कमलेश चन्द्र जोशी    [Hindi PDF, 298 kB]


पहाड़, जिसे एक चिड़िया से प्यार हुआ - ये किताब पहाड़ और चिड़िया की दोस्ती के बारे में है। इस कहानी में एक रेगिस्तानी इलाके में अकेले खड़े पहाड़ की खुशी नामक चिड़िया से दोस्ती बंजर भूमि को हरा-भरा बना देती है। हालाँकि यह कहानी बच्चों के लिए लिखी गई है लेकिन अपने विषय और लेखन के चलते बड़ों को भी उतना ही आकर्षित करती है। इस कहानी को पढ़ते हुए हम बचपन की स्मृतियों में पहुँच जाते हैं। याद आता है गाँव-मुहल्ले, पड़ोस में रहने वाला कोई लड़का जो गर्मी की छुट्टियों में अपने दादा-दादी, नाना-नानी, मामा-मामी, चाचा-चाची, बुआ-फूफा के यहाँ आता और उससे दोस्ती हो जाती। उसके साथ छुट्टियों भर हम तरह-तरह के खेल खेलते। अपनी और उसकी ढेर सारी बातें करते। कहानियों की किताबें पढ़ते। आसपास के पेड़ से चोरी से कच्चे आम तोड़ते, पास की नदी में नहाते और इस तरह समय का पता ही नहीं चलता। छुट्टियाँ खत्म हो जातीं और लड़के का शहर जाने का समय आ जाता। हम सोचते कि काश वह भी यहीं रहता, हमारे साथ ही पढ़ता। फिर हम अगली छुट्टियों तक उसके फिर से आने का इन्तज़ार करते रहते। अगर इस किताब की पंक्तियों से जोड़कर देखें, “अब मुझे जाना है,” खुशी ने कहा, “क्योंकि जहाँ मुझे खाना व पानी मिलेगा, वह जगह यहाँ से बहुत दूर है। अच्छा, तो अगले साल तक के लिए अलविदा।” इस कहानी में भी प्रतीक्षा व उदासी के प्रसंग हैं।

जिस प्रकार उस नए दोस्त से मिलने से लगता है कि जीवन में कुछ नया जुड़ गया था, ऐसा ही कुछ सम्बन्ध जीवन में कई बार अपने किसी रिश्तेदार या शिक्षक से भी बन जाता है। उनसे हम अपनी जिज्ञासाएँ-आकांक्षाएँ साझा करते हैं। उनसे मिलने का बार-बार इन्तज़ार रहता है। उनसे एक आत्मीय सम्बन्ध बन जाने पर यह सिलसिला जीवन-भर चलता रहता है। लगता है मानो जीवन का कुछ खालीपन भर गया, जीवन में कुछ नया जुड़ गया। कुछ इसी तरह का अनुभव इस किताब को पढ़कर होता है।

पता नहीं चलता कि कब यह कहानी हमारे मन के किसी कोने में अपने तरीके से जगह बना जाती है, गहराई से जुड़ जाती है। जहाँ लगता है कि कोई घटना, किसी से मुलाकात हमारे जीवन में एक नया अर्थ पैदा करती है। कुछ नए सोच-विचार पैदा कर देती है। जैसे कि पहाड़ को उसके पंजों के स्पर्श का एहसास। जब चिड़िया ने अपने पंखों को सँवारने के लिए चट्टान से रगड़ा तो पहाड़ ने रोएँदार पंखों की कोमलता को महसूस किया। पहाड़ चकरा गया क्योंकि आज तक ऐसी चीज़ उसके पास नहीं आई थी और न ही पहले कभी उसने ऐसी किसी छुअन को महसूस किया था। रेगिस्तान के बंजर में अकेले खड़े पहाड़ की खुशी नामक चिड़िया व उसकी पीढ़ियों से मिलकर ज़िन्दगी बदल जाती है। उसका सूनापन दूर हो जाता है और पहाड़ आबाद हो जाता है।

