सवाल: सिर के बाल जल्दी बढ़ते हैं पर शरीर के क्यों नहीं?

—शासकीय आश्रमशाला, वाइखुर्द, अमरावती

जवाब: इस सवाल का सीधा-सा जवाब तो यह है कि सिर के बाल और शरीर के बालों की प्रकृति अलग-अलग होती है। अब इस बाल कथा को विस्तार में देखते हैं।

बालों की प्रकृति और विकास  
मनुष्य के शरीर पर दो तरह के बाल होते हैं - एक तरह के बालों को वेलस (vellus) बाल कहते हैं और ये कुछ हिस्सों को छोड़कर पूरे शरीर पर पाए जाते हैं। इन्हें हम रोएँ या रोंगटे भी कह सकते हैं। ये बहुत पतले, छोटे, रंगहीन और लगभग पारदर्शी होते हैं। दूसरे किस्म के बालों को टर्मिनल बाल कहते हैं। ये लम्बे, मोटे तथा रंगीन होते हैं।

सिर के बाल और शरीर पर नज़र आने वाले बाल टर्मिनल बाल होते हैं। दोनों की रचना एक समान होती है। दोनों का एक हिस्सा त्वचा के एपिडर्मिस हिस्से में एक गड्ढा-सा होता है जो डर्मिस में धँसा होता है। इसे फॉलिकल कहते हैं। फॉलिकल में ही कोशिकाएँ विभाजन करती हैं। दरअसल, वेलस बाल की रचना मोटे तौर पर इनके समान ही होती है किन्तु इनके बीच जो प्रमुख अन्तर है, वह इनके वृद्धि के चक्र का है। दोनों में ही वृद्धि की तीन अवस्थाएँ होती हैं - एनाजेन, कैटाजेन और टीलोजेन।

एनाजेन वह अवस्था है जब बाल के फॉलिकल की कोशिकाएँ तेज़ी-से विभाजन करती हैं और ऊपर की ओर धकेली जाती हैं। ये त्वचा को फोड़कर बाहर निकल आती हैं मगर तब तक मृत हो चुकी होती हैं। किन्तु नीचे से फॉलिकल में बन रही नई-नई कोशिकाएँ इन्हें ऊपर धकेलती रहती हैं और बाल बढ़ता रहता है। जब तक फॉलिकल एनाजेन अवस्था में रहता है तब तक कोशिकाएँ विभाजित होती रहती हैं और बाल बढ़ता रहता है।

इसके  बाद  आती  है  कैटाजेन अवस्था। किसी वजह से फॉलिकल निष्क्रिय हो जाता है, कोशिकाओं की वृद्धि रुक जाती है और साथ ही बाल का बढ़ना भी। इसके बाद फॉलिकल कुछ समय के लिए विश्राम करता है जिसे टीलोजेन अवस्था कहते हैं। इस अवस्था में अन्तत: फॉलिकल से जुड़ा बाल झड़ जाता है और एक बार फिर यह चक्र शुरू होता है।

तो स्पष्ट है कि बाल की लम्बाई एनाजेन अवस्था पर निर्भर करती है। सिर के बालों के लिए एनाजेन अवस्था तीन से पाँच साल तक की होती है। इसके बाद कैटाजेन अवस्था करीब 1-2 हफ्ते की और टीलोजेन अवस्था 3-4 महीने की। सारे बाल अलग-अलग अवस्थाओं में होते हैं।

एनाजेन अवस्था में बाल सालाना 15 से.मी. बढ़ता है (प्रतिदिन आधा मिलीमीटर से थोड़ा कम)। इसका मतलब है कि यदि किसी व्यक्ति के बालों की एनाजेन अवस्था 5 वर्ष चलती है तो उसके बाल 75 से.मी. यानी करीब ढाई फुट लम्बे हो जाएँगे और यदि एनाजेन अवस्था तीन साल की है तो बालों की अधिकतम लम्बाई 45 से.मी. (डेढ़ फुट) रहेगी। आम सोच यह है कि एनाजेन अवस्था की लम्बाई का निर्धारण जेनेटिक रूप से होता है।

