Sandarbh - Issue 147 (July-August 2023)
प्रयोग करके पौधों को जानें – एक कार्यशाला - किशोर पंवार [Hindi, PDF]
पौधों को अपना खाना बनाने के लिए किन कारकों की ज़रूरत होती है? पानी, हवा और सूर्य का प्रकाश? पर आखिर यह प्रक्रिया होती कैसे है? इस लेख में, किशोर पंवार ने एक कार्यशाला में इस प्रक्रिया को समझने के लिए किए गए कुछ सरल प्रयोगों को बखूबी समझाया है। जड़ों से पत्तियों तक पानी कैसे पहुँचता है, पत्तियों का हवा से कैसा रिश्ता है, रोशनी के मिलते ही पत्तियों में खाना बनना कैसे शुरू हो जाता है – यह सबकुछ सरल-से प्रयोगों से करके सीखें, जानें।
आकाशीय पिण्डों की गति की व्याख्या: भाग 1 – उमा सुधीर [Hindi, PDF]
पृथ्वी गोल है। गोल ही है न? हम यह कैसे जानते हैं? अलबत्ता, इसे कई तरीकों से प्रमाणित किया जा चुका है। कैसा रहेगा यदि हम भी कुछ साधारण-सी गतिविधियों के ज़रिए इन विचारों और इनकी अवधारणाओं को न सिर्फ प्रमाणित कर सकें, बल्कि ज्ञान-निर्माण के सम्प्रेषण में भी उपयोग कर सकें? उमा सुधीर का यह लेख, जोकि खगोलशास्त्र की अवधारणाओं पर बात करते लेखों की श्रृंखला की पहली कड़ी है, न सिर्फ इन विचारों के इतिहास पर बात करता है, बल्कि इनकी समझ बनाने के लिए कुछ गतिविधियाँ भी साझा करता है।
शिक्षक प्रशिक्षण – कालू राम शर्मा [Hindi, PDF]
क्या शिक्षक को प्रशिक्षण की ज़रूरत होती है? मास्साब शिक्षक प्रशिक्षण से जुड़े अपने पुराने अनुभव के चलते होविशिका के शिक्षक प्रशिक्षण में भाग लेने से कतराने लगे। पर आखिर जब उन्हें प्रशिक्षण में जाना पड़ा, तो वे उसके गहरे आयामों पर गौर किए बिना न रह सके। ‘खोजबीन का आनन्द’ की यह अगली कड़ी, कालू राम की पैनी कलम से, शिक्षकों के प्रशिक्षण से जुड़े कई प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष पहलुओं, जैसे प्रशिक्षण शिविर की व्यवस्था, प्रशिक्षण का माहौल, शिक्षक की भूमिका, प्रशिक्षण की निरन्तरता वगैरह, पर रोशनी डालती है।
वह अब भी घुमतो है! – हरिशंकर परसाई [Hindi, PDF]
कल्पना कीजिए सत्रहवीं सदी के इटली में एक ऐसी वैज्ञानिक खोज करना जो धर्म की सत्ता और मान्यता के विरुद्ध जाती हो। इस (दुः)साहस के निहितार्थ गैलीलियो की कहानी में अच्छी तरह देखे जा सकते हैं। हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित, सत्य की तलाश के अपने पैमाने बनाने वाले इस जिज्ञासु और ज़िद्दी वैज्ञानिक की यह कहानी, जय-पराजय, दृढ़ता-विवशता, न्याय-धर्मान्धता जैसे गूढ़ मसलों पर सोचने के लिए धकेलती है।
असावधानी की समझ – उमेश चौहान [Hindi, PDF]
सावधान! एक श्रेणी क्रम में दो बल्बों को जोड़ने पर एक बल्ब जल रहा था और एक नहीं। क्या कारण रहा होगा? एक प्रशिक्षण शिविर में विद्युत मोटर बनाने का एक प्रयोग कुछ यूँ असफल हुआ कि किसी भी समूह की विद्युत मोटर न घूमी। क्यों भला? किसी प्रयोग के सफल-असफल होने के पीछे ‘असावधानी’ कितना अहम किरदार निभाती है, इस पर उमेश चौहान का यह लेख बखूबी बात करता है।
क्या समुदाय और पालक सचमुच गैर-ज़िम्मेदार हैं? – यशोदा विश्वास [Hindi, PDF]
“मम्मी कहती हैं कि मटर का सीज़न तीन महीने का होता है, अभी मटर तोड़ने का काम करो बाकी फिर सालभर तो स्कूल ही जाना है।” इस प्रकार के कई कारणों से अक्सर बहुत-से बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। सतही तौर पर देखा जाए तो बच्चों के परिवार और समुदाय गैर-ज़िम्मेदार नज़र आ सकते हैं, पर क्या होता है जब कोई शिक्षक बच्चों के आर्थिक-सामाजिक पक्ष को समझने की कोशिश करती है? यशोदा विश्वास का यह सरल-सा नज़र आने वाला लेख, गहरे चिन्तन और चिन्ताओं की ओर ले जाता है। क्या किया जाए?
