1970 के दशक के अंत में पुरातत्वविदों ने उत्तरी इस्राइल में 12000 वर्ष पुराना एक प्राचीन गांव खोज निकाला था। इस गांव के लोग अपने प्रियजनों को घर के नीचे दफनाया करते थे। इस खोजबीन में उन्होंने एक कब्र का खुलासा किया था जिसमें दफन की गई महिला का हाथ एक कुत्ते के सीने पर रखा हुआ था। यह खोज मनुष्यों और कुत्तों के बीच एक शक्तिशाली भावनात्मक सम्बंध का संकेत देती है।
अलबत्ता, शोधकर्ताओं के बीच इस सम्बंध की शुरुआत को लेकर काफी मतभेद है। एक बड़ा सवाल है कि क्या यह सम्बंध कई हज़ारों वर्षों के दौरान उत्पन्न हुआ जिसमें कुत्ते दब्बू और मानव व्यवहार के प्रति अधिक संवेदनशील होते गए या इस जुड़ाव की शुरुआत कुत्तों के पूर्वजों यानी मटमैले भेड़ियों के साथ ही हो चुकी थी?
एक हालिया अध्ययन से लगता है कि वयस्क भेड़िए भी कुत्तों के समान मनुष्यों से जुड़ाव बनाने में सक्षम हैं। और तो और, कुछ परिस्थितियों में तो वे मनुष्यों को सुकून और सुरक्षा के स्रोत के रूप में भी देखते हैं।
इस नए अध्ययन में स्ट्रेंज सिचुएशन टेस्ट (अनजान परिस्थिति परीक्षण) नामक प्रयोग का इस्तेमाल किया गया है। मूलत: इसे मानव शिशुओं और उनकी माताओं के बीच लगाव का अध्ययन करने के लिए तैयार किया गया था। इसमें इस बात का मापन किया जाता है कि किसी अजनबी व्यक्ति या माहौल से सामना होने पर जो तनाव पैदा होता है, वह देखभाल करने वाले से पुन: मुलाकात होने पर किस तरह बदलता है। ऐसी स्थिति में अधिक अंतर्क्रिया मज़बूत बंधन को दर्शाती है।
भेड़ियों पर ऐसा प्रयोग करना एक मुश्किल कार्य था, इसलिए शोधकताओं ने शुरुआत शिशु भेड़ियों से की। स्टॉकहोम युनिवर्सिटी की पारिस्थितिकीविद क्रिस्टीना हैनसन व्हीट और उनके सहयोगियों ने 10 दिन पहले पैदा हुए 10 मटमैले भेड़ियों पर अध्ययन किया। शोधकर्ताओं ने कई दिनों तक बारी-बारी से 24 घंटे इन शावकों के साथ बिताए और समय-समय पर उनको बोतल से दूध भी पिलाया।
जब ये भेड़िए 23 सप्ताह के हुए तब देखभालकर्ता एक-एक करके उन्हें एक खाली कमरे में ले गया। इसके बाद वह कई बार इस कमरे के भीतर आना-जाना करता रहा। इस प्रक्रिया के दौरान भेड़िए को कभी-कभी तो कमरे में बिलकुल अकेला छोड़ दिया जाता और कभी एक नितांत अजनबी के साथ छोड़ दिया जाता। शोधकर्ताओं ने यही प्रयोग 23 सप्ताह उम्र के 12 अलास्कन हस्की नस्ल के कुत्तों के साथ भी किया, जिन्हें उसी तरह पाला गया था।