कहानी की एक और परत को देखें तो समझ में आता है कि यहाँ खुशी चिड़िया एक अदम्य इच्छाशक्ति व दूरगामी लक्ष्य का प्रतीक है जो बंजर पहाड़ को हरा-भरा बनाने में सहयोग करती है। साथ ही किताब में बच्चों को जानकारी मिलती है कि पेड़-पौधे कैसे उगते हैं। पहाड़ से नदी-झरने किस तरह से बनते हैं, ‘जिसे यहाँ पहाड़ के दुख के आँसुओं से प्रदर्शित किया है।’ लेकिन इस कहानी का मर्म इसकी भाषा की सुन्दरता है जिसके कुछ नमूने यहाँ देखे जा सकते हैं:
‘सूरज की गर्मी से पहाड़ तपता था और ठण्डी हवा के झोंकों से ठिठुरता था। वो केवल बारिश की बूँदें और सर्दियों की बर्फ ही छू पाता था। वहाँ और कुछ महसूस करने को था ही नहीं।’

‘पहाड़ दिन-रात टकटकी लगाए आसमान में आते-जाते बादलों को घूरता रहता था। उसको दिन में सूर्य और रात को दूर-दराज़ स्थित अनगिनत तारों का उदय और अस्त होना दिखता था।’
‘और वह उड़ गई। उसके पंख सूर्य की रोशनी में झिलमिला रहे थे। पहाड़ उसे लगातार टकटकी लगाए देखता रहा। फिर वो दूर, अन्तहीन शून्य में विलीन हो गई।’

‘इस तरह समय बीतता गया और नए पौधों की जड़ों ने पास के सख्त पत्थरों को पिघलाया। पत्थरों के चूरे से मिट्टी बनती गई और कहीं-कहीं पर काई दिखाई देने लगी। झरने के आसपास कई प्रकार की घास और छोटे-छोटे फूल के पौधे निकलने लगे। हवा के झोंकों से आए नन्हे कीड़े-मकोड़ों ने पत्तों के बीच अपनी उछल-कूद शु डिग्री कर दी।’
इस कहानी की कई परतें हैं। अगर खुशी चिड़िया की नज़र से देखें तो उसे इस बात का एहसास है कि किसी ने उसे पूछा, उसे सम्मान दिया। वह बीज-बीज लाकर पहाड़ को हरा-भरा बनाती है। इसके उपरान्त ही वह अन्त में स्थायी रूप से वहाँ रहती है। जबकि पहाड़ अपने अकेलेपन को दूर करने, किसी से बात करने के लिए चिड़िया का साथ चाहता है। इस कारण दुखी रहता है। उसे लगता है कि चिड़िया के रहने से वह आबाद हो जाएगा।

इस तरह से यह कहानी कहीं गहरे स्तर पर एक पाठक के जीवन से जुड़ती है। कहानी में रेगिस्तान का बंजर पहाड़ जिस तरह कहता है, “मैंने तुम्हारे जैसी चिड़िया को पहले कभी नहीं देखा है। क्या तुम्हारा यहाँ से जाना बिलकुल ज़रूरी है, क्या तुम यहाँ पर नहीं रुक सकती, जाओगी तो किसी दिन वापस तो आओगी? अगर तुम यहाँ कुछ घण्टों के लिए भी वापस आओगी तो तुम्हें देखकर मुझे बहुत खुशी होगी।” इन संवादों को पढ़ते हुए हम कई कहानियों, उपन्यासों व फिल्मों से गुज़र जाते हैं। उनकी अनुगूंज अपने मन में कहीं-न-कहीं सुनाई पड़ जाती है, जिससे हम स्मृतियों में पहुँच जाते हैं और अपने जीवन की घटनाओं को याद करने की कोशिश में लग जाते हैं। “जब तुम्हारा आना बन्द हो जाएगा तो मुझे बहुत दुख होगा। लेकिन अभी जाने के बाद अगर तुम वापस नहीं आई तो उससे और ज़्यादा दुख होगा।” इन संवादों को किताब में पढ़ते हुए आपको पता ही नहीं चलता यह कहानी किस प्रकार भावनात्मक स्तर पर छू जाती है। इसे पढ़ते हुए कहीं मृणाल सेन की एक पुरानी सुन्दर फिल्म ‘भुवनशोम’ के कठोर, कोई समझौता न करने वाले शोम साहब याद आते हैं जिनकी कठोरता गौरी के साथ शिकार पर जाने से पिघल ही जाती है।

इस किताब के चित्र एवं चिड़िया, पहाड़ के भाव इतने आकर्षित करते हैं कि इन्हें देखने का बार-बार मन करता है। इससे चित्रकार की संजीदगी का एहसास होता है। सत्यजीत राय की महान फिल्म ‘पोथेर पांचाली’ में रेलगाड़ी के पीछे खेतों में भागते हुए ओपू और दुर्गा याद आ जाते हैं जिन्हें देखते हुए हम सम्मोहित हो जाते हैं।

