Sandarbh - Issue 148 (September-October 2023)
स्पूतनिक की उड़ान और विज्ञान शिक्षण – कालू राम शर्मा [Hindi, PDF]
आखिर होविशिका की शुरुआत और स्पूतनिक की उड़ान में भला क्या रिश्ता है? खोजबीन के आनन्द की इस कड़ी में मास्साब शिक्षण प्रशिक्षण के सत्र के बाद होस्टल की छत पर बैठे अन्य शिक्षकों और स्रोत-दल के सदस्यों के साथ विज्ञान शिक्षण के इतिहास पर गपिया रहे हैं। गौरतलब है कि कैसे एक रॉकेट के अन्तरिक्ष में पहुँचने से पूरी दुनिया में विज्ञान शिक्षण में बदलावों की लहरें उमड़ पड़ीं थीं।
आकाशीय पिण्डों की गति की व्याख्या: भाग 2 – उमा सुधीर [Hindi, PDF]
हम कैसे जानते हैं कि चन्द्रमा पृथ्वी का चक्कर लगाता है? पृथ्वी के एक घूर्णन के बाद चन्द्रमा पिछले दिन (या रात) वाले स्थान पर क्यों नहीं दिखता? ऐसे सवालों और जिज्ञासाओं को कुछ सरल-सी गतिविधियों के ज़रिए जाँचा जा सकता है। आकाशीय पिण्डों पर उमा सुधीर के लेखों की शृंखला की यह दूसरी कड़ी, उन सभी के लिए दिलचस्प होगी जो अक्सर चाँद को ताँका करते हैं और सवाल किया करते हैं।
भाप की कथा – हरिशंकर परसाई [Hindi, PDF]
क्या दो हज़ार वर्ष पूर्व कभी किसी ने पानी उबालते वक्त यह सोचा होगा कि उस भाप से कभी शहरों को जोड़ती एक लम्बी-सी गाड़ी दौड़ेगी, छुक-छुक? या उसी भाप की मदद से खदानों में आई बाढ़ का पानी कई मीटर ऊपर तक निकाला जा सकेगा? यह उसी भाप की कथा है। परसाई पहली शताब्दी के ग्रीस से उठती भाप को, सैकड़ों वर्ष लाँघकर, अपनी कलम की नली से यूरोप के अलग-अलग वैज्ञानिकों के प्रयोगों तक ले जाते हैं, और हम उस भाप की शक्ति से दुनिया को बदलते देखते जाते हैं।
लोकतंत्र एवं वैज्ञानिक मानसिकता – हृदयकान्त दीवान [Hindi, PDF]
क्या है वैज्ञानिक मानसिकता? एक लोकतांत्रिक समाज में इसका होना क्यों ज़रूरी माना जाता है? इसके साथ ही, क्यों इसे लगातार सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व धार्मिक लालचों के चलते प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है? जहाँ एक ओर वैज्ञानिक मानसिकता सामाजिक खामियों को दूर करने में मदद करती है, वहीं दूसरी ओर, इसे धार्मिक-विश्वास विरोधी बताकर इसका मखौल उड़ाया जाता है। तो क्या वैज्ञानिक मानसिकता की हार लोकतंत्र के मूल्यों की हार का रास्ता तय करती है? हृदयकान्त का यह लेख भारतीय सन्दर्भ में इससे जुड़े प्रसंगों की गहरी तहकीकात और व्याख्या करता है। यह मुद्दा बड़े लम्बे समय से ज्वलन्त है, जिस पर विचार-विमर्श करना बेहद ज़रूरी है।
पढ़ना सीखने के दौरान सटीक अनुमान लगाने का महत्व और इसका विकास -मीनू पालीवाल [Hindi, PDF]
क्या पढ़ने का कौशल केवल अक्षर जोड़कर पढ़ पाने पर निर्भर करता है? या उसमें पूर्वज्ञान और अनुमान लगा पाना भी शामिल होता है? क्या होगा यदि हम कक्षा में पढ़ने में गलती कर रहे बच्चों को टोकने से पहले रुकें, और यह समझने की कोशिश करें कि वे ‘गलतियाँ’ आखिर क्यों कर रहे हैं? मीनू पालीवाल के इस लेख में उनके द्वारा यही समझ बनाने की कोशिश की गई है, एक बेहद सटीक, सरल और बारीक विश्लेषण की मदद से।
अध्यापक नहीं, सहायक – एक अनुभव - रेनू उपाध्याय [Hindi, PDF]
