रमाकान्त अग्निहोत्री   [Hindi PDF, 179 kB]

भाषा-विज्ञान
भाषा सीखने की प्रक्रिया में बच्चे क्या कर लेते हैं, यह तो हैरान करने वाली बात है ही। लेकिन इससे भी अधिक हैरानी यह देखकर होती है कि वे वह सब क्यों नहीं करते जो उन्हें वास्तव में स्वाभाविक रूप से करना चाहिए।
यह तो हम जानते ही हैं कि बच्चे, उदाहरण के लिए, दो-चार एकवचन व बहुवचन के जोड़ों से, जैसे किताब - किताबें, कलम - कलमें, बात - बातें, ही यह नियम आत्मसात कर लेते हैं कि यदि कोई व्यंजनान्त शब्द स्त्रीलिंग होगा तो उसका बहुवचन ‘नें’ जोड़ने से बन जाएगा। कुछ विशेष संरचनात्मक सन्दर्भों में यह किताबो, किताबों भी हो सकता है।

जैसे:
1. ऐ किताबो! मैं तुमसे बहुत परेशान हूँ।
2. इन किताबों को जला दो।
शब्दकोश में किताब, कलम व बात जैसे हज़ारों शब्द हैं। लेकिन हर शब्द के बारे में बच्चा यह प्रतीक्षा नहीं करता रहता कि कब उस शब्द का बहुवचन उसके सामने आएगा। इसी प्रकार बच्चा यह नियम आत्मसात कर लेता है कि यदि व्यंजनान्त शब्द पुल्लिंग है यथा घर, पाठक, आरोप आदि तो उसका बहुवचन साधारण संरचना में एकवचन जैसा ही होगा, जैसे:
3. यह घर बहुत सुन्दर है!
4. ये घर बहुत सुन्दर हैं।

वाक्य 1 से 4 जैसे प्रयोग बच्चे के सामने आए दिन होते रहते हैं। एक सामाजिक व सांस्कृतिक सन्दर्भ में उपयोग हो रहे इन वाक्यों से वचन की जटिल व्यवस्था को अलग कर लेना, तीन-चार वर्ष के शिशु के लिए सचमुच एक अचरज की बात है। और यह बच्चा केवल वचन की नहीं अपितु व्याकरण की पूरी व्यवस्था आत्मसात कर लेता है। भाषा का एक निपुण खिलाड़ी बन जाता है। यह तो शायद कोई बिरला ही जानता होगा कि हर संज्ञा के हिन्दी में तीन बहुवचन होते हैं। यदि जानता भी है तो ऐसे नहीं सीखता है - घर, घरों, घरो, किताबें, किताबों, किताबो आदि। यह सब बच्चे स्वाभाविक रूप से सीख जाते हैं। पर बहुत कुछ ऐसा है जो उन्हें स्वाभाविक रूप से सीखना चाहिए लेकिन वे बड़ी चतुरता से उससे बचकर रहते हैं।

‘बल, चल, हल’ को देखिए। लगभग तीन एक जैसे शब्द, तीनों ‘अ’ स्वर से बने हैं। तीनों का अन्त ‘ल्’ से होता है। शब्दान्त ‘ल’ में ‘अ’ नहीं बोला जाता, अत: हलन्त। केवल शु डिग्री के व्यंजन अलग-अलग हैं - ‘ब’, ‘च’, ‘ह’ (इसी कारण से ये तीन अलग शब्द भी हैं)।
‘चल’ से चलता, चलती, चलो, चला, चली, चलेगा... आदि। पर क्या आपने कभी किसी बच्चे को 5 या 6 जैसे वाक्य बोलते सुना है (। उ व्याकरण की दृष्टि से अमान्य)?

5. राधारानी रोज़ खेत में हलती है (यानी हल चलाती है)।
6. पृथ्वीराज रोज़ लड़ाई में बलता रहा (यानी बल के साथ लड़ा)।
ऐसे प्रयोग बच्चे कभी नहीं करते गोया भाषा सीखने की प्रक्रिया में वे हज़ारों गल्तियाँ करते हैं। उदाहरण के लिए ‘गया’ की जगह ।‘जाया’; अँग्रेज़ी में ‘went’ की जगह *‘goed’ आदि।
आखिर बच्चे स्वाभाविक रूप से बिना किसी के सिखाए अपने सामाजिक व सांस्कृतिक परिवेश से बहुत ही छोटी आयु में क्या सीख लेते हैं कि वे ऐसी गल्तियाँ नहीं करते जैसी हम ऊपर दिए वाक्यों 5 व 6 में देखते हैं। उनमें भाषा-सीखने की आत्मजात (innate) क्षमता होती है, यह बात अब लगभग सभी मानते हैं। लेकिन उस क्षमता से ही इन सब बातों के उत्तर नहीं मिलते।

