अच्छी खबर है कि एक किस्म के हीमोफीलिया के उपचार में जेनेटिक विधि से सफलता मिली है। हीमोफीलिया एक आनुवंशिक रोग है जिसमें व्यक्ति का खून बहने लगे तो बहता ही जाता है। ऐसे व्यक्तियों में खून का थक्का नहीं बन पाता और छोटी-मोटी चोट भी घातक साबित होती है। हीमोफीलिया के दो प्रकार होते हैं और फिलहाल सफलता हीमोफीलिया-बी के उपचार में मिली है हालांकि हीमोफीलिया के मात्र 20 प्रतिशत मरीज़ों में ही बी प्रकार पाया जाता है, शेष हीमोफीलिया-ए से पीड़ित होते हैं।
जेनेटिक उपचार में किया यह जाता है कि उस बीमारी के लिए ज़िम्मेदार जीन को बदल दिया जाता है। वर्तमान प्रयोग में 10 पुरुषों को फैक्टर IX का जीन एक निरापद वायरस में जोड़कर इंजेक्ट किया गया। फैक्टर IX वह प्रोटीन है जो खून का थक्का बनने में भूमिका निभाता है किंतु हीमोफीलिया-बी ग्रस्त व्यक्तियों में इसे बनाने वाला जीन नदारद होता है।
देखा गया कि यह इंजेक्शन देने के 18 महीने बाद तक इन पुरुषों का लीवर फैक्टर IX का निर्माण कर रहा था। यह सामान्य स्तर से 34 प्रतिशत था। सामान्य का 34 प्रतिशत फैक्टर IX पर्याप्त है, इस बात की पुष्टि यों हुई कि उक्त 10 में से 9 पुरुषों में इस दौरान रक्त स्राव की एक भी घटना नहीं हुई। इस प्रयोग के परिणाम दी न्यू इंगलैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुए हैं। यह भी देखा गया कि 10 में से 8 व्यक्तियों को फैक्टर IX के इंजेक्शन की भी ज़रूरत नहीं पड़ी, जो वैसे तो उन्हें कुछ-कुछ दिनों के अंतराल पर लेने पड़ते हैं।
इससे पहले भी हीमोफीलिया-बी के मामले में जीन उपचार के प्रयास किए गए थे किंतु उनमें सफलता नहीं मिली थी। कारण शायद यह रहा था कि मरीज़ों के प्रतिरक्षा तंत्र ने परिवर्तित कोशिकाओं को नष्ट कर दिया था। इस नए प्रयोग में शोधकर्ताओं ने लीवर की कोशिकाओं में फैक्टर IX जीन का अत्यंत सक्रिय रूप इंजेक्ट किया था। इसके चलते वायरस का डोज़ कम किया जा सका और प्रतिरक्षा तंत्र ने न्यूनतम प्रतिक्रिया दी। अब शोधकर्ता हीमोफीलिया-ए के लिए जीन उपचार पर काम कर रहे हैं, जो ज़्यादा लोगों को पीड़ित करता है। (स्रोत फीचर्स)