दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रीय जैव विविधता संस्थान द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक घुसपैठी जैव प्रजातियों की वजह से देश की अर्थ व्यवस्था पर 45 करोड़ डॉलर का वार्षिक बोझ पड़ रहा है और ये जैव विविधता के ह्यास का एक बड़ा कारण बन गई हैं। इन घुसपैठी प्रजातियों में वनस्पतियों के अलावा कीट और मछलियां भी शामिल हैं। यह अपने किस्म की पहली रिपोर्ट है।
दरअसल, 2014 में दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने यह अनिवार्य कर दिया था कि हर तीन साल में घुसपैठी प्रजातियों की समीक्षा की जाएगी। गौरतलब है कि घुसपैठी प्रजातियां ऐसी प्रजातियों को कहते हैं जिन्हें अपने कुदरती आवास के बाहर किसी इकोसिस्टम में प्रविष्ट कराया जाता है या जो स्वयं ही दूर-दूर तक फैलकर अन्य इकोसिस्टम्स में घुसने लगती हैं। यह रिपोर्ट उपरोक्त नियम के तहत ही तैयार की गई है और इसके लिए देश भर की प्रयोगशालाओं तथा विभिन्न केंद्रों पर संग्रहित जानकारी का सहारा लिया गया है। रिपोर्ट में घुसपैठी प्रजातियों के प्रभाव, उनसे निपटने के उपायों तथा उनके प्रवेश के रास्तों की भी समीक्षा की गई है।
2015 में 14 राष्ट्रीय संगठनों के 37 शोधकर्ताओं ने राष्ट्रीय जैव विविधता संस्थान तथा स्टेलेनबॉश विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर एक्सलेंस फॉर इन्वेज़न बायोलॉजी के नेतृत्व में इस रिपोर्ट को तैयार किया है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि दक्षिण अफ्रीका में प्रति वर्ष 7 नई प्रजातियां प्रविष्ट होती हैं। आज तक कुल 775 घुसपैठी प्रजातियों की पहचान की गई है। इनमें से अधिकांश तो पेड़-पौधे हैं। रिपोर्ट के लेखकों का अनुमान है कि इनमें से 107 प्रजातियां देश की जैव विविधता और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के तौर पर, प्रोसोपिस ग्लेंडुलोस (हनी मेस्क्वाइट) है जिसे पूरे अफ्रीका में पशुओं के चारे के रूप में लाया गया था। आज यह चारागाहों को तबाह कर रही है और स्थानीय वनस्पति को बढ़ने से रोकती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक यह मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों के फैलने में मददगार है।
इसी तरह से एक कीट सायरेक्स नॉक्टिलो वानिकी को प्रभावित करता है तो एक चींटी लाइनेपिथिमा ह्रूमाइल स्थानीय वनस्पतियों के बीजों के बिखराव को तहस-नहस करती है जबकि जलकुंभी ने देश के बांधों और नहरों को पाट दिया है। रिपोर्ट का यह भी कहना है कि कई घुसपैठी प्रजातियां बहुत पानी का उपभोग करती हैं।
इस रिपोर्ट को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर घुसपैठी प्रजातियों के बारे में एक समग्र रिपोर्ट बताया गया है जबकि रिपोर्ट के लेखकों का कहना है कि जानकारी के अभाव के चलते यह रिपोर्ट उतनी विश्वसनीय नहीं बन पाई है। लेकिन इस प्रयास की काफी सराहना की जा रही है। (स्रोत फीचर्स)