विज्ञान-गल्प

जेर्राड वीलन

वे तो फकत दुनिया की खूबसूरती निहारने के लिए रुके थे, लेकिन तभी ऍलन ने अफ्रीका का एक छोटा-सा चुग्‍गा गटक लिया और वह अभी अमेरिका को चुगने वाला ही था कि मिसेज़ मार्ली आ धमकीं और वे लोग धर लिए गए। डैड, जो अब तक ऍलन के निवाले न देखने का स्‍वांग कर रहे थे, अचानक से अपने बच्‍चों को आँखें तरेर देखने लगे। मिसेज़ मार्ली रुँधी हुई आवाज़ में बोलीं। “बेचारे गरीब लोग!” वह बोलीं। “छोड़ो भी गरीब बेचारों को!”
वह बड़ा गोल-गोल केक खूबसूरत था। सैली ऍन को लगा कि इतना खूबसूरत केक भला खाएँ तो खाएँ कैसे। उसे रंग-बिरंगी आइसिंग से कुछ इस तरह सजाया गया था कि वह हूबहू पृथ्‍वी ही लग रहा था। मिसेज़ मार्ली ने घण्टों लगाए थे, उस पर एक स्‍कूल ऍटलस उकेरने के लिए और तिस पर सब महाद्वीपों की शक्‍ल एकदम सही से बनी थी।
“हम निश्चित रूप से यह नहीं जानते कि ये लोग कहाँ के हैं,” उन्‍होंने समझाया। “इसके बावजूद, हमसे कहीं ज्‍़यादा अच्‍छे से वे दुनिया का हाल समझ पाएँगे। हम नहीं चाहते कि उन्‍हें हम जाहिल लगें। वे अपमानित महसूस कर सकते हैं।”

यह सच था। सैली ऍन के पापा सहमत हुए। निन्दाएँ इतनी महत्‍वपूर्ण होती हैं कि वे यूँ ही ज़ाया नहीं की जा सकतीं – अगर आप किसी की बुराई करना चाहते हैं तो आपको वह सोद्देश्‍य ही करना चाहिए। निस्‍सन्देह मिसेज़ मार्ली ऐसा नहीं सोचती थीं – उन्‍हें लोगों को नाराज़ करना बिलकुल नहीं भाता था। वे बहुत प्‍यारी महिला थीं। केक पर सब महाद्वीपों की शक्‍ल एकदम सही-सही उकेरने में उन्‍होंने जो समय लगाया था, वह उनकी खासियत थी – लोग कहते, कोई भी जानकारी मिसेज़ मार्ली के लिए छोटी-मोटी नहीं थी। केक बनाने को उन्‍होंने एक कला का रूप दिया था।
“अमेरिका टेस्‍टी लग रहा है,” ऍलन बोला। “वो आइसिंग बादाम की है या सादी?”
इस तरह से मिसेज़ मार्ली का ध्‍यान भटकाने की कोशिश नाकाम रही। मीठे को लेकर ऍलन के चस्‍के को वे खूब जानती थीं। वे आईं और फ्लोरिडा को ध्‍यान से देखने लगीं। वह अब, तब के मुकाबले थोड़ा कमतर दीख रहा था जब वह उनके किचन से बाहर लाया गया था।
“अरे तुमने मायामी खा लिया,” उन्‍होंने शिकायती लहज़े में ऍलन से कहा। लेकिन ऍलन भी कम खुदा न था, पैदाइशी झूठा जो ठहरा। अपने समूचे पर आहत भोलेपन में उसने अपने पर लगे इस इल्‍ज़ाम से इन्कार किया।

“तुम जानते हो ऍलन,” पापा ने प्रशंसा भाव से कहा, “एक दिन तुम एक पहुँचे हुए राजनेता बन सकते हो।”
यह जानते हुए कि राजनेताओं को लेकर उसके डैड क्‍या सोचते हैं, ऍलन टकटकी लगाकर उन्‍हें घूरने लगा। तिस पर, उसके डैड ने उसे समझाया। “शॉन मॉर्गन को देखो,” वे बोले। “जब हम स्‍कूल में साथ पढ़ते थे तब वह हर आसान सवाल का गलत जवाब देता और सब मानने लगे कि वह मूर्ख है। लेकिन फिर जब वह राजनीति में गया तब हमने जाना कि चाहे जो हो, बस वह सच नहीं बोल सकता था। एक ऐसा जन्‍मजात असत्‍यवादी जो पला ही ऐसे था जैसे सबकुछ उसी का हो। और देखो, कितना कामयाब है वह!”

***
शरणार्थियों का स्‍वागत करने वाली समिति ने ‘अनुदार भवन (परोकिअल हॉल)' में एक बड़ी पार्टी आयोजित की थी, और नवागन्तुकों के लिए रखे गए उस विशाल भोज में वह विश्‍व-केक आकर्षण का केन्द्रबिन्दु रहने वाला था। किसी को न पता था कि अजनबी लोग क्‍या खाते हैं, सो ऐन कौन-सा खाना परोसा जाए, इस बात को लेकर कुछ चिन्ता थी।
“केक्‍स!” मिसेज़ मार्ली तपाक-से बोली थीं, मानो यह बात तो एकदम साफ थी। “बहुत सारे केक! केक सबको भाते हैं, यह बात पक्‍की है!”
“अच्‍छे तो लगते हैं, मिसेज़ मार्ली,” सैली ऍन के डैड बोले। “लेकिन कभी-कभार, वे उसके साथ कुछ और भी खाना चाहते हैं - एक बदलाव के बतौर।”
मिसेज़ मार्ली के लिए केक हर चीज़ का समाधान थे; डैड कभी-कभार तुनक जाते जब केक-पेस्‍ट्री को लेकर उस बुढि़या की सनक उन्‍हें खिजाने लगती। लेकिन ऍलन को तो उस आइडिया में कोई खराबी न दिखी, बल्कि मम्‍मी - जो कि मिसेज़ मार्ली को पसन्द करती थीं - भी उन्‍हीं का पक्ष लेतीं।

