आजकल आपने टीवी पर देखा होगा कि गोरा बनाने वाली कुछ क्रीम्स के विज्ञापनों में ज़ोर-शोर से प्रचार किया जा रहा है कि उनमें एक्टिवेटेड चारकोल है जो सारी गंदगी वगैरह को सोखकर आपका रंग साफ कर सकता है। इस संदर्भ में हावड़ा (पश्चिम बंगाल) स्थित इंडियन इंस्टिट्यूटऑफ इंजीनियरिंग साइंस एंड टेक्नॉलॉजी के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया एक अध्ययन आंखें खोल देने वाला है। अध्ययन के मुताबिक ‘एक्टिवेटेड माइक्रोकार्बन’ युक्त फेसक्रीम, जिसका कई विज्ञापन सौंदर्य सामग्री की तरह प्रचार कर रहे हैं, लंबे समय तक उपयोग के बाद त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है इसके असर से कैंसर भी हो सकता है।
एक्टिवेटेड कार्बन पाउडर (एक्टिवेटेड चारकोल) का लंबे समय से उद्योग में उपयोग होता रहा है। इसका उपयोग पानी को साफ करने जैसे कामों में किया जाता है। पर ‘गोरा करने वाली’ फेसक्रीम में इसका इस्तेमाल हाल ही में शुरु हुआ है। शोधकर्ताओं ने बताया कि 3 अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के लोकप्रिय ब्राांड के माइक्रोकार्बनयुक्त क्रीम के नमूनों की सूक्ष्मदर्शीय और वर्णक्रम विश्लेषण जांच में रिड्यूस्ट ग्रेफीन (rGO) कण पाए गए हैं। ये कण वास्तव में कार्बन के अत्यंत महीन (नैनो आकार के) कण होते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, rGO सामान्य तौर पर निष्क्रिय रहते हैं। पर हवा में उपस्थित ऑक्सीजन के संपर्क में आकर क्रियाशील हो उठते हैं। इसके परिणामस्वरूप क्रियाशील ऑक्सीजन मूलक (रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीशीज़ ROS) बनते हैं। क्रियाशील ऑक्सीजन मूलक त्वचा के लिए विषैले होते हैं।
इनके विषैले प्रभाव के अध्ययन के लिए एस. मैती व उनके साथी वैज्ञानिकों ने वयस्क मानव त्वचा कोशिकाओं को नैनो आकार के ग्रेफीन कणों के विलयन के साथ 200 वॉट (लगभग सूरज की रोशनी जैसा) की रोशनी में 12 घंटे के लिए रखकर जांच की।
इन नमूनों में rGO जैसे ग्रेफीन पदार्थ काफी मात्रा में पैदा हो गए जो कोशिका के लिए हानिकारक हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि ROS के आम तौर पर कैंसर, कोशिका-प्रसार और झुर्रियों जैसे दुष्प्रभाव हैं। यह अध्ययन एप्लाइड नैनोसाइन्स नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। (स्रोत फीचर्स)