जे. बी. एस. हाल्डेन

वो कौन-सा तरीका है जो गुदगुदाहट, दर्द..... दो मस्तिष्क तक ले जाता है और कुछ संदेश वहां से शरीर के किसी हिस्से के लिए लाता है?

हमारे शरीर के लगभग प्रत्येक भाग में बहुत महीन रेशे होते हैं जो बण्डलों के रूप में गुंथे होते हैं। इन्हें तंत्रिकाएं कहते हैं। ये महीन रेशे अंततः केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र से जुड़े होते हैं। केन्द्रीय तंत्रिका अर्थात् हमारी खोपड़ी में स्थित मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के अंदर स्थित मेरुरज्जू।
प्रत्येक ऐसा रेशा संदेशों को दोनों दिशाओं में ले जा सकता है, किन्तु आमतौर पर प्रत्येक रेशा एक ही दिशा में संदेश ले जाता है। संदेशों को केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र तक पहुंचाने वाले रेशों को भीतर ले जाने वाली यानी अंतर्मुखी तंत्रिकाएं (afferent nerve) कहते हैं। इनमें संवेदी तंत्रिकाएं शामिल हैं। संवेदी तंत्रिकाएं वे तंत्रिकाएं हैं जिनसे मस्तिष्क तक पहुंचने वाले संदेशों से दृष्टि, ध्वनि, स्पर्श, दर्द या कोई और अनुभूति उत्पन्न होती है। किन्तु कुछ अंतर्मुखी तंत्रिकाएं ऐसी भी हैं जिनसे कोई अनुभूति उत्पन्न नहीं होती। मसलन वे अंतर्मुखी तंत्रिकाएं जो हमारे पाचन का नियंत्रण करती हैं।

जो तंत्रिकाएं केन्द्रीय तंत्र से संदेश ले जाती हैं उन्हें बहिर्मुखी तंत्रिकाएं (efferent nerve) कहते हैं। इनमें से अधिकांश तंत्रिकाएं मांसपेशियों को संकुचित करवाती हैं। इन्हें मोटर या चालक तंत्रिकाएं कहते हैं। किन्तु कुछ बहिर्मुखी तंत्रिकाएं ग्रंथियों व अन्य अचल अंगों तक आती हैं या मांसपेशियों को शिथिल करती हैं। अधिकांश तंत्रिकाओं में अंतर्मुखी व बहिर्मुखी दोनों प्रकार के रेशे होते हैं। किन्तु कुछ तंत्रिकाएं ऐसी भी हैं जिनमें मात्र एक ही प्रकार के रेशे होते हैं - जैसे, आंख व कान से आने वाली तंत्रिकाएं। एक बड़ी तंत्रिका में तकरीबन 5 लाख रेशे हो सकते हैं। मसलन आंख से आने वाली तंत्रिका एक बड़ी तंत्रिका है।
प्रत्येक रेशा नलीनुमा होता है। जिसमें चिपचिपा द्रव भरा होता है। यह नली एक कोशिका का हिस्सा होती है। इस कोशिका का केन्द्रक या तो केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के अंदर स्थित होता है या फिर इससे बाहर एक गेंगलियन में होता है। यदि कोई तंत्रिका कट जाए तो केन्द्रक से अलग हुए रेशे के हिस्से 2-3 दिन में मर जाते हैं। रेशों में जाने वाले संकेत मोर्स कोड के डॉट के समान आवेगों की एक श्रृंखला के रूप में होते हैं। विभिन्न रेशों में इन आवेगों की गति अलग-अलग होती है; लगभग 400 किलोमीटर प्रति घंटे से लेकर 100 किलोमीटर प्रति घंटे तक। प्रत्येक आवेग रासायनिक आवेशों की एक श्रृंखला होती है जिसके साथ एक विद्युत आवेश जुड़ा होता है। यह विद्युत लगभग 1/12 वोल्ट की होती है। अलबत्ता इसे एम्पलीफाई (संवर्धित) करके रिकॉर्ड किया जा सकता है।