“हो सकता है केक ही हर चीज़ के समाधान हों,” मम्‍मी कहतीं। “आपने कभी सोचा है इस बारे में? कुछ लोग जैसे जवाब देते हैं, उनकी तुलना में तो यह समाधान बिलकुल भी बेहूदा नहीं।”
“जैसे कि?” डैड ने भी अदेर ही अपना सवाल जड़ दिया।
मम्‍मी को चैलेंज करना कतई खतरे से खाली न था। और लो वे शुरू हो गईं अपनी उंगलियों पर हर बात को लेकर कुछेक लोगों के जवाबों को दर्ज करने।
“युद्ध,” वे बोलीं। “हत्‍या। जेल। फाँसी...”
तुरन्त ही डैड को सम्पट पड़ी कि वे भी भला किससे उलझ रहे हैं, सो उन्‍होंने मरता क्‍या न करता की मुद्रा में अपना हाथ उठा मम्‍मी को चुप कराने की कोशिश की। “तुम बिलकुल ठीक कह रही हो,” वे बोले। “मैं केक्‍स ले लूँगा।”
“मैं भी,” ऍलन भी बीच में टपक पड़ा। “एक जैम डोनट प्‍लीज़, और एक अॅक्‍लेअर।”
ठण्डी साँस ले डैड बोले, “तुम्‍हें पता है कि हम टीचर लोग खुद अपने ही बच्‍चों के साथ विफल होते हैं?”
“यहाँ तक आते-आते मुझे इसका काफी कुछ अन्दाज़ा हो गया था।”
***

एक तरह से तो, भोज में परोसी जाने वाली चीज़ों का कोई मतलब ही नहीं था। चीज़ें क्‍या, बुफे पार्टी ही अपने आप में महत्‍वपूर्ण थी – कुल जमा लब्‍बोलुआब यह था कि उस जगह को उन तमाम चीज़ों से भर दो जिन्‍हें स्‍थानीय लोग ‘अच्‍छी चीज़ें' मानते हैं, और फिर तमाम इन चीज़ों को उन बदकिस्‍मत अजनबियों के सामने परोसो जो उनके बीच आ धमके थे। नवागन्तुकों के लिए सोचा-समझा सन्देश था, “देखो, यह हमारा पोषण है। ये सब व्‍यंजन हमें अच्‍छे लगते हैं, और हमने ये खास तौर पर आपके लिए बनाए हैं, और ये सब हम आपको प्रचुर मात्रा में देकर हमारे देश में आपका स्‍वागत कर रहे हैं।” लेकिन हम उन्‍हें खराब चीज़ें परोसें, यह गवारा न था। सैली ऍन के पापा ने बताया कि जिस मीटिंग में यह तय होना था कि पार्टी में रखी जाने वाली ‘अच्‍छी चीज़ें' असल में क्‍या होंगी, उस मीटिंग में बड़ा मज़ा आया। शराब और सूअर की उबली टांगों को तो तुरन्त बाहर रख दिया गया। दरअसल, परदेसियों के ज़ायके के बारे में जानकारी न होने के चलते, समिति अन्तत: इस नतीजे पर पहुँची कि सिर्फ वही आइटम रखे जाएँ जो तकरीबन हरेक को पसन्द आते हैं – मसलन केक और बिस्किट्स, जैसा कि मिसेज़ मार्ली का कहना था। हाँ, दूसरी चीज़ें भी रहेंगीं ज़रूर – किस्‍म-किस्‍म का भुना मांस, और शाकाहारियों के लिए सब्जि़याँ, आइसक्रीम और चॉकलेटें, चाय और कॉफी, दूध और शिकंजी आदि-आदि। इस निर्णय तक पहुँचने में समिति को चार घण्टे से भी ज्‍़यादा का समय लग गया, इसके बावजूद समिति के एक-ठो अति-उत्‍साही सदस्‍य इस मसले पर अभी और बातचीत करना चाहते थे।

तिस पर, सैली ऍन के डैड उनसे बोले थे, “ठीक है, और अगर वे नहीं खाते तो हम जीम लेंगे। काश, वे सारे व्‍यंजन अभी इस वक्‍त यहाँ होते – उनकी बातें करते-करते मुझे तो भूख लगने लगी है।”
वा‍कई, जब वे घर लौटे तो इस कदर भूखे थे कि सैली ऍन की माँ ने उनके लिए चिप्‍स तल दीं, और यही नहीं, उनने ऍलन की चिकन स्क्विगल्‍स की आपातकालीन रसद तक डकार ली। लेकिन ऍलन ने भी बुरा न माना, क्‍योंकि यह सब किसी अच्‍छे मकसद के लिए हो रहा था। इसके पहले डैड ने कभी चिकन स्क्विगिल्‍स तो खाए ही नहीं थे, सो पहली बार खाने से पहले उन्‍होंने काँटे को थामे रखा और उसे घूरते रहे ध्‍यान से। इसके बाद फ्रीज़र से उसका पैकेट निकाल वे उस पर छपी सामग्री सूची को गौर से पढ़ने लगे।
“हे भगवान,” तिस पर तनिक हैरान-से ध्‍वनित हो वे बोले। “कितनी हैरत की बात है कि हम अपने बच्‍चों को यह सब कचरा खिलाते हैं।”
लेकिन फिर भी वे न सिर्फ माँ द्वारा बनाए गए सारे स्क्विगल्‍स भकोस गए, और तिस पर कुछ-कुछ निराश भी दिखे कि अब वे और नहीं बचे थे।
***

