पुस्तक - साइंस एक्टिविटीज़ विथ प्लास्टिक दंग क्लीनर
लेखक - डॉ. ललित किशोर एवं तुषार ताम्हणे
पृष्ठ संख्या - 64, प्रायोगिक संस्करण 1993
पता - रिसोर्स सेंटर
कृष्णमूर्ति फाउंडेशन इंडिया
राजधाट फोर्ट, वाराणसी उ.प्र.
पिन - 221001
आमतौर पर स्कूली पाठ्यक्रमों में प्रयोगों और गतिविधियों पर आधारित सामग्री का अभाव होता है या प्रयोगों वाली सामग्री कक्षाओं में विशेष भूमिका नहीं निभा पाती। अगर किताबों में प्रयोग दिए भी हों तो प्रयोगशालाएं नहीं होतीं। इसलिए विद्यार्थी ‘करके सीख' वाली प्रक्रिया से वंचित रह जाता है और विज्ञान के विभिन्न सिद्धांतों को रटकर या यादकर समझता है। परिणाम यह होता है कि विद्यार्थियों को विषय का व्यावहारिक ज्ञान नहीं मिल पाता। इन्हीं दिक्कतों को ध्यान में रखकर ‘साइंस एक्टिविटीज़ विथ प्लास्टिक टंग क्लीनर' पुस्तक लिखी गई है। इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य है कि विद्यार्थी इस सामग्री का उपयोग करते हुए अपने भीतर छुपी खोजी प्रवृत्ति को विकसित कर सकें।
पुस्तक में कुल 24 प्रयोग दिए गए हैं जो विज्ञान के विविध सिद्धांतों पर आधारित हैं। जैसे - स्थिर विद्युत, गति, घर्षण, जड़त्व आदि। सभी प्रयोग रोज़ सुबह उपयोग में आने वाली जीभी (टंग क्लीनर ) के साथ किए गए हैं। इन खेलों को लगभग सभी घरों में मिलने वाली चीजों से किया जा सकता है। जैसे - जीभी, कागज़, हवाई चप्पल का सोल, धागा, रीफिल, आलपिन, सुई, माचिस, बोतल के ढक्कन आदि।
पुस्तक में दी गई गतिविधियां माध्यमिक स्तर की कक्षाओं में आसानी से करवाई जा सकती हैं। विद्यार्थी इन गतिविधियों के पीछे छुपे वैज्ञानिक सिद्धांतों को सरलता से समझ सकते हैं। इन खेलों को करने के लिए किसी विशेष स्तर की प्रयोगशाला या प्रयोग सामग्री
की ज़रूरत नहीं है। विद्यार्थी इसे कक्षा से बाहर भी कर सकते हैं। सभी गतिविधियों के साथ आवश्यक सामग्री, निर्देश तथा चित्र दिए गए हैं। प्रत्येक प्रयोग के बाद अवलोकनों के साथ ही प्रयोग को और आगे बढ़ाने के लिए कुछ बातें सुझाई गई हैं।
अवलोकनों पर आधारित प्रश्नों में कुछ विविधता हो सकती थी। लेकिन अमूमन प्रत्येक प्रयोग के अंत में दो तरह के प्रश्न ही पूछे गए हैं - तुमने क्या देखा, और ऐसा क्यों हुआ? यदि प्रश्नों को अवलोकनों के छोटे-छोटे हिस्सों पर केन्द्रित करके पूछा जाता तो ज़्यादा बेहतर होता।
बच्चों में सृजनशीलता और खोजी प्रवृत्ति विकसित करने के उद्देश्य से लिखी यह पुस्तक अंग्रेजी में होने के कारण हिन्दी-भाषी पाठकों के लिए असुविधा हो सकती है। इसकी उपयोगिता को देखते हुए इसका हिन्दी अनुवाद भी किया जाना चाहिए ताकि अधिक-से-अधिक पाठक इससे लाभान्वित हो सकें।
पुस्तक की छपाई साधारण है, चित्र पर्याप्त संख्या में दिए गए हैं। लेकिन कुछ चित्र प्रयोगों को ठीक-ठीक नहीं समझा पाते। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि पुस्तक सस्ती सामग्री के माध्यम से विद्यार्थियों में प्रयोग करने की लालसा पैदा करेगी।
* माधव केलकर
कुछ प्रयोग इसी किताब से
पहला प्रयोग
सामग्री - प्लास्टिक की जीभी, कागज़ के छोटे-छोटे टुकड़े, कॉपी का कागज़।
प्रयोग - कागज़ को बीच से मोड़ लो। जीभी को एक तरफ से पकड़कर उसके दूसरे हिस्से को कागज़ के बीच में रखकर कम-से-कम दस बार रगड़ो। अब इसे कागज़ के टुकड़ों के पास ले जाओ, टुकड़े जीभी की तरफ खिंचे आएंगे। ऐसा क्यों हुआ?
