डॉ. किशोर पंवार
यह दुनिया तरह-तरह के अजूबों से भरी पड़ी है। इनमें एक अजूबा तो मनुष्य ही है, जो अपने आसपास की वस्तुओं को विभिन्न नज़रियों से देखता है। और फिर उन्हें जीवित और अजीवित जैसे समूहों में बांट कर उनका विस्तृत वर्गीकरण करता है। वह आगे जाकर दुनिया की छोटी से छोटी वस्तु, दुनिया का सबसे विशाल जीव, दुनिया का सबसे लंबा पेड़ आदि की सूचियां बनाता है। इस तरह का वर्गीकरण करना, सूचियां बनाना मनुष्य की स्वभावगत विशेषता है। इसी ने विज्ञान में टेक्सानॉमी जैसी शाखा को जन्म दिया है।
सबसे छोटे फूलधारी पौधे का ज़िक्र हो तो वुुल्फिया का नाम सामने आता है। यह एक मि.मी. आकार का जलीय पौधा है। सबसे बड़े बीजधारी या फूलधारी पेड़ों की बात हो तो थोड़ी दुविधा है। बड़ा यानी क्या? ऊंचाई में बड़ा या मोटाई में बड़ा। मोटाई और आकार में तो जनरल शेरमन को ही यह सम्मान प्राप्त है। वनस्पति शास्त्री इसे सिकोया सेम्पेरविरेन्स (sequoia sempervirens) के नाम से जानते हैं। कैलिर्फोनिया के घने वर्षा वनों में मिलने वाले दो रेडवुड में से यह एक है। कोस्ट रेडवुड दुनिया का सबसे भारी और आयतन में सबसे बड़ा पेड़ है।
कैलिर्फोनिया के राष्ट्रीय सिकोया उद्यान में स्थित जनरल शेरमन 93.8 मीटर ऊंचा पेड़ है। पर इससे भी ऊंचा एक पेड़ है कोस्ट रेडवुड जिसका नाम हायपेरियान है। यह 115.5 मीटर ऊंचा है। हालांकि जनरल शेरमन के तने की गोलाई 31.1 मीटर है परन्तु यह मेक्सिको के ओऐक्सका के पेड़ अलअर्बोेल डाई थुले (गोलाई 54 मीटर) से तो छोटा ही है।
सबसे बड़ा जीव
अत: पेड़ों के आकार को लेकर उन्हें देखने के अलग-अलग तरीके हैं। सबसे मोटा, ऊंचा या अधिक आयतन वाला। जैसे कुछ वैज्ञानिक ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट बेरियर कोरल रीफ को दुनिया का सबसे बड़ा जीव मानते हैं। परन्तु सच तो यह है कि यह कोई अकेला जीव नहीं जीवों का समुदाय है। इसी तरह कुछ शोधकर्ता वॉशिंगटन में खोजी गई एक कवक (जो लगभग 607 हैक्टर में फैली) को क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा या लंबा जीव मानते हैं।
अभी और भी किरदार हैं जो इसके दावेदार हैं। जैसे क्वेकिंग एस्पेन ट्री जो उटा के वास्टेक पहाड़ों में पाया जाता है। इसे स्थानीय रूप से पेन्डो कहा जाता है जिसका लेटिन भाषा में अर्थ होता है ‘मैं फैलता हूं’।
पेन्डो 47 हज़ार पेड़ों का समूह है जो 43 हैक्टर में फैले हुए हैं और संभवत: 80,000 साल पुराने हैं। परन्तु कैलिफोर्निया के रेडवुड जनरल शेरमन से ये कुछ सौ टन कम हैं वज़न में। इनका वज़न 5,987 टन आंका गया है। पेन्डो को एक ही जीव माना गया है क्योंकि समूह के सभी पेड़ का जेनेटिक कोड एक ही है और उनकी जड़ें भी आपस में अन्दर ही अन्दर जुड़ी हुई हैं। दरअसल पेन्डो पेड़ एक-दूसरे के क्लोन ही हैं। पुराने पेड़ का तना 30 मीटर दूर तक फैलने और फिर वहां जड़ पकड़ लेने से नए पेड़ बनते हैं। ऐसा बार-बार हर पेड़ के साथ होता रहता है। यदि पर्यावरणीय दशाएं अनुकूल हों तो यह पेड़ फैलता रहता है। पेड़ों के फैलने की यह विधि वर्धी प्रसार कहलाती है और यह पेड़-पौधों का एक महत्वपूर्ण लक्षण है।
अकेले क्वेकिंग एस्पेन का तना पतला होता है और ये लगभग 30-35 मीटर तक ऊंचे हो सकते हैं। मुश्किल परिस्थितियों में जीवित रह पाने और अपनी प्रजनन क्षमता के दम पर क्वेकिंग एस्पेन अमेरिका का सबसे आम पेड़ है।
