सवाल: पक्षी सोते वक्त पेड़ से गिरते क्यों नहीं हैं?

जवाब: पक्षी अपने नुकीले पंजों से पेड़ की डाली को घेरकर उसे जकड़ लेते हैं। सवाल ये उठता है कि वे नींद में भी इन डालियों को कैसे पकड़े रहते हैं। अगर आप किसी चीज़ को पकड़े हुए सो जाएँ तो एक समय के बाद आपकी पेशियाँ (muscles) शिथिल हो जाएँगी और आपके हाथ से वह चीज़ छूट जाएगी। तो ऐसा कैसे होता है कि पक्षियों के पाँव सोते समय भी शिथिल नहीं पड़ते और वे डाली को नहीं छोड़ते?
पक्षी अपने पंजों का इस्तेमाल करके डालियों को पकड़े रहते हैं और नींद में होते हुए भी वे पेड़ से गिरते इसलिए नहीं हैं क्योंकि यह एक अनैच्छिक सहज क्रिया होती है। जब वे किसी डाली पर उतरते हैं और उस पर बैठने के लिए अपनी टाँगों को मोड़ते हैं, तो उनके पंजे अपने आप उस डाली को जकड़ लेते हैं। उनके पाँव डाली को तभी छोड़ते हैं, पंजों की पकड़ तभी छूटती है जब उनकी टाँगें सीधी हो जाती हैं। जब तक पक्षी डाली पर बैठे रहते हैं, वे उसे जकड़े रहते हैं। दूसरे शब्दों में, अगर पक्षी चाहें भी तो वे डाली को तब तक नहीं छोड़ सकते जब तक कि उनकी टाँगें (टखने) मुड़ी रहती हैं।

पक्षी किस तरह डाली को अपने पंजों से जकड़ लेते हैं?
इसे समझने के लिए हमें उन सारी अनैच्छिक क्रियाओं को समझना होगा जो  उनकी  टाँगों  की  एक  कण्डरा (tendon) द्वारा प्रेरित होती हैं। इस क्रियाविधि को सबसे पहले चमगादड़ों में देखा गया था।
पक्षियों के पाँव और पाँव की उंगलियाँ अधिकांशत: मज़बूत कण्डराओं और हड्डियों से बने होते हैं, और इनकी त्वचा पर खूब शल्क होते हैं। (पक्षियों के शरीर के इन स्थानों पर नसें, रक्त नलिकाएँ और पेशियाँ बहुत कम होती हैं, इसीलिए तापमान कम होने पर भी वे धातु की बनी ठण्डी छतों और वस्तुओं पर आकर बैठ जाते हैं।) कण्डरा एक मज़बूत संयोजी ऊतक होता है जो आम तौर पर पेशी को हड्डी से जोड़ता है और तनाव के बल को झेलने में समर्थ होता है। कण्डरा कॉलेजन नाम के प्रोटीन से बनती हैं।
पक्षियों के शरीर में टाँगें, कण्डरा, उंगलियाँ और पेशियाँ इस तरह से बनी होती हैं कि उनका डालियों पर बैठना लगभग स्वत: ही हो जाता है (या यूँ कहें कि इससे अलग ढंग से बैठना उनके लिए सम्भव ही नहीं है)। कैसे? पहले एक पक्षी की टाँग का चित्र (चित्र-1) देखें।
चित्र में पंजे की उंगलियाँ तो दिखाई दे ही रही हैं पर पाँव के ऊपर मौजूद लम्बी हड्डी को देखें। वह दरअसल उनका टखना है। टाँग का निचला हिस्सा बनाने वाली टिबिआ और फिब्युला हड्डियाँ और ऊपर मौजूद फीमर हड्डी पक्षियों के पंखों के कारण छुपी रहती हैं।