प्रत्येक तंत्रिका आवेग रेशे की क्षमता के अनुरूप शक्तिशाली होता है। किसी एक रेशे में विभिन्न किस्म के आवेश नहीं होते। न ही वे अलग-अलग रेशों में अलग-अलग होते हैं। किसी रेशे में प्रवाहित आवेगों की एक श्रृंखला से दृष्टि, स्पर्श, दर्द या कोई अन्य अनुभूति होना उस रेशे के कनेक्शन यानी जुड़ाव पर निर्भर करता है, न कि आवेगों के प्रकार पर।
अंदर की ओर (केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र की ओर जाने वाला प्रत्येक आवेग किसी-न-किसी ग्राही अंग से शुरू होता है। प्रत्येक ग्राही अंग किसी खास किस्म की भौतिक व रासायनिक प्रक्रिया के प्रति संवेदी होता है, तथा इसमें यह भी गुण होता है कि उस प्रक्रिया को आवर्धित कर सके। किन्तु इन ग्राही अंगों को अन्य क्रियाओं द्वारा भी उत्तेजना प्रदान की जा सकती है। उदाहरण के लिए आंख के पिछले भाग में स्थित रेटिना की कोशिकाएं खासतौर से प्रकाश के प्रति संवेदी होती हैं। आंख की रचना खुद इस तरह की है। कि प्रकाश को इन्हीं कोशिकाओं पर केन्द्रित किया जाता है। किन्तु हाथ के हल्के दबाव से भी इन्हें उत्तेजित किया जा सकता है। अत्यंत दुर्बल विद्युत धारा से भी ये उत्तेजित हो जाती हैं।

किसी रेशे के छोर पर स्थित ग्राही अंग को जितनी ज्यादा उत्तेजना मिलेगी वह उतनी ही जल्दी-जल्दी आवेग भेजेगा (यानी आवेगों की आवृत्ति ज्यादा होगी)। यह आवृत्ति एक आवेग प्रति सेकण्ड से लेकर 100 आवेग प्रति सेकण्ड तक होती है। किन्तु हम अपने संवेदी अंगों से जितनी भी सूचनाएं प्राप्त करते हैं उन्हें तंत्रिका नर्वकोशिका का काम करने का तरीका कुछ इस तरह होता है। कोशिका से जुड़े डेंड्राइट सूचनाओं को ग्रहण करते हैं और कोशिका से जुड़े एक्सान से दूसरी कोशिका तक सूचना को पहुंचाते हैं। इस तरह सुचनाएं आगे बढ़ती हैं।
रेशों में आवेगों की श्रृंखला के इस स्वरूप से गुज़रना ही होता है। दर्शनशास्त्र के समक्ष एक महत्वपूर्ण समस्या यह है कि यदि ऐसा है तो हम चीजों के बारे में कुछ भी कैसे जान पाते हैं।

इसी प्रकार से हम जब किसी भुजा को हिलाते-डुलाते हैं तो इसके लिए संबंधित मांसपेशी तक दसियों हज़ार तंत्रिका रेशों के ज़रिए आवेगों की एक जटिल श्रृंखला पहुंचती है। प्रत्येक रेशे का संबंध मांसपेशी के एक तंतु से होता है। प्रत्येक आवेग के साथ एसीटाइल कोलीन नामक पदार्थ तंत्रिका रेशे से छूटता है। यह पदार्थ मांसपेशी के तंतु को संकुचित करवाता है।

ग्राही अंगों से आवेगों की एक श्रृंखला प्रतिक्रिया को जन्म दे सकती है। यह प्रतिक्रिया सांस लेने, हृदय गति बढ़ाने या पसीने की क्रिया शुरू करने जैसी कोई अनैच्छिक क्रिया भी हो सकती है; कोई पूर्णतः कुशल कार्य या वाणी हो सकती है; या कोई बीच की चीज़ हो सकती है जैसे सामान्य चलना।

