सुनील बागवान

बच्चे शाला आने से पूर्व ऐसी कई अवधारणाएँ सहज रूप से सीख चुके होते हैं जिन्हें विद्यालयी शिक्षा-तंत्र में अलग-अलग विषयों के नाम से जाना जाता है। यदि यह सहजता हमारी विद्यालयी शिक्षा प्रणाली द्वारा अपना ली जाए तो बच्चों का सीखना सहज रूप से जारी रह सकता है। यद्यपि राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 भी सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए बच्चों के पूर्व-अनुभवों और उनकी अपनी भाषाओं को कक्षा में स्थान देने के महत्व को इंगित करती है, लेकिन यह अफसोस का विषय है कि वर्तमान में विभिन्न राज्यों की मौजूदा प्राथमिक शिक्षा के स्तर की पाठ्यचर्या भी अलग-अलग विषयों में विभाजित है। सेवापूर्व और सेवाकालीन शिक्षक प्रशिक्षण भी इस विषयवार विभाजन का पालन करना ही सिखा रहे हैं।
अज़ीम प्रेमजी शाला (ग्राम शंकरदाह, ज़िला-धमतरी, छत्तीसगढ़) में कक्षा अवलोकन के दौरान मैंने पाया कि वहाँ पर नियुक्त एक शिक्षक विषय-विशेष (पर्यावरण अध्ययन) का शिक्षण करवाते हुए बच्चों के अनुभवों का समावेशन करते हुए पाठ्यक्रम में निहित चुनौतियों के समाधान खोजने की दिशा में स्वयं से प्रयास किए जाने पर ज़ोर देते हैं। उनकी ऐसी कुछ कक्षाओं का विवरण यहाँ पर साझा कर रहा हूँ।

पहला दिन
कक्षा-4 में सभी 26 बच्चों की उपस्थिति लेने के उपरान्त शिक्षक ने पूछा, “पिछली कक्षा में हमने क्या बात की थी?” छात्र-छात्राओं ने बताया, “हमने आग जलाने के तरीके एवं आग के उपयोग पर चर्चा की थी।” कक्षा में बैठे बच्चों ने आग जलाने के तरीके और आग के उपयोग सम्बन्धित कई सारे उदाहरण दिए।
शिक्षक ने पूछा, “जो चीज़ें जलती हैं उन्हें क्या कहते हैं?” बच्चे जवाब देने लगे और शिक्षक बोर्ड पर लिखने लगे। बच्चों द्वारा दिए गए जवाबों को शिक्षक ने दोहराते हुए कहा, “लकड़ी, पेट्रोल, कपड़ा, घास, कोयला, कण्डा (छेना), धान का पैरा, मिट्टी का तेल आदि आग में जलते हैं।” फिर शिक्षक ने पूछा, “इन सबको एक शब्द में क्या कह सकते हैं?”
यह सवाल सुनकर कक्षा में कुछ देर शान्ति छा गई, फिर एक लड़की ने जवाब दिया, “टीचर, इन्हें आग में जलने वाली चीज़ें कह सकते हैं।” शिक्षक ने कहा, “हाँ, आप सही कह रही हो कि ये सब आग में जलने वाली चीज़ें हैं। इन्हें एक शब्द में ‘ईंधन’ कहते हैं।”
शिक्षक ने कहा, “आज हम जानेंगे कि आग जलती कैसे है। आग जलने के लिए क्या-क्या चीज़ें ज़रूरी होती हैं।”
ईंधन
शिक्षक ने अपने सामने रखी टेबल पर एक मोमबत्ती जलाई, सभी बच्चे ध्यानपूर्वक देख रहे थे। अब शिक्षक ने बच्चों से पूछा, “क्या जल रहा है?” बच्चों ने कहा, “मोमबत्ती जल रही है।” शिक्षक ने फिर पूछा, “मोमबत्ती में क्या जल रहा है?” बच्चों ने तरह-तरह के जवाब दिए, जैसे किसी ने कहा कि मोम आग में जल रही है, किसी ने कहा धागा जल रहा है और मोम पिघल रही है।
शिक्षक - मोमबत्ती में धागा न हो तो मोमबत्ती जलेगी?
बच्चे - नहीं जलेगी।

