चूहों पर किए गए अनुसंधान से पता चला है कि बीमारी के दौरान अपने भोजन में फेरबदल करके स्वयं को अपने ही प्रतिरक्षा तंत्र से सुरक्षित रखा जा सकता है। बात थोड़ी अजीब लगती है कि शरीर को खुद अपने प्रतिरक्षा तंत्र से बचाया जाए मगर येल विश्वविद्यालय के रुसलैन मेडज़ितोव और उनके साथियों ने बताया है कि अलग-अलग किस्म के संक्रमणों में एक-सा भोजन देना उचित नहीं है।
प्रयोगों में उन्होंने देखा कि फ्लू से पीड़ित चूहों को ग्लूकोज़ देने से उनकी जान बच गई मगर यदि यही ग्लूकोज़ बैक्टीरिया संक्रमण से बीमार चूहों को दिया गया तो वे जान से हाथ धो बैठे। और आश्चर्य की बात यह थी कि ग्लूकोज़ का यह असर तब भी हुआ जब चूहों के शरीर में फ्लू का वायरस अथवा बैक्टीरिया मौजूद नहीं था, मात्र उनके द्वारा पैदा किया गया रोगजनक रसायन था।
दरअसल, होता यह है कि जब भी शरीर में कोई बाहरी सूक्ष्मजीव प्रवेश करता है तो प्रतिरक्षा तंत्र उसके जवाब में शोथ (सूजन) पैदा करता है। प्रतिरक्षा तंत्र की यही प्रतिक्रिया अस्वस्थता के अधिकांश लक्षणों के लिए ज़िम्मेदार होती है। कई बार यह जानलेवा भी साबित होती है। वैज्ञानिकों का यह विश्वास है कि किसी संक्रमण से बचने में रोगजनक वायरस या बैक्टीरिया का सफाया तो करना ही होता है, स्वयं अपनी प्रतिरक्षा-प्रतिक्रिया से भी बचना होता है।
जब प्रायोगिक चूहों को संक्रमित किया गया तो उनकी भूख मर गई। मगर वायरस से संक्रमित चूहे जल्दी ही भोजन करने लगे मगर बैक्टीरिया संक्रमित चूहों में भूख जल्दी नहीं लौटी। इसका कारण संभवत: यह है कि वायरस और बैक्टीरिया शरीर में सूजन पैदा करने का काम अलग-अलग ढंग से करते हैं। इस वजह से वायरस संक्रमण से जूझने में भोजन करना मददगार होता है मगर बैक्टीरिया के संक्रमण के मामले में यह हानिकारक हो सकता है।
इस बात की जांच के लिए शोधकर्ताओं ने एक प्रयोग किया। पहले तो चूहों को ऐसे अणु दिए गए जिनसे वायरस-नुमा अथवा बैक्टीरिया-नुमा सूजन पैदा हो जाए। इसके बाद उन्हें या तो ग्लूकोज़ दिया गया या ग्लूकोज़ को अवरुद्ध कर दिया या उनकी किसी अन्य पाचन क्रिया में बाधा पहुंचाई गई। देखा गया कि चूहों को वायरस संक्रमण के दौरान अपने मस्तिष्क की कोशिकाओं की रक्षा के लिए ग्लूकोज़ की आवश्यकता थी क्योंकि जिन चूहों को ग्लूकोज़ नहीं दिया गया था उनमें मस्तिष्क की कोशिकाएं मारी गईं। दूसरी ओर, बैक्टीरिया संक्रमण से ग्रस्त चूहों को तब ज़्यादा लाभ हुआ जब उन्हें ग्लूकोज़ नहीं दिया गया।
इस अंतर के कई कारण हो सकते हैं। जैसे एक तो यह हो सकता है कि ग्लूकोज़ को पचाने के चक्कर में ढेर सारे मुक्त मूलक पैदा होते हैं। दूसरा यह भी हो सकता है कि जब शरीर को ग्लूकोज़ नहीं मिलता तो वह ऊर्जा के लिए वसा का उपयोग शु डिग्री कर देता है। यह पहले भी देखा गया है कि वसा-आधारित भोजन के पाचन से कुछ अणु बनते हैं जो मस्तिष्क की कोशिकाओं को बचाते हैं। (स्रोत फीचर्स)