Sandarbh - Issue 146 (May-June 2023)
रोज़-रिंग्ड पेराकीट और उनके रिश्तेदार – विपुल कीर्ति शर्मा [Hindi, PDF]
सुन्दर, नटखट, बतियाते तोते। आखिर तोते किसे पसन्द नहीं? पर क्या तोतों को हम पसन्द होंगे? इस लेख में तोतों की रंगीन खूबियाँ, उनकी बुद्धिमत्ता और संकट में पड़ी उनकी दुनिया के बारे में विस्तार से कई दिलचस्प जानकारियाँ मिलती हैं। इन जानकारियों के साथ ही, ‘एलेक्स’ नामक विश्वप्रसिद्ध तोते के जीवन और प्रशिक्षण से जुड़े कुछ किस्से भी पढ़ने को मिलते हैं।
सिकल सेल एनीमिया: एक आणविक रोग – अंजु दास मानिकपुरी [Hindi, PDF]
क्या है सिकल सेल एनीमिया? क्या होता है जब हमारी गोल लाल रक्त कोशिकाएँ हँसिए के आकार में तब्दील हो जाती हैं? ऐसा क्यों होता है? अंजु दास के इस लेख में न सिर्फ इस बीमारी के कारणों और इतिहास के बारे में जानने को मिलता है, बल्कि इस पर भी सोचने का मौका मिलता है कि वैज्ञानिक कार्य किस हद तक सामाजिक और राजनैतिक पूर्वाग्रहों से गुँथा हुआ है।
बीती ताहि ध्यान रख – कालू राम शर्मा [Hindi, PDF]
खोजबीन के आनन्द को जारी रखते हुए, इस बार बच्चों की टोली मास्साब के बगैर, अपने स्तर पर प्रयोग करने की कोशिश करती है। सामग्री खोजने और प्रयोग करने की क्षमता तो उनके पास है, मगर वे ‘अगले कदम पर क्या और क्यों करना है’ जैसे सवालों से जूझा करते हैं। ऐसे में, मास्साब के हस्तक्षेप की गुंजाइश और पिछली कक्षाओं से प्राप्त ज्ञान की अहमियत पर विचार करने के लिए लेखक पाठकों और पात्रों को विवश करते हैं।
यूरेका! यूरेका! – हरिशंकर परसाई [Hindi, PDF]
क्या विज्ञान असंख्य संसाधनों का मोहताज है? सैकड़ों वर्ष पूर्व, सिरेकस साम्राज्य के एक वैज्ञानिक, आर्कमिडीज़, सीमित संसाधनों के होते हुए भी ऐसे-ऐसे आविष्कार कर गए कि आज भी उनके सिद्धान्तों और आविष्कारों का इस्तेमाल दुनिया करती है। न केवल इस कहानी में उल्लेखित आविष्कार हैरत में डालते हैं, बल्कि उन आविष्कारों के पीछे की आवश्यकताएँ भी विस्मित करती हैं। और हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि मानव जाति और विज्ञान का सम्बन्ध, इतिहास की नज़र से, कितना पेचीदा रहा है। बड़ा रोचक है, “यूरेका! यूरेका!” चिल्लाते, इस दीवाने वैज्ञानिक की कहानी को हरिशंकर परसाई की कलम से पढ़ना।
पढ़ने की न उम्र होती है न जगह – मंजू कुमारी [Hindi, PDF]
मंजू कुमारी का यह लेख बड़ी सरलता से कई मुश्किल सवाल खड़े करता है। एक गाँव के एक छोटे-से मोहल्ला केन्द्र में भी, देखना चाहो तो, किस तरह समाज, शिक्षा, बच्चे, बड़े-बूढ़ों के ताने-बाने आपस में गुँथे पाए जा सकते हैं, यह लेख इन सब पर मूर्त-अमूर्त टिप्पणी करता है। लेख के अन्त में, यह सवाल पूछा जाना कि क्या आप आज़ाद हैं, न सिर्फ उस किस्से के किरदारों को, बल्कि पाठकों को भी खुद के भीतर झाँकने पर मजबूर करता है।
शिक्षकों के पेशेवर विकास की सम्भावनाएँ – रश्मि पालीवाल [Hindi, PDF]
शिक्षकों की शिकायतों, अपेक्षाओं और प्रेरणादायक अनुभवों की अपेक्षा हमें शिक्षकों के अपने विकास और सम्भावनाओं पर बात करते लेख और चर्चाएँ कम ही मिलती हैं। सितम्बर 2022 में एपीएफ द्वारा सृजन समूह से जुड़े शिक्षकों के लिए आयोजित सम्मलेन में ऐसे कई स्वरों की गूँज मिली जिनमें शिक्षकों के ‘आत्मिक विकास’ की सम्भावनाओं को सुना जा सकता है। इन्हीं स्वरों को रश्मि ने इस लेख में पिरोया है।
सृजन समूह – एक प्रधानाध्यापक के अनुभव – धर्मपाल गंगवार [Hindi, PDF]
शिक्षकों के क्षमता संवर्धन के लिए अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन की पहल – सृजन समूह – किस तरह कारगर रही, यह ऊधम सिंह नगर के एक विद्यालय के प्रधानाध्यापक, धर्मपाल गंगवार, के इस लेख में साफ-साफ देखा जा सकता है। धर्मपाल इस लेख में एक शिक्षक के लिए पढ़ने-लिखने का माहौल और कार्य व पाठ योजना बनाने की अहमियत पर ज़ोर देते हैं। और यह इसलिए कि ऐसा उन्होंने भी करके देखा है।
पेगी मोहन के आलेख पर प्रतिक्रिया – हरजिन्दर सिंह ‘लाल्टू’ [Hindi, PDF]
संदर्भ के पिछले अंक (अंक 145) में छपे पेगी मोहन के आलेख ‘क्या अँग्रेज़ी भारत के भविष्य की भाषा है?’ पर ज्वलन्त प्रतिक्रिया करता लाल्टू का यह लेख बेहद कड़े और अहम सवाल उठाता है, न सिर्फ पेगी के आलेख की सीमाओं से जुड़े, पर उसके परे जाकर हमारे अस्तित्व और भविष्य से जुड़े भी। और ये महज़ ‘पूछे गए’ सवाल ही नहीं हैं, जिन्हें पढ़कर अनदेखा किया जा सके, ये सवाल जवाब माँगते हैं और बचने की गुंजाइश खत्म करते हैं। पढ़ें, आग्रह करते हैं।
भूखा सेप्टोपस – सत्यजीत रे [Hindi, PDF]
परिमल की मुलाकात कान्ति बाबू से होती है। कान्ति बाबू एक वनस्पतिशास्त्री हैं जिनका रुझान मांसाहारी पौधों में है। सेप्टोपस भी ऐसा ही एक मांसाहारी पौधा है। लेकिन, कान्ति बाबू परिमल को, बन्दूक साथ लाने के आग्रह के साथ, अपने घर पर आमंत्रित क्यों करते हैं? पढ़िए, सत्यजीत रे की यह रोमांचक कहानी।
कुकर में डिब्बों के नीचे जाली क्यों रखी जाती है? – सवालीराम [Hindi, PDF]
सवालीराम के लिए इस बार का सवाल सीधे रसोईघर से आया है। कुकर में डिब्बों के नीचे जाली रखी जाती है। मगर क्यों?