शिक्षक - केवल धागा हो, मोम न हो तो धागा जलेगा?
बच्चे - हाँ, धागा मोम के बिना भी जलेगा।
शिक्षक ने धागे के टुकड़े को जलाकर बच्चों को दिखाते हुए पूछा, “धागा तो थोड़ी-सी देर में बुझ जाता है, फिर मोमबत्ती देर तक क्यों जलती है? और यह मोमबत्ती कब तक जलेगी?”
बच्चे - मोमबत्ती की मोम जब तक खतम नहीं होगी तब तक जलेगी।
शिक्षक - लेकिन डोमन तो कह रहा है कि मोम तो बस पिघलती है, जलता तो केवल धागा है।
यह सुनकर डोमन ने तुरन्त ही अपनी पहले कही गई बात में सुधार किया और एक अन्य उदाहरण देते हुए बोला, “मोमबत्ती में मोम और धागा, दोनों जलते हैं जैसे दीपक में तेल और बत्ती, दोनों जलते हैं।”
शिक्षक - मोमबत्ती जलाने में ईंधन क्या है?
बच्चे - मोम एक प्रकार का ईंधन है।
शिक्षक - मोम के बिना मोमबत्ती जलती है?

बच्चे - मोम के बिना धागा थोड़ी-सी देर में जलकर राख हो जाएगा, मोमबत्ती की तरह नहीं जलेगा।
एक बच्ची ने कहा कि मोम के बिना तो मोमबत्ती ही नहीं होगी और यह सुनकर सब हँसने लगे।
शिक्षक - दीपक जलता है तो उसमें ईंधन क्या होगा?
बच्चों ने एक स्वर में जवाब दिया, “तेल।”
शिक्षक ने बोर्ड पर जलती हुई मोमबत्ती, जलती हुई लकड़ियाँ, जलता हुआ दीपक, गैस चूल्हा आदि के चित्र बनाए और उनमें ईंधन के रूप में मोम, लकड़ी, तेल, एलपीजी गैस आदि पर चर्चा की - यह आग तब तक जलती है जब तक ईंधन होता है, ईंधन समाप्त होने पर आग बुझ जाती है। इस प्रकार शिक्षक और बच्चे आपस में चर्चा कर इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि आग जलने के लिए ईंधन की आवश्यकता होती है।

हवा
अब शिक्षक ने सब बच्चों को टेबल पर जलती हुई मोमबत्ती को ध्यानपूर्वक देखने के लिए कहा। सभी बच्चे जलती हुई मोमबत्ती को ध्यान से देख रहे थे, तभी शिक्षक ने उस पर काँच का गिलास उल्टा रख दिया और देखते-देखते कुछ ही देर में मोमबत्ती बुझ गई।
शिक्षक ने बच्चों से पूछा, “आग क्यों बुझ गई?” इस सवाल पर बच्चों ने तरह-तरह की प्रतिक्रियाएँ दीं।
एक बच्चे ने कहा - गिलास के अन्दर पानी था, और उस पानी से मोमबत्ती बुझ गई।
इस जवाब से असहमति दर्ज करते हुए शिक्षक ने गिलास का अवलोकन करने के लिए दिया। बच्चों ने पाया कि गिलास में पानी नहीं है। शिक्षक ने उस सूखे हुए गिलास को पुन: जलती हुई मोमबत्ती पर रखा तो इस बार भी मोमबत्ती बुझ गई।
एक बच्चे ने कहा, “गिलास से ढँकने पर मोमबत्ती गरम होकर बुझ गई, गिलास से मोमबत्ती को ढँकने से वहाँ की हवा भी गरम हो गई।” शिक्षक ने बच्चों से पूछा, “बाकी लोगों को क्या लगता है?” कुछ बच्चों ने असहमति दर्ज कराते हुए कहा, “आग तो खुद ही गरम होती है, फिर गर्म हवा से कैसे बुझ जाएगी?”

