Sandarbh - Issue 149 (November-December)
सिकल सेल एनीमिया: भाग 2 - अंजु दास मानिकपुरी [Hindi, PDF]
सिकल सेल एनीमिया पर अंजु दास के लेख के पहले भाग (संदर्भ अंक-146) में हमने पढ़ा था कि यह बीमारी क्या और क्यों होती है तथा इसके संक्रामक होने-ना होने पर भी चर्चा की गई थी। लेख के इस दूसरे भाग में, अंजु इस बीमारी के निदान और इलाज पर बात करती हैं। इसमें न सिर्फ उपचार के तरीकों पर रोशनी डाली जाती है, बल्कि इसके सामाजिक पहलुओं को भी उजागर किया जाता है।
आकाशीय पिण्डों की गति की व्याख्या: भाग 3 - उमा सुधीर [Hindi, PDF]
पृथ्वी सूर्य के इर्द-गिर्द चक्कर लगाती है। यह हम कैसे जानते हैं? क्या किन्हीं सरल अवलोकनों के ज़रिए इसकी खोजबीन की जा सकती है? इन अवलोकनों के दौरान हम आकाश में क्या देखने की अपेक्षा कर सकते हैं? साथ ही, वे कौन-सी गड़बड़ियाँ थीं जो तब सुलझ गईं जब हमने भू-केन्द्रित मॉडल को छोड़कर सूर्य-केन्द्रित मॉडल अपना लिया? इन सब सवालों के जवाबों के लिए, आकाशीय पिण्डों पर उमा सुधीर के लेखों की शृंखला की इस कड़ी के लेख को पढ़िए।
डेनिस सलिवन, टोपोलॉजी और बेहतर गणित शिक्षण की दरकार - अजय शर्मा [Hindi, PDF]
गणित की एक ऐसी शाखा जिसमें ज्यामितीय आकृतियों के उन गुणों का अध्ययन किया जाता है जो उन आकृतियों के रूपान्तरित होने के बाद भी संरक्षित रहते हैं – टोपोलॉजी। अध्ययन के इस लगभग नवजात विषय का उपयोग अब राजनीतिक चुनावों की न्यायसंगतता जाँचने के लिए भला कैसे किया जाता है? कौन हैं डेनिस सलिवन जिनके बेमिसाल योगदान से इस विषयक्षेत्र के विकास में नई गति आ गई? और क्या कारण हैं कि आम तौर पर भारत में गणित शिक्षण दुनिया को समझने की जिज्ञासा जगाने की बजाय एक डरावने मंज़र-सा नज़र आता है? अजय शर्मा का यह लेख ऐसे कई सवालों पर रोशनी डालता है और गणित, शिक्षण व दुनिया से विस्मित होने को उद्दीपित करता है।
मैं टेलीफोन हूँ - हरिशंकर परसाई [Hindi, PDF]
कल्पना कीजिए, आज के सामाजिक जीवन में टेलीफोन की गैर-मौजूदगी की। मुश्किल है न? अब ज़रा सोचिए, कुछ डेढ़ सौ साल पहले के सामाजिक जीवन में उसी टेलीफोन के होने की कल्पना करना कितना मुश्किल रहा होगा। यह कथा है टेलीफोन के आविष्कार और आविष्कारक की, टेलीफोन की ही ज़ुबानी। पढ़िए हरिशंकर परसाई की अपनी कलम से लिखे इस दुनिया बदल देने वाले यंत्र के इतिहास और विकास के बारे में।
ऐंग गाँव की चेंग कथाएँ: भाग 1 - माधव केलकर [Hindi, PDF]
यह आम बात है कि शिक्षक प्रशिक्षणों में शिक्षकों को अक्सर ‘रिफ्लेक्टिव रिपोर्ट’ लिखने के लिए कहा जाता है। लाज़मी भी है, यदि हम शिक्षार्थियों में समीक्षात्मक चिन्तन का विकास चाहते हैं, तो अलबत्ता शिक्षकों को उनके शिक्षण-अनुभवों को भी समीक्षात्मक नज़रिए से देखना होगा। मगर यदि महज़ ‘क्या हुआ-क्या नहीं हुआ’ से लदी जानकारियाँ रिफ्लेक्टिव रिपोर्ट नहीं हैं, तो भला यह क्या बला है? माधव के ऐंग गाँव की चेंग कथाएँ ऐसे उदाहरणों से भरी हैं जो सीधे-सटीक शब्दों में शिक्षकों को रिफ्लेक्टिव रिपोर्ट पर रिफ्लेक्ट करने को मजबूर करें।
बालनाटक लिखते हुए… - उपासना चौबे [Hindi, PDF]
बच्चों के लिए लिखना किस हद तक बड़ों के लिए लिखने से भिन्न है? बाल साहित्य, और खासकर बाल नाटक की क्या खूबियाँ होती हैं जो उसके असर और उसके मज़े को इतना अलग बनाती हैं? बच्चों के जीवन में नाटक कब कदम रखता है? और किस तरह उसका उपयोग बच्चे के व्यक्तित्व-विकास के लिए एक टूल के तौर पर किया जा सकता है? ऐसे ही कुछ सवालों और बच्चों की दुनिया पर अन्तर्दृष्टियाँ पेश करता है यह लेख।
किताब-कॉपी वाली परीक्षा - कालू राम शर्मा [Hindi, PDF]
खोजबीन का आनन्द इस बार परीक्षाओं के नज़दीक आ चुका है – बोर्ड परीक्षाओं के नज़दीक। बच्चे अचरज में हैं कि भला परीक्षा में किताब-कॉपी ले जाने की छूट कैसे! परीक्षाओं को लेकर बच्चों के मन का भय, और उससे निपटते मास्साब व बाल वैज्ञानिक की परीक्षा – बड़ा दिलचस्प समीकरण है। होविशिका की परीक्षा प्रणाली व प्रक्रिया को बखूबी बयान करता है कालू राम का यह लेख।
वापसी: भाग 2 - सतीश बलराम अग्निहोत्री [Hindi, PDF]
उत्क्रान्ति पर शोध कर रहे प्रोफेसर शैलायन एक सुबह उठते हैं तो खुद को एक बन्दर के रूप में पाते हैं। पहले भाग से कूद-फाँद करता हुआ यह बन्दर कहानी के दूसरे और अन्तिम भाग में आ पहुँच है, जहाँ उसके ओलम्पिक खेलों में भाग लेने की कोशिशों के पीछे और भी कई लोगों की मौकापरस्त कोशिशें शामिल हो गई हैं। शैलायन की निजी और सामाजिक ज़िन्दगी के बीच तालमेल डगमगाने लगा है। ऐसे में, यह उत्क्रान्तित बन्दर किस ओर कूद लगाएगा – पढ़िए सतीश बलराम अग्निहोत्री की इस कहानी में।
समुद्र में चक्रवात क्यों बनते हैं? – सवालीराम [Hindi, PDF]
समुद्र में चक्रवात बनते हैं, मगर क्यों? और यदि इसके पीछे पृथ्वी का घूर्णन और समुद्री सतह के पानी का वाष्पीकरण शामिल है, तो फिर रोज़ाना चक्रवात क्यों नहीं बनते? जानिए इन सवालों के जवाब, इस बार के सवालीराम में।