हो सकता है भाषागत संज्ञानात्मक क्षमता में यह निहित रहता हो कि हर भाषा में ‘संज्ञा’ व ‘क्रिया’ में संरचनात्मक अन्तर होंगे। पर एक भाषा-विशेष में उनका क्या स्वरूप होगा, यह बच्चा अपने परिवेश में मिली भाषा के आधार पर ही समझ सकता है।
हल, बल, चल काफी हद तक एक से लगते हैं लेकिन बच्चे इस बात का प्रमाण बहुत जल्दी दे देते हैं कि ‘चल’ एक क्रिया है और ‘बल’ व ‘हल’ दो संज्ञाएँ। चार-पाँच वर्ष का बच्चा ऐसे वाक्य बोल सकता है:

7. बाबा, घर चलो। (क्रिया)
8. देखो! खेत में कई सारे हल हैं। (संज्ञा)
9. शिवा, तुममें इतना बल कहाँ से आया? (संज्ञा)
अचरज की बात यह है कि बच्चे कभी ।हलती, हलते, हलो आदि या ।बलती, बले, बलो... आदि जैसे प्रयोग नहीं करते और न ही कभी ऐसे वाक्य बनाते हैं:
10. ।इन चलों की बात निराली है।
जबकि यह प्रयोग आम होगा:
11. इन हलों की बात निराली है।
केवल पैटर्न के आधार पर अनुकरण करने की बात होती तो यह सब होना चाहिए। 5, 6 या 10 जैसे वाक्य हमारे सामने आने चाहिए थे। इसमें कोई शक नहीं है कि परिवेश से बच्चे भाषा के व्याकरण की जटिल व नाज़ुक व्यवस्था निचोड़ लेते हैं।
बात यहीं खत्म नहीं होती। वाक्य 12 की चाल का ‘चल’ से बहुत लेना-देना है:
12. ज़रा मोरनी की चाल तो देखो।

पर 13 व 14 के ‘हाल’ व ‘बाल’ का ‘हल’ व ‘बल’ से कोई लेना-देना नहीं:
13. हाल कैसा है जनाब का?
14. तुम्हारे सिर के बाल कहाँ गए?
इतना ही नहीं बच्चे को यह भी सुलझाना होता है कि 15 और 16 के ‘बल’ का एक-दूसरे से कोई लेना-देना नहीं है।
15. बलराम के बल की कोई सीमा नहीं।
16. देखो मेरी साड़ी में कितने बल पड़ गए।
और न ही 17 और 18 के ‘हल’ का:
17. हल खेत जोतने के काम आता है।
18. अब इस समस्या का कोई हल नज़र नहीं आता।

बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। सचमुच, जब निकलेगी तो बहुत दूर तलक जाएगी। अब यह तो एक आम बात है कि बच्चे हिन्दी व अँग्रेज़ी, दोनों साथ-साथ सीखते हैं। अँग्रेज़ी में ‘हल’ के लिए ‘plough’ शब्द का प्रयोग होता है। संज्ञा है या क्रिया? बच्चों से कहिए हिन्दी व अॅँग्रेज़ी में इन बातों का विश्लेषण करें। उन्हें बहुत मज़ा आएगा और आपको भी।

19 व 20 में देखिए ‘plough’ अँग्रेज़ी में संज्ञा भी है और क्रिया भी:
19.Pooja saw a plough in the fields..
20.Pooja is ploughing the field.
जो आप हिन्दी में नहीं कर सकते, अँग्रेज़ी में कर सकते हैं।
हिन्दी में ऐसे शब्द बहुत कम हैं जो संज्ञा व क्रिया, दोनों की तरह उपयोग किए जा सकते हैं यथा मार, नाच, खेल, दौड़। लेकिन अँग्रेज़ी में हज़ारों शब्द ऐसे हैं। उदाहरण के लिए play, cycle, table, chair, fan, light, water, watch, seat, pen, plant, curtain, lock, move आदि। आपको ऐसे उदाहरण तो आम मिलेंगे:
21. This is a nice table. (संज्ञा)
22. She tabled a new proposal in the meeting.
पर ऐसा वाक्य कभी सुनने को नहीं मिलता:
23. उसने मीटिंग में आज एक नया प्रस्ताव मेज़ा।

ध्वनि के स्तर पर देख लीजिए। बच्चे यह बात कैसे पकड़ लेते हैं कि ड्, ण, ड़, या ढ़ से कोई शब्द शु डिग्री नहीं हो सकता। ये व्यंजन शब्द के अन्त या शब्द के मध्य में ही आएँगे, यथा अंग, गणना, लड़का, बूढ़ा आदि। अनजाने में भी हम लोग इन व्यंजनों के साथ शब्द शु डिग्री नहीं करते -- हिन्दी में आप इन व्यंजनों को छोड़कर किसी भी व्यंजन ध्वनि से शब्द शु डिग्री कर सकते हैं। या फिर यह नियम कि ‘य, र, ल’ के बाद कोई व्यंजन ध्वनि नहीं आ सकती। यम, रम व लट में ‘य, र, ल’ के बाद ‘अ’ की ध्वनि है। और यदि कोई शब्द ‘व’ से शु डिग्री होता है तो उसके बाद स्वर तो कोई भी आ सकता है परन्तु व्यंजन केवल ‘य’ या ‘र’, जैसे व्यय व व्रत में।