बेशक, सब लोगों को बाहर वालों के वहाँ आने की बात अच्‍छी नहीं लग रही थी। वह शहर बड़ा तो नहीं था, लेकिन वह इन्सानों की नगरी थी, और जहाँ भी इन्सान होंगे, वहाँ शंकालु मन भी होंगे और स्‍वागत करने वाले भी। कुछ लोग बाहर निकल, नई चीज़ों का स्‍वागत करते हैं; जबकि बाकी घर-घुस्‍सू हो जाते हैं, क्‍योंकि अपनी सिकुड़ी-सिमटी दुनिया में वे ज़रा भी बदलाव नहीं देखना चाहते। अजनबियों को लेकर अनेक प्रकार की बुरी-भली कानाफूसियाँ भी हुईं। आखिर यहाँ आ धमकने और नगर के वैसे भी सीमित संसाधनों का उपयोग करने का हक उन्‍हें भला किसने दिया था। क्‍या कोई जानता है उनकी अजीबोगरीब आदतों के बारे में, या फिर कौन-सी धूल-गर्दी और बीमारियाँ वे अपने साथ यहाँ ला सकते हैं? कुछ का कहना था कि वे तो बस यहाँ मुफ्तखोरी करने के लिए आ रहे हैं। कुछ का कहना था कि उनमें शामिल ज्‍़यादातर लोग तो ऐसे हैं जो अपने यहाँ अपराधी रहे आए हैं – ऐसे लोग जिन्‍होंने पुलिस की नाक में दम कर रखा है, और जो अपने साथ यहाँ भी अपराधों की झड़ी लेकर आएँगे। सैली ऍन के डैड के मुताबिक, उन सब शिकायतों का निचोड़ बस यह था कि वे अजनबी लोग, हमसे अलग लोग हैं।
और वे भला अलग क्‍यों न होंगे? वे जानना चाहते थे। “वे एकदम नई दुनिया में आ रहे हैं। और हममें भला कौन सुरखाब के पर लगे हैं कि हम जैसा न होना गुनाह हो गया?”
सैली ऍन के पापा स्‍थानीय सेकण्डरी स्‍कूल में पढ़ाते थे, और अपनी युवावस्‍था में उन्‍होंने बहुत यात्राएँ की थीं। उनके पास उन अफवाहों और इस समय उनके घर-नगर पधारे शरणार्थियों की नुक्ताचीनी के लिए बिलकुल समय न था। आम तौर पर तो वे इस बड़बड़ाहट को हँसी में उड़ा देते, पर हमेशा नहीं। वास्‍तव में, यह प्रसंग उन थोड़े प्रसंगों में आता था जब उनके बच्‍चों ने उनका पारा चढ़ते हुए देखा था, और निश्‍चय ही दोनों ने अपने-अपने ढंग से इसके लिए उन्‍हें सराहा भी था।

“इन बेचारे बदकिस्‍मतों को वही सारी गालियाँ दी जा रहीं थीं, जो कभी खुद आइरिशों को दी गईं थीं,” वे कहते। “यह देश चाहे जिसने चलाया हो, हमने अपने गरीबों और भूखों को यहाँ-वहाँ, चाहे जहाँ-जहाँ बाहर भेजा है, और फिर हमने उनके हाल बेहाल की परवाह किए बिना, उन्‍हें बहिष्‍कृत किया है। अपनी गन्दगी और बीमारियों से लदा, अपने अजीब खान-पान और अपनी अजीबोगरीब आदतों वाला बदमाश आइरिश - जानते हो, मेरे समय के इंग्‍लैंड और अमेरिका तक में मैं यही सारी बातें सुना करता था। और अब यहाँ, कुछ जड़-उखड़े बदकिस्‍मत हमसे किंचित उस करुणा की गुहार लगा रहे हैं, जो उन दूसरी जगहों ने हमारे इन लोगों को दिखाई, और उधर हममें से ही कोई है जो वही घिसी-पिटी, फालतू बकवास किए जा रहा है जो कभी हम पर ही बरसा करती थी।”
सैली ऍन को फख्र महसूस होता जब भी वे ऐसी बातें किया करते। यहाँ तक कि ऍलन भी - जो यह सोचता कि उसे इस उम्र में किसी भी बात से प्रभावित नहीं होना है (केक की बात अलग है) – यह बात मानता था कि अपने इस रंग में उनके पिता प्राय: प्रभावशाली होते हैं। सैली ऍन का खयाल था कि ‘प्रभावशाली' से ऍलन का आशय था कि उनके पिता ‘साहसी' थे। ऍलन उससे दो बरस बड़ा था, पर सैली ऍन को अब यह लगने लगा था कि वयस्‍क होने में लड़कों की रफ्तार ज़रा कम होती है – हालाँकि हो सकता है ऐसा सिर्फ ऍलन के साथ हो।
उसने अपनी माँ से पूछा, “क्‍या मानव नर में मस्तिष्‍क का विकास सबसे आखिर में होता है?”
“मैं नहीं जानती,” माँ बोलीं। “मैं तो तुम्‍हारे पिता का दिमाग विकसित होने का इन्तज़ार करूँगी, और जब वह विकसित हो जाएगा, मैं तुम्‍हें बताऊँगी।”
“थैंक्‍स, मम्‍मी,” सैली ऍन बोली। कभी-कभी माँएँ काम आ जातीं हैं।

शरणार्थी-विरोधी मण्डली के खिलाफ डैड अपनी भड़ास केवल निजी स्‍तर पर ही नहीं निकाला करते थे। बल्कि जब भी वे किसी को शरणार्थियों की बुराई करते हुए सुन लेते, वे उनसे इस बारे में बात करते, और वे उनसे गुस्‍सा भी हो लेते थे – उससे भी ज्‍़यादा गुस्‍सा जितना वे अपने बच्‍चों के सामने करते। एक बार, सैली ऍन को पता चला कि वे तो बस उस गैराज मालिक, मैट मार्टिन से हॉर्सशू हॉटेल के लाउंज बार में भिड़ ही गए थे, समझो। मैट तो एक तरह से शरणार्थी-विरोधी मण्डली का स्‍वयम्भू प्रवक्‍ता बन गया था, यह सोच कि ऐसा करना शायद उसके किसी काम आए। लेकिन मैट मार्टिन धूर्त था, और इतना चालाक तो था कि खुद अपनी जितनी कद-काठी के आदमी से तो भिड़ पड़ता, लेकिन सैली ऍन के डैड तो अच्‍छे-खासे लहीम-शहीम थे, सो मैट ने मैदान छोड़ दिया। सैली ऍन को जब यह बात पता चली तो वह फख्र से फूली न समायी। अधिकांश समझदार लोगों की तरह उसे भी मैट मार्टिन रत्ती भर पसन्द न था। लोग कहते कि उसके सबसे अच्‍छे दोस्‍त भी मैट को पसन्द न करते थे। वह कुछ ज्‍़यादा ही चिकना-चुपड़ा और घुन्ना आदमी था। इस वाकये ने ऍलन को भी प्रभावित किया था – किसी कारण, उसकी एक चाह यह भी रही कि कोई तो हो जो मैट मार्टिन का जबड़ा तोड़ दे।