शरीर और सिर के बाल   
शरीर के बालों और सिर के बालों में प्रमुख अन्तर एनाजेन अवस्था की अवधि का है। शरीर के बालों की एनाजेन अवस्था चन्द हफ्तों की होती है। मान लीजिए यह अवस्था 4 हफ्ते यानी 28 दिन  चलती  है।  प्रतिदिन  आधा मिलीमीटर के हिसाब से शरीर के बाल 14 मि.मी. (यानी करीब डेढ़ से.मी.) लम्बे हो पाएँगे।

तो शरीर के बाल लम्बे नहीं हो पाते क्योंकि उनकी एनाजेन अवस्था बहुत छोटी अवधि की होती है। मगर शायद सवाल यह है कि शरीर के बालों की एनाजेन अवस्था इतनी छोटी क्यों होती है। चलिए इस सम्बन्ध में ‘बाल साहित्य’ पर नज़र डालते हैं। सिर के बालों की लम्बी एनाजेन अवस्था और शरीर के बालों की छोटी एनाजेन अवस्था की व्याख्या के लिए कई सिद्धान्त प्रस्तुत किए गए हैं। किन्तु इन सारे तथाकथित सिद्धान्तों को पढ़ते समय मन में थोड़ी शंका बनाए रखें क्योंकि इनमें से किसी के लिए कोई प्रमाण नहीं है।

शरीर पर बालों के फायदे
इन सिद्धान्तों में एक-दो बातें एक जैसी हैं। जैसे यह लगभग सभी स्वीकार करते हैं कि शरीर पर बाल होने से शरीर के तापमान को स्थिर रख पाना ज़्यादा आसान होता है। बाल स्वयं ऊष्मा के अच्छे चालक होते हैं। मगर बालों का जंगल हो तो उसमें हवा कैद हो जाती है जो ऊष्मा की कुचालक है। तो बाल वाले जानवरों को ठण्ड के समय यह फायदा मिलेगा कि उनके शरीर में पैदा होने वाली गर्मी शरीर के आसपास ही बनी रहेगी और उन्हें ठण्ड नहीं लगेगी। यदि वातावरण ठण्डा है तो इन्हें फायदा मिलेगा क्योंकि ये अधिक सक्रिय रह पाएँगे, ज़्यादा भोजन खोज पाएँगे, तन्दुरुस्त रह पाएँगे और ज़्यादा बच्चे भी पैदा करेंगे।

  • मनुष्य के शरीर पर औसतन 50 लाख फॉलिकल्स होते हैं और ये जन्म के समय से ही मौजूद होते हैं।
  • खोपड़ी पर लगभग 1 लाख फॉलिकल होते हैं।
  • सिर के बाल सालाना लगभग 6 इंच बढ़ते हैं।
  • बालों की वृद्धि फॉलिकल में कोशिका विभाजन के फलस्वरूप होती है।

किन्तु यदि गर्मी बढ़ने लगे तो इनकी हालत पतली हो जाएगी। इन्हें छाया में बैठकर सूरज ढलने का इन्तज़ार करना पड़ेगा। ये पीछा करके शिकार को पकड़ नहीं पाएँगे क्योंकि ऐसी गतिविधि के दौरान शरीर में बहुत गर्मी उत्पन्न होगी और बालों के आवरण के कारण वह वातावरण में बिखर नहीं पाएगी।

एक सिद्धान्त के मुताबिक सुदूर इतिहास में यही स्थिति बनी थी। ठण्डे वातावरण के बाद गर्मी का दौर आया। तब उन जानवरों को तरजीह मिली जिनके शरीर पर कम बाल थे। लेकिन एक शर्त और थी। ज़रूरी था कि उनके पास शरीर में पैदा होने वाली गर्मी से निजात पाने के अन्य तरीके हों। पसीना ऐसा ही एक तरीका बना। स्तनधारियों में मनुष्य के आकार के अन्य प्राणियों में पसीना व्यवस्था नहीं पाई जाती।

