कमलकिशोर कुम्भकार

आपने कौरव-पांडव का फूल तो देखा ही होगा। इनमें एकदम सलीके से अंखुड़ी, पंखुड़ी और जननांग पास-पास दिख जाते हैं। अब एक ऐसे फूल की कल्पना कीजिए जिसमें अंखुड़ी और पंखुड़ी से जननांग खासी दूरी पर क्या आप इसे फूल मानेंगे? 

अंखुड़ी कहीं, पंखुड़ी कहीं, स्त्री केसरपुंकेसर कहीं और ही, फिर भी है फूल

फूल शब्द सुनते ही हमारे दिमाग में एक सुंदर एवं चटकदार रंगों से युक्त छवि उभर आती है। फूल को थोड़ा और परिभाषित करने की कोशिश करें तो उनमें अंखुड़ी, पंखुड़ी तथा प्रजनन अंगों का मौजूद होना ज़रूरी मान सकते हैं। वैसे ये बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं है कि ये सब अंग प्रत्येक फूल में एक साथ हों ही।

किन्तु अनेक फूल ऐसे भी होते हैं। जो कम-से-कम एक सरसरी निगाह से देखने पर फूल जैसे लगते ही नहीं हैं; जबकि इनमें वे सारी रचनागत विशेषताएं मौजूद होती हैं जो उसके फूल कहलाने के लिए जरूरी हैं। ऐसा ही एक फूल है 'मकड़ी फूल'। इस में फूल के चारों अंग एक साथ पास-पास नहीं रहते बल्कि अलग-अलग छिटके रहते हैं; और भी ऐसे कई लक्षण हैं जिनके कारण यह फूल विशिष्ट है।
वैसे तो यह मकड़ी जैसा नहीं दिखता, पर कोई कल्पना के घोड़े ज्यादा ही दौड़ाए तो शायद उसे यह फूल मकड़ी जैसा दिखने लगे। अमेरिका में तो इसे बाकायदा स्पाइडर फ्लॉवर यानी 'मकड़ी फूल' कहा जाता है। मालवा के इलाके में इसे 'हुरहुर' नाम से जाना जाता है। आइए, इस फूल के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं।
 
मकड़ी फूरु नी खरपतवार
यह वनस्पति जगत के ‘केपेरीडेसी कुल का पौधा है जो ब्रिटेन से सर्वप्रथम 1817 में रिपोर्ट किया गया। यह विश्व के अनेक भागों में पाया जाने वाला एक द्विबीजपत्री खरपतवार है। जो भारत के अनेक हिस्सों में भी पाया जाता है। मालवा क्षेत्र में यह पौधा गन्ने के खेतों में या खाली पड़े स्थानों पर उगता देखा गया है।
ऐसे ही दो पौधों के वानस्पतिक नाम क्लीयो म गायनेन्ड्रा और गायनेन्ड्रेप्सिस पेण्टाफिला है। इसके नाम में ही छुपी हुई है इसकी सारी वानस्पतिक विशिष्टता भी। किसी भी वनस्पतिविद् को यह नाम सुनते ही इसके सबसे विशिष्ट गुणों का आभास हो जाता है। जैसे प्रथम नाम ‘क्लीयोम गायनेन्ड्रा' में जाति का नाम गायनेन्द्रा शब्द इस बात का सूचक है कि इसके गायनो शियम (मादा जननांग, स्त्रीकेसर) व एन्ड्रोशियम (नर जननांग, पुंकेसर) में कुछ विशिष्टता है। यानी कि इस फूल में पुंकेसर व स्त्रीकेसर पंखुड़ी-अंखुड़ी से दूर छिटके हुए हैं। इसी प्रकार द्वितीय नाम गायनेन्ड्रोप्सिस पेण्टाफिल्ला तो और भी रुचिकर है। एक ओर जीनस का नाम ‘गायनेन्ड्रोप्सिस' इंगित करता है कि इसके दोनों जननांगों में कोई विशिष्टता है तो दूसरी ओर, जाति के नाम 'पेण्टाफिल्ला' से पता चलता है कि इसकी एक संयुक्त पत्ती में पांच पत्रक पाए जाते हैं। 
मकड़ी फूल या हुरहुर के पौधे की एक टहनी। इसकी एक संयुक्त पत्ती में पांच पत्रक है। इस टहनी पर फूल भी खिले हुए हैं। फूल का क्लोज़अप अगले पृष्ठ पर दिया गया है। इनसेट में हुरहुर की एक फली भी दिखाई गई है। इस पौधे की फली लगभग 6-10 सेंटीमीटर लंबी होती है और पकने पर एक धारी बनाकर लंबाई में चिटक जाती है। इसके बीज छोटे एवं गहरे भूरे रंग के होते हैं जिनकी आकृति किडनी के समान होती है।

