हम सबकी चिर-परिचित तितली कितनी ऊँचाई तक उड़ान भर सकती है, ऐसा एक सवाल पिछले अंक में सवालीराम ने पूछा था। इस सवाल के दो जवाब पेश कर रहे हैं। पहला जवाब हमारे पाठक श्री प्रेमचन्द्र श्रीवास्तव का है। और दूसरा जवाब एकलव्य की प्रकाशन टीम के साथी रुद्राशीष ने तैयार किया है।  

जवाब 1: यह सवाल बहुत अच्छा है। यह स्त्री-पुरुष, बच्चों, युवाओं और बूढ़ों के लिए अत्यन्त रुचि का विषय है। हममें से विरला ही कोई होगा जो रंग-बिरंगी, मनोमुग्धकारी तितलियों को फूलों पर बैठे अथवा उड़ते हुए देखकर क्षणभर के लिए ठिठक न जाता हो।
मुझे बचपन से ही तितलियों से प्रेम रहा है। बाद में वनस्पति विज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते तितलियों से अटूट सम्बन्ध बन गया।

बचपन में मैंने तितलियों को पकड़ने का प्रयास कई बार किया किन्तु असफल रहा। हल्की-सी आहट होते ही वे फुर्र हो जातीं। फिर भी उड़ती तितलियों को देखकर बड़ा मज़ा आता था। बड़े होने पर पता लगा कि तितलियों और फूलों का सम्बन्ध केवल फूलों के रस तक ही सीमित नहीं है। जब तितलियाँ एक फूल से दूसरे फूल पर विचरती हैं तो अपने साथ पहले फूल के पराग कण लेकर परागण (पॉलिनेशन) की क्रिया भी सम्पन्न करती हैं।
मेरी उम्र लगभग 78 वर्ष है और तितलियों का मोह मुझे आज भी है।  मैंने तो तितलियों को 35-40 फीट तक ही उड़ते देखा है। कभी यह सोचा ही नहीं कि वे कितनी ऊँचाई तक उड़ सकती हैं।
अब मैं मूल प्रश्न - तितलियाँ कितनी ऊँचाई तक उड़ सकती हैं? - पर आता हॅूँ। सबसे ऊँचा उड़ने वाली तितली जो ज्ञात है वह सैटिराइन है जिसे पालस ने 1883 में खोजा था। यह तितली 4500 मीटर (14800 फीट) तक उड़ सकती है। ये शेन फोकसुण्डो नेशनल पार्क, नेपाल में पाई गई हैं। बोलोरिया इम्प्रोबा (Boloria improba) और बोलोरिया एक्रोक्नेमा (Boloria acrocnema) प्रजाति की तितलियाँ अपना पूरा जीवनचक्र 4000-4200 मीटर की ऊँचाई तक सैंजुआन में व्यतीत  करती  हैं।  ये  यू.एस.ए. (कोलाराडो) में नीची ऊँचाइयों में प्रजनन करती हैं। तितलियों की कुछ उप-प्रजातियाँ सम्भवत: रोचक हैं यथा पेंटिड लेडी (वैनेसा कारडुई) विश्व के लगभग सभी क्षेत्रों में पाई जाती हैं और इनका निवास रेगिस्तानों से लेकर वर्षा वनों में है। ये सागर की सतह से 4000 मीटर की ऊँचाई तक पाई जाती हैं।
इन सब जानकारी के अनुसार तितली 4500 मीटर की ऊँचाई तक पाई गई हैं।

प्रेमचन्द्र श्रीवास्तव: विज्ञान पत्रिका (विज्ञान परिषद, इलाहाबाद) के पूर्व सम्पादक।