इस समूचे शरणार्थी मसले ने स्‍थानीय राजनेता, शॉन मॉर्गन को एक उलझन में डाल दिया था। जिस राजनैतिक दल से वह जुड़ा था, उसकी सरकार थी और उसने तय किया था कि अप्रवासियों को आकर नगर में बसना चाहिए। असल में तो, सरकार यह चाहती ही नहीं थी कि यह निर्णय उसे लेना पड़े, लेकिन यह एक विशेष प्रकरण था – अमरीकियों ने इस मामले में खास दिलचस्‍पी ली थी, और इसीलिए आइरिश सत्ताधारियों ने अप्रवासियों को अपने यहाँ शरण देने का निर्णय लिया था। अब खास तौर पर इस छोटे-से कस्‍बे को ही क्‍यों चुना गया था, इसके बारे में कोई नहीं जानता था। इस समाचार की घोषणा के कुछ दिनों बाद ही, सरकार ने घोषणा की कि एक बड़ी अमरीकी कम्पनी इस नगर में अपनी एक अनुसंधान संस्‍था स्‍थापित करना चाहती है, और उसके चलते वहाँ के लोगों को इतनी ज्‍़यादा नौकरियाँ मिलेंगी जितनी कि अब तक के समूचे इतिहास में वहाँ के लोगों को नहीं मिलीं थीं। सरकार को अगर इस बात की आशा रही होगी कि यह खबर सुन शिकायतगर खुश हो जाएँगे, तो उसे निराशा ही हाथ लगी।
“यह तो खालिस रिश्‍वतखोरी है,” मैट मार्टिन ने अकेले में शॉन मॉर्गन से कहा। “बेशक रिश्‍वतखोरी के खिलाफ मेरी कोई शिकायत नहीं, लेकिन ऐसा शायद नहीं होगा।”
***

लेकिन शरणार्थियों के आने का दिन नज़दीक आते आते ऐसा लगने लगा था कि कुछ-न-कुछ होकर रहेगा। सुवेशी अजनबियों के झुण्ड-के-झुण्ड नज़र आने लगे, और ‘अनुदार भवन (परोकिअल हॉल)' में सार्वजनिक सभाएँ होने लगीं जिनमें स्‍थानीय लोगों को शिक्षित किया जाता कि उनके बीच जल्‍द पधारने वाले नवागन्तुकों से वे किस तरह पेश आएँगे। ऐसी पहली सभा की घोषणा के वक्‍त हॉर्सशू हॉटेल के बार में मैट मार्टिन इसे लेकर खूब तुनक में था।
“वे हमें शिक्षित करना चाहते हैं!” वह झल्‍लाया। “हमें पट्टी पढ़ाने के लिए वे लोग शहर से कुछ दबंगियों को यहाँ भेजना चाहते हैं! तो मेरी बात अच्‍छे से सुन लो – मैट मार्टिन को तो वे न पढ़ा पाएँगे!”
तिस पर सैली ऍन की माँ बोलीं, “इससे ज्‍़यादा सच्‍ची बात उसने कभी न कही होगी। सब्‍बल के बल पर भी प्रोफेसर-सेना इस बन्द दिमाग के अन्दर तालीम न घुसेड़ सकी।”
वे सार्वजनिक सभाएँ भी अजीब कारोबार थीं। शुरुआत से ही उनमें काफी भीड़ रही, खास तौर पर बुज़ुर्ग महिलाओं की – बिंगो हॉल तो महीनों पहले जलकर भस्‍म हो गया था, सो वे खुश थीं कि गर्मी की इन लम्बी शामों में अड्डेबाज़ी करने की कोई-ठो जगह तो है उनके पास। उधर शिक्षक जो थे वे सब-के-सब सूट-बूट पहने ऐसे युवा थे जिन्‍होंने कभी मुस्‍कुराना न छोड़ा था और जो निहायत बेवकूफाना बातें करते थे, लेकिन उन बुढि़याओं को इससे कोई उज़्र न था। उन्‍हें तो अच्‍छी-खासी आदत थी तमाम लोगों की बकवास सुनने की, बल्कि उनमें से ज्‍़यादातर ने तो उन सुवेशित नौजवानों की तारीफ ही की।

“मैंने तो कभी इतने साफ-सुथरे लोग न देखे थे,” मिसेज़ मार्ली ने कहा। “अरे उनके तो जूतों तक से उठाकर खाना खाया जा सकता था।”
“अगर आप ऐसी होतीं तो,” सैली ऍन के डैड बोले। उन्‍हें ये शिक्षाप्रद बैठकें खास तौर पर पसन्द न थीं क्‍योंकि उनके अनुसार एक ऐसे व्‍यक्ति के नाते जिसे अपनी आजीविका के लिए दिन भर बकवास करना पड़ी हो, उनके लिए तो शाम के वक्त इस तरह की बकवास सुनना उनका सबसे आखिरी विकल्‍प होता। और सचमुच, थोड़े ही सत्रों बाद, कमोबेश हर कोई उनसे ऊबने लगा था। यह तो साफ था कि उन नौजवानों को भी नवागन्तुकों के बारे में किसी और के मुकाबले कुछ ज्‍़यादा मालूम न था, और वे तो बस कुछ आँयबाँय ही बके जा रहे थे। सिर्फ 96 बरस की बुज़ुर्ग मिसेज़ कूम्‍ब्‍स ही इस बड़बड़ से बेपरवाह नज़र आईं, शायद इसलिए कि वे एक खम्भे जितनी बहरी थीं। लेकिन मिसेज़ कूम्‍ब्‍स को भी उन नौजवानों की अविराम मुस्‍कुराहटों से परेशानी तो हुई ही।

