जर्मनी में एक 60 वर्षीय व्यक्ति वायरस से मुक्त घोषित कर दिया गया है। वह दुनिया का ऐसा सातवां व्यक्ति है। लेकिन इस व्यक्ति के संदर्भ में एक विशेष बात यह है कि वह ऐसा दूसरा व्यक्ति है जिसे ऐसी स्टेम कोशिकाएं प्रत्यारोपित की गई थीं जो वायरस की प्रतिरोधी नहीं हैं। दरअसल इस उपचार के संयोजक कैंम्ब्रिज विश्वविद्यालय के रविंद्र गुप्ता स्वयं अचंभित हैं कि इसने काम कर दिखाया।  
ऐसा पहला व्यक्ति टिमोथी रे ब्राउन था जिसे रक्त कैंसर के उपचार के लिए अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण दिया गया था। इस प्रत्यारोपण के बाद वह एच.आई.वी. मुक्त हो गया। प्रसंगवश उसे अब बर्निल मरीज़ के नाम से जाना जाता है। ब्राउन व चंद अन्य मरीज़ों को जो स्टेम कोशिकाएं दी गई थीं उनमें एक जीन में उत्परिवर्तन था। यह जीन सामान्यत: CCR5 नामक ग्राही का निर्माण करवाता है। CCR5 वह ग्राही है जिसकी मदद से एड्स वायरस प्रतिरक्षा कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं। इस प्रयोग के निष्कर्ष से कई शोधकर्ताओं को लगा कि शायद CCR5 ही एच.आई.वी. उपचार के लिए सही लक्ष्य है।
और अब यह नया मामला म्यूनिख में पच्चीसवें अंतर्राष्ट्रीय एड्स सम्मेलन में रिपोर्ट हुआ है। इसमें शामिल मरीज़ को नेक्स्ट बर्लिन मरीज़ कहा जा रहा है। नेक्स्ट बर्लिन मरीज़ को एक ऐसे व्यक्ति की स्टेम कोशिकाएं दी गई थीं जिसकी कोशिकाओं में गैर-उत्परिवर्तित जीन की एक ही प्रतिलिपि थी - यानी ये कोशिकाएं CCR5 बनाती तो हैं लेकिन सामान्य से कम मात्रा में। इसका मतलब है आपको ऐसा दानदाता ढूंढना ज़रूरी नहीं है जिसमें जीन पूरी तरह काम न करता हो। अर्थात दानदाता ढूंढना कहीं ज़्यादा आसान हो जाएगा। कहते हैं कि युरोपीय मूल के लोगों में मात्र एक प्रतिशत ऐसे होते हैं जिनके CCR5 जीन की दोनों प्रतिलिपियां उत्परिवर्तित होती हैं जबकि एक उत्परिवर्तित जीन वाले लोग आबादी में 10 प्रतिशत हैं।
किस्सा यह है कि नेक्स्ट बर्लिन मरीज़ में एच.आई.वी. का निदान 2009 में हुआ था। वर्ष 2015 में उसमें रक्त व अस्थि मज्जा के कैंसर (एक्यूट मायलॉइड ल्यूकेमिया) का पता चला। उसके डॉक्टरों को ऐसा मैचिंग दानदाता मिला ही नहीं जिसकी कोशिकाओं में CCR5 जीन की दोनों प्रतिलिपियां उत्परिवर्तित हों। अलबत्ता, उन्हें एक ऐसी महिला दानदाता मिल गई जिसकी एक CCR5 प्रतिलिपि में उत्परिवर्तन था। तो हमारे नेक्स्ट बर्लिन मरीज़ को 2015 में प्रत्यारोपण मिला।
जहां तक कैंसर का सवाल था तो उसका उपचार ठीक-ठाक हो गया। एक माह के अंदर मरीज़ की अस्थि मज्जा की स्टेम कोशिकाओं का स्थान दानदाता की कोशिकाएं ले चुकी थीं। फिर 2018 में मरीज़ ने एच.आई.वी. का दमन करने वाली एंटी-रिट्रोवायरल औषधियां लेना बंद कर दिया। और आज लगभग 6 साल बाद उसके शरीर में एच.आई.वी. का कोई प्रमाण नहीं है।
अतीत में भी प्रत्यारोपण के प्रयास किए गए हैं लेकिन उनमें नियमित CCR5 जीन वाले दानदाताओं की स्टेम कोशिकाएं दी जाती थीं। इनमें जैसे ही मरीज़ एंटी-रिट्रोवायरल दवा लेना बंद करते, चंद सप्ताह या महीनों के बाद एच.आई.वी. पुन: सिर उठा लेता था। मात्र एक मामले में व्यक्ति 32 महीने बाद तक वायरस-मुक्त रहा था। यह मामला पेरिस के पाश्चर इंस्टीट्यूट के एसियर सेज़-सिरिऑन ने प्रस्तुत किया था - उसे जेनेवा मरीज़ कहा गया था।
अब शोधकर्ता यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि क्यों यही दो प्रत्यारोपण सफल रहे। इसके लिए कई परिकल्पनाएं प्रस्तुत की गई हैं। (स्रोत फीचर्स)