बरट्रैंड आर. ब्रिनले
भावानुवाद: सुशील जोशी
जीतू ने डांट से बचने के चक्कर में मानसरोवर झील में दैत्य देखने की गप्प तो मार दी, लेकिन फुरसती वैज्ञानिक क्लब के सदस्यों को न जाने क्या सूझी कि उन्होंने इसे आधार मानकर एक दैत्य बना डाला - उसे लेकर शहर में जो तहलका मचा तो बस ...जहां देखो दैत्य की चर्चा! और भी बहुत कुछ हुआ इस विज्ञान गप्प में .....
जीतू को अफवाह उड़ाने का कोई शौक नहीं था। न ही उसकी नीयत में कोई खोट थी। वो तो घर लौटने में देरी हो गई - तो डांट से बचने के लिए उसने कह दिया। घर लौटा तो मां-बाप नाराज़ थे। उसने उन्हें समझाने के लिए कह दिया कि झील में एक विशालकाय सांप जैसी कोई चीज़ थी। उसको देखने के चक्कर में उसे देर हो गई। मां-बाप ने तो सुनी अनसुनी कर दी। पर जीतू की बहनें पीछे पड़ गई। एक-एक बात खोद-खोद कर पुछने लगीं। कैसा था, कितना बड़ा था, रंग कैसा था, और भी न जाने क्या-क्या।
अपने झूठ को छिपाने के लिए जीतू ने बड़े विस्तार से एक-एक चीज का वर्णन किया। झूठ के साथ यहीं होता है। एक झूठ बोल दिया, तो उसे छिपाने के लिए हज़ार झूठ बोलने पड़ते हैं। बहनों के सवालों का जवाब देते-देते जीतू ने उस काल्पनिक चीज़ का ऐसा बड़िया खाका बनाया कि बहनें प्रभावित हो गई। बहनों ने बात को शहर भर में फैला दिया। दूसरे दिन तक तो गली-गली में जीतू और इस दैत्य की चर्चा होने लगी। एक अखबार ने तो जीतू का फोटो भी छाप दिया। जीतू की बताई बातों के आधार पर एक चित्रकार ने उस दैत्य का चित्र भी बनाया। हर तरफ यही बात थी कि मानसरोवर झील में एक दैत्य देखा गया।
यह बात रामनिवास के कानों तक भी पहुंची। रामनिवास पचमढ़ी के फुरसती वैज्ञानिक क्लब का उपाध्यक्ष था और क्लब के अनुसंधान, मतलब जांच-पड़ताल विभाग का प्रमुख था। क्लब के किसी सदस्य ने जीतू की बातों पर विश्वास नहीं किया था। वे जीतू की आदतों से अच्छी तरह परिचित थे। परन्तु शाम को क्लब की बैठक में जब रामनिवास ने कहा कि हम सचमुच एक दैत्य बना सकते हैं, तो सभी चौंक पड़े। "सचमुच का दैत्य!" उनके मुंह से निकला। इशहाक का कहना था कि यह पागलपन है। दैत्य भी भला कभी तैरता है?
