नवनीत कुमार गुप्ता
असम राज्य की राजधानी गुवाहाटी में एक अभिनव पहल करते हुए गांगेय डॉल्फिन को गुवाहाटी का शहरी जीव चुना गया है। इस प्रकार गुवाहाटी भारत का पहला ऐसा शहर बना है जिसने गांगेय डॉल्फिन को शुभंकर के तौर पर चुना है। इसे स्थानीय भाषा में सिहु के नाम से जाना जाता है।
यह चुनाव ज़िला प्रशासन द्वारा जनमत संग्रह के माध्यम से किया गया जिसमें करीब 60,000 लोगों ने भागीदारी की। तीन महीने तक इस सर्वे में ऑनलाइन वोटिंग की गई। पूरी प्रक्रिया को कामरूप ज़िला प्रशासन के साथ असम वन विभाग, राज्य जैव विविधता बोर्ड और एक गैर सरकारी संस्था हेल्प अर्थ ने संयुक्त रूप से संपन्न कराया।
नदी पारिस्थितिकी तंत्र में जंगल के बाघ के समान शीर्ष पर विद्यमान होने के कारण स्तनधारी जीव डॉल्फिन का संरक्षण आवश्यक है। नदी आहार श्रृंखला में डॉल्फिन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह हानिकारक कीड़े-मकोड़ों के अंडो को भी खाती है। इस प्रकार डॉल्फिन जल को स्वच्छ रख कई जलजनित बीमारियों को फैलने से रोकती है।
हाल ही में एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई थी कि ब्रह्मपुत्र नदी में गांगेय डॉल्फिनों की संख्या 2000 से भी कम रह गयी है। असल में भारत में डॉल्फिन का शिकार, दुर्घटना और उसके आवास से की जा रही छेड़छाड़ इस जीव के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगाए हुए है। डॉल्फिन स्वच्छ व शांत जल क्षेत्र को पसंद करने वाला प्राणी है। लेकिन मशीनीकृत नावों जैसी मानवीय गतिविधियों से नदी में बढ़ रहा शोर इनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।
डॉल्फिन के आवास क्षेत्रों से की जा रही छेड़छाड़ (जैसे बांधों का निर्माण और मछली पालन) से डॉल्फिन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। बढ़ती सैन्य गतिविधियां, तेल और गैस शोध कार्य से समुद्र में फैलते ध्वनि प्रदूषण से डॉल्फिन भी अछूती नहीं रही है। जलवायु परिवर्तन से भी डॉल्फिन की संख्या लगातार कम होने वाली है। जल में बढ़ता रासायनिक प्रदूषण इनकी जीवन क्षमता पर असर डाल रहा है।
जहां दो दशक पूर्व भारत में इनकी संख्या 5000 के आसपास थी वहीं वर्तमान में यह संख्या घटकर करीब डेढ़-दो हज़ार रह गई है। ब्रह्मपुत्र नदी में भी जहां 1993 में प्रति सौ किलोमीटर क्षेत्र में औसत 45 डॉल्फिन पाई जाती थी वहीं यह संख्या 1997 में घटकर 36 रह गई।
डॉल्फिन का शिकार अधिकतर उसके तेल के लिए किया जाता है। अब वैज्ञानिक डॉल्फिन के तेल की रासायनिक संरचना जानने का प्रयत्न कर रहे हैं ताकि कृत्रिम तेल उपलब्ध करवाकर डॉल्फिन का शिकार रोका जा सके। भारत में डॉल्फिन के शिकार पर कानूनी रोक लगी हुई है। हमारे देश में इनके संरक्षण के लिए बिहार राज्य में गंगा नदी में विक्रमशीला डॉल्फिन अभयारण्य बनाया गया है जो सुल्तानगंज से लेकर कहलगांव तक के 50 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। वैश्विक स्तर पर भी डॉल्फिन के संरक्षण के प्रयास जारी हैं। इसके संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की सहयोगी संस्था ‘व्हेल और डॉल्फिन संरक्षण सभा’ ने इस बुद्धिमान जीव के प्रति जागरूकता फैलाने और इसके संरक्षण के उद्देश्य से वर्ष 2007 को ‘डॉल्फिन वर्ष’ के रूप में मनाया था। (स्रोत फीचर्स)