सवाल: चाँद दिन में कहाँ जाता है, सूरज रात में कहाँ जाता है? - माध्यमिक शाला, मानिकपुर आश्रमशाला, ज़िला-अमरावती, महाराष्ट्र

जवाब: हमारी दिनचर्या दिन और रात के चक्र के अनुसार निर्धारित हुई है। क्या आपने कभी ये सोचा है कि चाहे दुनिया में कुछ भी क्यों न हो जाए, दिन और रात होने की प्रक्रिया बिलकुल वैसी ही चलती रहती है? तो सवाल बहुत ही वाजिब है कि दिन-रात का क्रम इतनी मुस्तैदी से कैसे चलता है। यह जानना रोचक होगा कि आखिर ये दिन-रात होते कैसे हैं। या फिर सूर्य आखिर कहाँ चला जाता है? हम यही मानते हैं कि जब आकाश में सूर्य दिखाई दे, तब दिन होता है और जब सूर्य दिखाई न दे तब रात हो जाती है। लेकिन सवाल यह है कि सूर्य कुछ ही समय क्यों दिखाई देता है? इसका कारण पृथ्वी की गति से जुड़ा है।

सूरज का प्रकाश
सूरज के प्रकाश और पृथ्वी की गति से तो आप परिचित ही होंगे। पृथ्वी बाकी ग्रहों की तरह अपनी चाल से सूर्य की परिक्रमा करती है। पृथ्वी न केवल सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है बल्कि अपनी धुरी पर भी लगातार घूमती रहती है। पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ एक चक्कर लगाने में 365 दिन 6 घण्टे 48 मिनट और 45.51 सेकण्ड का समय लेती है और अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा करने में पृथ्वी को 24 घण्टे (23 घण्टे, 56 मिनट और 4.09 सेकण्ड) का समय लगता है।
अपनी धुरी पर घूमते हुए सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते समय, लगभग गोल आकार की पृथ्वी का आधा हिस्सा ही सूर्य के सामने रह पाता है जिस पर सूर्य का प्रकाश पड़ता है। इसी प्रकाशमान हिस्से पर दिन होता है और पृथ्वी का जो बाकी आधा हिस्सा सूर्य के प्रकाश से वंचित रह जाता है, उस पर अँधेरा होने के कारण रात हो जाती है। आप इस को ऐसे भी समझ सकते हैं कि आप एक गेंद लें जिस पर पेन से एक जगह बिन्दु बनाएँ। अब एक अँधेरे कमरे में गेंद पर टॉर्च से रोशनी डालें। टॉर्च को सूर्य मानें, और बिन्दु वह जगह है जहाँ आप खड़े हैं। क्या उस बिन्दु पर प्रकाश पड़ रहा है? यदि पड़ रहा है तो इस अवस्था को दिन कहेंगे। अब गेंद को ऐसे घुमाएँ कि वह बिन्दु दूसरी ओर चला जाए। अब टॉर्च यानी सूर्य का प्रकाश उस बिन्दु पर नहीं पड़ेगा, अतः वहाँ अँधेरा होगा। इस तरह सूर्य तो अपनी जगह पर है, केवल गेंद यानी पृथ्वी के घूमने के कारण हमें वह दिखाई नहीं देता। पृथ्वी घूमती रहती है और सूर्य दृश्य-अदृश्य होता रहता है। इसका मतलब है कि पृथ्वी के किसी-न-किसी हिस्से (लगभग आधे हिस्से) में हर वक्त दिन होता है। बात सिर्फ इतनी है कि हम उस हिस्से में हैं या नहीं।

चन्द्रमा का दिखना
अब चन्द्रमा को देखें। आपने देखा होगा कि कई दिन ऐसे होते हैं जब चन्द्रमा दिन में भी दिखाई पड़ता है और कई रातों को भी दिखाई नहीं पड़ता। कारण यह है कि चन्द्रमा की गति थोड़ी जटिल है। चन्द्रमा न सिर्फ पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता है बल्कि पृथ्वी के साथ-साथ सूर्य के चक्कर भी लगाता है। और अपनी धुरी पर तो घूमता ही है। इसलिए कई बार वह हमारे सामने होता है तो कई बार हमारे सामने नहीं होता। लेकिन ज़रूरी नहीं कि वह दिन में ओझल हो ही जाए।

चाँद की कलाएँ
चन्द्रमा की एक विशेषता और है। चन्द्रमा की आकृति दिन-ब-दिन बदलती है। सूर्य तो हमेशा पूरा गोला दिखता है लेकिन चन्द्रमा कभी पूरा गोला, कभी आधा गोला, तो कभी एक गोलाकार लकीर जैसा दिखता है। इन्हें चाँद की कलाएँ कहते हैं। चन्द्रमा सूर्य की रोशनी पड़ने से चमकता है और उस रोशनी के चन्द्रमा की सतह से परावर्तित होने के कारण हमें यहाँ पृथ्वी पर दिखाई देता है| एक बार फिर, किसी भी समय चाँद के आधे भाग पर तो सूर्य का प्रकाश हमेशा पड़ता रहता है और वह चमकता रहता है। लेकिन चमकता आधा गोला पूरा-का-पूरा हमारी ओर नहीं होता। उसका एक हिस्सा ही हमारी ओर होता है और इसलिए हमें दिखता है कि चाँद की कलाएँ बदल रही हैं। चाँद की बदलती आकृतियों को ‘चाँद की कलाएँ' कहते हैं।  
पूर्णिमा से अमावस्या के बीच के दिनों में पृथ्वी पर चन्द्रमा के दिखाई देने वाले भाग का आकार रोज़ाना घटता जाता है| उसी प्रकार अमावस्या से पूर्णिमा के बीच के दिनों में चन्द्रमा के दिखाई देने वाले भाग का आकार रोज़ाना बढ़ता रहता है|

अन्त में
अब आप जान गए होंगे कि दिन और रात होने के क्या कारण हैं – पृथ्वी की गति। चूँकि पृथ्वी की गति नियमित है इसलिए दुनिया में होने वाली किसी भी हलचल से ये प्रक्रिया अप्रभावित रहती है। सूर्य कहीं नहीं जाता बल्कि पृथ्वी ही घूम जाती है।

सूरज कहीं नहीं जाता

सवालीराम ने जो आपको बताया, वह काफी हद तक वैज्ञानिक व्याख्यानुमा है। लेकिन जब 10-12 बरस के बच्चों से इस मुद्दे पर बातचीत करते हैं तो बच्चे वास्तव में क्या सोच रहे होते हैं, इसके बारे में पता चलता है। बच्चों के लिए पृथ्वी की दैनिक या वार्षिक गति के बारे में समझ बना पाना थोड़ा कठिन काम है। हमने महाराष्ट्र की आश्रमशालाओं के कुछ बच्चों के साथ और होशंगाबाद फील्ड सेंटर की लाइब्रेरी में कुछ बच्चों के साथ ‘रात में सूरज कहाँ चला जाता है' विषय पर बातचीत की। इस बातचीत की शुरुआत हम बच्चों से यह कहकर करते थे कि वे एक कागज़ पर दिन के समय के आसमान का चित्र बनाकर दिखाएँ। बच्चों द्वारा बनाए चित्रों में अक्सर सूरज, सफेद या काले बादल, हवाई जहाज़, पक्षी आदि होते थे।
फिर उनसे कहा जाता था कि अब वे रात के आसमान का चित्र बनाकर दिखाएँ। बच्चों के बनाए चित्रों में तारे, चाँद, रात के पक्षी, बादल, हवाई जहाज़ आदि होते थे। इन चित्रों में कभी चाँद पूनम का होता, तो कभी कटा हुआ।
यहाँ से हम चर्चा को आगे बढ़ाते थे कि रात के आसमान में सूरज क्यों नहीं बनाया, सूरज कहाँ चला गया? यहाँ बच्चों को थोड़ी उलझन होती थी। वे हाथों के इशारों से बताने की कोशिश करते थे कि सूरज यहाँ होता है, चाँद यहाँ होता है। तब हम बच्चों को ग्लोब व गेंद वगैरह देकर कहते कि “क्या इनकी मदद से अपनी बात बताना चाहोगेे?” ज़्यादातर बच्चे ग्लोब व गेंद की मदद से भूगोल या विज्ञान की किताबों में दिए चित्र (जिसमें धरती द्वारा सूरज का चक्कर लगाते समय 21 जून, 23 सितम्बर, 23 दिसम्बर, 21 मार्च की स्थितियाँ दर्शाई गई होती हैं) को दोहरा रहे होते। दो-तीन बच्चों ने ग्लोब को धुरी पर घुमाते हुए दिन-रात का होना भी बताया और कहा कि “देखिए सूरज बीच में है। पृथ्वी घूम रही है।” दो-तीन बच्चों ने यह भी कहा कि रोज़ सुबह सूरज उगकर आसमान में चढ़ता जाता है और फिर डूबकर नीचे-नीचे चलता हुआ वहीं पहुँच जाता है जहाँ से उसे अगले दिन उगना है।
बच्चों के साथ इस मुद्दे पर और बातचीत से यह समझ आता है कि पृथ्वी की दैनिक गति (अपनी धुरी पर घूमना) और वार्षिक गति (साल भर में सूरज का चक्कर लगाना) की समझ पुख्ता न होने पर भी बच्चे यह मानते हैं कि सूरज कहीं नहीं जाता, वो बीच में रहता है।
-माधव केलकर


कोकिल चौधरी: संदर्भ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।