रामनिवास क्लब के कमरे में रखे कबाड़े की तरफ घूर रहा था। जब भी उसके मन में कोई नया विचार आता, तो वह ऐसे ही कबाड़े की तरफ घूरने लगता था। थोड़ी देर घूरने के बाद उसने कहा, "हमें बस थोड़ा लोहे का तार और कैनवास लगेगा और गयादीन की डोंगी।'' गयादीन हमारे क्लब का अध्यक्ष था। एक तो हमारे क्लब का ऑफिस उसके पिता के कबाड़खाने में था। दूसरी बात यह थी कि जब भी हम कोई ऊलजलूल हरकत कर बैठते, तो गयादीन ही हमारी नैया पार लगाता था।
हम सबको रामनिवास का विचार बहुत पसन्द आया। इसलिए तय हुआ कि दैत्य बनाया जाए। तीन दिन, दिन-रात एक करके हमने दैत्य लगभग बना डाला। दैत्य बनाने का काम झील के पास की झाड़ियों में किया गया। चुपके-चुपके। रामनिवास और गयादीन ने मिलकर हल्की लकड़ी और दूसरे कबाड़े को जोड़ जोड़कर एक ढांचा बनाया। यह एक बड़े मगरमच्छ के समान दिखता था। इसको हमने डोंगी पर कस दिया। फिर इस ढांचे पर तार लपेटा गया और ऊपर से कैनवास से ढक दिया गया। इसको रंग दिया गया। फिर टीन के चमकीले डब्बे यहां-वहां चिपका दिए गए। बस, डरावना दैत्य तैयार हो गया। दूर से देखकर कोई भी इससे डरकर भाग जाता।
रामनिवास का दिमाग तो कुलांचे भर रहा था। बड़ी मुश्किल से उस पर लगाम लगाई गई। पर ना-ना करते उसने दैत्य के सिर पर दो लाल-लाल चमकदार आंखें फिट कर ही दी। वास्तव में ये दो लेंस थे और जिनके पीछे बल्ब लगे हुए थे। गयादीन ने बिजली का ऐसा परिपथ ( सर्किट ) तैयार किया, जो अपने आप बनता-टूटता रहता था। इससे आंखों की रोशनी जलती-बुझती रहती थी।
अब दैत्य पूरी तरह तैयार था। हम चार लोग उसके अन्दर मुश्किल से बैठकर चप्पू चला सकते थे। जब सब-कुछ तैयार हो गया तो इसको आज़माने की बात आई। पहले तो झाड़ियों के अन्दर ही एक गड्ढे में इसे चलाकर देखा गया। जब सब कुछ ठीक-ठाक रहा, तो तय हुआ कि अब खुली झील में इसका परीक्षण किया जाए।
जब ये सारी तैयारियां चल रहीं थीं, तब पंचमढ़ी नगर में लोग दैत्य की चर्चाएं कर रहे थे। लोग एक-दूसरे को बताते रहते थे कि उन्होंने भी झील में कुछ अजीब-सी चीज़ देखी थी। कोई कुछ कहता, तो कोई कुछ। सब अपने-अपने हिसाब से दैत्य का वर्णन करते। वर्णन में एक-दो बातों को छोड़कर बाकी जीतू की बताई बातें ही होतीं। धीरे-धीरे बात इतनी फैली कि एक राष्ट्रीय अखबार का पत्रकार पंचमढ़ी पहुंच गया उसने लोगों से बातचीत की और अखबार में खबर छापी। फिर वह दैत्य को अपनी आंखों से देखने के लालच में रोज़ झील के किनारे बैठा रहता।
और आखिर वह दिन आ गया जब उस दैत्य को खुले में लाया जाना था। इसके लिए शनिवार शाम का वक्त चुना गया क्योंकि शनिवार को मील के आसपास काफी भीड़भाड़ होती है। यह तय हुआ कि शाम के धुंधलके में दैत्य को झील की सैर कराई जाएगी और लोगों से थोड़ा अलग हटाकर ही रखा जाएगा। हमारा एक साथी लोगों के बीच घूमता रहेगा ताकि पता लग सके कि लोगों पर कैसा असर पड़ा।
शाम होने तक सारी तैयारियां पूरी कर ली गई। थोड़ा अंधेरा होते ही चार साथी दैत्य के अन्दर चप्पू लेकर बैठ गए। रामनिवास आगे दैत्य के मुंह के पास जा बैठा। वही दैत्य को दिशा दिखाने का काम करने वाला था। साथ-साथ बह मील के किनारे पर नजर रख रहा था कि कब लोग दैत्य को देखते हैं।