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जवाब 2: कुछ सौ फीट से ज़्यादा नहीं, मैंने अनुमान लगाया। आखिरकार, इतना छोटा-सा जीव इससे ज़्यादा क्या उड़ सकेगा।
मुझे पर्याप्त विश्वास था अपनी इस बात पर। इसी विषय पर चल रहे एक ऑनलाइन डिस्कशन फोरम पर कुछ ऐसा ही पढ़ने को मिल गया। एक ने लिखा था, “मैंने उन्हें चालीसवें माले पर बने अपने ऑफिस की खिड़की के बाहर देखा है, यानी कि कोई 600 फीट की ऊँचाई पर। और वो हवा के झोंके के साथ ऊपर उठ रही थीं। हवा के साथ इतनी ऊँचाई पर उड़ना जानबूझकर की बजाय एक संयोग भी हो सकता है।” यहाँ मेरी नज़र एक और व्यक्ति के जवाब पर पड़ी। “जब मैं कैलिफोर्निया, अमरीका के माउण्ट लासेन (जिसकी ऊँचाई 10,462 फीट है) की पैदल यात्रा पर था तब मैंने सैकड़ों हज़ार प्रवासी पेंटिड लेडी (वैनेसा कारडुई) तितलियों का विशाल झुण्ड पर्वत शिखर के ठीक नीचे की घाटियों में देखा था। इतनी ऊँचाई पर उन्हें किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं महसूस हो रही थी, जबकि मुझे साँस लेने में तकलीफ हो रही थी।”  यह तो अनपेक्षित था। चोटी के ठीक नीचे का मतलब है 10,000 फीट से ज़्यादा की ऊँचाई पर।

कैसे पता चलता है कि तितलियाँ कितनी ऊँचाई पर उड़ती हैं?

एक सवाल जिसने मुझे परेशान कर रखा था वो यह कि विशाल आसमान में ये छोटे जीव कहाँ उड़ रहे हैं यह कैसे पता चलता है। और फिर यह भी कि ये किस ऊँचाई पर उड़ रहे हैं। पायलेट लोग बहुत पहले से इन कीटों को आसमान में उड़ते देखते आ रहे हैं। सन् 1926 से कई सालों तक एक बहुत ही चिपचिपे, न सूखने वाले पदार्थ से कोटेड स्लाइड, कीटों को एकत्रित करने के उद्देश्य से प्लेन पर लगा दी जातीं। ये प्लेन आकाश में जहाँ से भी गुज़रते उनके रास्ते में जो कुछ भी आता, स्लाइड से चिपक जाता। साथ में कीट भी। अब आपको सिर्फ यह पता रखना होता था कि उस समय प्लेन किस ऊँचाई पर उड़ रहा था। 1933 में प्रसिद्ध विमान चालक चार्ल्स लिंडेनबर्ग (जिन्होंने 1927 में लगातार विमान उड़ाकर अटलांटिक महासागर को पार करने का रिकॉर्ड कायम किया था) ने वह चिपचिपी स्लाइड लगाकर अटलांटिक महासागर पार करते समय 2460 से 5410 फीट और ग्रीनलैण्ड के ऊपर 7870 से 12135 फीट की ऊँचाई पर से अपना प्लेन निकाला था। इन्होंने अपनी स्लाइड पर पराग कण, ज्वालामुखी की राख, शैवाल और डायटम्स के साथ बहुत तरह के कीट इकट्ठे किए थे।

कुछ सौ मीटर ऊपर उड़ रहे कीटों का सीधा अवलोकन दूरदर्शी की मदद से भी काफी कठिन है। फिर रात में उड़ने वाले कीटों का पता लगाना तो और भी कठिन काम हो जाता है। पिछले कुछ दशकों से तितली और इस तरह के अन्य उड़ने वाले कीटों की हलचल से सम्बन्धित आँकड़े इकट्ठा करने के लिए एंटोमोलॉजिकल रडार का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस रडार से जो किरणें उत्सर्जित होती हैं वो लगभग 1 कि.मी. की ऊँचाई तक पहुँच जाती हैं। इनके द्वारा 15 मिलीग्राम से अधिक वज़न वाले कीटों का ही पता लगाया जा सकता है। यह रडार खास तौर पर मधुमक्खियों और तितलियों के व्यवहार को समझने में उपयोगी रहा है।


