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Sandarbh - Issue 130 (Sep-Oct 2020)
Sandarbh - Issue 130 (Sep-Oct 2020)
1 गणितीय फसाना - विवेक कुमार मेहता
गणितीय भाषा में ऐसी आकृतियों या वस्तुओं को फ्रेक्टल कहा जाता है जिनके किसी भी छोटे हिस्से को बड़ा करके देखा जाए तो हम पाएँगे कि वह आकृति हर अनुमाप पर अपने आप को दोहराती है। क्या फ्रेक्टल्स मात्र एक गणितीय अवधारणा है? आइए, पढ़ते-समझते हैं इस विस्तृत लेख के साथ।
2 छोटे, फिर भी महान: विश्वव्यापी बैक्टीरिया – माधव गाडगिल
मानव चाहे जितना विध्वंस करे और चाहे पृथ्वी पर से अपने वंश को ही खत्म कर दे, फिर भी संसार के असली मालिक बैक्टीरिया के साम्राज्य को कोई हानि नहीं पहुँचेगी। पृथ्वी के असली मालिक बैक्टीरिया के बारे में और बातें जानते हैं इस लेख में।
3 प्रतिबिम्ब: वास्तविक या आभासी? – उमा सुधीर
वैज्ञानिक ज्ञान अस्थायी (आज़माइशी) होता है और उसकी कई सीमाएँ होती हैं। उदाहरण के तौर पर प्रतिबिम्ब निर्माण की अगर बात करें तो जब हम वस्तुओं को दर्पण में देखते हैं, तब क्या होता है और वे हमें कैसी दिखाई देती हैं? पढ़ते हैं इसी उदाहरण का विस्तृत विवरण इस लेख में।
4 फूलों का खिलना और मुरझाना - किशोर पंवार
अक्सर हम पेड़-पौधों की उम्र के बारे में चर्चा करते हैं जैसे एकवर्षी और बहुवर्षी पौधे। पेड़ों की उम्र के साथ कभी-कभी पत्तियों की उम्र की भी चर्चा होती है जिसके आधार पर जंगलों को पतझड़ी एवं सदाबहार जंगलों में बाँटा जाता है। परन्तु पेड़-पौधों के सबसे महत्वपूर्ण आकर्षक अंग यानी फूलों की उम्र की चर्चा कम ही होती है। फूलों की उम्र को लेकर आम तौर पर यह माना जाता है कि इस सन्दर्भ में कई कारक काम करते हैं। इसके बारे में विस्तारपूर्वक पढ़ते हैं इस लेख में।
5 अजगर की शरीर-क्रिया की समझ के इन्सानी फायदे - विपुल कीर्ति शर्मा
भरतपुर बर्ड सेंक्चुरी या केवलादेव नेशनल पार्क, राजस्थान में स्थित यूनेस्को द्वारा घोषित संरक्षित इलाका प्रवासी पक्षियों के लिए स्वर्ग है। यद्यपि केवलादेव नेशनल पार्क, पक्षियों के लिए ज़्यादा प्रसिद्ध है, परन्तु यहाँ सर्दियों की दोपहर में आपको धूप सेंकते हुए अजगर भी मिल जाएँगे। राजस्थान की सर्दियाँ और गर्मियाँ भीषण होती हैं। पढ़ते हैं इस लेख में कि कैसे यह अजगर अपने शरीर का तापमान बनाए रखते हैं और जानते हैं इनकी कुछ खास विशेषताओं को।
6 इतिहास: किस काम का है यह? भाग 4 – शेषागिरी केएम राव
शिक्षा वास्तव में एक दूसरी दुनिया को मुमकिन बनाने का शुरुआती बिन्दु है और शिक्षण खुद को शिक्षित करने का बढ़िया तरीका है। उक्त लेख के माध्यम से पढ़ते- समझते हैं कि कैसे एक अच्छा गणित शिक्षक, लेखक की शिक्षण शैली में परिवर्तन ला पाया और गणित की समझ को विद्यार्थियों तक पहुँचाने में सहायक बना। पढ़ते हैं इस सीरीज़ के चौथे लेख को।
7 ऑक्सीजन अन्दर या बाहर? - गीता जोशी
विद्यालय में शिक्षिका की बच्चों के साथ ऑक्सीजन को लेकर हुई चर्चा पर एक सुन्दर आलेख जिसमें हम पढ़ेंगे कि सिर्फ पाठ्यपुस्तकों से ही सम्पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती बल्कि प्रयोगों और चर्चा के साथ भी होती है।
8 बच्चों का पूर्वज्ञान बनाम वैज्ञानिक तर्क – माधव केलकर
बच्चों को कक्षा में पढ़ाते समय उनके पूर्वज्ञान और किसी अवधारणा के बारे में बच्चे पहले से क्या जानते हैं, को भी कक्षा में स्थान मिलना चाहिए। यदि बच्चों का पूर्वज्ञान विज्ञान सम्मत न हो या संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ जाता हो, क्या तब भी उस पूर्वज्ञान को कक्षा में जगह मिलना चाहिए या उसे रोक देना चाहिए? इसी अहम मुद्दे को कक्षा में हुए एक उदाहरण के साथ बेहतर समझते हैं, इस लेख के माध्यम से।
9 नंदा मैडम की कक्षा – सुधीर श्रीवास्तव
एक शिक्षक के रूप में सवालों के जवाब बच्चों को हम खुद देकर, समस्याओं से जूझने की बच्चों की नैसर्गिक क्षमता को विकसित नहीं होने देते हैं। इस लेख में पढ़ते हैं कि कक्षा-3 के बच्चों के साथ संख्याओं की अवधारणा पर कैसे काम किया जा सकता है, और सवाल-जवाब के साथ सम्पूर्ण सहभागिता कैसे लाई जा सकती है।
10 सूरज के दैत्य – सैम मॅक्ब्रैट्नी
दैत्यों को लेकर मैट्ट की उलझन उसके दादाजी के घर पर एक दुपहरी में शुरू हुई थी जब वह स्कूल से घर लौटते हुए दादाजी से मिलने गया था। तभी से उसने दैत्यों के बारे में सोचना शुरू कर दिया था। असल में वे कितने असल होते होंगे? क्या दैत्य वाकई होते हैं? इसी उधेड़बुन में उसने कितनी ही बातें सोच डालीं। आइए पढ़ते हैं इस रोचक और अद्भुत कहानी को।
11 लौकी की बेल में सफेद फूल आते हैं... - सवालीराम
पेड़-पौधों में ढेर सारे रंग पाए जाते हैं। ज़्यादातर पत्ते हरे होते हैं। जब बात फूलों और फलों की आती है तो दुनिया रंग-बिरंगी हो जाती है (वैसे कई पेड़ों में पत्तियाँ भी रंग-बिरंगी होती हैं)। तो सवाल उठता है कि जब पत्तियाँ हरी होती हैं तो फूलों और फलों में लाल, पीले, नारंगी, कत्थई, नीले रंग कहाँ से और क्यों आ जाते हैं। समझते हैं इस बार के सवालीराम में।