धीरे-धीरे धक्का देकर दैत्य को झील में लाया गया। आंखों के लाल बल्ब जलने बुझने लगे। दैत्य झील में चल निकला। थोड़ी देर बाद रामनिवास चिल्लाया, "लोगों ने देख लिया है, वे सब उछल-उछल कर इधर ही एक-दूसरे को इशारे कर रहे हैं।'' रामनिवास इतना उत्तेजित हो गया कि उसे डोंगी के संतुलन का ध्यान ही न रहा। लोग कितनी उछल कूद कर रहे थे, पता नहीं,पर रामनिवास डोंगी के अंदर इतना फुदकने लगा कि डोंगी डगमग होने लगी। बाकी चार लोगों को चप्पू छोड़कर रामनिवास को पकड़ना पड़ा, नहीं तो दैत्य के साथ पांचों की जल-समाधि हो जाती। वैसे बाकी चार लोग भी एक नज़र देखना चाहते थे कि झील के किनारे पर लोगों में कैसी प्रतिक्रिया हो रही है।
कुछ समय तक दैत्य को इधर-उधर घुमाने के बाद वापस झाड़ियों में खींच लिया गया। आज का प्रयोग बहुत सफल रहा था। दूसरे दिन तक पूरे शहर में खबर फैल गई। सब लोग दैत्य का वर्णन करने में एक-दूसरे से होड़ करने लगे। एक व्यक्ति ने जितना देखा, दूसरा उससे ज्यादा बताता। शहर के जाने-माने वैज्ञानिक भी इस बारे में चर्चा करने लगे कि आखिर यह कौन-सा जीव है, किस समूह का है, कहां पाया जाता है, वगैरह वगैरह। अखबार वाले दैत्य के फोटो खींचना चाहते थे और अगले मौके की तलाश में थे।
उधर फुरसती वैज्ञानिक क्लब के सदस्य अपनी कामयाबी पर बहुत खुश थे। इतवार को क्लब की मीटिंग हुई। मीटिंग में तय हुआ कि दैत्य का प्रदर्शन रोज़ होना चाहिए। सब लोग जोश में तो थे ही। रोज़ शाम धुंधलका होते ही दैत्य को झाड़ियों में से निकाला जाता और कुछ समय तक घुमाने के बाद वापस रख दिया जाता।
दैत्य के कारण झील के किनारे भीड़ बढ़ने लगी। शाम को ढेरों लोग किनारे बैठे इन्तज़ार करते रहते। भीड़ बढ़ी तो खोमचे वालों, होटल वालों, खिलौने सभी की बिक्री भी बढ़ने लगी। शहर में चहल-पहल बढ़ गई। दूर-दूर से लोग पंचमढ़ी शहर आने लगे। स्कूल-कॉलेज के छात्रों की पिकनिक वहीं होने लगी। दूसरे पर्यटक भी ज़्यादा आने लगे। होटलों - धर्मशालाओं के कमरे भर गए। दुकानों की बिक्री बढ़ गई। टाकीज़ में दोपहर के शो "हाउस फुल' चलने लगे।
एक सप्ताह बीत गया। तभी एक भयानक खबर आई। फुरसती वैज्ञानिक क्लब के एक पुराने सदस्य बदलू को पिछले साल क्लब से निकाल दिया गया था। वैसे तो वह बहुत अकलमंद था पर उसने क्लब की कुछ गोपनीय बातें बाहर बता दी थीं। इसीलिए उसे क्लब से बाहर कर दिया गया था। तब से बदलू क्लब के खिलाफ कुछ-न-कुछ करता रहता था। पता चला कि उसे कहीं से दैत्य की सच्चाई की भनक लग गई थी। उसने जाकर किसी अखबार वाले से बात की। अखबार वालों ने उससे और सबूत लाने को कहा। तो अब वह सबूत के चक्कर में घूम रहा था। क्लब के सदस्यों को पता था कि देर सवेर वह ज़रूर मामले की गहराई तक पहुंच जाएगा। दूसरी बात इससे भी खतरनाक थी। उसने दो निशानेबाज़ों को बुला लिया था। और कहीं से मांगकर दो शिकारी बंदूकें ले आया था। अब उसकी योजना यह थी कि जैसे ही दैत्य झील में आएगा, उसके निशानेबाज़ गोली से उस पर हमला कर देंगे। हम लोग तो उस दैत्य के अन्दर होते हैं। यदि गोली चली, तो हमारा क्या होगा? उस शाम की मीटिंग में यही बात चल रही थी। आखिर गोली का सामना कैसे किया जाए? तभी रामनिवास कबाड़े की तरफ घूरने लगा। वह कबाड़े की तरफ घूर रहा था और बाकी सब उसकी तरफ। सब इन्तजार करते रहे। ऐसा लगा मानो घण्टों बीत गए हों। किसी की बीच में बोलने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी। धीरे धीरे रामनिवास ने कबाड़े पर से नज़र हटाई और बोला, “गयादीन तुम्हारे पिताजी के पास एक मोटर है ना?"