मुझे तो इस पर विश्वास करना ही मुश्किल हो रहा था। इसके नीचे वाले जवाब ने मुझे इससे भी कहीं अधिक सोचने पर मजबूर कर दिया: “अमरीकन तितलियाँ समय-समय पर ब्रिटिश द्वीपों पर पाई गई हैं। बहुत ऊँचाई पर बहने वाली  हवा  की  धाराओं,  जिन्हें हवाईजहाज़ के पायलेट पसन्द करते हैं, के साथ बहे बिना यह मुमकिन न होता। इसका मतलब है कि ये तितलियाँ  6 मील की ऊँचाई पर थोड़ा-बहुत उड़ती तो हैं।”
एक मील बराबर 1.6 कि.मी. तो 6 मील यानी लगभग 10 कि.मी. की ऊँचाई। यह तो सच में ही एक विशाल संख्या है।

सबसे ऊँचा उड़ने वाले कीट
हालाँकि कई कीट ऊँचाइयों पर रहते हैं और इस कारण ऊँचा उड़ते हैं, जो कीट प्रवासी प्रकृति के होते हैं वे अधिक ऊँचा उड़ते हैं। तितली की कुछ प्रजातियाँ जैसे उत्तरी अमरीका की मोनार्क तितली (डेनस प्लेक्सिपस) अपने वार्षिक प्रवास के लिए बहुत अधिक दूरी तय करती हैं। कुछ मोनार्क की 4500 कि.मी. से अधिक की यह यात्रा अक्टूबर में शु डिग्री होती है। प्रतिदिन 75 से 160 कि.मी. तक की दूरी तय करते हुए वे दक्षिण या पश्चिम की ओर अपने शीतकालीन गन्तव्य तक पहुँचने में दो महीने तक का समय लेती हैं। एक ग्लाइडर (जो विमान बिना इंजन के उड़ान भर सकता है) पायलेट ने मोनार्क को 3300 मीटर की ऊँचाई पर उड़ते हुए रिपोर्ट किया है। जबकि लोकस्ट (टिड्डों के विशाल झुण्ड जो करोड़ों की संख्या और कई किलोमीटर के क्षेत्रफल के हो सकते हैं), स्टोन-फ्लाई, मे-फ्लाई और क्लैडिस-फ्लाई एवं बम्बल-बी 4500 मीटर की ऊँचाई पर उड़ सकती हैं, मक्खियाँ और तितलियाँ 6000 मीटर की ऊँचाई पर भी पाई गई हैं। भारत में तितलियाँ  हिमालय की ढाल पर तो देखी जाती हैं लेकिन सबसे ऊपर उड़ने का रिकॉर्ड तो स्मॉल टॉरटॉइसशैल (एग्लैस अर्टिका) तितलियों को जाता है जिन्हें सिक्किम की ज़ेमु हिमनदी के पास 6000 मीटर की ऊँचाई पर देखा गया है।

इतनी ऊँचाई पर क्यों उड़ना?
आखिर ऐसा क्या है जो इन तितलियों और अन्य कीटों को इतनी ऊँचाई पर उड़ने को आकर्षित करता है? कुछ सौ मीटर से लेकर जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती है उसके साथ हवा की रफ्तार भी तेज़ी-से बढ़ती है। ऐसे में अगर हवा सही दिशा में बह रही है तो तितलियाँ तेज़ बहती हवा के साथ लम्बी दूरी, कम समय में तय कर लेती हैं और वो भी बहुत ही कम ऊर्जा खर्च करते हुए। यही कारण है कि लम्बी दूरी तय करने की ज़रूरत पड़ने पर मोनार्क और अन्य प्रवासी कीट कम ऊँचाइयों पर, पेड़ हों तो उन पर, धैर्य-पूर्वक बैठकर हवा के मनचाही दिशा में बहने का इन्तज़ार करते हैं। इस समय कीटों के जो विशालकाय समूह बनते हैं उनको देखकर आसपास रहने वाले लोग दंग रह जाते हैं।

अगर हवा उनकी मनचाही दिशा में नहीं बह रही है तो मोनार्क कम ऊँचाई पर उड़ती हैं। जिस सुबह हवा उनकी अपेक्षित दिशा में बहती है तो रात के बसेरे से समूह, सुबह की गुनगुनी धूप में अपनी उड़ने में सहायक पेशियों को थोड़ा सेंक कर, एकदम से उड़ने को चल पड़ते हैं। फिर या तो ये कुछ दूरी तक उड़कर सूरज की तपन में अपने-आपको सेंकने कहीं उतरती हैं, या फिर सुबह की ऊपर उठती हवा ढूँढ़कर उसकी धाराओं पर सवार हो ऐसे बहती हैं जैसे हवा में कोई पंखुड़ी। तो तितलियाँ उतनी ही ऊँचाइयों पर उड़ती हैं जितनी ऊपर हवा की धाराएँ बहती हैं जिन पर अपने प्रवास के लिए वे निर्भर हैं। 

