Sandarbh - Issue 144 (January-february 2023)
कौन हारा, कौन जीता? – कालू राम शर्मा [Hindi, PDF]
यह लेख भिन्न-भिन्न उदाहरणों से बच्चों में संयोग और सम्भाविता की समझ विकसित करने की कोशिश की एक झलक है। होशंगाबाद विज्ञान का मूल जीवन के मसलों को विज्ञान शिक्षा के दायरे में लाना है ताकि छात्र उसपर विचार-विमर्श कर सकें और उनकी सोच का दायरा बढ़ सके। यह लेख इसी बात को दर्शाता है। रोज़मर्रा के जीवन से जुड़े कई उदाहरणों द्वारा - जैसे आम के पेड़ पर मुहर आना या न आना, किसी का ट्रेन पकड़ पाना या न पकड़ पाना, सिक्के में चित और पट आने की सम्भावना - बच्चे संयोग और सम्भाविता को काफी करीब से समझ पाते हैं।
कुदरत के सच और समाज – लाल्टू [Hindi, PDF]
हरजिन्दर सिंह लाल्टू द्वारा दिया गया यह व्याख्यान एकलव्य के 40 साल और होविशिका के 50 साल होने के उपलक्ष्य में राज्य संग्रहालय, भोपाल में आयोजित ‘होविशिका व्याख्यान शृंखला' में दिया गया था। इसमें वे बताते हैं कि वे होविशिका से कैसे जुड़े और किसने उन्हें इसके लिए प्रेरित किया। इसके अलावा इस व्याख्यान में वे विज्ञान की आलोचना की बात करते हैं। आज के समय में जब विज्ञान और टेक्नोलॉजी के बिना जीवन व्यतीत करना असम्भव हो गया है, यह भी ज़रूरी है कि हम कुदरत के प्रति सचेत हों, और मान्य सिद्धान्तों पर सवाल खड़े करें।
हम कैसे जानते हैं कि तारे किन चीज़ों से बने हैं? – राजाराम नित्यानन्द [Hindi, PDF]
‘हम कैसे जानते हैं कि तारे किन चीज़ों से बने हैं?’ तारों तक पहुँचे बिना, उनसे कई प्रकाश-वर्ष के फासले पर पृथ्वी की किसी दूरस्थ प्रयोगशाला में बैठी कोई खगोलविद यह पता लगा सकती है। पर यदि किसी तारे का पदार्थ पृथ्वी के ज्ञात पदार्थों से मेल न खाता हो, तो? क्या इस तरह कोई नया पदार्थ खोजा जा सकता है? गौरतलब है कि ब्रह्माण्ड के इतने विशाल पिण्डों के पदार्थों का पता लगाने के पीछे, अतिसूक्ष्म परमाणुओं का विज्ञान मदद करता है। राजाराम नित्यानन्द का यह लेख इसी पर रोशनी डालता है।
बेटा करे सवाल – अंजू गोस्वामी, गायत्री यादव, दीक्षा यादव [Hindi, PDF]
आज के समय में जब लड़कियों के लिए नए-नए कानून बनाए जा रहे हैं, कहीं-न-कहीं हमने लड़कों के अधिकारों को दरकिनार कर दिया है। यह बात सिर्फ अधिकारों तक ही नहीं बल्कि लड़कों की भावनाओं तक भी पहुँचती है। चाहे वो गुड्डे-गुड़ियों से खेलने की बात हो या फिर लड़कियों जैसे तैयार होने की, लड़कों को इन सबकी आज़ादी नहीं होती। एक तरफ जहाँ लड़कियाँ अपने शरीर में आने वाले बदलावों को लेकर बात करने में, कुछ पूछने में संकोच करती हैं, लड़के भी इससे उतना ही जूझते हैं लेकिन कह नहीं पाते। समाज ने लड़के-लड़कियों को अलग-अलग दायरों में बाँध दिया है जिससे बहार निकलना बहुत ज़रूरी है। यह लेख इन सारे पहलुओं के बारे में बात करता है।
मेरी शिक्षण यात्रा – एकता चौरे [Hindi, PDF]