कुछ देर सब चुप रहे... फिर एक बच्चे ने कहा कि मोमबत्ती के धुएँ को बाहर निकलने के लिए जगह नहीं मिली और मोमबत्ती बुझ गई। इस जवाब पर एक बच्चे ने असहमत होते हुए कहा, “मोमबत्ती के जलने पर धुआँ नहीं निकला, मोमबत्ती के बुझने के बाद ही धुआँ निकला था।” शिक्षक ने कहा, “चलो, फिर से देखते हैं।” दो-तीन बार मोमबत्ती जलाकर उस पर गिलास उल्टा रखने की प्रक्रिया दोहराई और सभी ने पाया कि गिलास ढँकने पर पहले मोमबत्ती बुझती है और धुआँ बाद में निकलता है।
शिक्षक ने बच्चों से पुन: पूछा, “मोमबत्ती बुझने का क्या कारण हो सकता है?” यह सुनकर कक्षा में फिर से शान्ति थी, उस शान्ति के बीच भूमिका ने कहा, “जलती हुई मोमबत्ती पर गिलास ढँकने से मोमबत्ती का दम घुट गया, और वह बुझ गई। जैसे अगर कोई हमें कमरे में बन्द कर देता है तो हमारा दम घुटने लगता है, इसी तरह से मोमबत्ती का भी दम घुट गया।” भूमिका की यह बात सुनकर किसी ने भी असहमति दर्ज नहीं की।
शिक्षक ने अन्य बच्चों से पूछा, “आपको क्या लगता है? क्या मोमबत्ती का दम घुटा होगा?” एक बच्चे ने कहा, “हाँ, मुझे भी यही लगता है, मोमबत्ती को हवा नहीं मिली तो मोमबत्ती बुझ गई।” कक्षा में लगभग सहमति थी कि मोमबत्ती को काँच के गिलास से ढँकने पर उसे हवा नहीं मिली और हवा के अभाव में उसका दम घुट गया, मोमबत्ती बुझ गई।
शिक्षक ने बच्चों की बात में अपनी बात जोड़ने के लिए पुन: सवाल पूछा, “हमें ज़िन्दा रहने के लिए क्या चाहिए? हवा या ऑक्सीजन?”
बच्चे - हमें ऑक्सीजन चाहिए।
शिक्षक - मोमबत्ती को भी जलने के लिए ऑक्सीजन चाहिए। मोमबत्ती को गिलास से ढँकने पर उसे ऑक्सीजन नहीं मिली और वह बुझ गई।
शिक्षक ने बच्चों से पूछा, “अब आप बता सकते हो कि आग जलाने के लिए क्या-क्या चाहिए?”
बच्चे - ईंधन और ऑक्सीजन (हवा)। यह बात शिक्षक ने बोर्ड पर लिख दी।

गर्मी
शिक्षक ने बच्चों से बोर्ड पर लिखे हुए की तरफ इशारा करते हुए पूछा, “आग जलाने के लिए क्या चाहिए?” बच्चों ने बताया, “ईंधन और हवा चाहिए।” शिक्षक ने बच्चों के इस जवाब को चुनौती देते हुए माचिस की तीली को हवा में लहराते हुए पूछा, “तीली एक ईंधन है और हवा भी उपलब्ध है लेकिन फिर भी तीली जल क्यों नहीं रही है? आप तो कह रहे थे कि आग जलाने के लिए ईंधन और हवा चाहिए।” इसी प्रकार उन्होंने मोमबत्ती और कागज़ को हाथ में लेकर कहा, “मोम और कागज़, दोनों ईंधन हैं और कमरे में हवा भी है, लेकिन जल तो नहीं रहे हैं।”
कान्हा ने कहा, “माचिस की तीली को मैं पकड़ूँगा तो जलेगी।” शिक्षक ने माचिस की तीली कान्हा के हाथ में दी। कान्हा ने तीली हाथ में ली और सभी बच्चे उस तीली को ध्यान से देखने लगे। तीली नहीं जली, सब हँसने लगे। अब कान्हा ने कहा, “तीली जलेगी इसे धूप में रखूँगा तब...।” शिक्षक ने कहा, “आज तो कालांश समाप्त होने वाला है। कल बात करेंगे कि आग जलाने के लिए ईंधन एवं हवा के अलावा और क्या चाहिए।”

