सवाल: लड़कियों की मूँछ नहीं होती है परन्तु लड़कों की होती है, क्यों?

-शासकीय आश्रमशाला टेम्बली, धारणी, ज़िला अमरावती, महाराष्ट्र

जवाब: सबसे पहले तो यह समझ लेना ज़रूरी है कि मर्द-औरत, दोनों के शरीर पर बाल होते हैं और बचपन से लेकर किशोरावस्था की शुरुआत (12-13 साल की उम्र) तक कमोबेश दोनों के बाल एक जैसे दिखते हैं। लगभग इसी समय स्त्री व पुरुष में अलग-अलग शारीरिक लक्षण प्रकट होने लगते हैं। इनमें से कुछ लक्षण नज़र आते हैं जबकि कुछ आँखों से नज़र नहीं आते।

एक प्रमुख अन्तर यह होता है कि लड़कों में मूँछें व चेहरे के बाल विकसित होने लगते हैं जबकि लड़कियों में नहीं। ऐसे शारीरिक लक्षण जो किशोरावस्था में प्रकट होते हैं और जिनके द्वारा नर व मादा को अलग-अलग पहचाना जा सकता है, उन्हें द्वितीयक लैंगिक लक्षण कहते हैं। ये सिर्फ मनुष्यों में ही नहीं बल्कि कई अन्य स्तनधारियों में पाए जाते हैं - जैसे शेर, एलीफेंट सील, मैंड्रिल्स, बकरियाँ, हिरन वगैरह। अलबत्ता, हमारे प्राथमिक लैंगिक लक्षण (यानी प्रजनन अंगों) के समान ये प्रजनन तंत्र के भाग नहीं होते और न ही प्रजनन क्रिया में सीधे-सीधे कोई भूमिका निभाते हैं।

यहाँ आकर शायद आपको लगने लगा होगा कि शरीर में ज़रूर कुछ कार्यिकीय प्रक्रियाएँ होती हैं जो किशोरावस्था में शुरू होती हैं और शायद इन्हीं की वजह से लड़कों के चेहरे पर बाल उगने लगते हैं। हकीकत भी यही है। लड़कों-लड़कियों में कई भिन्नताओं के समान ही चेहरे पर बालों का उगना भी मूलत: कुछ यौन हारमोन की मात्रा में वृद्धि के कारण होता है।

यौन हारमोन ऐसे रासायनिक पदार्थ होते हैं जिनका असर हमारे प्राथमिक अथवा द्वितीयक लैंगिक गुणधर्मों पर होता है। यहाँ हम मूँछों की बात कर रहे हैं। इनको समझने के लिए हमें उन हारमोन पर ध्यान देना होगा जिन्हें सामूहिक रूप से एंड्रोजन कहते हैं। एंड्रोजन ही नर प्रजनन तंत्र के विकास को प्रभावित करते हैं। एंड्रोजन हारमोन में सबसे सक्रिय हारमोन टेस्टोस्टेरोन होता है। इसका निर्माण वृषण द्वारा किया जाता है (यह सही है कि स्त्रियों में अण्डाशय भी टेस्टोस्टेरोन बनाते हैं मगर वह बहुत कम मात्रा में होता है)।

अब देखते हैं कि जब शरीर किशोरावस्था (प्यूबर्टी) की स्थिति में पहुँचता है तो कौन-सी नई रासायनिक घटनाएँ सिलसिलेवार घटती हैं। होता यह है कि प्यूबर्टी में मस्तिष्क एक विशेष हारमोन बनाकर छोड़ने लगता है जिसका सम्बन्ध आगे के परिवर्तनों से होता है। इस हारमोन का नाम है गोनेडोट्रॉपिन-रिलीज़िंग हारमोन (या संक्षेप में GnRH)। जब यह हारमोन मस्तिष्क के नीचे स्थित पीयूष ग्रन्थि में पहुँचता है तो वह ग्रन्थि दो हारमोन बनाकर रक्त प्रवाह में छोड़ने लगती है - ल्यूटीनाइज़िंग हारमोन (LH) और फॉलिकल स्टिम्यूलेटिंग हारमोन (FSH)। ये दो हारमोन लड़के-लड़कियों, दोनों के शरीर में होते हैं, लेकिन इनका असर अलग-अलग होता है। इनका अलग-अलग असर इस बात पर निर्भर करता है कि शरीर में कौन-से अंग मौजूद हैं।

