अम्बरीष सोनी   [Hindi PDF, 161 kB]

वर्णान्धता आँखों से सम्बन्धित एक दोष है, अँग्रेज़ी में इसे कलर ब्लाइंडनेस कहते हैं। दुनिया भर में लगभग 8 प्रतिशत लोग इससे ग्रस्त हैं और इनमें अधिकांश पुरुष ही हैं। यह समस्या आम तौर पर पुरुषों में ही पाई जाती है ऐसा क्यों है, इसकी चर्चा हम आगे करेंगे।
पहली समस्या तो इसके नाम के साथ है। कलर ब्लाइंडनेस या वर्णान्धता से ऐसा लगता है मानो इस बीमारी वाले लोग रंगों के लिए अन्धे हों या उन्हें रंग दिखाई ही न देते हों, जबकि असलियत इससे परे है। कलर ब्लाइंड लोग लाल, हरे और नीले के अलावा अन्य सभी रंगों को सामान्य रूप में देख पाते हैं जबकि लाल, हरे, नीले और इनसे बने रंगों को कुछ अन्य रंगों के रूप में देखते हैं। उदाहरण के लिए यदि हमारे सामने नीले और गुलाबी रंग के दो बैग रखें हों तो वर्णान्ध व्यक्ति गुलाबी रंग में मिले लाल रंग के कारण उसे गुलाबी की जगह किसी और रंग में देखेगा। कलर ब्लाइंडनेस को कलर विज़न डेफीशिएंसी भी कहते हैं।

हम रंग देखते कैसे हैं?

हमारी आँखें ही वे अंग हैं जो देखने का काम करती हैं। किसी भी वस्तु से टकराकर जब प्रकाश हमारी आँखों में प्रवेश करता है तो हम उस वस्तु को देख पाते हैं। अब सवाल यह उठता है कि हम रंगों को कैसे देखते या पहचानते हैं। आँखों की रेटिना में लाखों की संख्या में रॉड्स (छड़) और कोन्स (शंकु) के आकार की कोशिकाएँ पाई जाती हैं। रॉड्स प्रकाश के प्रति अतिसंवेदनशील होती हैं जो ब्लैक-एंड-व्हाइट और परिधीय दृष्टि (peripheral vision) में खासी मददगार होती हैं। इनकी मदद से ही हम अँधेरे यानी काफी कम रोशनी में भी देख पाते हैं।

वहीं कोन्स हमें रंगों का एहसास देते हैं। रेटिना में अलग-अलग तरंगदैर्ध्य वाले प्रकाश के लिए संवेदी तीन प्रकार के कोन्स होते हैं। प्रत्येक कोन में रंग-संवेदना वाला पिग्मेंट ऑप्सिन पाया जाता है। कोन्स अलग-अलग रंग लाल, हरे और नीले के लिए अलग संकेत दिमाग को भेजते हैं। हमारे द्वारा देखे गए सारे रंग तीन प्राथमिक रंगों लाल, हरा और नीला के आपस में मिलने से ही बनते हैं। इसे रंगों को देखने का ‘आरजीबी रंग मॉडल’ कहते हैं। हमारे द्वारा महसूस किया जाने वाला हर रंग वास्तव में कोन्स से मिलने वाले संकेतों की मदद से दिमाग द्वारा बनाई गई तस्वीर है। कोन्स में हुई गड़बड़ी की वजह से होने वाली वर्णान्धता में लाल-हरे के प्रति वर्णान्धता सबसे अधिक पाई जाती है।
इसमें वे लाल, हरा, भूरा, नारंगी, पीला और ग्रे रंगों के बीच अन्तर कर पाने में अक्षम होते हैं क्योंकि ये सभी रंग हरे, नीले और लाल के शेड्स से मिलकर बनते हैं। रंग को उसके रूप में न देख पाने का यह मतलब कतई नहीं है कि उन्हें रंगीन वस्तुएँ दिखाई नहीं देतीं बल्कि वे इन्हें कुछ अलग रंगों में देखते हैं।

अन्य जीवों में वर्णान्धता

सभी रीढ़धारी जीवों के रेटिना में कोन्स और रॉड्स पाए जाते हैं जो हमें देखने के काबिल बनाते हैं। प्रत्येक कोन का ऑप्सिन अलग-अलग तरंगदैर्ध्य के प्रकाश के प्रति संवेदनशील होता है इसलिए हर कोन अलग प्रकाश को पहचानता है और सारे कोन मिलकर प्रकाश के रंगों का स्पेक्ट्रम तैयार करते हैं।