तीसरे दिन फिर से दैत्य निकल पड़ा। इस बार वह ज्यादा तेजी से चल रहा था मोटर जो लगी थी। फिर बीच बीच में पानी का फव्वारा छूटता था और आवाजें निकलती थीं। झील के किनारे बैठे लोगों में हड़कम्प मच गया। लोग चीखने चिल्लाने लगे। कैमरे चालू हो गए। धड़ाधड़ फोटो खिंचने लगे। ज़बरदस्त हंगामा रहा।
गयादीन, “हां।"
रामनिवास, "क्या हमें मिल सकती है?"
गयादीन सोचने लगा। फिर उसने हां कह दिया। बस, योजना बनने लगी। रामनिवास ने पूरा खाका पेश किया। हम दैत्य के अन्दर मोटर लगा देंगे। और क्लब का जो ट्रांसमीटर है उसके द्वारा दूर से बैठकर मोटर को चलाएंगे। दैत्य के अंदर किसी को बैठने की जरूरत नहीं। फिर बदलू कितनी भी गोलियां चलाता रहे।
'हुर्रे.....! अब तो बदलू का दिमाग ठिकाने आ जाएगा।' सब एक साथ चिल्लाए। सबको जोश आ गया। सबका जोश देखकर रामनिवास को और जोश आ गया। उसने बताया कि दैत्य के मुंह के ऊपर एक पाइप लगा देंगे जिसमें से फव्वारा छूटेगा। बीच-बीच में दैत्य फव्वारा छोड़ता जाएगा।
इसहाक को एक और विचार आया कि यदि दैत्य के अन्दर एक लाउडस्पीकर लगा दिया जाए, तो हम उसमें से ज़ोरदार गुर्राने की आवाज़ भी निकाल सकते हैं।
तो सब लोग जुट गए। दैत्य के छिपने की जगह पर जाकर उसमें सब फिटिंग का काम शुरू हो गया। ट्रांसमीटर में से एक विशेष लम्बाई वाली तरंगें छोड़ी जाना थीं। उन तरंगों को ग्रहण करने की क्षमता दैत्य की मोटर में थी। इन्हीं तरंगों से उसका संचालन होने वाला था। तेज़ धीमा करना, दाएं-बाएं, आगे-पीछे मोड़ना, पानी का फव्वारा, हर बात का संचालन दूर बैठे-बैठे। और गुर्राहट ऊपर से। यह सारा काम पूरा होते-होते दो दिन बीत गए।
तीसरे दिन फिर से दैत्य निकल पड़ा। इस बार वह ज़्यादा तेजी से चल रहा था - मोटर जो लगी थी। फिर बीच-बीच में पानी का फव्वारा छूटता था और आवाज़ें निकलती थीं। झील के किनारे बैठे लोगों में हड़कम्प मच गया। लोग चीखने चिल्लाने लगे। कैमरे चालू हो गए। धड़ाधड़ फोटो खिंचने लगे। ज़बरदस्त हंगामा रहा।
बदलू अपने निशानेबाजों के साथ एक नाव पर बैठा इंतजार कर रहा था। रामनिवास ने दैत्य को उसी की तरफ मोड़ दिया। जीतू ने लाउडस्पीकर में से ज़ोर की आवाज़ निकाली। साथ में पानी का फव्वारा छूटा। निशानेबाज़ घबरा गए। नाव में उछल-कूद करने लगे। बदलू ने एक के हाथ से बन्दुक छीनकर दैत्य पर गोली चलाई परन्तु दैत्य पर क्या असर पड़ता, वह तो बढ़ता गया। अब बदलू को अपनी बन्दूक लेकर भागना पड़ा।
