श्रीदेवी [Hindi PDF, 165 kB]
बच्चों के सीखने और सिखाने के प्रचलित तरीकों को समझने के उद्देश्य से धमतरी ज़िले की कुछ शासकीय प्राथमिक शालाओं में अक्सर ही जाना होता है। इस दौरान प्रयास होता है कि विभिन्न विषयों की कक्षाओं का भाषा शिक्षण के सन्दर्भ में अवलोकन कर सकूँ। ऐसे ही एक भ्रमण के दौरान मैंने एक शिक्षिका द्वारा बच्चों की गलतियाँ ठीक करने का तरीका देखा जो मुझे बहुत अच्छा लगा। इस अवलोकन को मैं आप सबके साथ साझा कर रही हूँ।
शासकीय प्राथमिक शाला कनहार-पुरी (छत्तीसगढ़, ज़िला घमतरी, ब्लॉक - कुरुद), कक्षा चार में भाषा की कक्षा चल रही थी। लड़के और लड़कियाँ अलग-अलग कतारों में टाटपट्टी पर एक-के-पीछे-एक बैठे हुए थे। कक्षा हवादार थी और दीवारों पर बहुत सारे महापुरुषों के चित्र लगे हुए थे।
शिक्षिका अपनी योजना के अनुसार ‘राजिम मेला: सहेली को पत्र’ पाठ पढ़ा रही थी। इस पाठ में एक बच्ची ने मेले के अपने अनुभवों को अपनी सहेली को एक पत्र के रूप में लिखा था। इस पाठ को शिक्षिका ने पहले स्वयं पढ़ा, उसके बाद एक बच्ची से कहा कि वह उक्त पाठ को सबको पढ़कर सुनाए। पत्र में मेले में आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं के बारे में बताया गया है। बच्ची भी उस पाठ को पूरे आत्मविश्वास के साथ पढ़ रही थी। पाठ में जहाँ भी ‘प्रतियोगिता’ शब्द आ रहा था, बच्ची उसे ‘पतियोगिता’ पढ़ रही थी। शिक्षिका बच्ची की मुश्किल को समझ गई पर उन्होंने उसकी गलती को तुरन्त टोककर ठीक नहीं किया। शिक्षिका ने बच्ची के पढ़ने के समाप्त होने का इन्तज़ार किया, उसके बाद दूसरे बच्चे को पढ़ने की ज़िम्मेदारी देने से पहले कक्षा में कुछ अभ्यास करवाए। वे अभ्यास कुछ इस प्रकार थे।
शिक्षिका ने श्यामपट्ट पर कुछ ऐसे शब्द लिखे जिनमें ‘र’ का आधा रूप प्रयोग होता था। इसके बाद इन शब्दों से कुछ वाक्य बनाए।
प्रेम - हम आपस में एक-दूसरे से प्रेम करते हैं।
प्रयोग - श्यामपट्ट पर लिखने के लिए चॉक का प्रयोग किया।
क्रम - प्रार्थना करते समय हम क्रम में खड़े होते हैं।
क्रेता - दुकान में सामान खरीदने के लिए क्रेता खड़े हैं।
श्रम - मज़दूर दिन भर श्रम करते हैं।
धर्म - भारत में कई धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं।
कार्य - हम अभी लिखने का कार्य कर रहे हैं।
द्रुत - बस बहुत द्रुत गति से चलती है।
इन लिखे हुए वाक्यों को शिक्षिका ने पहले स्वयं पढ़ा और फिर बच्चों से पढ़ने के लिए कहा। बच्चे खुद से पढ़ने के लिए आगे आए। वह बच्ची भी आई और इन वाक्यों को पढ़ा। इस बार बच्ची सभी शब्दों के पूर्व और बाद के ‘र’ का उपयोग करते हुए शब्दों और वाक्यों को पढ़ रही थी। इस अभ्यास के बाद शिक्षिका ने उस बच्ची को फिर से उसी पाठ के आगे के हिस्से को पढ़ने के लिए कहा। इस बार भी बच्ची ने पहले तो ‘पतियोगिता’ पढ़ा पर उसे तुरन्त स्वयं ही ठीक करते हुए ‘प्रतियोगिता’ पढ़ने लगी।
इस पूरी शिक्षण प्रक्रिया में मुझे जो सबसे महत्वपूर्ण लगा वह शिक्षिका का व्यवहार था, जिसमें उन्होंने एक बार भी बच्ची से यह नहीं कहा कि तुमने गलत पढ़ा और न ही उस गलती को तुरन्त टोककर सुधारा। बल्कि उन्होंने बच्ची की मुश्किल को समझते हुए उसी प्रकार के बहुत-से अन्य शब्दों को स्थान दिया। इसमें भी शिक्षिका ने उस शब्द को जगह नहीं दी जिसे बच्ची ने गलत पढ़ा था। उस बच्ची ने भी कक्षा में हुए अभ्यास का तुरन्त अपने पठन में उपयोग किया।
इस पूरी प्रक्रिया में दोनों ही स्तरों पर अनुप्रयोग निहित था। जहाँ शिक्षिका ने इन परिस्थितियों में बाल मनोविज्ञान के अनुरूप सीखने के सिद्धान्तों का उपयोग किया, वहीं बच्ची ने भी शिक्षिका के द्वारा बताई गई बात का उपयोग अपने पठन में किया जो सीखने के एक खूबसूरत और महत्वपूर्ण पक्ष को बयाँ करता है। इस पूरी प्रक्रिया में मुझे इस बात ने सबसे अधिक प्रभावित किया कि शिक्षिका ने बच्चों के सीखने की प्रक्रिया का सम्मान किया।
श्रीदेवी: अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन, धमतरी, छत्तीसगढ़ में कार्यरत।
सभी चित्र: हंसा एम.के. डण्डेरवाल: सिम्बायोसिस, पुणे से एम.बी.ए. (फाइनेंस)। चित्रकला में रुचि। भोपाल में रहती हैं।