इस अध्ययन में वैज्ञानिकों को भेड़ियों और कुत्तों में बहुत ही कम अंतर दिखा। जब देखभालकर्ता ने कमरे में प्रवेश किया तो दोनों ने ‘अभिवादन व्यवहार’ के पांच-बिंदु पैमाने पर 4.6 स्कोर किया जो किसी मनुष्य के पास रहने की इच्छा को ज़ाहिर करता है। हालांकि, किसी अजनबी के प्रवेश करने पर कुत्तों में यह व्यवहार गिरकर 4.2 हो गया और भेड़ियों में 3.5 पर आ गया। इकोलॉजी एंड इवॉल्यूशन में प्रकशित रिपोर्ट के अनुसार इससे पता चलता है कि भेड़िए और कुत्ते दोनों अनजान व्यक्ति और परिचित व्यक्ति के बीच अंतर करते हैं। अंतर करने की इस क्षमता को टीम लगाव का संकेत मानती है। प्रयोग के दौरान कुत्ते और भेड़िए, दोनों ही अजनबी की तुलना में देखभालकर्ता से शारीरिक संपर्क करने में भी एक जैसे ही दिखे।
इसके अलावा, परीक्षण के दौरान कुत्तों ने ज़्यादा चहलकदमी नहीं की। जबकि भेड़ियों में थोड़े समय चहलकदमी देखी गई। चहलकदमी करना तनाव का द्योतक होता है। विशेषज्ञों के अनुसार मनुष्यों द्वारा पाले गए भेड़ियों में भी मनुष्य की उपस्थिति में बचैनी सामान्य है। यह भी देखा गया कि कमरे से अजनबी व्यक्ति के बाहर निकलने और देखभालकर्ता के अंदर आने पर भेड़ियों की चहलकदमी थम गई। ऐसा व्यवहार भेड़ियों में पहले कभी नहीं देखा गया था। व्हीट के अनुसार यह व्यवहार इस बात का संकेत है कि भेड़िए देखभालकर्ता मनुष्यों को सुकून और सुरक्षा के स्रोत के रूप में देखते हैं। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यदि इस व्यवहार को सच मानें तो इस तरह का लगाव कुत्तों और भेड़ियों में एक समान ही है। अर्थात यह व्यवहार उनमें मनुष्यों द्वारा पैदा नहीं किया गया है बल्कि यह मानव चयन का एक उदाहरण है।
विशेषज्ञों का मत है कि चहलकदमी में परिवर्तन के प्रयोग को अन्य जंगली जीवों पर भी आज़माया जा सकता है जिससे यह साबित हो सके कि कोई जीव अपनी देखभाल करने वाले को मात्र भोजन प्रदान करने वाले के रूप में देखता है या फिर उसे एक सुकून और सुरक्षा के स्रोत के रूप में देखता है।
वैसे इस अध्ययन को लेकर शोधकर्ताओं में काफी मतभेद है। वर्ष 2005 में स्ट्रेंज सिचुएशन टेस्ट को कुत्तों और भेड़ियों के लिए विकसित करने वाली एट्वोस लोरांड युनिवर्सिटी की मार्था गैकसी इस अध्ययन से संतुष्ट नहीं हैं। उन्होंने इसी तरह के एक अध्ययन में कुत्तों और भेड़ियों के बीच काफी अंतर पाया था – भेड़िए अजनबी और देखभालकर्ता के बीच अंतर नहीं कर पाए थे। निष्कर्ष था कि भेड़ियों में विशिष्ट मनुष्यों से लगाव बनाने की क्षमता नहीं होती।
गैकसी इस नए अध्ययन में कई पद्धतिगत समस्याओं की ओर भी इशारा करती हैं। जैसे, कमरा जानवरों के लिए जाना-पहचाना था, कुत्तों की एक ही नस्ल ली गई थी और भेड़ियों ने इतनी चहलकदमी भी नहीं की थी कि उनके व्यवहार का निर्णय किया जा सके, वगैरह।
व्हीट का कहना है कि वे भी कुत्तों और भेड़ियों को एक समान नहीं मानती हैं लेकिन भेड़ियों में लगाव सम्बंधी व्यवहार के कुछ संकेतों के आधार कहा जा सकता है कि उनमें मनुष्यों से जुड़ाव बनाने का लक्षण पहले से मौजूद था। (स्रोत फीचर्स)