“कोई भी इतना खुश नहीं हो सकता जब तक कि वह नाकारा न हो,” वे अपनी निकटतम पड़ोसन मिसेज़ मार्ली से बहुत ऊँची आवाज़ में कहतीं। “यह सामान्‍य नहीं है!”
“हो सकता है, यहाँ न हो, मैरी एलेन,” मिसेज़ मार्ली कहतीं। “हो सकता है शहर में यह स्‍वाभाविक हो!”
और जैसा कि वे उनसे कही गई हर बात का जवाब हर किसी को हर दम देती थीं, श्रीमती कूम्‍ब्‍स जवाब देतीं, “क्‍या बोली तुम? ज़रा-ज़ोर-से बोलो! तुम तो जानती ही हो कि मैं निपट बहरी हूँ।”
“मैं कैसे न जानूँगी, मैरी एलेन?” मिसेज़ मार्ली सब्र से बोलीं। “पिछले पच्‍चीस सालों से तुम हर दिन कम-से-कम दस दफे तो यह बात मुझे बताती रही हो।”
यह बात पूरी तरह से सच थी। हालाँकि, ऐसे लोग थे जिन्‍हें श्रीमती कूम्‍ब्‍स की इस छोटी-सी अक्षमता की भनक न थी – वे अपने वे नकली दाँत केवल खास मौकों पर ही लगाया करती थीं, जिनके बिना उनकी बातें समझ पाना कठिन था।
“तुम क्‍या बोलीं?” अब मिसेज़ कूम्‍ब्‍स बोलीं, “ज़ोर-से बोलो!”
***

तिस पर, अच्‍छा या बुरा, वो महान दिन अन्तत: आ ही गया, लग रहा था गोया सारा शहर उमड़ पड़ा हो चौक पर, शरणार्थियों को आते हुए देखने। उधर ‘अनुदार भवन' में लम्बी-लम्बी टेबलें भोजन के ढेर वाली परातों और मदिरा भरे पात्रों के बोझ तले धँसी जा रही थीं, और मिसेज़ मार्ली गृहिणी मण्डली की स्‍थानीय शाखा की स्त्रियों पर नज़र रखे हुए थीं क्‍योंकि वे छोटी-छोटी चीज़ों से कुछ ज्‍़यादा ही छेड़-छाड़ कर रही थीं। डैड, मम्‍मी और अच्‍छी जगह की तलाश में निकल लिए, भीड़ पहले से ही बाहर चौक पर जमा होने लगी थी। सैली ऍन और ऍलन ने देखा कि मिसेज़ मार्ली विश्‍व-केक को गर्व से उठाए हुए बाहर ले आईं और उन्‍होंने उसे मुख्‍य टेबल पर ‘गौरव के स्‍थान' पर रख दिया। ऍलन वहाँ रखे भोजन को ललचाई नज़रों से देखने लगा, तभी सैली ऍन ने अपनी कोहनी उसकी पसलियों में गड़ा दी।
“रुको!” वह बोली। “यहाँ तुम्‍हारी लार टपक रही है। वहाँ तुम्‍हें कुछ न मिलेगा – वे बुढि़याएँ बाज़ की मानिन्द निगहबानी कर रहीं हैं।”
ऍलन एक साइड टेबल पर
“मुझे लगता है,” सैली ऍन बोली, “किसी किस्‍म की गाय रही होगी, अपने पिछले जन्‍म में।”
ऍलन हॉल में रखे तमाम प्रकार के खाद्य पदार्थों को देख हैरान हो गया था। मिसेज़ मार्ली और उनके सहायकों ने खूब जमकर मेहनत की थी। लेकिन अन्तत:, ऍलन को भी मानना पड़ा कि उन शिकारी-आँखों वाली महिलाओं को लेकर सैली ऍन का नज़रिया सही था; तय समय से पहले एक मक्‍खी भी उस खाने तक नहीं पहुँच सकती थी। वे बाहर टपराने लगे, यह देखने के लिए कि कहीं कुछ हलचल हो रही है क्‍या। भीड़ में से दबी-दबी बातचीत की भनभनाहट आ रही थी, जो उन लोगों के हॉल में दाखिल होते ही एकदम तेज़ी-से बढ़ने लगी थी। चौक के एक सिरे पर एक मंच तैनात किया गया था, और उस पर शॉन मॉर्गन पूरी शान के साथ लाल रंग की प्‍लास्टिक की कुर्सी पर बिराजा हुआ था जबकि स्‍थानीय परिषद के सदस्‍य इस बात पर झगड़ रहे थे कि बची हुई कुर्सियों में से कौन किस कुर्सी पर बैठेगा। कुछ सीटें कुछ वरिष्‍ठ अमरीकियों के लिए आरक्षित थीं, पर वे अभी आए नहीं थे। चमचमाते जूते पहने उन सूटबूटधारी युवकों में से एक भी बन्दा वहाँ नहीं दिख रहा था। कुछ सुरक्षाकर्मी टाइप के बन्दे अपने रूटीनी अन्दाज़ में भीड़ के साथ घुलमिल रहे थे और अपने काले रंग के पहरावे में अपनी साँप सरीखी खतरनाक मुखमुद्रा ताने स्‍थानीय लोगों में शामिल होने की नाकाम कोशिश कर रहे थे।