उस दिन का दैत्य शानदार रहा। दूसरे दिन दैत्य के नए रूप पर शहर भर में चर्चा थी। यह खबर सुनकर देशभर के पत्रकार और फोटोग्राफर पचमड़ी पहुंच गए। दिन-दिन भर वे झील के किनारे बैठे इन्तजार करते। कई सारे वैज्ञानिकों ने भी झील के किनारे डेरा डाल लिया। सबकी कोशिश यह थी कि नज़दीक से दैत्य के फोटो ले लें। वैज्ञानिकों में होड़ लगी थी कि कौन पहले इस दैत्य का रहस्य खोजता है। कुछ लोग तो फिल्म बनाने के लिए भी तैयारी कर रहे थे। टी.वी. पर भी खबर आ गई।
परन्तु पचमढ़ी शहर की नगरपालिका के अध्यक्ष की रातों की नींद हराम हो था। उन्होंने तीन गश्ती नौकाएं पचमढ़ी भेज दी थीं। ये दिन-रात झील का चक्कर काटती रहती थीं। इन पर सर्चलाइट भी लगी हुई थी। दैत्य का सुराग देने वाले के लिए 1000 रुपए के पुरस्कार की घोषणा भी हो गई।
फुरसती वैज्ञानिकों को इससे काफी चिन्ता हुई। इसी बीच एक वैज्ञानिक ने यह भी घोषणा कर डाली कि शायद यह दैत्य का प्रजनन काल है। इसलिए शायद एक नहीं, दो दैत्य झील में होंगे। अब तो ज़ोर-शोर से दैत्य की तलाश जारी थी। मील और उसके आसपास का चप्पा
इसी बीच एक वैज्ञानिक ने यह भी घोषणा कर डाली कि शायद यह दैत्य का प्रजनन काल है। इसलिए शायद एक नहीं, दो दैत्य झील में होंगे। अब तो ज़ोर-शोर से दैत्य की तलाश जारी थी। झील और उसके आसपास का चप्पा-चप्पा छानने की योजना बन चुकी थी। उधर बदलू भी दैत्य की तलाश कर रहा था। शायद उसे अंदाज़ लग गया था कि दैत्य कहां छिपा है।
गई। एक तो इतने सारे लोगों के शहर में आने के कारण महंगाई बहुत बढ़ गई थी। हरेक चीज़ मुंहमांगे दामों पर बिक रही थी। खाने-पीने की चीज़ों की कमी पड़ने लगी थी।
परन्तु इससे भी ज्यादा खतरनाक बात यह थी कि मील के आसपास सुरक्षा की समस्या खड़ी हो गई। दैत्य पता नहीं कब किस पर हमला कर बैठे। अब तो वह ज़्यादा तेज़ चलता था और गुर्राने भी लगा था। नगर पालिका अध्यक्ष सदरनारायण बहुत परेशान थे। उनके पास मुख्यमंत्री का फोन तक आ चुका चप्पा छानने की योजना बन चुकी थी। उधर बदलू भी दैत्य की तलाश कर रहा था। शायद उसे अंदाज़ लग गया था कि दैत्य को कहां छिपाया गया है।
इसलिए फुरसती वैज्ञानिक क्लब ने तय किया कि दैत्य को छिपाने की जगह बदल दी जाए। दैत्य को झील की दूसरी तरफ ले जाया गया। उधर पहाड़ियां थीं। पहाड़ियों की ओर के दलदल में उसे छिपा दिया गया। अगले दिन उसे वहीं से निकालकर झील की सैर कराई गई। लोग आश्चर्यचकित रह गए। आज दैत्य नए स्थान से निकला था। इससे वैज्ञानिक की बात सही साबित होती थी कि वास्तव में दैत्यों का जोड़ा है।
सारी स्थिति को देखते हुए क्लब की बैठक आयोजित की गई। सबको मज़ा आ रहा था।