मकड़ी फूल या हुरहुर के फूल का क्लोज़अप जिसमें इस फूल के विभिन्न हिस्सों को दर्शाया गया है। फूल को देखते हुए इस बात पर गौर कीजिए कि अंखुड़ी-पंखुड़ी से पुंकेसरस्त्रीकेसर काफी दूरी पर हैं। अपने घर के आसपास इस फूल को खोजने की कोशिश जरूर कीजिए, सितंबर-अक्टूबर के महीने में इस पौधे में फूल खिलते हैं।

मकड़ी फूल और मेरा अनुभव
एम.एस.सी. उत्तरार्ध की कक्षा में हमें पादप वर्गिकी के सिद्धांतों को पढ़ाया जा रहा था। विषय था पौधों में रूपांतरण। पौधों के लगभग सभी अंगों में सामान्यतः रूपांतरण के उदाहरण पाए जाते हैं, जैसे आलू तने का रूपांतरण है एवं फूल गोभी पुष्पक्रम का। इसी प्रकार फूलों को तने के अग्रभाग का ही रूपांतरित रूप माना जाता है। फूलों के अंगों के रूपांतरण में हमें ‘हुरहुर' या 'मकड़ी फूल' का उदाहरण देकर बताया गया कि इसमें पौधे के नर एवं मादा जननांग एक साथ नहीं लगे होते बल्कि अलग-अलग छोटी-छोटी शाखाओं जैसी रचनाओं पर लगते हैं, जिन्हें क्रमशः एंड्रोफोर एवं गायनोफोर कहा जाता है। इसके कारण यह फूल काफी बिखरा-बिखरा-सा दिखाई देता है।
एन्ड्रोफोर पुष्प अक्ष का वह भाग है जिस पर एंड्रोशियम यानी पुमंग (पुंकेसर चक्र) लगे होते हैं, तथा यह भाग एंड्रोशियम तथा पंखुड़ियों के बीच होता है। इसी प्रकार गायनोफोर पुष्प अक्ष का वह हिस्सा है जो एंडोशियम की आधार संधि से निकला होता है तथा इस पर एक फ्लास्क के समान गायनोशियम यानी जायांग (स्त्रीकेसर चक्र) जुड़ा रहता है। जिस प्रकार कवकों के बीजाणु (कोनिडिया), जिस शाखा पर लगे होते हैं उसे कोनिडियोफोर कहते हैं उसी प्रकार यहां भी एंड्रोशियम व गायनशियम को धारण करने वाले भागों को क्रमश: एंड्रोफोर तथा गायनोफोर कहा जाता है। इन शाखाओं का निर्माण पुष्प अक्ष के लंबे होने से होता है। गायनेन्ड्रोप्सिस में एंड्रोफोर और गायनोफोर दोनों होते हैं जबकि क्लीयोम में गायनोफोर नहीं होता है। इसलिए इन दोनों को धारण करने वाली रचना को एंड्रोगायनोफोर कहते हैं।