किन्तु हर मामले में आवेग को केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र से होकर गुजरना होगा। केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र वास्तव में कई अरब तंत्रिका कोशिकाओं का समूह है। प्रत्येक तंत्रिका कोशिका कई अन्य कोशिकाओं से सूक्ष्म तंत्रिका रेशों द्वारा जुड़ी होती है।
दिमाग, रीढ़ की हड्डी और शरीर के अवयवों से मिलकर बना एक स्वचालित तंत्रिका तंत्र। यहां कुछ तंत्रिकाएं गेंगलियन से जुड़ी हैं तो कुछ रीढ़ की हड्डी में। यह तंत्र शरीर में संतुलन को बनाए रखता है। उदाहरण के लिए हमारा हृदय दो तंत्रिकाओं से जुड़ा है। गेंगलियन से जुड़ी तंत्रिका हृदय की धड़कनों की गति को तेज़ करती है, वहीं रीढ़ की हड्डी से जुड़ी तंत्रिका बढ़ी हुई गति को कम करती है।

इस तंत्र की पेचीदगी का अनुमान हम एक टेलीफोन एक्सचेंज के उदाहरण से लगा सकते हैं। मान लीजिए प्रत्येक इंसान एक ऑपरेटर है जो एक स्विच बोर्ड पर बैठा या बैठी है, जहां से वह चंद अन्य ऑपरेटर्स से संपर्क बना सकता या सकती है। किन्तु संदेश अत्यंत सरल संकेतों के रूप में होगा। बदकिस्मती से हम इन ऑपरेटरों अर्थात् न्यूरॉन को तब ही देख पाते हैं। जब ये मर चुके होते हैं। और यद्यपि हम त्वचा के नीचे उपस्थित न्यूरॉन्स में से एक-एक को अलग-अलग उद्दीप्त कर सकते हैं किन्तु फिलहाल हम इस स्थिति में नहीं हैं कि मस्तिष्क में एक-एक न्यूरॉन के संकेत को अलगअलग देख सकें। हां, हम कई न्यूरॉन्स के द्वारा उत्पन्न विद्युतीय हलचल को अवश्य देख सकते हैं। हम जानते हैं। कि आंख या त्वचा से आने वाली अंतर्मुखी तंत्रिका के सिरे पर कई दसियों लाख ऑपरेटर्स यानी न्यूरॉन्स होते हैं। दूसरी ओर बहिर्मुखी तंत्रिका में थोड़े कम न्यूरॉन्स हैं। इसके अलावा बड़ी संख्या में तंत्रिका तंतु इनके बीच नेटवर्क में होते हैं। एक पूरी सदी में सावधानी पूर्वक किए गए अवलोकनों से हम इन तंत्रिका तंतुओं के संगठन का मात्र एक खाका पता कर पाए हैं।

मसलन मस्तिष्क की चोटों के अध्ययन के आधार पर हम जानते हैं कि संवेदी तंत्रिकाओं से सीधे जुड़े न्यूरॉन्स में चाहे जितनी सक्रियता आ जाए मगर संवेदना उत्पन्न नहीं होती। संवेदना उत्पन्न होने के लिए ज़रूरी है कि ये न्यूरॉन्स कई अन्य न्यूरॉन्स से संपर्क करें, और ये अन्य न्यूरॉन्स इस संदेश को आगे बढ़ाएं। हम यह भी जानते हैं कि तंत्रिका तंत्र के विभिन्न अंग एक-दूसरे के साथ किन नियमों के तहत अंतक्रिया करते हैं। इन्हें समझना आसान नहीं है किन्तु इनका अपना एक द्वंद्वात्मक अन्तर्सम्बंध होता है और किसी माक्र्सवादी के लिए इसे समझना आसान होगा।


जे. बी. एस. हालेन: (1 892-1964) प्रसिद्ध अनुवांशिकी विज्ञानी। बिकास (Evolution) के सिद्धांत को स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान। विख्यात विज्ञान लेखक। उनके निबंधों का एक संकलन 'ऑन बीईग द राइट साइज' शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत निबंध 'बॉट इज लाइफ' नामक संकलन से लिया गया है।
अनुवादः सुशील जोशीः एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम और स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान लेखन एवं अनुबाद भी करते हैं।