2020 के लॉकडाउन के दौरान अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन द्वारा बनाए गए सृजन समूह से एक शिक्षिका के अनुभव, जिन्होंने केवल एक अध्यापक होने के परे जाकर बच्चों की सहायक बनना जाना, सीखा। लेख में रेनू गौर करती हैं कि किस तरह एक शिक्षक के लिए पढ़ते रहना ज़रूरी है। और किस तरह उसकी बदौलत वे बच्चों और उनकी समस्याओं के प्रति संवेदनशील बन पाते हैं, अपने शिक्षण में बेहतरी के लिए बदलाव ला पाते हैं और अपने पेशे की ज़रूरतों और अहमियत को समझ पाते हैं।
पढ़ना ज़रा ठहरना… ठहरना ज़रा सोचना! - अनिल सिंह [Hindi, PDF]
आप यह पढ़ पा रहे हैं। मगर क्या आप पढ़ते हैं? पढ़ते भी हैं तो क्या पढ़े पर सोचते हैं? डिजिटल दुनिया की आपाधापी और ‘पढ़ाई’ के निर्मम माहौल के चलते ठहरकर, समझकर पढ़ना दूभर हो चला है। क्या पढ़ने-सोचने की आदत का अभाव शिक्षा प्रणाली में जड़ें लेता है? क्या शिक्षा प्रणाली की साधनवादी सोच के दायरे पढ़ने के, पढ़कर समझने के सुख और आनन्द को भी सीमित करते हैं? ऐसे में, साहित्य का उद्देश्य क्या है? अनिल सिंह अपनी इस पुस्तक समीक्षा में बड़ी पेचीदगी से यह बताते हैं कि किस तरह कृष्ण कुमार अपनी किताब पढ़ना, ज़रा सोचना के ज़रिए ऐसे सवालों पर ‘आपसी बात’ करते हैं। ज़रा ठहरकर पढ़िए, और सोचिए…
पेगी मोहन के लेख पर टिप्पणियाँ - टी. विजयेन्द्र [Hindi, PDF]
हिन्दुस्तान जैसे विशाल राष्ट्र में बहुभाषिता के क्या आयाम हैं? अलग-अलग भाषाई समुदायों और आर्थिक समुदायों के बीच भाषाएँ सीखने का प्रवाह किस तरह का होता है? भाषाएँ मरती हैं, तो क्या सचमुच अँग्रेज़ी ही भारत के भविष्य की भाषा रहेगी? संदर्भ अंक-145 में प्रकाशित पेगी मोहन के लेख ‘क्या अँग्रेज़ी भारत के भविष्य की भाषा है?’ पर लाल्टू ने अंक-146 में प्रतिक्रिया दी थी। और अब उन दोनों लेखों पर टी. विजयेन्द्र की टिप्पणियाँ हाज़िर हैं।
वापसी: (भाग-1) - सतीश अग्निहोत्री [Hindi, PDF]
उत्क्रान्ति पर शोध कर रहे प्रोफेसर शैलायन एक सुबह उठते हैं तो खुद को एक बन्दर के रूप में पाते हैं। फिर क्या, दुनिया में तहलका मच जाता है! जहाँ शैलायन के कुछ हितैषी उनकी वापसी चाहते हैं, वहीं बन्दर शैलायन ओलम्पिक खेलों में भागीदारी लेने की तैयारी में जुट जाते हैं। लालच, राजनीति, प्रेम और मूल्यों के बीच उछल-कूद करते इस बन्दर की कहानी का पहला भाग संदर्भ के इस अंक में शामिल है।
समुद्र में आने वाले तूफानों का नामकरण कैसे होता है? - सवालीराम [Hindi, PDF]
बिपरजॉय, मारिया, इरमा, यास और ऐसे अनेक नाम सम्भवतः आपने तूफानों के लिए सुने होंगे। पर तूफानों को नाम क्यों दिए जाते हैं और कैसे? समुद्री तूफानों के नामकरण का इतिहास बड़ा रोचक है। जानिए यह सब, इस बार के सवालीराम में।
रंगून क्रीपर तथा कल, आज और कल के रंग बदलते फूल - किशोर पंवार [Hindi, PDF]
रंगून क्रीपर, या मधुमालती के फूल बड़े रंगबाज़ हैं! रात सफेद, सुबह गुलाबी और शाम लाल हो जाते हैं। जहाँ रात में पतंगे इनका रसपान करते हैं, तो दिन और शाम में तितलियाँ और मधुमक्खियाँ इनपर मण्डराती हैं। वहीं, एक अन्य फूल है – टुडे टुमॉरो टुगेदर। इन फूलों के गुच्छों की तस्वीर देखकर ही आप बता सकते हैं कि उनमें किस फूल की कितनी उम्र है। जानिए इनके बारे में और भी बहुत कुछ, किशोर पंवार के इस खुशबूदार लेख में।