यह भी खुशी थी कि झील के पास लोगों का व्यवसाय भी अच्छा चलने लगा था। क्लब के कुछ सदस्य खुद भी समोसे वगैरह बेचकर क्लब के लिए पैसा जमा कर रहे थे। पर किसी को यह समझ में नहीं आ रहा था कि यह कब तक चलेगा। पकड़े जाना तो अब तय था, आज नहीं तो कल। उधर सदरनारायण जी की भी चिन्ता थी। पर किसी सदस्य को यह समझ नहीं पड़ रहा था कि क्या करें। कुछ समय बाद अध्यक्ष गयादीन ने सुझाव दिया कि चलकर सब कुछ सच-सच कबूल कर लेना चाहिए और दैत्य से पीछा छुड़ाना चाहिए। थोड़ी देर बातचीत के बाद तय हुआ कि किसी पत्रकार को पूरी बात बता दी जाए। फिर बाद में दैत्य का क्या करना है सोचेंगे। इसमें पुरस्कार के 1000 रुपए भी क्लब को मिल जाएंगे।
तो एक राष्ट्रीय अखबार 'दैनिक भागमभाग' के पत्रकार से संपर्क करके उसे पूरी बात बता दी गई। वह मदद देने को राज़ी हो गया। उसकी बस यही शर्त थी कि उसे करीब से दैत्य के फोटो खींचने को मिल जाएं। इसके बदले में उसने वादा किया कि वह दैनिक भागमभाग से कहकर क्लब को एक नया ट्रांसमीटर और एक दूरबीन दिलवा देगा। क्लब के सदस्य पत्रकार को लेकर दैत्य की गुफा
में गए। पत्रकार ने तरह-तरह से दैत्य के फोटो खींचे। अन्दर से, बाहर से, दाएं से, बाएं से, खूब सारे रंगीन फोटो खींचे। फिर उसने कहा कि वह चलते-फिरते दैत्य का फोटो खींचना चाहता है। तो यह तय हुआ कि अगले दिन सुबह-सुबह वह हैलीकॉप्टर में बैठकर झील का चक्कर लगाएगा और उसी समय दैत्य को बाहर निकाला जाएगा ताकि पत्रकार फोटो खींच सके।
क्लब के सदस्य सुबह चार बजे ही पहाड़ियों के पीछे पहुंच गए। कुछ समय बाद हैलीकॉप्टर दिखाई दिया। पत्रकार ने ऊपर से इशारा किया और दैत्य को बाहर निकाला गया। दैत्य ने उस दिन ऐसा हैरतअंगेज़ प्रदर्शन किया कि क्लब के सदस्य भी भौंचक्के रह गए।
पहले तो दैत्य सीधा झील के बीचों-बीच पहुंच गया। फिर वहां फव्वारा छोड़कर, गुर्राकर वापस पलटने को ही था कि रामनिवास हक्का-बक्का रह गया। बह यहां से बटन-वटन दबा रहा था पर दैत्य था कि मुड़ता ही नहीं था। दैत्य तेज़ी से आगे बढ़ा। सामने गश्ती नौका खड़ी थी। ऐसा लगा कि अब दैत्य उससे टकरा जाएगा। बिल्कुल पास पहुंचकर दैत्य दाहिनी ओर मुड़कर नौका के बाजू से निकल गया। गश्ती नौका में सवार सब लोग डरकर एक तरफ को भागे। इस चक्कर में नौका का संतुलन बिगड़ गया और वह पलट गई। पूरा गश्ती दल बमुश्किल तैर-तारकर किनारे लगा। पर दैत्य ने अभी बस नहीं किया। उसने झील में अजीब-अजीब करतब दिखाने शुरू किए। रामनिवास के करने से वह काबू में ही नहीं आ रहा था। किनारे खड़े लोग और झील में नाव में बैठे लोगों में भगदड़ मच गई।
तभी इसहाक की तन्द्रा टूटी। उसे एकदम से विचार आया कि हो न हो, यह बदलू की करतूत है। बदलू को यह तो मालूम ही था कि क्लब का ट्रांसमीटर कितनी लम्बाई की तरंगें फेंकता है। उसने उसी जैसा ट्रांसमीटर लगा लिया होगा और अब दैत्य उसके कब्ज़े में है। बदलू के आदेशों पर ही दैत्य सारे करतब कर रहा है। इसहाक ने तुरन्त रामनिवास से कहा "दैत्य की बिजली बन्द कर दो।'' रामनिवास ने तत्काल दैत्य की बिजली बन्द कर दी।