वो बच्चे हैं, उन्हें बात करने दो – राजाबाबू ठाकुर [Hindi, PDF]
बच्चों से बातचीत करने में क्या हर्ज़ है? क्या वे बस उतना ही सीख सकते हैं जो ‘हम’ उन्हें सिखाएँ? क्या बातचीत सीखने के सफर में शामिल नहीं हो सकती? ऐसे प्रस्थान-बिन्दुओं के मद्देनज़र, राजाबाबू का यह लेख कुछ बातचीतों के उदाहरणों से ऐसे कई पक्ष सामने लाता है जो एक शिक्षक को बच्चों के परिवेश से जुड़े ज्ञान को कक्षा में शामिल करने के कई मौके प्रदान कर सकता है। साथ ही, बच्चों और कक्षा के बीच की दूरी को कम करने में भी मददगार हो सकता है।
एक नया विद्यालय, नई कोशिश: बच्चों की नज़र से – फ़राह फ़ारूक़ी [Hindi, PDF]
शिक्षा की एक नई पहल छेड़ते इस स्कूल, पोखरामा फ़ाउण्डेशन अकैडमी, को इसके बच्चों की नज़र से देखना, इस स्कूल, गाँव और समाज के कई हाज़िर-ग़ैरहाज़िर पहलुओं को उजागर कर सकता है। ऐसी ही एक ज़बरदस्त कोशिश की है फ़राह फ़ारूक़ी ने अपने इस लेख में। हैरत और आशाओं से भरने वाला ब्योरा, जहाँ बच्चे-शिक्षक मिलकर बात करते हैं, सवाल उठाते हैं और समाधान खोजते हैं -- सामाजिक-आर्थिक ग़ैर-बराबरी, अनुशासन, जातिवाद, विविधता जैसे मसलों पर। ग़ौर फ़रमाइए।
जंगल का दाह – स्वयं प्रकाश [Hindi, PDF]
वनवासी मामा सोन, अपने समय के प्रख्यात धनुर्धर। वनवासियों और वन के बीच फलता-फूलता सन्तुलन। पर जंगल का सन्तुलन बिगड़ने लगता है राजकुमार के आने से। स्वयं प्रकाश की यह जलती कहानी जंगल से आती एक चीख है, उन राजकुमारों के मदमस्त पदचापों के विरुद्ध जो पूरे जंगल के विस्थापन और विनाश का कारण बनते हैं।
पुरुषों के कुर्ते में बटन दाईं तरफ और महिलाओं के कुर्ते में बटन बाईं तरफ क्यों होते हैं? – सवालीराम [Hindi, PDF]
पुरुषों के कुर्ते में बटन दाईं तरफ और महिलाओं के कुर्ते में बटन बाईं तरफ क्यों होते हैं? इस बार के सवालीराम में, इस सवाल का सही-सही जवाब मिला हो-न-हो, अटकलें ज़रूर मिलतीं हैं, जो अपने आप में मज़ेदार होने के साथ-साथ इतिहास, जेंडर-आधारित अन्तर और न जाने कितने विषयों पर सोचने के लिए मजबूर करती हैं।