सबसे ऊंचा पेड़
2008 में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि दुनिया का सबसे ऊंचा पेड़ डगलस फर है। इसकी लम्बाई लगभग 138 मीटर है। पर सवाल यह है कि लम्बाई की ये सीमा क्यों? ये पेड़ दरअसल प्रकृति की गगन चुम्बी इमारतें हैं। किसी पेड़ की उच्चतम सीमा तय होने के कारण भौतिक हैं। पहला यह कि ये पेड़ ऊपर की पत्तियों के लिए सिर्फ इसी अधिकतम ऊंचाई तक ज़मीन से पानी खींच सकते हैं।
आम तौर पर ऐसा देखा गया है कि पेड़ जितना ऊंचा होता है उसकी पत्तियां छोटी होती जाती हैं। इस घटना के गणितीय स्पष्टीकरण पेड़ों की अधिकतम ऊंचाई भी तय करते है।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय के कारे जेनसन और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के मासिज जेविनेस्की ने 1925 पेड़ों का अध्ययन किया और पाया कि पत्तियों का आकार मुख्यत: अपेक्षाकृत छोटे पेड़ों में ही ऊंचाई के लिहाज़ से बदलता है। अपने अध्ययन के लिए कुछ मिलीमीटर से लेकर एक मीटर से भी बड़ी पत्तियों वाले पेड़ों को इस हेतु चुना था।
जेनसन का मानना है कि पत्तियों के आकार का स्पष्टीकरण इनके संचरण तंत्र में छिपा है। पत्तियों द्वारा बनाई गई शर्करा नलिकाओं के एक जाल, जिसे फ्लोएम कहते हैं, के माध्यम से शेष पौधे में विसरित होती है। जैसे-जैसे शर्करा आगे बढ़ती है उनकी गति तेज़ होती जाती है। अत: जितनी बड़ी पत्ती होती है शर्करा के विसरण की गति उतनी ही तेज़ होती जाती है। परन्तु फ्लोएम तनों, शाखाओं और मुख्य तने में अवरोध उत्पन्न करता है। ऐसी स्थिति में एक ऐसा बिन्दु आ जाता है जब पत्ती के लिए बड़ा होना ऊर्जा की दृष्टि से व्यर्थ हो जाता है। ऊंचे-ऊंचे पेड़ इस सीमा को छूते हैं जहां उनकी पत्तियां बहुत छोटी हो जाती हैं क्योंकि शर्करा को वहां से जड़ों तक पहुंचने में एक लंबा रास्ता तय करना पड़ता है जो एक बड़ा अवरोध पैदा करता है। जेनसन द्वारा दी गई समीकरण यह सम्बंध बताती है कि जैसे-जैसे पेड़ ऊंचा होता जाता है बड़ी और छोटी दोनों प्रकार की पत्तियों के जीवित रहने की संभावना असामान्य रूप से कम हो जाती है। पत्तियों का आकार संकरा होता जाता है और लगभग 100 मीटर तक वह सीमा आ जाती है जब पत्तियां धारण करना ऊर्जा की दृष्टि से लाभप्रद नहीं होता। इससे ज़्यादा ऊंचाई पर पेड़ जीवित पत्तियां नहीं बना सकता है। इससे पता चलता है कि क्यों कैलिफोर्निया के रेडवुड के पेड़ की अधिकतम ऊंचाई 115.6 मीटर ही है।
दरअसल पेड़ों की ऊंचाई के मामले में दो विरोधी बल काम करते हैं। एक पेड़ को ऊपर की ओर खींचता है और दूसरा नीचे की ओर। जार्ज कोच के नेतृत्व में नार्दन ऐरीज़ोना विश्वविद्यालय के जीव वैज्ञानिकों की एक टीम ने इन बलों के रिश्तों का विश्लेषण कर किसी पेड़ की अधिकतम सैद्धांतिक ऊंचाई निकाली है। या वह बिन्दु जहां दोनों विरोधाभासी बल संतुलन की स्थिति में आ जाते हैं और ऐसी स्थिति में पेड़ वृद्धि करना बंद कर देता है। यह संतुलन बिन्दु 122 से 130 मीटर के बीच कहीं ठहरता है।
शोधकर्ताओं ने यह भी देखा है कि घने जंगलों में पेड़ की ज़्यादा से ज़्यादा ऊंचा बढ़ने की प्रवृत्ति होती है ताकि वे पड़ोसी पेड़ों से आगे बढ़कर तेज़ धूप तक पहुंच सकें। दूसरी तरफ गुरुत्वाकर्षण पेड़ों के शीर्ष पर उपस्थित पत्तियों तक जड़ों के द्वारा पानी का पहुंचाना मुश्किल बना देता है। अत: शीर्ष पर पत्तियां छोटी हो जाती हैं।