तभी मैदान के अन्दर एक लम्बी काली लिमोज़ीन चलकर आई, और वहाँ चल रहे आशाओं के कलरव को शाँत किया। मंच के सामने आ वह खड़ी हुई और उसमें से तीन सूटबूटधारी पुरुष बाहर निकले। लोगों की फुसफुसाहट तिस पर फिर से शुरू हो गई जब उन्‍होंने उनमें से एक को  सरकार के नेता और दूसरे को रक्षा मंत्री के बतौर पहचाना। तीसरा जो था, बुज़ुर्ग था और इतना गरिमापूर्ण लग रहा था कि वह कोई राजनेता नहीं हो सकता था। किसी ने उसे पहचान लिया और फिर भीड़ में यह जिज्ञासु कानाफूसी फैली कि वह आयरलैंड में नियुक्‍त अमेरिकी राजदूत था। वे तीनों सीढि़याँ चढ़ मंच तक पहुँचे जहाँ वास्‍तव में महत्‍वपूर्ण किसी शख्सियत की उपस्थिति में हतप्रभ दीख रहा शॉन मॉर्गन झट-से अपनी बीच वाली कुर्सी छोड़ने के उपक्रम में था।
अब तक सैली ऍन ने अपने माता-पिता को उस भीड़ में सामने की ओर देख लिया था और वह उनके पास चली गई। उधर ऍलन अपने दोस्‍तों की तलाश में चल दिया था। “क्‍या वे सही में अमेरिकी राजदूत हैं?” सैली ऍन ने अपने पिता से पूछा। “लगता तो है,” पिता बोले।
“तुम्‍हारा शैतान भाई कहाँ है?” माँ ने पूछा। “कहीं होगा अपने शैतान दोस्‍तों के साथ शैतानी करने,” सैली ऍन बोली।
और ज्‍़यादा काली कारें आईं, जिनमें और ज्‍़यादा गणमान्‍य सवार थे। तभी सैली ऍन की नज़र भीड़ में मौजूद आइसक्रीम खाते मैट मार्टिन पर पड़ी। अब चूँकि वो महान दिन सचमुच आ गया था, वह भी औरों की तरह जोश से भरपूर लग रहा था। इतने में अपने चमकीले वाद्यों के साथ स्‍थानीय सिल्‍वर बैंड आया, और सीधे जाकर मंच के सामने बनी जगह पर खड़ा हो गया। मंच पर कुर्सियों के टोटे के चलते कुछेक पार्षदों के बीच भगदड़-सी मची हुई थी। सैली ऍन ने अपनी घड़ी देखी। बारह बजने में पाँच मिनट बाकी थे – नवागन्तुकों के आगमन में अब पाँच मिनट बाकी थे। “कुछ भी हो, वे महत्‍वपूर्ण तो अवश्‍य हैं,” उसकी माँ ने कहा। “सही है,” उसके पिता बोले। “ये बड़भैये यूँ किसी भी ऐरे-गैरे नत्‍थू-खैरे के लिए नहीं चले आते।”
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दिन तो सूखा था, पर आकाश में बादल थे। कुछ बादल तो सीधे-सीधे सिर पर आकर जमा हो गए लगते थे, गोया वे भी नवागन्तुकों को वहाँ आते हुए देखना चाहते थे। ज्‍यों-ज्‍यों घडि़याँ बीत रही थीं, भीड़ शान्त होती जा रही थी, यहाँ तक कि नन्‍हे मुन्ने बच्‍चे भी। तनाव बढ़ता जा रहा था, और बारह बजने के ठीक दो मिनट पहले सैली ऍन ने अचानक महसूस किया जैसे वह श्‍वासहीन हो गई हो, और उसने पाया कि वास्‍तव में वह तो साँस लेना ही भूल गई थी। उसने अपने डैड की ओर देखा। वे उसे देख मुस्‍कुराए पर उनका चेहरा उम्‍मीद से भरा हुआ था। उन्‍होंने उसके कँधों पर अपनी एक बाँह रख दी। इतने में ऍलन अवतरित हुआ, उसके चेहरे से उसकी वह वाचाल मुस्‍कुराहट गायब थी, सो सैली ऍन को उसे पहचानने में कुछ समय लगा।
“मैंने सोचा, इसके लिए हम सबको साथ होना चाहिए,” कहकर वह अपने पिता के करीब खड़ा हो गया, जिन्‍होंने अपनी दूसरी बाँह उसके कन्धे पर रख दी। माँ ने भी अपने दोनों बच्‍चों को सहलाया। सैली ऍन की रीढ़ में एक झुनझुनी-सी दौड़ गई। हवा में एक बिजली-सी कौंध गई। तभी उसने ऍलन को देखा और उसे ताज्‍जुब हुआ कि उसके सिर के बाल खड़े होने लगे थे। उसने महसूस किया कि खुद उसके बाल भी खड़े होने लगे हैं। जब उसने अपनी नज़रें उठाकर अपने चारों ओर देखा तो पाया कि जिन-जिन के बाल जिस किसी विध लम्बे थे, उन सबों के साथ ऐसा ही हो रहा था।
“डैड?” थोड़ी डरी-डरी वह बोली। “मम्‍मी?”

“स्थैतिक बिजली,” डैड शान्त  कराते हुए बोले। उनकी आवाज़ में अचरज की एक भनक थी। “समाचारों में वे हमें इस बाबत चेताते रहते हैं, याद है? ऐसा विद्युत क्षेत्र के चलते होता है।”
अचानक सैली ऍन को याद आया कि उसने स्‍थैतिक प्रभाव के बारे में सुना था, और उसकी हँसी फूट पड़ी -  अजीब नज़ारा था, सब लोगों के बाल कदमताल में खड़े हुए थे। यहाँ तक कि डॉक्‍टर की बीवी मिसेज़ ब्रैडी के भी, जो यूँ तो हमेशा अकड़ू रहती थीं। आपने कभी सोचा न होगा कि कोई भी चीज़, बिजली तक भी, उनकी अकड़ को टाँय-टाँय फिस्‍स कर सकती है। लेकिन ऐसा लग रहा था कि मिसेज़ ब्रैडी को अपनी उड़ती ज़ुल्‍फों की कोई हवा तक न थी। वे ऊपर आसमान को तक रही थीं, और अभी वे बिलकुल भी ऐंठू न लग रही थीं – बल्कि अचम्भित दिख रही थीं। सैली ऍन की आँखों ने श्रीमती ब्रैडी की ऊपर लगी टकटकी का अनुसरण किया, और देखते ही वह डॉक्‍टर की पत्‍नी को सिरे से भूल गई। मैदान के ऊपर निचले सुरमई बादलों में से सफेद रंग की कोई बड़ी चीज़ बाहर की ओर आ रही थी। सैली ऍन एकटक घूर रही थी – भीड़ का हर व्‍यक्ति अपलक देख रहा था, यहाँ तक कि मंच पर बिराजे गणमान्‍य भी। वह सफेद वस्‍तु एक विशाल, चांदी जैसे रंग की तश्‍तरी का किनारा थी। उसमें से नीले, सफेद और बैंगनी रंग की बिजली की निऑन तरंगें, उसकी सतह के आरपार कौंध-कौंध कर बुझी जा रही थीं। जैसे-जैसे वह तश्‍तरी बादलों में से उतरती आती, उसका ज्‍़यादा और ज्‍़यादा हिस्‍सा दृश्‍यमान होता जाता।