पक्षियों  में  हमारे  अकिलीज़ (achilles) टैंडन की तरह दो पतली कण्डरा पाई जाती हैं जिन्हें फ्लेक्सर टैंडन कहा जाता है। ये पिण्डली की पेशी से शु डिग्री होती हैं जो टखने के थोड़ा ऊपर तक जाती हैं, फिर ये पाँव के पीछे तक जाती हैं, और फिर पंजों की उंगलियों के नीचे जाकर दोनों जुड़ जाती हैं।
जब कोई पक्षी किसी डाली पर बैठता है, उसका टखना मुड़ जाता है और ये कण्डरा तन जाती हैं। जब कण्डरा तन जाती हैं तो ये उँगलियों को खींचती हैं और वे डाली को घेर लेती हैं। डाली को पकड़े रहने में पेशियों का कोई प्रयास नहीं होता। बल्कि यह बहुत सहज प्रक्रिया होती है। पेशियों को तानकर रखने (अगर आप किसी डाली को अपनी मुट्ठियों/हाथों से पकड़कर झूल रहे हों तो आपको भी ऐसा ही करना पड़ेगा) में मूल्यवान ऊर्जा खर्च करने की बजाय पक्षी के शरीर का तंत्र ऐसा होता है कि वह डाली से ‘बँध’ जाता है। यह अनैच्छिक सहज क्रिया सोते हुए पक्षी को डाली से गिरने से बचाती है। पक्षी की कण्डरा तब तक तनी रहती हैं जब तक कि उसकी टाँगें सीधी नहीं हो जातीं।
पक्षी जब खड़े होते हैं, तो उनकी टाँगें सीधी हो जाती हैं, कण्डरा ढीली पड़ती हैं, उनकी उँगलियाँ डाली को छोड़ देती हैं और पाँव ‘मुक्त’ हो जाते हैं। सो जाने पर उनकी पकड़ नहीं बदलती क्योंकि पक्षी का वज़न उसकी टाँगों को डाली से बाँधे रखता है।

आपके करने के लिए एक अनैच्छिक सहज क्रिया

हम एक सरल गतिविधि करके अनैच्छिक सहज क्रिया को समझ सकते हैं।
अपने एक हाथ को सामने की तरफ फैलाएँ, हथेली खुली हुई और ऊपर की तरफ रखें, उंगलियों को पूरा खोलकर ढीला छोड़ दें। अब अपने दूसरे हाथ की हथेली और उंगलियों का इस्तेमाल करके फैलाए हुए हाथ के निचले हिस्से को, कलाई के जोड़ के करीब छोटी उंगली बराबर दूरी पर पकड़ें। अपनी पकड़ को और मज़बूत करें और फिर छोड़ दें, फिर कसकर पकड़ें, फिर छोड़ दें...।
आपने ध्यान दिया कि जब आप अपनी पकड़ को मज़बूत करते हैं तो फैलाए हुए हाथ की ढीली पर पूरी खुली हुई उंगलियों पर क्या असर पड़ता है? क्या वे अपने आप भीतर की ओर नहीं मुड़ने लगतीं, और फिर जैसे ही अपनी पकड़ को ढीला करते हैं तो वे वापस पूरी तरह खुल जाती हैं? इसे करते रहिए और देखिए...।
यहाँ इस बात को समझना बहुत ज़रूरी है कि हमारा मस्तिष्क उंगलियों को भीतर की ओर मुड़ने के लिए सक्रिय रूप से निर्देश नहीं देता। बल्कि यह हाथ के निचले हिस्से की एक खास जगह पर आपकी पकड़ के कसाव की वजह से लग रहे शारीरिक बल के कारण होता है। इस उदाहरण में तो, जब आप अपनी पकड़ को और मज़बूत करते जाते हैं, आपका मस्तिष्क आपकी उंगलियों को भीतर की तरफ न मुड़ने का सन्देश लगातार देता रहता है ताकि वे अपनी फैली हुई स्थिति में बनी रहें।

करके देखें: हाथ के निचले हिस्से की उसी जगह पर अपनी पकड़ को मज़बूत करें, लेकिन इस बार अपनी फैली हुई उंगलियों को उसी स्थिति में रखें। क्या आपको लगता है कि उंगलियों को इस स्थिति में रखना उतनी ही सहजता से हो रहा है जिस तरह उनका भीतर की ओर मुड़ना हो रहा था? क्या आपको लगता है कि आपका मस्तिष्क पिछली बार के विपरीत इस बार कोई सक्रिय भूमिका निभा रहा है?
संक्षेप में कहें तो पहले मामले में आपकी उंगलियों का मुड़ना इस बात पर निर्भर नहीं था कि आप उनसे क्या करवाना चाहते हैं। बल्कि उनका मुड़ना कलाई के ऊपर पकड़ने के परिणाम स्वरूप अनैच्छिक रूप से हुआ।

यह सहज क्रिया कैसे होती है, इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए आगे दिया गया चित्र (चित्र-2) देखें।
और पक्षियों के लिए यह बहुत अच्छा भी है, नहीं तो तेज़ हवा के दौरान उनके मस्तिष्क उनके पंजों को लगातार बस यह निर्देश देते रहते कि डालियों और तारों पर अपनी पकड़ को ढीला नहीं छोड़ना है।