दूसरा दिन
अगले दिन कक्षा की शुरुआत में ही कान्हा ने टीचर से जाकर कहा कि माचिस की तीली धूप में रखी थी तो वह जल गई थी, और सबूत बतौर उसने एक बुझी हुई तीली भी दिखाई।
शिक्षक ने कान्हा द्वारा बताई गई बात को सब बच्चों को बताया, “कल जब हम बात कर रहे थे कि आग जलाने के लिए ईंधन और हवा के अलावा और क्या चाहिए तो कान्हा कह रहा है कि धूप चाहिए, धूप में तीली रखने पर जल गई। ऐसा हो सकता है क्या? अगर तीली जलती तो आग जलने का ज़मीन पर कोई निशान तो होता?” एक बच्चा कान्हा के साथ उस स्थान पर गया जहाँ तीली जलने के बारे में कान्हा के द्वारा कहा जा रहा था, वापस आकर उसने बताया कि वहाँ कोई निशान नहीं है। यह सुनकर कक्षा में कोई कुछ नहीं बोला। कान्हा भी निरुत्तर था।
शिक्षक ने बच्चों से कहा, “चलो यह समझते हैं कि आग जलने के लिए ईंधन और हवा के अलावा आखिर और क्या चाहिए।” शिक्षक ने बच्चों को मोमबत्ती दिखाते हुए कहा, “अभी यह नहीं जल रही है।” अब शिक्षक ने माचिस की तीली को जला कर मोमबत्ती जलाई और पूछा, “यह मोमबत्ती कैसे जली?”

एक बच्चे ने कहा, “माचिस की तीली की आग गरम है, और गरम आग से मोमबत्ती जल गई।” शिक्षक ने उस बच्चे की बात सुनकर कहा, “देखो भाई, आग गरम तो होती है, और माचिस तीली की गरम आग से मोमबत्ती जलने की बात से बाकी लोगों की सहमति है क्या?” बच्चों ने सहमति में ‘हाँ’ कहा।
इस पर शिक्षक ने बच्चों से कहा, “अपने हाथ आपस में घिसकर अपने गालों पर लगाओ।” कुछ बच्चे अपने हाथ आपस में घिसने लगे, कुछ बच्चे सवाल सुनकर ही बोलने लगे कि हाथ गरम लगते हैं। एक बच्चे ने कहा, “चकमक पत्थर आपस में रगड़ते हैं तो आग पैदा होती है।” एक अन्य बच्चा बोला, “माचिस की तीली भी घिसने पर ही जलती है।”
इसके बाद बच्चों ने ऐसे कई उदाहरण प्रस्तुत किए जो यह साबित करते थे कि आग जलाने के लिए गर्मी की ज़रूरत होती है। जैसे, आग गरम होती है इसलिए सब चीज़ों को जला देती है, गर्मी के दिनों में जंगल में आग लग जाती है।
शिक्षक ने जलती मोमबत्ती से कुछ दूरी पर माचिस की तीली रखी, कुछ देर बाद माचिस की तीली जल गई।
बच्चे - आग की गर्मी पाकर तीली जल गई।
शिक्षक बोर्ड के पास आए और बच्चों से मूल सवाल पुन: पूछा, “अब आप बता सकते हैं कि आग जलने के लिए क्या-क्या चाहिए?” बच्चों ने बताया, “आग जलने के लिए ईंधन, हवा और गर्मी भी चाहिए।”

शिक्षक ने बच्चों की समझ को परखने के लिए कुछ और सवाल पूछे, जैसे माचिस की तीली जलाकर काँच के गिलास को जलाने की कोशिश की और बच्चों से पूछा कि काँच जलेगा क्या?
बच्चे - काँच नहीं जलेगा।
शिक्षक - राख जलती है क्या?
बच्चे - राख भी नहीं जलती।
डोमन ने शिक्षक की बात से असहमति प्रकट करते हुए कहा, “फटाकों की राख जलती है।”
शिक्षक - क्या फटाकों में राख होती है?
कान्हा - हाँ, राख होती है और जलती है।
शिक्षक ने माचिस की तीली की राख को जलाने का प्रयास किया और सबने पाया की वह नहीं जली।
शिक्षक - भाई काँच और राख तो आग में नहीं जल रहे हैं। काँच और राख को ईंधन कहेंगे क्या?
बच्चों ने एक स्वर में जवाब दिया - काँच और राख ईंधन नहीं हैं।
लेकिन डोमन ने फिर से अपनी बात को दोहराते हुए कहा, “फटाके की राख जलती है और ज़ोर-से जलती है।” शिक्षक ने कहा, “तुम उस राख को लेकर आना फिर बात करेंगे।”