इस सन्दर्भ में एक तथ्य यह भी बताया जाता है कि घास के मैदानों में रहने वाले स्तनधारियों में आम तौर पर छोटे आकार के जानवरों में बाल पाए जाते हैं जबकि बड़े आकार के प्राणियों में बाल नहीं होते। कहते हैं कि बड़े प्राणी अपने बड़े डील-डौल के दम पर खुद को गर्म रख पाते हैं। मगर इस हिसाब से मनुष्य के शरीर पर खूब बाल होने चाहिए क्योंकि उसके आकार के अन्य स्तनधारियों के शरीर पर बाल होते हैं। तो कहा गया कि मनुष्य की एक और विशेषता इस मामले में काम करती है - मनुष्य दोपाए हैं जबकि शेष स्तनधारी चौपाए हैं। दो पैरों पर चलने के कारण शरीर के जिस भाग पर सीधे धूप पड़ती है वह 40 प्रतिशत तक कम हो जाता है। ऐसी स्थिति में बालों में निवेश करना नुकसान का सौदा था (और साथ में पसीने छूटने ही लगे थे) और धीरे-धीरे शरीर के बाल गायब होते गए। इसी सिद्धान्त के मुताबिक सिर के बाल बचे रहे क्योंकि दोपाया होने के बावजूद सिर पर तो धूप पड़ती ही है।

एक धारणा यह भी प्रस्तुत हुई है कि बालों में कई परजीवी निवास कर सकते हैं। इसलिए एक ओर तो ठण्ड से बचने के लिए बालों का लाभ कम होता जा रहा था तथा दूसरी ओर यही बाल परजीवियों को पनाह दे रहे थे, तो बालों से निजात पाना दोहरे फायदे का सौदा था।
लेकिन तब सवाल उठता है कि शरीर के सारे बाल गायब क्यों नहीं हो गए। आप जानते ही हैं कि शरीर के कुछ हिस्सों पर बाल बरकरार हैं। शरीर पर ये जो बाल हैं, इनकी एक खासियत है। इन्हें एंड्रोजेनिक बाल कहते हैं क्योंकि ये एंड्रोजेन हारमोन्स के असर से बढ़ते हैं। शरीर में इन हारमोन्स की मात्रा किशोरावस्था (प्यूबर्टी) में बढ़ने लगती है और इसके असर से शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर एंड्रोजेनिक बाल बढ़ने लगते हैं। पुरुषों में एंड्रोजेन की मात्रा अधिक होती है, इसलिए उनमें शरीर के बाल भी अधिक स्थानों पर तथा अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इस अन्तर के आधार पर एक धारणा यह उभरी कि शरीर के बाल सम्भवत: यौन-साथी के चयन में कुछ भूमिका निभाते हैं। इस सन्दर्भ में किए गए अध्ययन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचे हैं।

यह भी कहा गया है कि शरीर के कुछ भागों पर बाल विशिष्ट भूमिका निभाते हैं। जैसे पलकों के बाल धूल को आँख में जाने से रोकते हैं जबकि भौंहों के बाल ललाट से बहते पसीने से आँखों को बचाते हैं। यह सुझाव भी दिया गया है कि बगलों के बाल हाथ हिलाते समय घर्षण को कम करते हैं। एक सुझाव यह भी है कि जंघन क्षेत्र (यानी जननांगों के आस-पास का हिस्सा यानी प्यूबिक क्षेत्र) में जो बाल होते हैं वे वहाँ पैदा होने वाली गन्ध को सहेजकर रखते हैं और यह यौन साथी के चयन में सहायक होती है।

शरीर पर बालों की अल्प-उपस्थिति को लेकर एक सिद्धान्त यह भी दिया गया था कि किसी समय मनुष्य को काफी समय पानी में बिताना पड़ा था और वहाँ चलने-फिरने में बाल दिक्कत पैदा करते थे, इसलिए कम बालों वाले सदस्यों को तरजीह मिली।
तो आप देख ही सकते हैं कि शरीर के बालों को लेकर कई धारणाएँ हैं और इनमें से अधिकांश मात्र धारणाएँ ही हैं। और मैदान अभी खुला है। तो क्यों न आप भी हाथ आज़माएँ।


सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि।