कमलेश चन्द्र जोशी


अपने नियमित स्कूल  भ्रमण  के दौरान   रुद्रपुर   के राजकीय   प्राथमिक विद्यालय,   आवास विकास कॉलोनी जाना हुआ। वंदना मैडम अभी सेवारत प्रशिक्षण से नई ऊर्जा लेकर लौटी हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें इस बार का प्रशिक्षण अच्छा  लगा।  आज उन्होंने चौथी-पाँचवीं के एक साथ बैठे बच्चों को पढ़ने के लिए किताबें दी हुई हैं। बच्चे अपनी किताबें पढ़ रहे हैं। कुछ बच्चों ने पढ़ी हुई कहानी को अपने शब्दों में लिखने का प्रयास किया है। इसके बाद बच्चों से उनकी पढ़ी हुई किताबों पर चर्चा शुरु हुई।
पढ़ने के अनुभवों को साझा करने के दौरान एक बच्ची के पास एकलव्य द्वारा प्रकाशित किताब दूध-जलेबी जग्गग्गा देखने को मिली। उसने इस किताब में पढ़ी हुई कविताओं को उनके साथ बने चित्रों के साथ बताना शुरु किया। उसने पहले बताया कि चित्र में क्या बना है, फिर कविता में क्या लिखा है। इसी दौरान मुझे महसूस हुआ कि कक्षा में बच्चों से कविता पर बहुत ज़्यादा बातचीत नहीं होती है। आज अच्छा मौका है, कविता पर शुरुआती बातचीत के लिए किताब भी बढ़िया है। इसके माध्यम से कविता पर बच्चों से कुछ गपशप कर लेते हैं। मैंने बच्चों से कहा, “अभी जिस किताब के बारे में बात हुई है, इसे हम सब मिलकर पढ़ते हैं और साथ ही, कुछ बातचीत करते हैं।” फिर उन्हें किताब दिखाई दूध-जलेबी जग्गग्गा। मुझे लग रहा था कि ‘जग्गग्गा’ एक ऊटपटांग शब्द है, उसे पढ़ने में बच्चे थोड़ा समय लगाएँगे लेकिन उन्होंने इसे जल्दी-से पढ़ दिया। मैंने बोला, “हम लोग अपनी पाठ्यपुस्तकों में कविताएँ अक्सर पढ़ते ही रहते हैं, अब हम बहुत छोटी, दो-दो लाइन की कविताएँ पढ़ेंगे और उन पर बात करेंगे।”

कविताएँ और उनका बनना
इस किताब में बच्चों के लिए दो-दो लाइन की सोलह ऊटपटांग कविताएँ हैं। कहीं की बात कहीं जुड़ जाती है, अर्थ बना देती है। इन्हें श्रेष्ठ साहित्य की श्रेणी में रखा जा सकता है। महत्वपूर्ण बात यह लगी कि इन्हें पढ़ने से पता चलता है कि कविता बनती कैसे है, कवि कैसे सोचता है। साथ ही ये कविताएँ बच्चों को कविताओं को देखने-सोचने का नज़रिया प्रदान करती हैं। इस किताब की कविताओं के कुछ उदाहरण देखें और उनका आनन्द लें:

दूध-जलेबी जग्गग्गा
पर इसमें है मग्गग्गा।
- कृष्ण कुमार
मुर्गी अण्डा देती है
हमसे क्या ले लेती है?
- निरंकारदेव सेवक
मकड़ी जाला बुनती है
कहाँ किसी की सुनती है!

                  - सुशील शुक्ल

 

एक सूखी लकड़ी
उस पर घूमे मकड़ी।
- प्रीतवन्ती महरोत्रा
उल्लू बैठा डाल पर
आँखें बड़ी निकालकर।

- निरंकारदेव सेवक

बच्चों को किताब से सभी सोलह कविताएँ पढ़कर सुनाई गईं। उनसे पूछा गया कि उन्हें कविता में क्या बात अच्छी लगी। तो नाज़िम ने कहा, “कविता में जो एक-से शब्द आते हैं, वे अच्छे लगते हैं।” कुछ बच्चे बता रहे थे कि वे विलोम शब्द हैं -- गुड़िया-पुड़िया। तब वंदना मैडम ने उन्हें समझाया, “ये विलोम शब्द नहीं, तुकान्त शब्द हैं जिनमें एक-सी आवाज़ आती है।” फिर मैंने कहा, “नाज़िम ने बताया है कि कविताओं में जो एक-सी ध्वनि वाले शब्द आए हैं वो अच्छे लगे। इसके अलावा इन कविताओं में और क्या बातें अच्छी लगीं?” बच्चे थोड़ी देर चुप रहे। उन्हें कुछ देर टटोलने पर भी कुछ खास नहीं उभरा। वे कविताओं के विवरण बता रहे थे। मैंने कहा, “चलो, एक बार कुछ कविताएँ फिर से पढ़ लेते हैं।” मैंने ‘लट्टू’ वाली कविता पढ़ी:

लट्टू घूम रहा सर सर
सर सर सर सर सर सर सर।
- निरंकारदेव सेवक

चर्चा हुई कि इस कविता में लट्टू के घूमने की आवाज़ के बारे में कवि कैसे सोच रहा है और उसने इस आवाज़ को कैसे व्यक्त किया है। यह भी सोच सकते हैं कि उसने इतनी बार ही ‘सर’ का इस्तेमाल क्यों किया। इसी बातचीत में एक बच्ची ने कहा, “लट्टू की तरह पृथ्वी भी घूमती है।” इस पर मैंने बोला, “इस लट्टू के घूमने से तुम्हें पृथ्वी के घूमने की बात याद आई। सामाजिक विज्ञान की कक्षा में इसकी पड़ताल भी की जा सकती है।”
इसी तरह ‘सर्दी आई’ कविता को देखें:

इतनी सर्दी किसने कर दी
अण्डे की जम जाए ज़र्दी।
- सफदर हाशमी

इस पर बातचीत की शुरुआत में एक बच्चे ने तुरन्त जोड़ा कि ये कविता पिछली कक्षा की किताब में थी। मैंने बोला, “कविता में कवि पूछ रहा है कि जाड़े के मौसम में इतनी सर्दी किसने कर दी है। चीज़ें ज़र्दी की तरह जम जाती हैं। तुमने अण्डे में ज़र्दी तो देखी होगी, कैसी जमी-सी होती है। कविता में हम कहाँ-से-कहाँ पहुँच जाते हैं। सर्दी की बात करते हुए हम अण्डे की ज़र्दी तक पहुँच गए। यह कविता में सम्भव हो पाता है।”
फिर हमने ‘बिल्ली’ की कविता पढ़ी:

बिल्ली बैठी पूछ रही है,
मैं आऊँ, मैं आऊँ?
- प्रतिभा दासगुप्ता

इस पर वंदना मैडम ने अपनी बात रखी, “बिल्ली म्याऊँ-म्याऊँ करती है लेकिन कविता लिखने वाले ने ऐसे देखा कि जैसे वह हमसे पूछ रही है कि मैं तुम्हारे पास आऊँ क्या।”
‘जूँ’ वाली कविता इस प्रकार थी:

सिर में जूँ है राई-सी
बिलकुल मेरे भाई-सी।
- तेजी ग्रोवर

“इस कविता में कवि ने जूँ की तुलना राई से की है। आपने राई का दाना देखा होगा, बहुत महीन होता है। जूँ हमारे सिर में पड़ जाती है और फिर उसे काफी मशक्कत से निकालना पड़ता है। ऐसे ही हमारे छोटे भाई-बहन भी अक्सर हमारे पीछे लगे रहते हैं। कभी-कभी हम कुछ करना चाहते हैं तो भाई-बहन हमारा पीछा नहीं छोड़ते और जूँ भी ऐसे ही परेशान करती है।   यह   कविता ऊटपटांग ज़रूर है लेकिन साथ ही, एक अलग स्तर पर अर्थ भी बन रहा है।”
आगे ‘छोटे हाथ’ वाली कविता देखें:

हाथ हैं मेरे छोटे-छोटे
काम करूँ मैं बड़े-बड़े।
- प्रीतवन्ती महरोत्रा

मैं बोला, “इस कविता में ‘छोटे’ का विलोम ‘बड़े’ आ गया। तो कविता में कभी तुकान्त शब्द आते हैं, कभी एक अर्थ वाले शब्द भी आते हैं तो कभी विलोम शब्द भी आ जाते हैं। कविता की मुख्य बात है पढ़ने-सुनने में अच्छा लगे। इस कविता में देखो, कवि छोटे-छोटे हाथों की बात कर रहा है जिनसे कई बार हम बड़े-बड़े काम करते हैं। हम चित्र में देख रहे हैं, बच्चे पेड़-पौधों में पानी दे रहे हैं या गुड़ाई कर रहे हैं।” बच्चे कहने लगे, “ऐसे ही हम भी अपने स्कूल में करते हैं।”
मैं बोला, “अब आप देखो - आप पेड़-पौधों की सेवा कर रहे हो। उनमें पानी दे रहे हो और उनमें आगे फूल-फल लगेंगे। फूल हमें सुन्दर लगेंगे व खुशी देंगे। ये बड़ी बात हो गई। इसी बात को हम किसान से जोड़कर भी देख सकते हैं। वह भी पौधों के साथ मेहनत करता है -- खेत में गुड़ाई करता है, बीज बोता है, पानी देता है, निराई करता है आदि और आखिर में अनाज पैदा होता है। हमें भोजन मिलता है और हमारा जीवन चलता रहता है। ये बड़ी बात हुई। ऐसे ही आप कई और बातें भी सोच सकते हो जिनसे हमें कविता में जीवन को देखने के नए ढंग मिल जाते हैं।”
अब  ‘गुड़िया’  वाली कविता देखें:

एक साल की गुड़िया है
हँसने की वह पुड़िया है।
- मूलाराम जोशी

“इसमें कवि ने छोटे बच्चे के हँसने पर कविता रची है। छोटे बच्चे घर में रौनक बनाए रखते हैं।” मैडम ने आगे जोड़ा, “जब छोटा बच्चा कहीं दूसरी जगह गया होता है तो हम कहते हैं -- कितना सूना लग रहा है।” फिर मैंने कहा, “यहाँ भी कहीं की बात कहीं पहुँची है। ऐसे ही कविताएँ बनती हैं।”
इस तरह से बच्चों से कविताओं के बारे में बातचीत चलती रही। आखिर में उनसे यह बात हुई, “आगे से हम अपनी पाठ्यपुस्तक की कविताओं को भी कुछ ऐसे ही पढ़ सकते हैं और बात कर सकते हैं। उसमें हम देखें - कवि ने कविता में किन-किन शब्दों का इस्तेमाल किया है, इन शब्दों से कविता में क्या हो रहा है, उसने चीज़ों को कैसे देखा है, और हम क्या अर्थ बना पा रहे हैं। कविता पर चित्र भी बन सकते हैं। क्या, कौन-सा चित्र बन रहा है -- इस पर आगे कभी बात करेंगे।”

अन्त में
कविता में बच्चों की रुचि बनाने के लिए, बच्चों से कविता पर इस तरह बात करना ज़रूरी है जिससे वे कविता की अर्थ निर्मिति और कविता के सौंदर्य का एहसास कर पाएँ। स्कूलों में जिस तरह कविता पढ़ाई जाती है उसमें कविता की हम केवल व्याख्या कर रहे होते हैं और पाठान्त प्रश्नों के उत्तर खोज रहे होते हैं। कभी कविता में सीख ढूँढ़ने की कोशिश होती है। सर्वेश्वर जी की ‘आओ बनाएँ एक चक्कर’ कविता याद करें। कविता शिक्षण के लिए ज़रूरी है कि कविता में बच्चे आनन्द ले पाएँ, जीवन को देखने के नए ढंग सोच पाएँ और उसे महसूस कर पाएँ। हमें चाहिए कि हम कक्षा में एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण से काम करें जहाँ बच्चे कविता का रसास्वादन कर पाएँ, अर्थ बना पाएँ और उसमें रुचि ले पाएँ। आगे कविताएँ पढ़ना-सुनना उनके जीवन का हिस्सा बने। इसके लिए हम अच्छी कविताएँ चुनकर, उनके साथ पढ़ सकते हैं और उन पर बात कर सकते हैं।
यह भी चर्चा हुई कि जब हम कहते हैं कि कोई कहानी-कविता अच्छी लगी तो हमारे पास इसका जवाब भी होना चाहिए कि उसमें हमें क्या बात अच्छी लग रही है -- कोई घटना अच्छी लग रही है, कोई चित्र अच्छा लग रहा है, कोई पात्र अच्छा लग रहा है, कोई वाक्य-शब्द अच्छा लग रहा है, कोई क्रम अच्छा लग रहा है आदि। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यहाँ सबके उत्तर अलग-अलग भी हो सकते हैं। इसकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए कि हमारा उत्तर गलत होगा। अपनी बात रखने की कोशिश करनी चाहिए। इससे हमारी समझ बढ़ेगी। मिड-डे मील का समय हो गया था इसलिए हमारी चर्चा का स्वाभाविक पड़ाव भी आ गया।


कमलेश चन्द्र जोशी: प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र से लम्बे समय से जुड़े हैं। इन दिनों अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन, ऊधमसिंह नगर में कार्यरत।
सभी चित्र एकलव्य द्वारा प्रकाशित पुस्तक दूध-जलेबी जग्गग्गा से साभार। यह पुस्तक पिटारा, एकलव्य में उपलब्ध है। कीमत: 32 रुपए।