यह लेख एकता चौरे जी की मेहनत और कभी हार न मानने की जीत को हमारे साथ साझा करता है। आंशिक दृष्टिहीन से पूर्ण दृष्टिहीन होने की इनकी यात्रा से दिल पसीज जाता है लेकिन जब हम देखते हैं कि इतना कुछ होने पर भी इनका आत्मविश्वास नहीं डगमगाया, तब ये हमारे लिए एक मिसाल बन जाती हैं। न सिर्फ उच्च शिक्षा प्राप्त करना बल्कि उसके बाद खुद एक शिक्षिका बनना, हम सबके मन में आशा की नई उम्मीद जगाता है। एक दृष्टिहीन विद्यार्थी से होशंगाबाद में शिक्षिका बनने तक का एकता का सफर बहुत ही प्रेरणादायक है।
बातचीत और अवलोकन – शलाका गायकवाड [Hindi, PDF]
यह लेख ‘राह बनाते शिक्षक’ कार्यक्रम में से एक शिक्षिका सुश्री एकता चौरे की कक्षा के अवलोकन के बारे में है। इससे न सिर्फ हमें यह पता चलता है कि बच्चों को पढ़ाने के लिए एकता जी को आम शिक्षकों से ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है बल्कि कई चुनौतियाँ भी उनके रास्ते में आती हैं। दृष्टिहीन होने के बावजूद वे एक ऐसी शिक्षिका हैं जो अपनी लगन और मेहनत से आम शिक्षकों को और बेहतर होने की प्रेरणा देती हैं।
अपना भविष्य बदलने के लिए हमें बच्चों को इतिहास पढ़ाने का अपना ढंग बदलना चाहिए – युवाल नोआ हरारी [Hindi, PDF]
युवाल नोआ हरारी का यह लेख इतिहास के ज़रिए हमारे भविष्य को सुधारने की बात करता है। इतिहास से किसी को भी वंचित नहीं रखा जा सकता, खासकर बच्चों को जिनके मन में ‘क्यों’ नाम की चिड़िया उड़ती ही रहती है। ऐसी स्थिति में उन्हें इतिहास किस तरह पढ़ाया जाए ताकि वे इससे आतंकित भी न हों और इसे महज़ अतीत का अध्ययन भी न समझें? आज के इस नवयुग में अगर हम अपना भविष्य उज्ज्वल करना चाहते हैं तो पहले इतिहास को एक नए नज़रिए से देखने की ज़रूरत है, और लेख उसी नज़रिए की तरफ बढ़ाया हुआ एक कदम है।
कबाड़ से जुगाड़: विज्ञान पढ़ाने का सबसे सरल तरीका! – अरविन्द गुप्ता के साथ बातचीत [Hindi, PDF]
यह अरविन्द गुप्ता के साथ एक साक्षात्कार है जिसमें वे आज के समय में विज्ञान और इसकी शिक्षा से जुड़े हुए कई पहलुओं के बारे में बात करते हैं। वे बताते हैं कि किस तरह आई.आई.टी. कानपुर में आने के बाद उनके लिए एक नई दुनिया के दरवाज़े खुल गए। कबाड़ से खिलौने बनाने वाले अरविन्द गुप्ता का मानना है कि विज्ञान को महज़ कक्षाओं की चारदीवारी में किताबों से नहीं पढ़ाया जाना चाहिए, स्कूल में आने से पहले ही बच्चा बेहिसाब विज्ञान कर चुका होता है इसलिए आम चीज़ों के साथ प्रयोग करने पर बच्चे बहुत कुछ सीख सकते हैं।
टॉफी – लाल्टू [Hindi, PDF]
यह कहानी एक पिता और बेटे के खूबसूरत रिश्ते को दर्शाती है। जहाँ एक तरफ कई युद्ध लड़े जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ हम देख पा रहे हैं कि इनका नतीजा गलत ही हो रहा है। शहर में रहने के बाद भी लोगों के घर पर पंखे जैसी आम चीज़ें नहीं हैं, टॉफी जैसी छोटी-सी चीज़ समृद्धि दर्शाती है। काफी साल बीत चुके हैं लेकिन एक पिता की सिखाई हुई चीज़ें हमेशा ही प्रासंगिक होती हैं। यह कहानी सीधा हमारे दिलों तक जाती है।
कबूतर या पक्षी कंकड़ को कैसे पचाते हैं? - सवालीराम [Hindi, PDF]
वैसे तो हम आए दिन कबूतर जैसे पक्षियों से रूबरू होते हैं, लेकिन जब हम देखते हैं कि ये पक्षी दानों के साथ कंकड़ भी चुग रहे हैं, हमारे अन्दर सोया हुआ जिज्ञासु बच्चा जाग उठता है। इस बार के सवालीराम में पढ़ते हैं कि आखिर ये पक्षी कंकड़-पत्थर पचाते कैसे हैं।