और यह तो आप जानते ही हैं कि व्यंजन ध्वनियों से शु डिग्री होने वाले शब्द हिन्दी में (या फिर अँग्रेज़ी में, या अन्य किसी भारतीय भाषा में) बहुत कम हैं। जो हैं भी वे केवल एक नियम-बद्ध तरीके से ही बन सकते हैं। बच्चे कभी खेल-खेल में भी ऐसे शब्द क्यों नहीं बोलते: ।हप्गार, ।बग्सीक, ।च्हफुरी आदि। इसलिए कि वे समझते हैं कि यदि तीन व्यंजन ध्वनियों से शब्द शु डिग्री होना है तो पहली व्यंजन ध्वनि केवल ‘स’ हो सकती है, दूसरी ‘प, त, क’ व तीसरी ‘य, र, ल, व’ बस। यथा स्त्री या फिर अँग्रेज़ी में stared, spray, screw आदि।

दोनों ही बातें काफी हैरान कर देने वाली हैं कि ध्वनि, शब्द व वाक्य के स्तर पर बच्चे कैसे एक जटिल व्यवस्था का निर्माण कर लेते हैं और किन आधारों पर वे सीमाएँ निश्चित करते हैं जो उन्हें वह सभी नहीं करने देती जो उन्हें स्वाभाविक रूप से करना चाहिए।
वाक्य संरचना व सामाजिक सन्दर्भ के उस छोर को देखिए जहाँ एक का काम दूसरे के बिना नहीं चल सकता। बहुत छोटी ही उम्र में बच्चे सीख जाते हैं:
24. तू चल।
25. तुम चलो।
26. आप चलिए।

पृथक केवल यही नहीं कि बच्चों को तीन शब्द (एक तरह से एक ही व्यक्ति you के लिए) तू, तुम और आप सीखने हैं। प्रश्न यह भी है कि आदर, विनम्रता एवं संवेदनशीलता के आधार पर उन्हें यह भी सीखना है कि किस व्यक्ति के लिए ‘तू’ उचित है, किसके लिए ‘तुम’ और किसके लिए ‘आप’। यही नहीं उन्हें यह भी समझना है कि जब किसी गहरे दोस्त को चिढ़ाना हो तो कह सकते हैं:

27. आपकी क्या बात है।
इससे भी आगे संरचनात्मक स्तर पर समझना है कि कब ‘चल’, कब ‘चलो’ और ‘चलिए’ आएगा। क्या आपने कभी सुना है:
28. तू चलिए!!
मुझे तो यह करना बहुत स्वाभाविक लगता है। आखिर अँग्रेज़ी सीखने वाले बच्चे कहते ही हैं:
29.*He goed yesterday.
30.*She help me a lot.
जबकि 29 व 30 भाषा सीखने की प्रक्रिया की अहम सीढ़ियाँ हैं, 28 नहीं।

इस बात की हमें कोई विशेष समझ नहीं है कि बच्चे जो सीख जाते हैं और वे बातें जो बच्चों को करनी चाहिए पर नहीं करते, ऐसा क्यों होता है? लेकिन यह साफ है कि यह सब होता ज़रूर है। इसमें भी कोई शक नहीं कि यह सब होने के लिए जन्मजात भाषाई क्षमता व सामाजिक एवं सांस्कृतिक सन्दर्भ के बीच एक सृजनात्मक अन्त:क्रिया का होना आवश्यक है।


रमाकान्त अग्निहोत्री: दिल्ली विश्वविद्यालय से सेवा निवृत्त। व्यावहारिक भाषा-विज्ञान, शब्द संरचना, सामाजिक भाषा-विज्ञान और शोध प्रणाली पर विस्तृत रूप से पढ़ाया और लिखा है। ‘नेशनल फोकस ग्रुप ऑन द टीचिंग ऑफ इंडियन लेंग्वेजिज़’ के अध्यक्ष रहे हैं। आजकल विद्या भवन सोसायटी, उदयपुर में एमेरिटस प्रोफेसर हैं।
सभी चित्र: बोस्की जैन: सिम्बायोसिस ग्राफिक्स एंड डिज़ाइन कॉलेज, पुणे से ग्राफिक्स डिज़ाइन में स्नातक। एकलव्य के डिज़ाइन समूह के साथ जुड़ी हैं। भोपाल में निवास।