कण्डरा को महसूस करें

हमारे शरीर में गति करने में कण्डराओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
चलिए हम किसी कण्डरा को हाथ से महसूस करके देखें। हर मनुष्य में अकिलीज़ टैंडन नाम की कण्डरा होती है। यह हमारे पाँव के पीछे पिण्डली की पेशी से शु डिग्री होकर एड़ी तक जाती है। अपनी टाँग को हाथ लगाकर इसे महसूस करें। यह कण्डरा हमारे पाँव को ऊपर-नीचे मोड़ने में मदद करती है। पाँव को मोड़ें और इस कण्डरा को महसूस करने की कोशिश करें। अकिलीज़ टैंडन में चोट लग जाने पर पाँव लगभग जड़ हो जाता है।

क्या सभी पक्षी अपने पंजों की उंगलियों को डालियों से ‘बाँध’ लेते हैं?
सभी प्रकार के पक्षियों पर किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया कि  बहुत-सी  प्रजातियों  में  ऐसी शारीरिक विशेषताएँ पाई जाती हैं (जैसे आगे और पीछे की ओर उन्मुख पंजे की उंगलियाँ, फ्लैक्सर टैंडन) जिनके सहारे वे ऊपर वर्णित डिजिटल टैंडन लॉकिंग क्रियाविधि के परिणामस्वरूप डालियों और तारों पर बिना गिरे बैठे रह सकते हैं। इन पक्षियों में पैसेरिन (पक्षियों की आधे से ज़्यादा प्रजातियाँ इस परिवार से ताल्लुक रखती हैं जिनमें कौए, बुलबुल और गौरैया इत्यादि शामिल हैं), कई प्रकार के शिकारी पक्षी (जैसे बाज़, उल्लू इत्यादि), कबूतर और पानी के पक्षी शामिल हैं। हम यह भी जानते हैं कि ये पक्षी इस क्रियाविधि को विभिन्न तरह की गतिविधियों में इस्तेमाल करते हैं जैसे तैरने में, पानी में आगे बढ़ने में, शिकार को पकड़ने में, किसी स्थान से कसकर चिपके रहने में, लटके रहने में और पेड़ पर चढ़ने में।
पक्षियों की इस जकड़ने वाली क्रियाविधि को खास तौर से पैसेरिन पक्षियों में अध्ययन किया गया है। लेकिन, हम यह पक्के तौर पर नहीं जानते कि क्या वे सारे पक्षी जिनकी शारीरिक संरचना ऐसी होती है कि वे इस प्रकार की पकड़ बना सकें, अपने पाँवों से डालियों को जकड़ते हैं, क्योंकि इनके बहुत-से अपवाद भी हैं। एक ऐसा ही अपवाद है यूरोपियन स्टार्लिंग जो पैसेरिन कुल का पक्षी है। ये स्टार्लिंग पक्षी (जो काफी कुछ हमारी मैना जैसे होते हैं) ऊपर वर्णित तरीके से डालियों को नहीं जकड़ते। वे अपने पंजे की गद्दियों द्वारा डालियों पर सन्तुलन बनाते हैं।

पक्षियों की नींद
अपने सवाल का जवाब ढूँढ़ते हुए हमें यह भी समझना होगा कि पक्षी सोते कैसे हैं। मनुष्यों के विपरीत पक्षी (और बहुत-से अन्य जानवर भी) एक बार में कई घण्टों की नींद नहीं लेते। वे छोटी अवधियों में सोते हैं। कई पक्षी तो ऐसे भी होते हैं कि उनके पूरे मस्तिष्क नहीं सोते, मस्तिष्क का कोई हिस्सा सचेत रहता है, इसीलिए कुछ पक्षी तो उड़ते हुए भी सो सकते हैं और कुछ सोते हुए भी शिकारियों से बचने के लिए सचेत रहते हैं। इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसे पक्षियों को ‘नींद में’ डालियों पर से न गिरने के लिए, उन्हें जकड़ने की अनैच्छिक क्रियाविधि का प्रयोग करना पड़ता है या नहीं।
तो हम यह कह सकते हैं कि ऐसे कई पक्षी हैं जो पेड़ों की डालियों पर बैठते हैं और डिजिटल टैंडन लॉकिंग के कारण बिना गिरे सोते रहते हैं, लेकिन यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि सारे-के-सारे पक्षी इसी तरह से पेड़ों पर अपना सन्तुलन बनाकर सोते हैं।


रुद्राशीष चक्रवर्ती: एकलव्य, भोपाल के प्रकाशन समूह के साथ काम करने के बाद इन दिनों स्वतंत्र रूप से शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: भरत त्रिपाठी: एकलव्य, भोपाल के प्रकाशन समूह के साथ कार्यरत हैं।