अब शिक्षक ने एक नई वस्तु (आवर्धक लेंस) निकालते हुए बच्चों से पूछा, “यह क्या है?” बच्चे उसे काँच के रूप में जानते थे।
शिक्षक - इस काँच में से आप मेरे मुँह, हाथ, आँख, नाक देख रहे हो?
शिक्षक ने आवर्धक लेंस को अपनी आँख, नाक, कान, दाँत आदि के ऊपर से गुज़ारा। बच्चों ने शिक्षक की बड़ी-सी नाक देखी, बड़े-बड़े दाँत देखे तो सब हँसने लगे। शिक्षक ने बताया कि इसे आवर्धक लेंस कहते हैं क्योंकि इससे चीज़ें बड़ी दिखाई देती हैं। आवर्धक लेंस देखकर कान्हा के चेहरे पर मुस्कान छा गई, उसने उत्साह से कहा, “टीचर, मैं भी तो इसी की धूप से तीली जलाने का कह रहा था। इससे तीली तो क्या कागज़, घास भी जल जाएँगे।” सभी बच्चे यह सुनकर कान्हा को आश्चर्य से देखने लगे।
शिक्षक - कान्हा कह तो सही रहा है, कल उसकी बात मुझे भी समझ नहीं आई थी। आज देखेंगे कि धूप में तीली कैसे जलती है।
शिक्षक ने अब सब बच्चों को बाहर चलने के लिए कहा। बाहर धूप थी। शिक्षक ने आवर्धक लेंस से धूप को ज़मीन पर एक बिन्दु पर केन्द्रित किया। इस बिन्दु वाली जगह पर बच्चों ने अपना हाथ रख के तेज़ गर्मी महसूस की। तेज़ गर्मी के कारण थोड़ी ही देर में बच्चे अपना हाथ हटा लेते थे। अब शिक्षक ने धूप में आवर्धक लेंस की सहायता से माचिस की तीली पर प्रकाश की किरणों को केन्द्रित किया तो कुछ देर में माचिस की तीली जल उठी। यह घटना सभी बच्चे नहीं देख पाए थे, अत: शिक्षक ने बच्चों को गोल घेरे में अवलोकन करने के उद्देश्य से खड़ा किया। घेरे के बीच में अब एक कागज़ के टुकड़े पर माचिस की तीली रखी। इस तीली पर आवर्धक लेंस से प्रकाश की किरणें केन्द्रित कीं तो तीली जल उठी और फिर तीली से कागज़ जलने लगा। यह देखकर बच्चे कहने लगे, “तेज़ गर्मी के कारण तीली जली और तीली की आग से कागज़ जला।” शिक्षक ने दोहराव कराते हुए बताया, “आग जलाने के लिए ईंधन, हवा और गर्मी की आवश्यकता होती है।” कालांश का समय समाप्त हो चुका था। शिक्षक ने बच्चों से कहा, “कल आपको सूची बनाकर लाना है, आप अपने आसपास कहाँ-कहाँ आग जलते हुए देखते हैं? कौन-सी आग किस-किस रंग की होती हैं?”