“हे भगवान,” सैली ऍन को अपने पीछे से अपनी माँ की फुसफुसाहट सुनाई दी, “हे भगवान!”
बरास्‍ता बादलों के वह यान सिर के कोई पचास मीटर ऊपर मण्डरा रहा था। आकार में वह समूचे चौक के मुकाबले बड़ा था और सूरज की अधिकांश रोशनी को उसने रोक रखा था। इसके बावजूद नीचे खड़े लोग स्‍तब्‍ध हो उसे ताकते रहे। यान भी एकदम चुप था, सिवाय उसकी सतह पर तिरती बिजली की हल्‍की-सी तड़तड़ के। क्रमश: वह तड़तड़ भी जाती रही। सैली ऍन को नामालूम कितनी देर यह तमाशा चला, लेकिन ऊपर उड़ रहे उस श्‍वेत यान-पेटे की ऐन आखिरी, लहरिया विद्युत तरंग के भस्‍म होते ही यान के पेंदे से दूधिया रोशनी का एक बड़ा पुंज निकल नीचे मैदान पर आ पड़ा। संगमरमर के खम्भे सरीखा अ-पारदर्शी वह प्रकाश-स्‍तम्भ वहीं खड़ा रहा, और तभी सैली ने देखा कि उसके भीतर कुछ चल रहा है। और फिर भीतर चल रही वह चीज़ बाहर निकली और मैदान के बीचो बीच खड़ी हो गई और हज़ारहा विस्‍फारित आँखें उसे निहार रहीं थीं। और फिर दूधिया रोशनी का वह स्‍तम्भ गायब हो गया, अपने पीछे उस चीज़ को वहीं छोड़, जो अपने इन नए आतिथेयों के बीच आ खड़ी थी।

वह तीन मीटर से भी ज्‍़यादा ऊँची थी, और उसका आकार उन पुआलों जैसा था जो सैली ऍन ने अपने नाना-नानी के फोटो-ऍल्‍बम में देखे थे। शिकंजों जैसी मोटी बाँहें उस पुआल से बाहर को झूल रहीं थीं, और पूरी-की-पूरी वह रचना, विशाल वृक्षों के ठूँठों जितने चौड़े पर कद में छोटे पैरों पर खड़ी थी। पुआल के ऊपरले हिस्‍से से निकली थी एक लम्बी, मोटी, साँप जैसी कृति जो गर्दन ही हो सकती थी, और जो एक बहुत बड़े फुटबॉल के आकार जैसे सिर को थामे थी। वह जीव एक प्रकार के हरे रंग में रंगा था। मीटर-लम्बी उसकी गर्दन कुण्डलाकार थी, और टेनिस गेंदों के आकार की उसकी दो पीली आँखें मैदान को टुकुर-टुकुर देख रहीं थीं। अभी तक कहीं कोई आवाज़ न थी। मैदान में खड़े सारे जीव एक-दूसरे को देख खामोश खड़े थे। मंच के गणमान्‍य डरे-सहमे दिख रहे थे। किसी ने भी यत्‍न न किया उसके समीप जाने का जो साफ तौर पर शरणार्थियों का प्रवक्‍ता था।

एक क्षण को तो कोई भी हिला-डुला तक नहीं। फिर, घनी गहन शान्ति में सैली ऍन ने पैरों की आवाज़ सुनी, और भीड़ में से एक आकृति उभरी। वह मिसेज़ मार्ली थीं। वह चलकर मैदान के बीचो बीच पहुँचीं और फिर नज़रें घुमा चारों ओर देखने लगीं। फिर उन्‍होंने जब यह देखा कि हर कोई कितना चुप अचल था, तब फिर उनने अपनी नज़रें उठा उस जीव को देखा, और मुस्‍कुरा दीं। मिसेज़ मार्ली एक बड़ा परात लिए हुए थीं जिस पर स्‍कोनों और ड्राइफ्रूट केकों (रॉक बन्‍स) का ढेर लगा हुआ था। थाल हाथ में लिए वे चलती रहीं जब तक कि उस अजनबी जीव के ठीक सामने न पहुँच गईं। फिर उन्‍होंने अपनी नज़रें उठाईं, कद में वे इतनी छोटी थीं कि आँख से आँख मिलाने के लिए उन्‍हें अपनी गर्दन ऊँची करनी पड़ी।
“आपको लगता होगा कि हम भयानक रूप से असभ्‍य हैं,” मिसेज़ मार्ली बोलीं। “क्‍या आप मेरा बनाया हुआ कोई स्‍कोन खाना पसन्द करेंगे? उन पर पहले से ही मक्‍खन लगा हुआ है।”
बड़े शिकंजों में से एक आगे बढ़ कर मुड़ा, और उसका पतला वाला सिरा उस प्‍लेट के ऊपर मखमली अन्दाज़ में मण्डराने लगा, जो प्‍लेट मिसेज़ मार्ली ने उसकी दिखाई के लिए थामी हुई थी। उस‍के बाद वह जीव एक सुनहरा गेहुँआ स्‍कोन उठाकर अपने ओष्‍ठहीन मुँह तक ले आया, और फिर अपने बहुतेरे तीखे दाँत दिखाते हुए उसे शिष्‍टाचारपूर्वक कुतरने लगा।
“अरे वाह!” जीव बोला। “कितना स्‍वादिष्‍ट स्‍कोन!”
उसकी आवाज़ एक बहता संगीत थी जैसे।

“हवा सरीखी हल्‍की!” वह बोला। “क्‍या यह आपकी रेसिपी है?”
“मेरी माँ की,” एक नई दुनिया पर इस जीत की खुशी को भरपूर छुपाते हुए, गर्व से मिसेज़ मार्ली बोलीं।
“मुझे आपसे यह रेसिपी लेनी ही पड़ेगी,” जीव बोला। “मेरे स्‍कोन एकदम पत्‍थर जैसे बनते हैं। वे कभी फूलकर कुप्‍पा होते ही नहीं।”
“मुझे लगता है कि आपको ज्‍़यादा बेकिंग सोडा वापरना चाहिए,” मिसेज़ मार्ली बोलीं।
जीव ने एक और चुग्‍गा लिया, और चौक के चारों ओर फिर एक नज़र डाली।
“यहाँ मेरी मुलाकात कुछ लोगों से होनी है,” वह बोला। “हमें यहाँ आने के लिए कहा गया था। हम शरणार्थी हैं। आप जानती हैं कि हम शरणार्थी हैं। हमारा ग्रह दुर्घटनाग्रस्‍त हो गया है।”
“ओह, सचमुच,” मिसेज़ मार्ली ने कहा, “निश्चित ही, मैं आपके बारे में सब जानती हूँ।” जो कि असल में एक अतिशयोक्ति थी – हालाँकि शायद नहीं भी – निश्चित ही मिसेज़ मार्ली ने अभी-अभी वह सब जान लिया था जो नवागन्तुकों को लेकर उन्‍हें जानना ज़रूरी था।

मिसेज़ मार्ली ने मंच पर बिराजे सन्दिग्ध राजनेताओं की ओर सिर हिलाकर कहा। “मैं मानकर चलती हूँ कि उन सूटबूटधारियों से आपको मिलना है,” वे बोलीं। “लेकिन जब आपका काम खत्‍म हो जाए, तब आप अपने लोगों को उस हॉल में लिवा लाएँ। वहाँ सबके लिए प्रचुर मात्रा में अच्‍छे-अच्‍छे ज़ायके रखे गए हैं और हम सब उन ज़ायकों पर एक-दूसरे के बारे में कुछ-कुछ तो जान ही सकते हैं। मुझे यकीन है कि आयरलैंड में आप सबका खूब स्‍वागत है, और मैं आपसे बाद में बात करूँगी। क्‍या आप एक और स्‍कोन लेना पसन्द करेंगे, अगर व्‍याख्‍यान कुछ लम्बा चले तो? सफर के बाद आप को भूख भी लग रही होगी।”
“हाँ, मुझे थोड़ी भूख तो लगी है,” जीव ने माना। “लेकिन यदि मुमकिन हो तो, इस बारी मैं रॉक बन/केक खाऊँगा। वे खूबसूरत दिख रहे हैं।” उस‍के अतिरिक्‍त शिकंजे ने एक रॉक बन उठा लिया। “बाद में हम निश्चित ही बात करेंगे, मैडम,” जीव बोला। “इसके लिए मैं प्रतीक्षारत हूँ।”
मिसेज़ मार्ली ने हामी भरी और अपनी प्‍लेट लिए मुड़ चलीं। वह जीव भी, बारी-बारी से उन छोटे केकों का स्‍वाद लेते हुए मंच की ओर चलने लगा जहाँ बिराजे राजनेता हौले-हौले अपने होशोहवास में लौटने लगे थे। लोगों का हुजूम भी अपनी रोकी हुईं साँसें छोड़ता लग रहा था। सैली ऍन को सहसा महसूस हुआ कि उसके मुँह से जैसे एक विशाल मूर्ख मुस्‍कुराहट-सी फट पड़ी है, और ज्‍योंही उसने चारों ओर अपनी नज़रें घुमाईं तो पाया कि सबों के चेहरों पर ऐसी ही मुस्‍कुराहट विराजमान थी, यहाँ तक कि मैट मार्टिन के चेहरे पर भी। सैली ने जब अपने मम्‍मी-डैडी की ओर देखा तो देखा कि वे भी मुस्‍कुराते-मुस्‍कुराते एक-दूसरे को देख रहे हैं। उधर ऍलन उस जीव को घूरे जा रहा था।

“वह शर्तिया एक अच्‍छा पहलवान होगा,” वह बोला। यह तारीफ थी।
भीड़ फिर से शोर मचाने लगी थी क्‍योंकि लोग उत्तेजित हो बातें करने लगे थे। लगता है अपनी इस चहचहाहट में वे सिर के ऊपर उस महायान के बेआवाज़ मण्डराने की बात लगभग भूल ही गए थे। अपने आप में मुस्‍कुराती हुईं मिसेज़ मार्ली स्‍कोन्‍स और रॉक बन्‍स से भरा हुआ थाल उठाए-उठाए ‘अनुदार भवन' को वापस चलती बनीं। हर कदम पर उनका वह थाल हल्‍का होता रहा, जैसे-जैसे बच्‍चे और बड़े, सब उसमें सजे व्‍यंजनों का स्‍वाद लेते रहे। मिसेज़ मार्ली ने पर इसका बुरा न माना – वैसे भी खाने का समय हो ही गया था। उसी वक्‍त कोई आकर उनसे बुरी तरह भिड़ चला, इतनी बुरी तरह कि उनका थाल था कि गिरते-गिरते बचा। अधीर होकर उनने अपने होंठ चटकाए। “उई माँ,” यह सोच कि उनके एक रॉक-बन के लिए मचलता कोई बच्‍चा उतावला हुआ जा रहा है, वे बोलीं। “अरे भई सम्भल के।”
लेकिन जब वे पलटीं तो क्‍या देखती हैं कि ये तो इस अवसर पर अपनी नकली बत्तीसी लगाईं मिसेज़ कूम्‍ब्‍स थीं।
“देखा, अपने शहर के लिए आज का दिन कितना महान है, मैरी एलेन,” मिसेज़ मार्ली ने कहा।

मिसेज़ कूम्‍ब्‍स ने अपने कान पर अपना हाथ धर कहा, “हुँ? क्‍या कहा तुमने? तुम तो जानती हो कि मैं निपट बहरी हूँ।”
तिस पर मिसेज़ मार्ली मुस्‍कुरा दीं। 


जेर्राड वीलन: चार उपन्‍यासों के लेखक जेर्राड वीलन, युवाओं के लिए लिखने वाले आयरलैंड के सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक हैं। उन्‍हें आइलिस डिलन स्‍मृति पुरस्‍कार और बिस्‍टो बुक पुरस्‍कार मिल चुका है। उनकी तीन किताबों का चयन रीडिंग एसोसिएशन ऑफ आयरलैंड पुरस्‍कार की शॉर्टलिस्‍ट में हुआ है जबकि इंटरनैश्‍नल यूथ लाइब्रेरी ने अपनी ‘वाइट रेवन्‍स' सीरीज़ के लिए उनकी एक पुस्‍तक का चयन किया है।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: मनोहर नोतानी: शिक्षा से स्नातकोत्तर इंजीनियर। पिछले कई वर्षों से अनुवाद व सम्पादन उद्यम से स्वतंत्र रूप से जुड़े हैं। भोपाल में रहते हैं।
सभी चित्र: सौम्या मैनन: चित्रकार एवं एनिमेशन फिल्मकार। विभिन्न प्रकाशकों के बच्चों की किताबों एवं पत्रिकाओं के लिए चित्र बनाए हैं। बच्चों के साथ काम करना पसन्द करती हैं।
यह कहानी जाइंट्स ऑफ दि सन नामक आयरिश कहानी संग्रह से साभार।