ज़्यादातर स्तनधारियों के कोन्स में दो ही प्रकार के ऑप्सिन पाए जाते हैं जो बीच की तरंगदैर्ध्य यानी नीले और हरे रंग के प्रति ही संवेदनशील होते हैं। इसलिए वे दो ही प्राथमिक रंगों से मिलकर बनने वाले रंगों को पहचान पाते हैं।
पक्षियों की रंग देख पाने की क्षमता कहीं बेहतर होती है। वे नीले, हरे के साथ ही लाल रंग भी देख पाते हैं। कुछ मधुमक्खियाँ अल्ट्रावॉयलेट किरणों को भी देख पाती हैं। कीटों की दृष्टि में बहुत ही विविधता देखने में आती है जिसके बारे में अभी बात करना मुमकिन नहीं है। अत: हम वापस इन्सानों के इर्द-गिर्द ही चलते हैं।

हमारे पूर्वजों में रंग दृष्टि

इन्सानी विकास की बात करें तो हम पाते हैं कि हमारे पूर्वजों का सम्बन्ध वानरों से था। ऐसा माना जाता है कि सभी वानरों के पूर्वज प्रोसिमियन थे और वेे सिर्फ एक या दो ही रंग देख पाते थे। वे प्रजातियाँ जो दिन में जागती थीं उनमें रंगों को देख पाने की क्षमता शायद बेहतर थी।
3-4 करोड़ वर्ष पूर्व वानरों में एक विभाजन दिखाई देता है। अफ्रीका और यूरोप में पाए गए बड़े आकार, छोटी पूँछ और गद्देदार नितम्बों वाले पैदल चलने के लिए अनुकूलित ओल्ड वर्ल्ड मंकी। इससे सम्बन्धित प्रजाति बबून और स्नो मंकी हैं। और उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका के लम्बी पूँछ, नुकीले नाखून, पेड़ों पर रहने के आदी न्यू वर्ल्ड मंकी। इससे सम्बन्धित प्रजाति कैलिमिकोस और मरमोसेट्स हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि लगातार हो रहे विकास के दौरान X क्रोमोसोम के कुछ जीन्स में हुए उत्परिवर्तन से तीन रंगों को देख पाने की क्षमता दोनों ही वानरों में आई। कुछ शोधकर्त्ताओं के अनुसार ओल्ड वर्ल्ड मंकी में यह उत्परिवर्तन एक से अधिक बार हुए होंगे और इसी के चलते इनकी रंग दृष्टि कहीं बेहतर है और तीनों रंगों के प्रति संवेदनशीलता आई। शोधकर्त्ताओं का यह भी मानना है कि इनमें तीनों रंगों को देख पाने की क्षमता के विकास में प्राकृतिक चयन की महत्वपूर्ण भूमिका रही होगी। जंगल की हरियाली के बीच पके फलों को खोज पाना आसान न था। तीनों रंगों को देख पाने से ये हरे फलों में से पके हुए फलों का चयन बेहतर कर पाए होंगे।

लैंगिक सम्बन्ध

रंगों को देख पाने के लिए ज़िम्मेदार पदार्थ (फोटोपिग्मेंट्स) उत्पन्न करने वाले जीन्स ज्र् क्रोमोसोम में पाए जाते हैं। महिलाओं में दो X क्रोमोसोम होने से एक X  क्रोमासोम में फोटोपिग्मेंट से सम्बन्धित दोषित जीन्स होने पर भी फोटोपिग्मेंट से सम्बन्धित सुरक्षित जीन्स दूसरे X क्रोमासोम में मिल जाने की सम्भावना रहती है और इसीलिए महिलाओं में वर्णान्धता की सम्भावना बहुत कम हो जाती है। पुरुषों के गुणसूत्र में एक X और एक Y क्रोमोसोम होता है। ऐसे में पुरुषों को यह लाभ नहीं मिल पाता और पुरुषों में वर्णान्धता की सम्भावना बढ़ जाती है। जीन्स से सम्बन्ध होने की वजह से वर्णान्ध दम्पत्ति के बच्चों में वर्णान्धता की सम्भावना बढ़ जाती है।

कलर ब्लाइंड परीक्षण

सामान्य परिस्थितियों में यह पहचानना कि कोई कलर ब्लाइंड है या नहीं, आसान नहीं है। अक्सर वर्णान्धता का पता करने के लिए कलर ब्लाइंड परीक्षण किया जाता है। इस परीक्षण में अलग-अलग रंगों वाली नम्बर प्लेट्स होती हैं जिनमें घुमावदार लहराती हुई लाइन्स के साथ कई सारे रंगों में अंक लिखे होते हैं और परीक्षण के लिए इन अंकों को पढ़ना होता है। जो इनमें से किसी विशेष रंग के अंकों को नहीं पढ़ पाता है वो समझिए वर्णान्ध है। वर्णान्धता को परखने के लिए पिछले कवर के अन्दर वाले पन्ने पर एक परीक्षण दिया गया है। इसे पढ़कर देखिए, क्या लिखा है?


अम्बरीष सोनी: ‘संदर्भ’ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।