योगेश कुमार पाण्डे[Hindi,PDF 101KB]

विज्ञान शिक्षकों के एक प्रशिक्षण के दौरान एक गतिविधि आयोजित की गई थी। हम 22 प्रशिक्षणार्थी थे। प्रशिक्षक ने एक बेंच को आड़ा कर बीच में रख दिया और स्टील की एक बड़ी स्केल (लगभग 2 फुट) देकर उस बेंच की लम्बाई व चौड़ाई का मापन करने का निर्देश दिया। प्रशिक्षणार्थी लगभग 25 से लेकर 40 वर्ष की आयु वर्ग के थे। आशय यह कि सभी स्वस्थ्य थे। एक-एक कर सभी ने स्केल ली और सावधानीपूर्वक मापने लगे। प्रत्येक व्यक्ति अपने परिणाम प्रशिक्षक महोदय को बता रहे थे और वे बोर्ड पर उन व्यक्ति के नाम के आगे लिखते जा रहे थे। जब पहला परिणाम बोर्ड पर लिखा गया - लम्बाई 121 से.मी. और चौड़ाई 31 से.मी., तो मेरे मन में तुरन्त ख्याल आया कि बेंच बस 4x1 फीट की ही है।

दूसरा परिणाम आते ही मेरा दिमाग चकरा गया - लम्बाई 125 से.मी., चौड़ाई 33 से.मी.। मेरा मन बोल पड़ा - असम्भव।
मैं सोचने लगा कि दोनों मापनों में से सही कौन-सा है। पुष्टि करने के लिए तीसरे मापन का इन्तज़ार करना ही उचित लगा। पर तीसरा परिणाम मिलते ही दुविधा कम होने की बजाय बढ़ती ही गई। यह परिणाम पहले दो परिणामों से एकदम ही अलग था। दिमाग फिर चकराया।
मैं सोचने लगा कि आखिर ये हो क्या रहा है। इसके बाद हर परिणाम कुछ अलगाव लिए हुए थे। कोई लम्बाई में अलग, तो कोई चौड़ाई में।
अब दिमाग लगभग वाले परिणाम के बारे में सोचने लगा था। ये बेंच लगभग 4न्1 फीट की है। हँसी आई कि सारे विज्ञान के शिक्षक एक निश्चित लम्बाई-चौड़ाई की बेंच के फलक को अलग-अलग नाप रहे हैं। ये चक्कर क्या है, समझ नहीं आ रहा था।
मेरी बारी आई और मैं बड़े आत्मविश्वास के साथ बेंच की ओर आगे चल दिया। बेंच को नापा - 120 से.मी. लम्बाई और चौड़ाई 30.1 से.मी.। ये भी एक अलग परिणाम था।

एक बात जो सभी प्रशिक्षणार्थियों में समान थी, वह थी - सभी को अपने मापन पर पूरा भरोसा था।
22 परिणामों में से 16 परिणामों में विविधता थी। कुछ परिणाम एक-से थे। इनसे ही प्रशिक्षक महोदय ने अपनी बात शुरु की। सबसे पहले स्केल के शून्य से शुरु करने की बात रखी। जिन परिणामों में मापन लगभग 2 या 3 से.मी. ज़्यादा था, वे इस त्रुटि के आधार पर खारिज हो गए।
पर अभी भी सवाल बरकरार था कि परिणामों में इतना फर्क क्यों। चर्चा के दौरान जो सवाल मन में थे वे हैं:
1. मापन का तरीका अलग-अलग (या गलत) तो नहीं?
2. बेंच का वास्तविक सिरा निर्धारित नहीं है क्या?
3. कहीं स्केल पकड़ने/रीडिंग लेने/ मिलीमीटर का अनुमान लगाने में चूक तो नहीं कर रहे हैं?
4. क्या बेंच का फलक सचमुच एक सरल रेखा है?
5. चूँकि स्केल केवल 2 फुट का है इसलिए हिस्सों में गणना की गलतियाँ तो नहीं हो रही हैं?
इस मौके पर मेरे मन में रासायनिक प्रयोग के दौरान ब्यूरेट में रखे द्रव की सतह का रीडिंग लेने का तरीका ध्यान में आया (तरल की सतह, स्केल का निशान और आँखों को एक सरल रेखा में होना चाहिए)। मुझे लगा कि कहीं इस तरह की गलती तो नहीं हो रही हमसे।
ऐसे और भी सवाल कई साथियों के मन में थे। भरपूर चर्चा हुई और निष्कर्ष के रूप में यह बात सामने आई कि इन्सान द्वारा किए जाने वाले मापन में ऐसी विविधता स्वाभाविक है। और इस विविधता का कारण मापन के सही तरीके का ज्ञान होने के बावजूद, उसके उपयोग में की गई असावधानी ही है।
इस चर्चा के बाद हमें फिर एक मौका दिया गया और हमने मापन किया। इस बार भी परिणामों में विविधता थी लेकिन पहले की अपेक्षाकृत कम।


योगेश कुमार पाण्डे: पेंड्रीडीह, बिलासपुर की एक शाला में गणित के व्याख्याता हैं.
यह प्रशिक्षण सन् 2011 में दिगंतर, जयपुर में आयोजित किया गया था.