ति के सम्बंध में वैज्ञानिक व्याख्या दिए जाने के प्रयास काफी लम्बे अरसे से होते आए हैं। शुरू-शु डिग्री में लोगों की धारणा थी कि ध्रुवीय क्षेत्र में दिखाई पड़ने वाला रंग-बिरंगा प्रकाश उस क्षेत्र में मौजूद बर्फ तथा तुषार की सतह से परावर्तित होने वाला प्रकाश है। कुछ अन्य लोगों की धारणा थी कि ध्रुवीय प्रकाश इंद्रधनुष से मिलता-जुलता प्राकृतिक दृश्य है।
सन 1616 में गैलीलियों ने उत्तरी ध्रुवीय प्रकाश के लिए एक नया शब्द ‘औरोरा बोरियालिस’ प्रयोग किया था जिसका अर्थ है उत्तरी प्रभात।
18वीं शताब्दी में वैज्ञानिकों ने अनुमान लगा लिया था कि ध्रुवीय प्रकाश पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र से सम्बंधित है। सन 1741 में स्वीडन के ऐंडर्स सेल्सियस तथा ओलोप हियोर्टर नामक दो वैज्ञानिकों ने ध्रुवीय प्रकाश की घटना के दौरान चुम्बकीय सुई के बर्ताव के सम्बंध में कई अध्ययन किए थे तथा कुछ सिद्धांत प्रतिपादित किए थे।
हाल में किए गए वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि ध्रुवीय प्रकाश की उत्पत्ति पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में उपस्थित उन परमाणुओं के दहकने से होती है जिन पर पृथ्वी के बाहर से आने वाले इलेक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन कण टकराते हैं। बाहर से आने वाले इन इलेक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन कणों को ध्रुवीय प्रकाशीय कण (औरोरल पार्टिकल्स) कहा जाता है। वैज्ञानिकों का विचार है कि ध्रुवीय प्रकाशीय कण सूर्य की सतह पर समय-समय पर उत्पन्न सौर ज्वाला से निकलते हैं तथा तीव्र गति से चल कर पृथ्वी तक पहुंचते हैं।
अब प्रश्न उठता है कि सूर्य से आने वाले कण तो पृथ्वी के सभी क्षेत्रों में पहुंचते हैं तो फिर उपरोक्त प्रकाश सिर्फ ध्रुवीय क्षेत्र में ही क्यों दिखाई पड़ता है? शोधों के आधार पर वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि ध्रुवीय प्रकाश के निर्माण में योगदान देने वाला एक प्रमुख घटक है पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र। सूर्य से आने वाले इलेक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन कण पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र से आकर्षित होकर पृथ्वी के चुम्बकीय ध्रुवों की ओर मौजूद वायुमंडल में पहुंच जाते हैं तथा ध्रुवीय प्रकाश पैदा करते हैं।
सूर्य से चल कर पृथ्वी तक जो इलेक्ट्रॉन कण आते हैं वे काफी ऊर्जापूर्ण होते हैं। अध्ययनों से पता चला है कि इन इलेक्ट्रॉन कणों की ऊर्जा एक हज़ार से दस हज़ार इलेक्ट्रॉन वोल्ट के बीच रहती है। जब ये इलेक्ट्रॉन ध्रुवों के ऊपर स्थित वायुमंडल के तत्वों पर चोट करते हैं तो उन तत्वों का आयनीकरण हो जाता है।
इस आयनीकरण क्रिया में कुछ कम ऊर्जायुक्त इलेक्ट्रॉन भी उत्पन्न होते हैं जिन्हें द्वितीयक (सेकंडरी) इलेक्ट्रॉन कहा जाता है। ये कम ऊर्जायुक्त इलेक्ट्रॉन फिर अन्य अणुओं को आयनीकृत करते हैं। ध्रुवीय प्रकाश का प्रमुख रंग हरा-पीला इन्हीं कम ऊर्जायुक्त इलेक्ट्रॉनों द्वारा ऑक्सीजन परमाणुओं के उत्तेजन के कारण उत्पन्न होता है।
ध्रुवीय प्रकाश की एक सामान्य आकृति पर्दानुमा होती है जिसका रंग प्राय: हल्का हरा या हरा-पीला होता है। इस पर्दे का निचला किनारा भूसतह से लगभग एक सौ किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित होता है। इस पर्दे का ऊपरी सिरा अस्पष्ट रहता है जो भूसतह से लगभग एक हज़ार किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित होता है। जब इस पर्दे को कुछ दूर से देखा जाता है तो यह क्षितिज से ऊपर उठे एक मेहराब (आर्च) के रूप में दिखाई देता है। यह पर्दा जब गतिहीन तथा बिलकुल शांत दिखाई देता है तो इसकी चमक सब जगह एक समान दिखाई देती है तथा इसे सर्वत्र-सम (होमोजीनियस) कहा जाता है।
कभी-कभी ध्रुवीय प्रकाश में भिन्न-भिन्न चमक की पट्टियां दिखाई देती हैं। इन पट्टियों की संख्या दस तक हो सकती है। ये सभी पट्टियां ऊर्ध्वाधर (वर्टिकल) रहती हैं। पट्टियों वाले ऐसे ध्रुवीय प्रकाश को किरणयुक्त मेहराब कहा जाता है। ऐसे ध्रुवीय प्रकाश को सक्रिय ध्रुवीय प्रकाश भी कहा जाता है। अधिक सक्रिय ध्रुवीय प्रकाश में पट्टियां लहरदार अथवा तहदार रहती हैं। किरणयुक्त या सक्रिय ध्रुवीय प्रकाश प्राय: गतिशील दिखाई देता है। यह लगभग एक सौ मीटर प्रति सेकंड की गति से खिसकता दिखाई देता है। जब किरणयुक्त ध्रुवीय प्रकाश को निकट से देखा जाता है तो किरणें एक छोटे स्थान पर सिमटती दिखाई देती हैं जिसके कारण अंतत: पंखे जैसी आकृति विकसित होती है। इस आकृति को मुकुट (कोरोना) कहा जाता है।
कभी-कभी किरणयुक्त ध्रुवीय प्रकाश टूटकर छोटे-छोटे टुकड़ों में बिखर जाता है तथा पूरे आकाश में फैला हुआ दिखाई देता है। ये छोटे टुकड़े बादल के समान दिखाई पड़ते हैं। इन टुकड़ों को ध्रुवीय प्रकाशीय चकत्ते (औरोरल पैचेज़) कहा जाता है। ऐसा दृश्य प्राय: आधी रात के बाद दिखाई देता है। कभी-कभी एक और विशिष्ट प्रकार का ध्रुवीय प्रकाश दिखाई देता है। इसमें अंतरिक्ष के काफी बड़े भाग में अंगारे जैसी दहक दिखाई पड़ती है। इसका रंग प्राय: लाल रहता है। ऐसा दृश्य तीव्र भूचुम्बकीय आंधियों के दौरान ही दिखाई देता है।
ध्रुवीय क्षेत्रों में ध्रुवीय प्रकाश लगभग रोज़ ही दिखाई पड़ता है। जैसे-जैसे हम ध्रुवों से विषुवत रेखा की ओर बढ़ते हैं, वैसे-वैसे ध्रुवीय प्रकाश दिखाई पड़ने की बारम्बारता क्रमश: घटती जाती है। हालांकि ध्रुव क्षेत्रों में रात्रि के दौरान ध्रुवीय प्रकाश प्राय: जगमगाता दिखाई देता है, परन्तु इतना तीव्र बहुत कम अवसरों पर रहता है कि इसे सुदूर अक्षांशीय क्षेत्रों से भी देखा जा सके। ध्रुवीय प्रकाश प्राय: पृथ्वी पर स्थित दो चुम्बकीय या भौगोलिक ध्रुवों के निकटवर्ती क्षेत्रों में ही दिखाई देता है। पृथ्वी के चुम्बकीय ध्रुव भौगोलिक ध्रुवों से थोड़ा अलग स्थित हैं। उत्तरी चुम्बकीय ध्रुव 73.5 डिग्री उत्तरी अक्षांश तथा 100 डिग्री पश्चिमी देशांतर पर पश्चिमोत्तर ग्रीनलैंड में एक स्थान पर स्थित है। दक्षिणी चुम्बकीय ध्रुव 71.5 डिग्री दक्षिणी अक्षांश तथा 151 डिग्री पूर्वी देशांतर पर एंटार्कटिका में वोस्तोक के निकट पर स्थित है।
ध्रुवीय प्रकाश चुम्बकीय ध्रुवों के चारों ओर लगभग 23 डिग्री के दायरे में दिखाई पड़ता है। उदाहरणार्थ उत्तरी ध्रुवीय प्रकाश जिन क्षेत्रों में दिखाई देता है उनमें शामिल हैं स्कैंडिनेविया का उत्तरी छोर, आइसलैंड का दक्षिणी छोर, हड्सन की खाड़ी का दक्षिणी भाग, उत्तरी लेब्राडोर, मध्य अलास्का तथा साइबेरिया के समुद्री किनारे। उत्तरी ध्रुवीय प्रकाश के दृष्टिगोचर होने वाले क्षेत्रों की दक्षिणी सीमा रेखा सैन फ्रांसिस्को, मेक्फिस तथा एटलांटा से होकर गुज़रती है। यह सीमा रेखा सौर ज्वालाओं में वृद्धि के दौरान कुछ और दक्षिण की ओर खिसक जाती है। कभी-कभी तो यह सीमा रेखा खिसक कर मेक्सिको सिटी तथा क्यूबा जैसे सुदूर दक्षिण में स्थित स्थानों तक पहुंच सकती है। (स्रोत फीचर्स)