चारुदत्त नवरे
भाग-2 पुस्तक अंश
हमारी आँतों के सूक्ष्म-जीव। निर्धारित करते हैं कि कुछ दवाएँ हमारेे यकृत के लिए ज़हरीली होंगी या नहीं।
आँतों में रहने वाले सूक्ष्म-जीवों के समुदाय अलग-अलग लोगों में अलग-अलग होते हैं। कुछ लोगों की आँतों के सूक्ष्म-जीव, अन्य लोगों की तुलना में, बहुत ज़्यादा एंडोटॉक्सिन उत्पन्न करते हैं।
यकृत हमारे उस शारीरिक तंत्र का हिस्सा है जो इन विषाक्त पदार्थों को निकालने के लिए ज़िम्मेदार है।
एंडोटॉक्सिन, बैक्टीरिया की कुछ प्रजातियों की बाहरी झिल्ली में पाए जाने वाले हानिकारक रसायन होते हैं।
इन एंडोटॉक्सिन की अधिकता के परिणामस्वरूप, यकृत की कोशिकाओं को पहले अत्यधिक श्रम करना पड़ता है। इसलिए शरीर में नए पदार्थों या विषाक्त पदार्थों को सम्भालने के लिए उसे अधिक समय की आवश्यकता होती है।
* सूक्ष्म-जीवों का वह समुदाय जो मनुष्यों (और अन्य जानवरों) के पाचन तंत्र में रहता है। वे आहारीय रेशे और अन्य यौगिक पदार्थों को तोड़ते हैं, एवं विटामिन B और K के संश्लेषण में तथा रोगजनक प्रजातियों के विकास को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इम्पीरियल कॉलेज, लंदन के प्रोफेसर जेरेमी निकोलसन और उनके साथियों को टाइलेनॉल के बारे में कुछ दिलचस्प जानकारी मिली। टाइलेनॉल आसानी-से मिलने वाली एक दर्द की दवा है।
यकृत के कुछ एंज़ाइम (प्रोटीन के अणु जो रासायनिक प्रतिक्रिया करते हैं) हानिकारक पदार्थों को विकृत कर नष्ट कर देते हैं।
कुछ लोगों में ये एंज़ाइम, आँतों के सूक्ष्म-जीवों द्वारा उत्पन्न विषाक्त पदार्थों को नष्ट करने में ही व्यस्त रहते हैं।
इसके बाद ही वे टाइलेनॉल को नष्ट करने के काम में लग पाते हैं, इसलिए टाइलेनॉल लम्बे समय तक यकृत में मौजूद रहता है। यह यकृत के लिए हानिकारक साबित होता है।
इसलिए टाइलेनॉल दवाई किसी व्यक्ति के यकृत के लिए विषाक्त साबित भी हो सकती है, परन्तु यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उस व्यक्ति की आँतों में कौन-से सूक्ष्म-जीव निवास कर रहे हैं!
सभी के लिए एक तरह के उपचार अच्छी तरह से काम नहीं करते हैं -- क्योंकि इसमें आपके जीन्स और आपके अन्दर पाए जाने वाले सूक्ष्म जीव एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भविष्य में शायद कभी डॉक्टर आपके जीन्स और आपके शरीर के सूक्ष्म-जीवों को देखकर पता लगा पाएँगे कि कौन-सा विशेष उपचार आपके लिए कारगर होगा।
अन्दरूनी एहसास
आपके शरीर में मौजूद सूक्ष्म-जीवों को देखकर वैज्ञानिक 90 प्रतिशत सटीकता के साथ यह अनुमान लगा सकते हैं कि आप दुबले हैं या मोटे। अब अगर इन्सान के जीन्स के आधार पर की गई भविष्यवाणी से इसकी तुलना करें तो जीन्स पर आधारित भविष्यवाणी केवल 58 प्रतिशत ही सटीक होती है।
आश्चर्यजनक बात यह है कि वैज्ञानिक यह परीक्षण प्रयोगशाला के चूहों पर भी कर सकते हैं। प्रयोगशाला में रोगाणु-मुक्त जानवरों की उत्पत्ति सम्भव है, वे जानवर जिनके शरीर के अन्दर या ऊपर कोई सूक्ष्म-जीव नहीं रहते हैं। ऐसे जानवरों को आइसोलेटर (विलगक) में पाला-पोसा जाता है और अत्यन्त ध्यानपूर्वक अन्दर की परिस्थितियों को सूक्ष्म-जीवों से मुक्त रखा जाता है।
जब आप किसी मोटे व्यक्तिकी आँत के सूक्ष्म-जीव लेते हैं और उसे सूक्ष्म-जीव रहित चूहे की आँत में डालते हैं, तो देखा गया कि वह चूहा अधिक खाता है और उसका वज़न बढ़ने लगता है। यदि यही प्रक्रिया आप एक दुबले व्यक्ति की आँत के सूक्ष्म-जीवों को लेकर करें तो चूहा ज़्यादा भागदौड़ करता है।
प्रोफेसर जेफरी गॉर्डन और उनके साथियों ने एक अद्भुत प्रयोग किया। उन्होंने मालावीयन जुड़वाँ जोड़ों की आँतों के सूक्ष्म-जीवों को लिया। इनमें से एक को पोषण-सम्बन्धी विकार (क्वाशीयोरकर) था जबकि दूसरा जुड़वाँ स्वस्थ था। फिर उन्होंने सूक्ष्म-जीव मुक्त चूहों की आँतों को इन जुड़वाँ से प्राप्त सूक्ष्म-जीवों से भर दिया।
चूहे जिनकी आँतों में कुपोषित जुड़वाँ से प्राप्त सूक्ष्म-जीव थे, कम वज़न के पाए गए, जबकि स्वस्थ जुड़वाँ से सूक्ष्म-जीव प्राप्त चूहे सामान्य थे।
चारुदत्त नवरे: होमी भाभा सेंटर फॉर साइंस एजुकेशन (एच.बी.सी.एस.ई.), मुम्बई में शोध के छात्र हैं। आइकेन चिकित्सा स्कूल, न्यू यॉर्क और एन.सी.एल, पुणे से शोध का अनुभव। उनके द्वारा तैयार की गई यह पुस्तक एकलव्य से प्रकाशित होने वाली है।
सभी चित्र: रेशमा बर्वे: अभिनव कला महाविद्यालय, पुणे से वाणिज्यिक कला में पढ़ाई। कई पुस्तकों का चित्रांकन किया है।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: कोकिल चौधरी: संदर्भ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।