डॉ. किशोर पंवार
सोशल मीडिया एक शक्तिशाली साधन है। इसने सूचनाओं के संसार को द्रुतगामी एवं सर्वसुलभ बना दिया है। परन्तु हर तकनीक के दो पहलू होते हैं। ऐसा ही कुछ इन दिनों सोशल मीडिया के साथ हो रहा है। पिछले कुछ दिनों से वाट्सएप पर एक जानकारी साझा की जा रही है। इसमें घरों में लगाए जाने वाले इन डोर प्लांट को ज़हरीले एवं प्राणघातक बताया जा रहा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि इनमें से कुछ तो 5-15 मिनट में जान ले लेते हैं। इनमें डंबकेन (डीफनबेकिया), मनी प्लांट, पॉइनसेटिया और ग्लोरी लिली शामिल हैं।
इसके बिलकुल उलट इन सभी पौधों को नासा द्वारा 1989 में जारी रिपोर्ट में घरेलू प्रदूषण से मुक्ति दिलाने वाले बताया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन और एसोसिएटेड लेंडस्केप कॉन्ट्रेक्टर्स ऑफ अमेरिका भी कहते हैं कि घरेलू वायु प्रदूषकों के हानिकारक प्रभाव से बचने के लिए इन्हें अपने घर के अन्दर, हो सके तो बेडरूम में रखें। जिन घरों और ऑफिसों में हवा की आवाजाही कम होती है और एअरकंडीशनरों के चलते प्राकृतिक हवा का प्रवेश नहीं हो पाता वहां रहने व काम करने वाले लोग सिक बिल्डिंग सिंड्रोम से पीड़ित हो जाते हैं। इसमें एलर्जी, सिरदर्द, चक्कर आना, जी घबराना और कैंसर तक हो सकता है। स्वास्थ्य के लिए हानिकारक घरेलू प्रदूषकों में फॉर्मेल्डिहाइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड्स तथा कार्बन मोनोऑक्साइड के अलावा कुछ जैविक प्रदूषक भी शामिल हैं। जैविक प्रदूषकों में धूल, फफूंद और परागकण जैसे एंटीजेन शामिल हैं।
फार्मेल्डिहाइड गैस कालीनों, पार्टिकल बोर्ड, व्यक्तिगत केअर उत्पाद, लम्बे समय तक टिकी रहने वाली सुगंधियों आदि से निकलती है और आंख, नाक, गले में एलर्जी पैदा करती है और कैंसरकारी भी है। बेंज़ीन, ज़ायलीन, टालुइन जैसे वाष्पशील कार्बनिक पदार्थ एअर फ्रेशनर्स, फर्नीचर, कालीनों, हेअर स्प्रे और अन्य विलायकों से निकलते हैं। ये आंख, नाक, गले को उत्तेजित करते हैं तथा लीवर, किडनी और दिमाग की कोशिकाओं के लिए हानिकारक हैं।
कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रोजन डाईऑक्साइड गैसेंे धुएं में पाई जाती है। ये गैसें, सिरदर्द, एकाग्रता में कमी, उल्टी, फेफड़ों और आंख में जलन पैदा करती हैं।
घरेलू सजावटी पौधे एवं उनके गमलों में रखी मिट्टी जैविक प्रदूषकों से भी हमें बचाती है। मिट्टी में यदि एक्टीवेटेड चारकोल मिला हो तो ये पौधे ज़्यादा अच्छी तरह से प्रदूषण निवारण का कार्य करते हैं। प्रति 100 वर्गफुट के हिसाब से कमरे में एक ऐसा पौधा रखा जाना चाहिए।
घरों-ऑफिसों में जिन पौधों को लगाने की पैरवी वैज्ञानिक संस्थानों ने की है उनमें डंबकेन, ग्लोरी लिली, हार्टलीफ फिलोडेंड्रान, पीस लिली, फ्लेमिंगो लिली, स्पाइडर प्लांट, स्नेक प्लांट और ग्वारपाठा (ऐलोवेरा) शामिल हैं।
मैं वनस्पति शास्त्र का शिक्षक हूं, अत: आजकल मुझे रोज़ ऐसे फोन आ रहे हैं। क्या वाट्सएप पर साझा की जा रही बातें सच हैं? क्या डंबकेन, पॉइनसेटिया, मनी प्लांट सचमुच ज़हरीले हैं? ये तो सालों से हमारे ड्राइंग रूम और बगीचों की शोभा बढ़ा रहे हैं। मगर लोग समचमुच इनसे परहेज़ करने लगे हैं। ठेलों पर पौधे बेचने वालों ने बताया कि जो डंबकेन पहले लोग महंगा होने पर भी खरीदते थे, अब नहीं खरीद रहे हैं। मेरे कॉलेज में केशव नाम का माली पिछले 30 साल से पौधों की देखभाल, रख-रखाव कर रहा है। पिछले दिनों ही उसने डंबकेन के एक बड़े पौधे को काट-छांटकर दूसरे छोटे-छोटे गमलों में लगाया है। उसके पास एन्ड्राइड फोन नहीं है। अन्यथा वह भी यह काम करने से मना कर देता। घर पर मैं तीन-चार तरह के मनीप्लांट और लाल-पीले-सफेद पॉइनसेटिया की देखभाल करता हूं। मुझे आज तक कोई परेशानी नहीं हुई।