अक्सर ऐसा होता है कि पाठ्यक्रम में पढ़ाई गई कई सारी वनस्पतियों को हमने अपने आसपास देखा तक नहीं होता है। हमारा उनसे परिचय किताबों में दिए गए वर्णन या चित्रों तक ही सीमित रहता है। मकड़ी फूल के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था। किताब में पढ़ने के बाद मकड़ी फूल को देखने की बड़ी तीव्र इच्छा मन में उठी लेकिन अनेक प्रयासों के बाद भी यह पौधा हमें नहीं मिला। समय-समय पर इसका जिक्र भी होता रहा और बात लगभग आई गई हो गई। पर कहते हैं न, बगल में छोरा, गांव में ढिंढोरा' यही कहावत मकड़ी फूल के संदर्भ में मुझ पर चरितार्थ हो गई। मेरे घर के सामने एक स्कूल है। स्कूल के पास की खाली जगह पर अनेक पौधे उग जाते हैं। एक दिन अचानक मेरा ध्यान एक कोने में उगे पौधे पर गया तो मैं उसे देखता ही रह गया - सफेद पंखुड़ियां, फिर तने जैसा लंबा भाग, फिर एक गठान और उस पर लगे पुंकेसर, फिर ऊपर तने के समान रचना जिस पर स्थित एक फ्लास्क के आकार का अण्डाशय जिस पर पुंडीदार स्टिगमा यानी वर्तिकाग्र था। मैं एम.एस सी. में पढ़ा हुआ वर्णन दोहराता सोचने लगा - क्या यह एंड्रोफोर व गायनो फोर वाला रूपांतरण है? चूंकि मैं पक्के तौर पर नहीं कह सकता था इसलिए उस पौधे की फूल वाली एक टहनी लेकर मैं विक्रम विश्वविद्यालय के पादपवर्गिकी विशेषज्ञ प्रोफेसर वी.पी. सिंह के पास गया। जब उन्होंने बताया कि यह मकड़ी फूल ही है तो मेरे अंदर एक अजीब-सा रोमांच भर गया।
बाद में मैंने इस फूल के बारे में और अध्ययन किया और जो रोमांचक जानकारी सामने आई वह इस प्रकार है।

मकड़ी फूल: स्वभाव एवं पहचान
हुरहुर, एक शाकीय, एक वर्षीय एवं शाखित तने वाला पौधा है जिसकी ऊंचाई 50-100 सेंटीमीटर तक हो सकती है। इसके तने व पत्तियों पर चिपचिपी ग्रंथियों से युक्त रोम तथा इसकी अरुचिकर गंध भी पहचान में सहायक होती है। साथ ही डण्ठल युक्त पत्तियां होती हैं जिसके पांच डण्ठल रहित पत्रक होते हैं।
इसका फूल अक्सर सफेद या हल्के बैंगनी रंग का होता है। फूल में नर एवं मादा जननांग उपस्थित होते हैं। इसलिए इसे द्विलिंगी फूल माना गया है। दोनों सहायक भाग अंखुड़ी व पंखुड़ी (केलिक्स ब कोरोला) चार-चार की संख्या में होते हैं। केलिक्स हरे एवं कोरोला सफेद या बैंगनी होते हैं।

यह दूरियां क्यों होती हैं? 
किसी भी सामान्य फूल को देखा जाए तो वह अंखुड़ी, पंखुड़ी, पुमंग व जायांग का एक संयुक्त, संघनित एवं आकर्षक रूप होता है। इन सभी अंगों में एक गठबंधन रहता है तथा सामान्यतः एक-दूसरे के बीच की दूरी अत्यंत कम होती है; किन्तु हुरहुर के फूल में इन अंगों के बीच की दूरी ही सबसे बड़ी वानस्पतिक विशिष्टता है। इनके बीच की दूरी के कारण फूल में बिखराव-सा दिखाई देता है।
जैसा कि हमने पहले भी कहा है कि हुरहुर एक खरपतवार है। खरपतवार यानी अनचाही वनस्पति। भले ही इसे अनचाही कहा जाए फिर भी हुरहुर में एक-दो औषधिय गुण हैं। मसलन इसके बीजों व पत्तियों का प्रयोग पेट के कीड़ों को मारने में किया जाता है। दूसरा, इसकी पत्तियों को कण्डों पर भूनकर इसका रस कान-दर्द होने पर डाला जाता है।
आप भी अपने घरों के आसपास मकड़ी फूल उर्फ हुरहुर को खोजने की कोशिश ज़रूर कीजिए। और इस मौसम में तो इसे खोजना भी आसान है क्योंकि हुरहुर के अनूठे फूल बरसात की समाप्ति से लेकर शीत ऋतु की शुरुआत तक दिख जाते हैं।


कमलकिशोर कुम्भकारः एकलव्य के होशंगाबाद बिज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से जुड़े हैं ब उज्जैन में रहते हैं।