एक ऊंचाई पर पत्तियां लागत की तुलना में लाभप्रद नहीं रह जाती जैसा कि रेडवुड की सूई जैसी पत्तियां। तब पेड़ का ऊंचाई में वृद्धि करना बंद हो जाता है। ऐसा तब होता है जब प्रकाश संश्लेषण से प्राप्त ऊर्जा उतनी नहीं होती जितनी ऊर्जा उस ऊंचाई पर पानी को पहुंचाने में लगती है। इन परिस्थितियों में पेड़ों की ऊंचाई पर लगाम लग जाती है। जैसे-जैसे पेड़ की लम्बाई बढ़ती है गुरुत्व के कारण लगने वाले तनाव और रास्ते की लम्बाई के कारण उत्पन्न प्रतिरोध अंतत: पत्तियों के फैलाव तथा प्रकाश संश्लेषण को सीमित कर देता है। कुल मिलाकर पेड़ की ऊंचाई में वृद्धि रुक जाती है।
कैलिफोर्निया रेडवुड के पेड़ों की अधिकतम लंबाई होने के लिए कई कारक ज़िम्मेदार है। जिनमें नार्थ कैलिफोर्निया की समशीतोष्ण जलवायु, पोषकों से भरपूर मिट्टी, हमेशा बना रहने वाला कोहरा और घना जंगल जो पेड़ को सूर्य के प्रकाश तक पहुंचने में मदद करते हैं। इन सब परिस्थितियों के कारण ही रेडवुड दुनिया के सबसे ऊंचे पेड़ हैं। वे उतने ऊंचे हैं जितने सम्भवत: कोच और साथियों द्वारा प्रतिपादित समीकरण के अनुसार हो सकते थे।
हमने देखा कि किसी पेड़ की ऊंचाई को सीमित करने में सबसे बड़ा कारक गुरुत्वाकर्षण बल है। जिसके चलते एक निश्चित ऊंचाई के बाद वहां पत्तियों तक पानी पहुंचाना मुश्किल हो जाता है। पत्तियों में बनी शर्करा को तने व जड़ तक पहुंचाने का काम तो हमने देखा कि फ्लोएम नाम का जीवित ऊतक करता है। परन्तु जड़ों से पत्तियों तक पानी पहुंचाने का काम मृत छिद्रित कोशिकाएं करती हैं जिन्हें ट्रेकिड्स कहते हैं। ये पानी को एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक पहुंचाती है।
जैसे-जैसे पेड़ की ऊंचाई बढ़ती है इन ट्रेकिड्स में उपस्थित छिद्रों का व्यास कम से कम होता जाता है। परिणामस्वरूप, पानी को ऊपर पहुंचाना और मुश्किल हो जाता है। वस्तुत: इतनी ऊंचाई पर पत्तियां पानी की कमी के कारण सूखे से उत्पन्न तनाव अनुभव करती है और वे सूख कर मरती रहती हैं। इससे पेड़ की अधिकतम ऊंचाई तय हो जाती है।
ऊंचाई के साथ हवा के बुलबुले भी ट्रेकिड्स में घुसकर समस्या पैदा करते हैंै। इसे ज़ाइलम एम्बोलिज़्म कहते हैं। जितना अधिक ऊंचा पेड़ होता है उतनी अधिक उसमें ज़ाइलम एम्बोलिज़्म की समस्या पैदा होने की आशंका रहती है। ऐसा मनुष्यों में भी होता है जब हवा के बुलबुले रक्त वाहिनियों में घुस जाते हैं और रक्त प्रवाह को बाधित कर देते हैं।
इन्हीं विपरीत परिस्थितियों के कारण 115 मीटर की ऊंचाई पर शाखाएं एवं पत्तियां मरने लगती हैं और आगे वृद्धि रुक जाती है। पर्यावरणीय परिस्थितियां जीत जाती हैं और जीव हार जाता है।
अन्त में मेरे मन में एक सवाल आ रहा है: क्यों दुनिया के सबसे ऊंचे पौधे जिम्नोस्पर्म यानी नग्नबीजी हैं, फूलधारी पौधे क्यों नहीं? क्या इसमें फूलधारी पौधों के ज़ायलम में वेसल्स की उपस्थिति और जड़ों में मूल रोम का पाया जाना तो ज़िम्मेदार नहीं? क्योंकि ये दोनों लक्षण विकास की पायदान पर दूसरे नम्बर पर खड़े जिम्नोस्पर्म डगलस फर, क्रिसमिस ट्री और देवदार में नहीं पाए जाते। (स्रोत फीचर्स)