दैत्य यकायक रुक गया। इतने झटके से रुका कि उसका मुंह पानी में डूब गया। पूरा डूबते-डूबते बचा। बिजली कट जाने के कारण ट्रांसमीटर का उस पर कोई नियंत्रण नहीं था। रामनिवास ने एक और ट्रांसमीटर साथ रखा था कि कभी एक काम करना बंद कर दें तो ठीक रहेगा। तुरन्त दूसरे ट्रांसमीटर को चालू किया गया। इसकी तरंग-लम्बाई पहले वाले से अलग थी। अब फिर से बिजली चालू करके नई तरंगों से दैत्य को काबू में किया गया। बदलू को नई तरंगों की लम्बाई तो पता नहीं थी। इसलिए अब दैत्य रामनिवास के आदेश के अनुसार वापस आ गया।
अगले दिन सारे सदस्य फिर सुबह-सुबह झील पर उपस्थित हुए। दैत्य को निकालने से पहले कुछ इन्तज़ाम करने थे। उसके अन्दर की मोटर, लाउडस्पीकर, बल्ब, पाइप वगैरह निकाल दिए गए। फिर गयादीन ने उसमें कुछ अजीबो गरीब चीज़ें रख दीं।
सुबह होते-होते दैत्य को झील में धक्का दिया गया। दैत्य धीरे-धीरे तैरता हुआ झील में बढ़ गया। जब दैत्य झील में काफी अन्दर तक चला गया, तो पत्रकार, फोटोग्राफर वगैरह अपनी-अपनी नावों में सवार होने लगे। सर्चलाइटें जल उठीं। पर आज किसी की उसके पास फटकने की हिम्मत नहीं हुई। कुछ समय तक दैत्य झील में इधर-उधर लहराता रहा। जब थोड़ी धूप निकल आई, तो रामनिवास ने उसके पास रखे एक उपकरण का बटन दबाया। बटन दबाने की देर थी और दैत्य के मुंह में से लपटें निकलने लगीं। धीरे-धीरे पूरा दैत्य जल उठा। सब तरफ धुंआ-ही-धुआं फैल गया। जब धुंआ छंटा तो वहां झील पर कुछ नहीं था। बस थोड़ा तेल झील पर फैला हुआ था। यह दैत्य का आखिरी दर्शन था।
क्लब के सदस्य भारी मन से वापस चल दिए। जीतू को थोड़ा रोना भी आया। आखिर यह दैत्य उसी का तो था। सबने उसे सांत्वना दी। क्लब की अगली मीटिंग में उसे एक की बजाए दो वोट डालने का अधिकार दिया गया।
* बरट्रेण्ड आर. विनले की पुस्तक 'मैड साइन्टिस्ट क्लब' की एक कहानी 'दि स्ट्रेन्ज सी मॉन्स्टर ऑफ स्ट्रॉबेरी लेक' पर आधारित।
इसकी पीठ तो देखो !
इस मादा टोड की पीठ को देखिए तो ज़रा, क्या है.धब्बे। हमें भी ऐसा ही लगा था लेकिन जब खोजबीन की तो मालूम पड़ा कि जिन्हें हम धब्बे समझ रहे थे वो पीठ में बने खानों ( chambers) में रखे अंडे हैं। खाने और वो भी पीठ में, कुछ अजीब सी बात लगी न।
दरअसल सूरीनाम में मिलने वाले टोड की इस प्रजाति की मादा की पीठ में ऐसे खाने बने होते हैं जिनका उपयोग यह अंडे रखने के लिए करती है, और अंडे तब तक रखे रहते हैं जब तक कि उनमें से बच्चे नहीं निकल आते।