क्या आपको नहीं लगता कि इस तरह की उड़ान के दौरान तितलियों को बहुत भूख लग जाती होगी? तो वे क्या खाती हैं? अगर सच कहें तो वास्तव में तितलियाँ कुछ खाती ही नहीं। खाने का काम तो कैटरपिलर यानी इल्लियों का है। इल्ली, तितली के विकास के दौरान तितली के रूप में तैयार होने से ठीक पहले की अवस्था है। इल्लियाँ तो सही मायने में ‘ईटिंग मशीन’ हैं। ये जिन पौधों की पत्तियों के सम्पर्क में आती हैं, सभी को खा जाती हैं। आगे चलकर पूर्ण रूप से विकसित होने पर बनने वाली तितली ज़िन्दा रहने के लिए सिर्फ फूलों के पराग पर आश्रित रहती हैं। कुछ तितलियाँ पेड़ों के रस पीती हैं, सड़े हुए फलों को चूसती हैं और गीली या नम धूल, मिट्टी और कीचड़ की नमी को भी इस्तेमाल करती हैं। इनकी कुछ प्रजातियाँ गोबर एवं सड़ रहे जानवरों के शरीर से भी पोषण प्राप्त कर लेती हैं। तितलियों की कुछ प्रजातियाँ, जैसे कि मोनार्क, प्रवास के दौरान अपनी ऊर्जा बनाए रखने के लिए उड़ान रोककर रास्ते में ही कहीं पोषण का इन्तज़ाम करती हैं।

इतनी  ऊँचाई  पर  उड़ते  हुए तितलियों को कुछ और चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है। जैसे-जैसे आप ऊपर जाते हैं हवा विरल होती जाती है, ऑक्सीजन कम होने लगती है और तापमान गिरता जाता है। तितली और अन्य कीट लगातार अपने पंख चलाकर अपने शरीर को गर्म तो रख लेते हैं पर पंख लगातार चलते रहें इसके लिए पेशियों को भी लगातार काम करते रहना पड़ता है, और पेशियों को इसके लिए ऑक्सीजन की ज़रूरत होगी। अभी हमें इस बारे में कुछ पक्का पता नहीं है कि कीट इसकी पूर्ति कैसे करते हैं लेकिन इस विषय पर शोध जारी है।  

और ऊँचा क्यों नहीं? 
हाल ही में अल्पाइन बम्बल-बी (ऊँचे पहाड़ों पर रहने वाले भँवरे) जो 5600 मीटर की ऊँचाई पर अपना बसेरा करते हैं, ऐसी परिस्थितियों में उड़ते पाए गए जहाँ हवा का दबाव 9000 मीटर की ऊँचाई जितना कम हो सकता है। यह ऊँचाई माउन्ट एवरेस्ट से भी अधिक है। जबकि उड़ने की अधिकतम सीमा तकरीबन 8000 मीटर है। इसके ऊपर हवा का तापमान इतना कम हो जाता है कि सब कुछ जमने लगेगा। ऐसे में जीवों को अपनी उड़ने वाली पेशियों को गरम और काम करने लायक बनाए रखना ही मुश्किल होगा।
इस प्रकार, अब तक की छानबीन से जितना पता चला है तितलियों की सबसे ऊँचा उड़ने की सीमा लगभग 6000 मीटर है। हम सभी इस बात से वाकिफ हैं कि रिकॉर्ड होते ही हैं टूटने के लिए। तो हमें इन्तज़ार करना होगा ऊँचे उड़ने वाले कीटों के उसैन बोल्ट और माइकल फेल्प्स क्लब के प्रकट होने तक!


रुद्राशीष चक्रवर्ती: एकलव्य, भोपाल के प्रकाशन समूह के साथ कार्यरत हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: अम्बरीष सोनी: संदर्भ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।