चिड़िया का गाना पहाड़ के लिए उसके जीवन में पहला संगीत था। यह संगीत उस पर जादू करता है और चिड़िया कहती है कि मैं तुम्हारा अभिनन्दन करने व गाना सुनाने हर साल आऊँगी। यहाँ पर हमें गौतम घोष की बांग्ला फिल्म ‘देखा’ के शशिभूषण सान्याल याद आते हैं जो रूपा गांगुली के गाने की स्मृतियों में हमेशा खोए रहते हैं।

यह एक चिरन्तन कथा है जिसमें खुशी चिड़िया जब कहती है, “मैं हर बसन्त पहाड़ आऊँगी और तुम्हें गाना सुनाऊँगी क्योंकि मैं कुछ सालों तक ज़िन्दा रहूँगी। इसके बाद मेरी बेटी आएगी, फिर उसकी बेटी आएगी। इस तरह से यह सिलसिला अनवरत चलता रहेगा।” पहाड़ और चिड़िया के बीच यह कई पीढ़ियों का संवाद है। इसके दार्शनिक अर्थ भी निकल सकते हैं। यह भाव भी हो सकता है कि किसी लक्ष्य को पूरा करने के पीछे कितनी मेहनत छिपी होती है। और लक्ष्य पूरा होने पर एक खुशी का एहसास होता है।

कथानक और लेखन
इस किताब का कथानक और लेखन बच्चों और बड़ों की कहानी की सीमाओं को तोड़ देता है, वे आपस में घुलमिल गई-सी जान पड़ती हैं। इसे पढ़ते हुए हम अनेकों अनुभवों व दृष्टियों से जुड़ जाते हैं। शायद यही बात कहानी की ताकत है। कहानी की तह में लोककथा के तत्व भी हैं जैसे कि चिड़िया का बार-बार आना और कुछ नया करना। यह बात कहानी का एक पैटर्न बुनती है और पाठक के लिए आगे सोचने का मौका प्रस्तुत करती है। इसी तरह निन्यानवे बसन्त आए और गए। सौवें बसन्त में लोककथा का पुट दिखाई पड़ता है। इस तरह के पैटर्न अक्सर लोककथाओं में पाए जाते हैं।

अमेरिकी लेखिका एलिस मेकलेरन द्वारा लिखित यह बच्चों की एक महत्वपूर्ण किताब रही है। 1985 में पहली बार प्रकाशित इस किताब का दुनिया की लगभग पच्चीस भाषाओं में अनुवाद हुआ है। उस समय इस किताब का चित्रांकन मशहूर अमेरिकी चित्रकार एरिक कार्ल ने किया था। किताब का हिन्दी अनुवाद अरविन्द गुप्ता ने किया है। अनुवाद के साथ किताब का चित्रांकन भी भिन्न-भिन्न देशों के लिए वहाँ के चित्रकारों द्वारा किया गया है। इस प्रकार इसके करीब आठ चित्रांकन मौजूद हैं। भारत में तूलिका प्रकाशन, चेन्नई ने इसे दस भारतीय भाषाओं में प्रकाशित किया है और यहाँ के लिए इस किताब का चित्रांकन कनाडा के बाल लेखक व चित्रकार स्टीफन एट्किन ने किया है।

कुल मिलाकर यह कहानी एक सार्वभौमिक कहानी है जो अनकहे रूप में गहरे मानवीय मूल्यों को पोषित करती है और भाषाओं व संस्कृति की सीमाओं को तोड़ती है। इसका दर्शन है मानवीय सभ्यता के बीच एक खुशी का एहसास, जिसके बारे में कई तरह से सोचा जा सकता है। किस तरह एक चिड़िया व उसकी पीढ़ियाँ एक अकेले रेगिस्तानी पहाड़ के जीवन में खुशियाँ लाती हैं और अकेले पहाड़ को पेड़-पौधों, कीड़े-मकोड़ों, पशु-पक्षियों से सुसज्जित करती हैं। फिर अन्त में अपने लिए भी घोंसला बनाती है, जिससे उसे एक सन्तुष्टि का एहसास होता है। 


कमलेश चन्द्र जोशी: प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र से लम्बे समय से जुड़े हैं। इन दिनों अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन में कार्यरत।
सभी चित्र ‘पहाड़, जिसे एक चिड़िया से प्यार हुआ’ किताब से लिए गए हैं।