आइए इंटरनेट पर घरेलू प्रदूषण को कम करने वाले पौधों की जानकारी को देखते हैं। नासा के अनुसार ये पौधे हैं - ऐलो वेरा, स्पाइडर प्लांट, स्नेक प्लांट, गोल्डन पॉथोस, पीस लिली, फ्लेमिंगो लिली, ड्रेसीन, वीपिंग फिग, बैम्बू पाम और डम्बकेन। ये सभी फार्मेल्डिहाइड, बेंज़ीन, ज़ायलीन, अमोनिया और कार्बन मोनोऑक्साइड का सफाया करते हैं।
1. ऐलो वेरा (ग्वारपाठा) से तो आप परिचित ही हैं।
2. स्पाइडर प्लांट - वनस्पति विज्ञान में इसका नाम है क्लोरोफाइटम कोमोसम है। धोली मूसली इसका ही एक प्रकार है। इसकी बहुत सुन्दर हैंगिग बास्केट बनती है।
3. स्नेक प्लांट - इसे मदर-इन-लॉज़ टंग भी कहते हैं और यह सूखे पर्यावरण में भी फलता-फूलता है। इसके स्टोमेटा (पत्तियों के रंध्र) रात में खुलते हैं, अत: रात में भी यह बखूबी अपना काम करता रहता है।
4. गोल्डन पॉथोस - मनीप्लांट जैसा पौधा है जिसकी पत्तियां सुनहरी हरी आभा लिए रहती है। इसमें भी डंबकेन और मनीप्लांट की तरह सुई जैसे रेफाइड्स होते हैं।
5. पीस लिली और फ्लेमिंगो लिली - एक का पुष्पक्रम सफेद है तो दूसरे का फ्लेमिंगो पक्षी की चोंच के रंग का।
6. ड्रेसीन - यह भी एक परिचित सजावटी पौधा है जिसके कई प्रकार मिलते हैं। रेकनेक ड्रेसीना, रेड मार्जिन ड्रेसीना आदि।
7. वीपिंग फिग - इसका वैज्ञानिक नाम फाइकस बेंजामिना है। यह एक सुन्दर गहरी हरी चमकदार पत्तियों वाली झाड़ी है। न काटें तो पेड़ बन जाता है।
8. बैम्बू पाम - खजूर जैसी पत्तियों वाले इस पौधे का वनस्पति वैज्ञानिक नाम है चेमिडोरिया सेफ्रिटिज़ी।
9. डम्बकेन - सबसे ज़्यादा चर्चा वाट्सएप पर इसी की है। नाम है डिफेनबेकिया। इसके कई प्रकार हैं - बड़े-बड़े चितकबरे पत्तों से लेकर गहरे हरे व सुनहरे पत्तों तक।
सवाल यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन और नासा की रिपोर्ट पर भरोसा करें या वाट्सएप पर चल रहे मेसेजों पर। मेरा सुझाव है कि सुनी सुनाई बातों पर भरोसा न करें। ज़रा इंटरनेट को खंगाले, थोड़ा पढ़े पढ़ाएं।
इनमें से अधिकांश पौधे छाया प्रिय हैं, अत: कम धूप और कम पानी में अच्छी तरह से वृद्धि करते हैं। ये जिन हानिकारक प्रदूषकों को हवा से हटाते है वे प्रकारान्तर से इनके भोजन का हिस्सा बन जाते है। रही बात डम्बकेन, मनीप्लांट और गोल्डन पॉथोस में सुइयों की जिनकी वजह से इन्हें ज़हरीला और प्राणघातक बताया जा रहा है तो तथ्य यह है कि ये सुइयां कैल्शियम ऑक्सलेट से बनी होती हैं। अरबी के पत्तों के भजिए हम खाते हैं उनमें भी ये सुइयां भरी पड़ी हैं। उन्हें पकाकर खाने से किसी की जान नहीं गई। बस इतना है कि ठीक से पकाया न जाए तो ये मुंह और गले में चुभती हैं। मगर डम्बकेन, मनीप्लांट और गोल्डन पॉथोस खाने को कौन कह रहा है? मेरा तो कहना यही है कि इन्हें छूने से कुछ नहीं होता। हां इसमें इस बात की सावधानी ज़रूर रखें कि इनका रस आंखों में न जाए।
दरअसल ये सभी खूबसूरत इनडोर पौधे आपको वायु प्रदूषकों से बचाते हैं। थोड़ी सावधानी तो ज़रूरी है ही चाहे डंबकेन हो, कनेर या दूध भरा आंकड़ा। विशेषकर बच्चों से इन्हें दूर रखें। उन्हें इनके बारे में बतलाएं। इनकी अच्छाइयां भी और सावधानियां भी। किसी भी अनजान पौधों को न चखे, न छुएं। ये आपकी सेहत का ख्याल ऐसे ही रखते रहेंगेे। (स्रोत फीचर्स)