परख नली शिशुओं के साथ अनिश्चितता की एक और परत जुड़ गई है। प्रयोगशालाओं में अंडों और भ्रूण को तरल माध्यम में रखा जाता है। इस तरल माध्यम के संगठन से तय होता है कि प्रक्रिया कितनी सफल होगी और बच्चे का स्वास्थ्य कैसा रहेगा।
इस तरल पदार्थ को कल्चर माध्यम कहते हैं। इसका संगठन एक व्यापारिक राज़ होता है। कंपनियां यह तो बताती हैं कि उन्होंने अपने कल्चर माध्यम में क्या-क्या मिलाया है मगर उनके अनुपात नहीं बतातीं। इसलिए चिकित्सकों और भ्रूणविज्ञानियों के लिए यह तय करना मुश्किल भरा काम होता है कि कौन-सा कल्चर माध्यम इस्तेमाल करें।
नेदरलैण्ड के मास्ट्रिख्ट युनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के जॉन डूमोलिन लंबे समय से कल्चर माध्यम के ज़रिए भ्रूण के विकास पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर शंकित थे। उन्होंने अपने साथियों के साथ 2010 में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया था कि दो तरह के कल्चर माध्यमों में आईवीएफ की मदद से जन्मे बच्चों के वज़न में काफी अंतर होता है।
तब से कई अध्ययनों में परस्पर विरोधी परिणाम मिले हैं। इसके चलते डूमोलिन और उनकी टीम ने कल्चर माध्यमों के व्यवस्थित परीक्षण किए।
डूमोलिन की टीम ने नेदरलैण्ड के कई फर्टिलिटी क्लीनिकों में टीम भेजी। वहां उन्होंने 836 जोड़ों को वालंटियर करने के लिए सूची बनाई। ये सभी जोड़े वैसे भी आईवीएफ इलाज करवाने वाले थे। इनमें से प्रत्येक जोड़ी को नेदरलैण्ड में व्यापक तौर पर इस्तेमाल होने वाले दो कल्चर माध्यमों में से किसी एक माध्यम से आईवीएफ किया गया।
टीम ने पाया कि इनमें से एक कल्चर माध्यम स्वस्थ भ्रूण बनाने में बेहतर था बजाय दूसरे के। इस माध्यम में ज़्यादा जीवनक्षम भ्रूण बनाए जा सके, कम मर्तबा प्रक्रिया करनी पड़ी और गर्भधारण की संभावना ज़्यादा रही।
डूमोलिन ने इस अध्ययन में शामिल क्लीनिक्स को इस अध्ययन के बारे में बता दिया गया है। उनका कहना है कि इस अध्ययन के आधार पर उन सभी क्लीनिक्स ने इस कल्चर माध्यम पर रोक लगा दी है।
लेकिन जो बेहतर माध्यम था उसके माध्यम से जन्मे बच्चों का वज़न कम रहा। हालांकि अंतर बहुत कम था और इसका उनके स्वास्थ्य पर प्रभाव नगण्य ही होगा। लेकिन उनका कहना है कि यदि कल्चर माध्यम वज़न में अंतर पैदा कर सकता है तो देखना होगा कि और क्या-क्या कर सकता है? 20 या 30 सालों बाद क्या हो सकता है?
एक अन्य शोध में देखा गया है कि चूहे के भ्रूण का रासायनिक पर्यावरण भ्रूण के डीएनए पर आनुवंशिक चिंह छोड़ सकता है जिसका असर चूहों के जीन्स पर बाकी जीवन में रहता है। एक अन्य टीम ने यह भी देखा है कि कल्चर माध्यम के चुनाव से लड़का या लड़की होने की संभावना भी बदलती है।
शोधकर्ताओं को लगता है कि कंपनियों द्वारा कल्चर माध्यम की जानकारी उजागर न करना अनुचित व अस्वीकार्य है और इस स्थिति को बदला जाना चाहिए। (स्रोत फीचर्स)