चित्र-2: प्यूबर्टी के दौरान हारमोन और उनकी क्रियाविधि। प्यूबर्टी की शुरुआत के लिए पीयूष ग्रन्थि लड़कों में टेस्टोस्टेरोन तथा लड़कियों में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का उत्पादन शुरू कर देती है।

लड़कियों में FSH और LH अण्डाशय पर क्रिया करते हैं। अण्डाशय में अण्डाणु उपस्थित होते हैं जो जन्म से ही थे। ये हारमोन अण्डाशय को प्रेरित करते हैं कि वह एक अन्य हारमोन - एस्ट्रोजन - का स्राव करने लगे। FSH और LH के साथ मिलकर एस्ट्रोजन लड़की के शरीर को प्रजनन के काबिल बनाता है।
लड़कों में FSH और LH खून में बहते-बहते वृषण में पहुँचते हैं और उसे एक हारमोन - टेस्टोस्टेरोन - तथा शुक्राणु बनाना शुरू करने का संकेत देते हैं। टेस्टोस्टेरोन ही वह हारमोन है जो प्यूबर्टी के दौरान लड़कों के शरीर में अधिकांश परिवर्तनों के लिए ज़िम्मेदार होता है। शुक्राणु तो प्रजनन के लिए अनिवार्य हैं।

मज़ेदार बात यह है कि टेस्टोस्टेरोन स्वयं एक अन्य हारमोन - डाईहायड्रो-टेस्टोस्टेरोन (DTH) के पूर्ववर्ती के रूप में भी काम करता है। टेस्टोस्टेरोन को DTH में बदलने का काम कुछ विशिष्ट एंज़ाइम करते हैं। DTH टेस्टोस्टेरोन के मुकाबले कहीं अधिक प्रभावशाली होता है। टेस्टोस्टेरोन को DTH में बदलने वाले ये एंज़ाइम कुछ ही स्थानों पर पर्याप्त मात्रा में बनते हैं। ये एंज़ाइम हमारी त्वचा और बालों की जड़ों (रोमकूप) में काफी मात्रा में बनते हैं।

लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में प्यूबर्टी के समय ज़्यादा टेस्टोस्टेरोन खून में होता है और जब यह कई महीनों या वर्षों तक बना रहता है तो त्वचा तथा रोम कूपों की कोशिकाएँ इसे ज़्यादा शक्तिशाली DTH में भी अधिक मात्रा में बदलती हैं। इसी वजह से लड़कों में शरीर व चेहरे पर अधिक बाल उगने लगते हैं। वैसे लड़कियों में चेहरे पर रोमकूप होते हैं लेकिन DTH के अभाव में वे विकसित नहीं हो पाते। वयस्क पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन का स्तर आम तौर पर स्त्रियों की अपेक्षा 7-8 गुना ज़्यादा रहता है। और DTH का स्तर टेस्टोस्टेरोन स्तर का 10 प्रतिशत रहता है। इसलिए दाढ़ी-मूँछ स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में एक आम बात हो जाती है।

तो प्यूबर्टी के दौरान वास्तव में यही होता है - ये सारे रसायन हमारे खून के साथ शरीर में चक्कर लगाते रहते हैं और हमें किशोरों से वयस्कों में बदल देते हैं।
अलबत्ता, दाढ़ी-मूँछ की इस कहानी में एक दुखदायी एवं मज़ेदार पेंच है। यह पता चला है कि जो पुरुष गंजे होने लगते हैं उनकी खोपड़ी में DTH का स्तर सामान्य से अधिक होता है। यानी जो हारमोन दाढ़ी-मूँछ पैदा करता है वही गंजेपन का भी कारण बन जाता है। अनुसंधान से ऐसा लगता है कि इन हारमोन का असर खोपड़ी के रोमकूपों पर उल्टा होता है यानी DTH का उच्च स्तर चेहरे पर तो बालों को बढ़ावा देता है मगर खोपड़ी के बालों के विकास को रोकता है।


रुद्राशीष चक्रवर्ती: एकलव्य, भोपाल के प्रकाशन समूह के साथ काम करने के बाद इन दिनों स्वतंत्र रूप से शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि।