Sandarbh - Issue 155
जीवाश्म के अन्दर संरक्षित जीवाश्म - पारुल सोनी [Hindi, PDF]
आपने टायरेनोसॉरस रेक्स (टी-रेक्स) का नाम तो सुना ही होगा? ज़बरदस्त शक्ति और खूँखार प्रवृत्ति वाले डाइनोसॉर जो अब विलुप्त हो चुके हैं। पर क्या आप जानते हैं कि कुछ समय पहले टायरेनोसॉर परिवार के ही एक सदस्य – गॉर्गोसॉरस लिब्रेटस – का जीवाश्म खोजा गया जिसके पेट में दो अन्य डाइनोसॉर के अवशेष पाए गए? रोमांचक है न? मगर गॉर्गोसॉर तो अपने शिकार की हड्डियाँ तक चबा जाते थे, तब भला यह कैसी बदहज़्मी है? इसके पीछे क्या राज़ है, यह जानने के लिए पढ़िए पारुल सोनी का यह लेख।
समय के गहरे अँधेरे से निकली एक चिड़िया - भारत भूषण [Hindi, PDF]
ज़रा सोचिए, एक विलुप्त हो चुका पक्षी, कई दशकों बाद आपको अचानक किसी बरसात की रात जंगल में दिख जाए! आप दौड़े-दौड़े जाते हैं और वन विभाग को सूचित करते हैं। खबर आग की तरह फैल जाती है, और तुरन्त उस जंगल का करीब 500 वर्ग किलोमीटर का इलाका संरक्षित घोषित कर दिया जाता है। क्या आप ठीक तो हैं? कहानी अविश्वसनीय और हैरत-अंगेज़ है, मगर सच है। जंगल में मोर (यहाँ, जेरडॉन कोर्सर) नाचा, किसने देखा? जानिए, इसी कहानी के सच्चे किरदार, भारत भूषण, द्वारा लिखित इस लेख में।
गणित में सन्दर्भगत समस्याएँ: स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा का दृष्टिकोण - हृदय कान्त दीवान [Hindi, PDF]
जहाँ देशभर में पाठ्यचर्या रूपरेखाओं में ज़ोर दिया जाने लगा है कि कौन-सा गणित किस तरह पढ़ाया जाए, वहीं इस बात पर गौर करना और भी ज़रूरी हो जाता है कि किस तरह के गणित को ‘महत्वपूर्ण गणित’ माना जा रहा है। जहाँ मात्र संक्रियाओं की ‘मानक’ विधियों को रटवा दिए जाने को परम-साध्य माना जाता है, शिक्षार्थियों के सन्दर्भ से अलग-थलग कर दिए गए ऐसे गणित शिक्षण के ज़रिए क्या गणित सीखा भी जा सकता है? इसे समझने के लिए गणित शिक्षण में इस्तेमाल किए जा रहे सवालों का आकलन करना एक उपयोगी ज़रिया हो सकता है। हृदय कान्त का यह लेख यही कोशिश करता है।
कॉपी संस्कृति - मीनू पालीवाल [Hindi, PDF]
मान लीजिए आप किसी स्कूली कक्षा में निरीक्षण के लिए जाते हैं। वहाँ ठीक तरह पढ़ाई हो रही है या नहीं, बच्चे कुछ सीख भी रहे हैं या नहीं, यह आप कैसे जाँचेंगे? चिन्ता नहीं कीजिए, इसमें बच्चे खुद आपकी मदद करेंगे। आखिर आप जैसे पच्चीसों आए-गए! सभी ने बच्चों की कॉपी देखी – काम पूरा है या नहीं। आप भी उसी संस्कृति का पालन करेंगे, ऐसा विश्वास है बाल मन में। तो लीजिए, उठाइए कॉपी और गौर से देखिए, क्योंकि अगर गौर से नहीं देखेंगे तो इस संस्कृति की बारीक परतें नज़र नहीं आएँगी। ऐसी ही बारीक परतों की पड़ताल करता है, मीनू पालीवाल का यह लेख।
सामाजिक अध्ययन की पुस्तकें एवं नक्शे - प्रकाश कान्त [Hindi, PDF]
दक्षिण से उत्तर की दिशा में बहती कोई नदी क्या ढलान के विरुद्ध बहती है? क्योंकि नक्शे में तो वह नीचे से ऊपर बहती नज़र आती है। वैसे, नक्शा तो सपाट होता है, तो धरती गोल कैसे? क्या मतलब ‘पूर्व दिशा बाईं ओर भी हो सकती है’? ज़ाहिर है, ऐसे सवाल नक्शों से असहज रिश्ते के प्रतीक हैं। मगर ये असहज रिश्ते ही सामाजिक अध्ययन की कई स्कूली कक्षाओं की सच्चाई हैं। अपनी किताब सामाजिक अध्ययन नवाचार के इस अंश में प्रकाश कान्त एकलव्य के सामाजिक अध्ययन कार्यक्रम के दौरान अपने अध्यापन अनुभवों के आधार पर कक्षा में नक्शों के महत्व पर बात करते हैं।
पुस्तक समीक्षा: जामलो चलती गई - रुबीना खान [Hindi, PDF]
जामलो चलती गई की इस पुस्तक समीक्षा में रुबीना चित्रों की नज़र से इस किताब के महत्व को समझने की कोशिश करती हैं। शब्दों व चित्रों के आपसी जुड़ाव, चित्रांकन में रंगों के प्रयोग, कला की शैली तथा माध्यम जैसे बिन्दुओं पर खास तौर पर गौर किया गया है।
नमक और महात्मा गांधी [Hindi, PDF]
भारत में नमक उत्पादन का इतिहास बेहद पेचीदा और उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। जहाँ एक ज़माने में उड़ीसा का नमक पूरी दुनिया में निर्यात किया जाता था, वहीं ऐसा आखिर क्या हुआ जो स्वतंत्रता के बाद भारत नमक का आयातक बन गया? इसमें गांधी के नेतृत्व में किए गए नमक सत्याग्रह की क्या भूमिका है? और इन सब राजनैतिक-औपनिवेशिक झमेलों के बीच, नमक का उत्पादन करने वाले मज़दूरों का क्या हाल रहा? ऐसे ही कई रोचक व ज़रूरी सवालों के जवाबों की तलाश के लिए पढ़िए मार्क कुर्लांस्की की किताब सॉल्ट: अ वर्ल्ड हिस्ट्री से लिए गए इस अध्याय को।
कृष्ण विवर - जयंत विष्णु नारलीकर [Hindi, PDF]
कृष्ण विवर, यानी ब्लैक होल का चक्कर लगाते यान से पृथ्वी पर लौटने पर प्रकाश की दुनिया ही बदल गई। आखिर रोशनी तक निगल जाने वाला, समय को धीमा कर देने वाला महाशक्तिशाली अतिसंकुचित कृष्ण विवर कोई छोटी चीज़ थोड़े ही है! मगर ऐसा क्या हुआ प्रकाश के साथ? जानने के लिए पढ़िए, जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा पाँच दशक पहले लिखी यह विज्ञान कथा।
बाल सफेद क्यों होते हैं? - सवालीराम [Hindi, PDF]
मेहँदी लगाई, लगाया डाई – अब जो हो चुके सफेद, तो केश हमारे सफेद ही रहे! मगर इस सफेदी की चमकान के पीछे राज़ क्या है? धूप में तो सफेद नहीं ही किए होंगे किसी ने बाल। तो बाल सफेद क्यों होते हैं? जानिए, सवालीराम ने इस सवाल का क्या जवाब दिया।