आज से लगभग 7000 वर्ष पूर्व विश्व भर के महासागरों के जलस्तर में वृद्धि होने लगी थी। हिमयुग के बाद हिमनदों के पिघलने से भूमध्य सागर के तट पर बसे लोगों को इस बढ़ते जलस्तर से काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। लेकिन इस परेशानी से निपटने के लिए उन्होंने एक दीवार का निर्माण किया जिससे वे अपनी फसलों और गांव को तूफानी लहरों और नमकीन पानी की घुसपैठ से बचा सकें। हाल ही में पुरातत्वविदों ने इरुााइल के तट पर उस डूबी हुई दीवार को खोज निकाला है जो एक समय में एक गांव की रक्षा के लिए तैयार की गई थी। 
इस्राइल स्थित युनिवर्सिटी ऑफ हायफा के पुरातत्वविद एहुद गैलिली के अनुसार इरुााइल की अधिकतर खेतिहर बस्तियां, जो अब जलमग्न हैं, उत्तरी तट पर मिली हैं। ये बस्तियां रेत की एक मीटर मोटी परत के नीचे संरक्षित हैं। कभी-कभी रेत बहने पर ये बस्तियां सतह पर उभर आती हैं। 
गैलिली और उनकी टीम ने इस दीवार को 2012 में खोज निकाला था। यह दीवार तेल हराइज़ नामक डूबी हुई बस्ती के निकट मिली है। बस्ती समुद्र तट से 90 मीटर दूर तक फैली हुई थी और 4 मीटर पानी में डूबी हुई थी। टीम ने स्कूबा गियर की मदद से अधिक से अधिक जानकारी खोजने की कोशिश की। इसके बाद वर्ष 2015 के एक तूफान ने उन्हें एक मौका और दिया। उन्हें पत्थर और लकड़ी से बने घरों के खंडहर, मवेशियों की हड्डियां, जैतून के तेल उत्पादन के लिए किए गए सैकड़ों गड्ढे, कुछ उपकरण, एक चूल्हा और दो कब्रों भी मिलीं। लकड़ी और हड्डियों के रेडियोकार्बन डेटिंग के आधार पर बस्ती 7000 वर्ष पुरानी है। 
प्लॉस वन में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार यह दीवार 100 मीटर लंबी थी और बड़े-बड़े पत्थरों से बनाई गई थी जिनका वज़न लगभग 1000 किलोग्राम तक था। गैलिली का अनुमान है कि यह गांव 200-300 वर्ष तक अस्तित्व में रहा होगा और लोगों ने सर्दियों के भयावाह तूफान कई बार देखे होंगे। आधुनिक समुद्र की दीवारों की तरह इसने भी ऐसे तूफानों से निपटने में मदद की होगी। गैलिली के अनुसार मानवों द्वारा समुद्र पानी से खुद को बचाने का यह पहला प्रमाण है। 
गैलिली का ऐसा मानना है कि तेल हराइज़ पर समुद्र का जल स्तर प्रति वर्ष 4-5 मिलीमीटर बढ़ रहा है। यह प्रक्रिया सदियों से चली आ रही है। कुछ समय बाद उस क्षेत्र में रहने वाले लोग समझ गए होंगे कि अब वहां से निकल जाना ही बेहतर है। समुद्र का स्तर बढ़ता रहा होगा और पानी दीवारनुमा रुकावट को पार करके रिहाइशी इलाकों में भर गया होगा। लोगों ने बचाव के प्रयास तो किए होंगे लेकिन अंतत: समुद्र को रोक नहीं पाए होंगे और अन्यत्र चले गए होंगे। (स्रोत फीचर्स)
- 
            Srote - March 2020
- श्वसन सम्बंधी रहस्यमयी वायरस
 - नया कोरोनावायरस और सामान्य फ्लू
 - कोरोनावायरस: क्या कर सकते हैं वैज्ञानिक?
 - अंग प्रत्यारोपण के साथ डीएनए भी बदल गया
 - 2600 वर्षों तक सुरक्षित मस्तिष्क
 - माया सभ्यता का महल खोजा गया
 - प्रतिरोधी रोगों से लड़ाई का नेतृत्व करे भारत
 - ब्लैक होल की पहली तस्वीर और कार्बन कुनबे का विस्तार
 - नई सफलताओं की ओर बढ़ा भारतीय विज्ञान
 - नए साल में इसरो के नए इरादे
 - चांद को छूने की नई होड़
 - चंद्रमा पर हज़ारों टार्डिग्रेड्स हैं
 - मंगल ग्रह पर बसने की बेताबी
 - पेशाब पर ज़िन्दा चींटियां
 - उल्टी चलती चींटियां घर कैसे पहुंचती हैं?
 - पक्षी के भोजन की चुगली करते हैं पंख
 - प्रथम परोपकारी पक्षी
 - कुत्ते संख्या समझते हैं
 - डायनासौर को भी जूं होती थी
 - सूर्य की स्थिति देखकर करती है प्रवास यह तितली
 - शकरकंद खुद को शाकाहारियों से सुरक्षित रखता है
 - अंतर्राष्ट्रीय पादप स्वास्थ्य वर्ष
 - मीठा खाने का मस्तिष्क पर प्रभाव
 - गर्भ में शिशु लात क्यों मारते हैं
 - व्यायाम करने की इच्छा बचपन में तय हो जाती है
 - स्वास्थ्य मंत्री के सुझाए उपचार पर विवाद
 - क्यों कुछ क्षेत्रों में महिलाओं से अधिक पुरुष हैं
 - बढ़ते समुद्र से बचाव के लिए एक प्राचीन दीवार
 - प्रागैतिहासिक युग के बच्चे और हथियारों का उपयोग
 
 
