हाल ही में एड्स 2024 सम्मेलन में दक्षिण अफ्रीका की शोधकर्ता लिंडा-गेल बेकर ने एक परीक्षण का विवरण प्रस्तुत किया जिसमें सहभागियों को 100 प्रतिशत सुरक्षा मिली है। इस परीक्षण के दौरान 2000 से ज़्यादा अफ्रीकी महिलाओं को एक एंटीवायरस औषधि लेनाकापेविर साल में दो बार दी गई थी। यह औषधि दरअसल संपर्क-पूर्व रोकथाम के तौर पर दी गई थी। इनमें से एक भी महिला एड्स वायरस (एच.आई.वी.) से संक्रमित नहीं हुई। यह परीक्षण सिस-जेंडर महिलाओं पर किया गया था। सिस-जेंडर मतलब वे महिलाएं जो पुरुषों के साथ यौन सम्बंध बनाती हैं।
फिलहाल इस क्षेत्र के अन्य शोधकर्ता अगले परीक्षण के नतीजों की प्रतिक्षा करना चाहते हैं जो यूएस व अन्य 6 देशों में ऐसे पुरुषों पर किए जाएंगे जो अन्य पुरुषों से यौन सम्बंध रखते हैं। इस परीक्षण के परिणाम 2025 में मिलने की उम्मीद है।
वैसे तो दुनिया भर में नए एच.आई.वी. संक्रमणों की संख्या में गिरावट आई है लेकिन राष्ट्र संघ का कहना है कि यह प्रगति धीमी पड़ गई है। उस लिहाज़ से नई औषधि महत्वपूर्ण है। हालांकि संपर्क-पूर्व रोकथाम औषधियां आज भी मौजूद हैं लेकिन उनका असर सीमित ही रहा है। कुछ औषधियां ऐसी हैं जिनकी एक गोली रोज़ाना लेनी होती है। ऐसा करना सामाजिक लांछन और प्रायवेसी के अभाव में संभव नहीं हो पाता।
एक इंजेक्शन कैबोटाग्रेविर भी उपलब्ध है जो दो महीने में एक बार दिया जाता है। इसे 2022 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जोखिमग्रस्त समूहों के लिए अनुशंसित किया था। सिस-जेंडर महिलाओं में इसने गोली की तुलना में संक्रमण की रोकथाम 88 प्रतिशत दर्शाई थी।
पर्पज़-1 परीक्षण में दक्षिण अफ्रीका और यूगांडा की 2134 किशोरियों व युवा महिलाओं को हर 6 माह में लेनाकापेविर का इंजेक्शन दिया गया था। यह परीक्षण तब समाप्त कर दिया गया जब आधे सहभागियों को शामिल किए 1 वर्ष पूरा हो गया और 100 प्रतिशत सुरक्षा देखने को मिली। इसी परीक्षण के दो अन्य समूहों के 3000 सहभागियों को या तो प्रतिदिन एमट्रिसिटाबिन/टेनोफोविर की एक-एक गोली प्रतिदिन दी गई थी या इसी दवा का एक कम साइड इफेक्ट वाला संस्करण दिया गया था। इन समूहों में 50 नए एच.आई.वी. संक्रमण सामने आए जो सामान्य से बहुत कम नहीं था। ऐसे 10 प्रतिशत सहभागियों के खून की जांच से पता चला कि इन्होंने रोज़ाना एक गोली की बजाय शायद प्रति सप्ताह तीन या उससे भी कम गोलियां खाई थीं जो शायद संक्रमण का मुख्य कारण रहा।
लेनाकापेविर इंजेक्शन के माध्यम से दी जाती है और यह सवाल खड़ा है कि क्या लंबे समय तक नियमित रूप से इंजेक्शन लेते रहना आसान होगा। लेनाकापेविर इंजेक्शन त्वचा के नीचे के ऊतक में दिया जाता है। यदि सावधानीपूर्वक न दिया जाए तो यह काफी दर्दनाक हो सकता है। परीक्षण के दौरान ही (जहां बहुत सावधानी बरती जाती है) कुछ सहभागियों को इस तरह की तकलीफ हुई थी। बड़े पैमाने पर यह एक बड़ी समस्या हो सकती है। दूसरी समस्या है कि लेनाकापेविर महंगी है, हालांकि इसके समाधान के प्रयास चल रहे हैं।
लेनाकापेविर एक नए किस्म की औषधि है। यह वायरस की जेनेटिक सामग्री के आसपास बने आवरण (कैप्सिड) से जुड़ जाती है और वायरस के जीवन चक्र को छिन्न-भिन्न कर देती है। वैसे अभी तक वायरस में इसके खिलाफ प्रतिरोध विकसित करने का कोई मामला सामने नहीं आया है लेकिन लंबे समय तक बड़े पैमाने पर इस्तेमाल से बात अलग हो सकती है। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - November 2024
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