जीभी की तरफ खिंचने वाले टुकड़ों की संख्या लिख लो। इस प्रयोग को फिर दोहराओ। इस बार जीभी को कागज़ से कम या ज़्यादा बार रगड़कर देखो। इस बार जीभी की तरफ कितने कागज़ के टुकड़े खिंचे? पता करो कि क्या जीभी रगड़ने और टुकड़ों के आकर्षित होने की संख्या में कोई संबंध है?
दूसरा प्रयोग
सामग्री - दो प्लास्टिक की जीभी, टिच बटन, सुई, मोमबत्ती, माचिस, कागज़।
प्रयोग - मोमबत्ती जलाकर सुई की नोंक गरम कर लो। अब एक जीभी के बीचों-बीच इस गरम नोक से छेद कर लो। इस छेद में टिच बटन लगाना है। इसके लिए जीभी के ऊपर और नीचे टिच बटन का एक-एक हिस्सा रखकर दबा दो। सुई के दूसरे सिरे को रबर की किसी चीज़ में फंसा लो। यह सुई का स्टैण्ड बन जाएगा। बटन लगी जीभी के एक सिरे को कागज़ के बीच रखकर रगड़ो, फिर इसे स्टैण्ड लगी सुई पर इस तरह रखो कि सुई की नोक टिच बटन के छेद में फंस जाए। अब दूसरी जीभी को भी कागज़ से रगड़ो। फिर इसे सुई पर लगी जीभी के रगड़े हुए हिस्से के पास लाओ। पता करो क्या हुआ?
ऐसा क्यों हुआ?
तीसरा प्रयोग
सामग्री - एक प्लास्टिक जीभी, आलपिन, मोमबत्ती, लकड़ी का टुकड़ा।
प्रयोग - जीभी का छेद वाला हिस्सा काटकर अलग कर लो। बाकी बचे टुकड़े में से 5 सेन्टीमीटर का टुकड़ा काट लो। इसके बाद भगोने में थोड़ा-सा पानी उबालकर इसमें जीभी के इस टुकड़े को थोड़ी देर पड़ा रहने दो। फिर इसे चिमटी से पकड़ कर बाहर निकाल लो और इसके आमने-सामने के दोनों कोनों को पकड़कर चित्र में दिखाए तरीके से मोड़ लो। अब सुई की नोंक को गरम कर इस टुकड़े के बीचों-बीच छेद करो और इसमें आलपिन घुसा दो। अब इस आलपिन की नोक को लकड़ी के टुकड़े में गड़ा दो। यह बन गई चरखी। अब लकड़ी को पकड़कर तेजी से हवा में घुमाओ। पता करो - क्या चरखी के घूमने की गति और हाथ के घूमने की गति में कुछ सम्बन्ध है? यदि है तो क्या?
किसी पंखे के पास चरखी को ले जाओ। चरखी घूमने लगेगी। पंखे और चरखी के बीच की दूरी बदलते रहो। क्या इस दूरी का बदलना चरखी के घूमने की गति को भी बदलता है?
चौथा प्रयोग
सामग्री - मोमबत्ती, सुई, कागज़, प्लास्टिक की जीभी, प्लास्टिक की बोतल।
प्रयोग - मोमबत्ती जलाकर सुई की नोक को गरम कर लो। बोतल के पेंदे के बीचों-बीच गरम सुई से छेद कर लो। अब इस बोतल में पानी भर लो। बोतल का पानी छेद से होकर एक पतली-सी धार बनाकर बहने लगेगा। अब जीभी को कागज़ में लपेटकर कम-से कम दस बार रगड़ो। फिर इसे बहते हुए पानी की धार के पास लाओ।
पता करो - जीभी जहां धार के करीब है क्या वहां धार की दिशा जीभी की तरफ मुड़ जाएगी? ऐसा क्यों हुआ?
(माधव केलकर- संदर्भ में कार्यरत। शशि सबलोक - एकलम की बाल गतिविधयों से संबद्ध)
प्रयोगों का संकलन एवं अनुवाद - शशि सवलोक