तीसरा दिन
आज कक्षा की शुरुआत शिक्षक ने पिछले दिन के सवाल से की - आग के कौन-कौन-से रंग होते हैं?
बच्चे - आग पीले रंग की होती है।
शिक्षक - क्या आग सिर्फ पीले रंग की ही होती है?
इस पर पीला, लाल, पपीते जैसा पीला, आसमान जैसा नीला, लाल और पीला, नीला और पीला आदि आग के रंग भी बच्चों ने बताए।
अब शिक्षक ने बोर्ड पर निम्नानुसार एक टेबल बनाया, और बच्चों से कहा, “सोचकर बताओ कि किस आग का रंग कौन-सा होता है।” बच्चों द्वारा दिए गए जवाबों को शिक्षक ने टेबल में लिखा (तालिका-1)।
इस प्रकार बनी तालिका को देखकर बच्चों ने कई प्रकार की प्रतिक्रियाएँ दीं:
* सभी की आग कभी-कभी पीली होती है।
* गैस की आग ज़्यादातर नीली ही होती है।
* कोयले लाल और पीली लौ के साथ जलते हैं।
* लकड़ी के चूल्हे की आग में पीला ज़्यादा और लाल रंग कम होता है।
आग के रंगों पर इस प्रकार बच्चे अपनी राय दे रहे थे। इसी दौरान आरज़ू ने कहा, “गैस चूल्हे की आग में खाना बनाने पर बर्तन काले नहीं पड़ते हैं, जबकि चूल्हे और स्टोव पर रखे बर्तन काले हो जाते हैं।” अन्य बच्चों का ध्यान भी इस प्रकार की अन्य बातों की ओर गया।
* गैस चूल्हे से धुआँ नहीं निकलता है, इसलिए बर्तन भी कम काले होते हैं।
* चूल्हे और स्टोव पर आग जलाने के दौरान धुआँ निकलता है और बर्तन काले हो जाते हैं।
* कोयले की आग ज़्यादा लाल होती है और चूल्हे की अपेक्षा कोयले की आग से बर्तन कम काले होते हैं।
* गैस पर आँच (गर्मी) अच्छे से लगती है और खाना जल्दी बन जाता है।
शिक्षक ने बच्चों की इन प्रतिक्रियाओं को सुनकर सवाल किया, “ज़्यादा अच्छा ईंधन कौन-सा है?” बच्चों ने जवाब दिया, “गैस ज़्यादा अच्छा ईंधन है।” शिक्षक ने कहा, “एलपीजी गैस जलाने से धुआँ भी नहीं उत्पन्न होता और खाना भी आसानी से बना सकते हैं, इसलिए इसे आदर्श ईंधन भी कहते हैं।” अब शिक्षक ने बोर्ड पर आदर्श ईंधन के गुण लिखे और उन पर चर्चा की।

अन्त में
छत्तीसगढ़ राज्य की कक्षा-4 की पर्यावरण अध्ययन की किताब में ‘आग’ नामक एक पाठ है जिसकी विषयवस्तु बच्चों से यह अपेक्षा करती है कि बच्चे आग जलाने के तरीके और उपयोग के बारे में परिचित हो जाएँ।
इन कक्षाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि शिक्षक ने बच्चों के पूर्व-अनुभवों को शैक्षिक प्रक्रिया में शामिल करने के लिए उन्हें अपनी बात कहने के सार्थक मौके दिए। ये मौके सिर्फ पाठ्य पुस्तक में दी गई पाठ्य सामग्री तक सीमित नहीं थे। इन अनुभवों के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि शैक्षिक क्रियाकलापों के दौरान यदि बच्चों को पर्याप्त व सार्थक मौके मिलें तो वे बिना किसी झिझक के सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भागीदारी कर पाते हैं। इस प्रकार की भागीदारी के दौरान बच्चे परस्पर एक-दूसरे के विचारों को सुनना, सुनकर समझते हुए एक-दूसरे के तर्कों को चुनौती देना, सवाल पूछना, अपनी असहमति या सहमति प्रकट करना आदि कार्य कर रहे थे।
पर्यावरण अध्ययन की इस कक्षा-प्रक्रिया के दौरान शिक्षक और बच्चे तार्किक संवाद एवं छोटे सरल क्रियाकलाप के साथ-साथ अवलोकन और तर्क के माध्यम से नए-नए शब्दों के अर्थ गढ़ रहे थे। सापेक्ष रूप से नई अवधारणाओं जैसे - ईंधन, हवा, गर्मी आदि कई शब्दों को वे अपने-अपने सन्दर्भ के साथ जोड़कर यह समझ पा रहे थे कि आग जलाने के लिए क्या-क्या चाहिए।

यह एक चिन्ता का विषय है कि वर्तमान में भी प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर पाठ्यचर्या विषयों में विभाजित है। इस विषयवार विभाजित पाठ्यचर्या पर आधारित शिक्षा व्यवस्था में अकादमिक सहयोगकर्ता या प्रशासनिक अधिकारी जब विद्यालयों में भ्रमण के दौरान आते हैं तो उनका ज़ोर इस बात पर रहता है कि शिक्षक द्वारा कितने पाठ पढ़ाए जा चुके हैं, कितना पाठ्यक्रम पूरा करवाया गया है। एस.सी.ई.आर.टी. छत्तीसगढ़ के द्वारा भी स्कूलों को वार्षिक कैलेण्डर बना कर दिया जाता है जिसमें यह निर्देशित होता है कि किस विषय के कितने पाठ किस माह तक शिक्षक को पढ़ाने हैं। इन सबका मिलाजुला परिणाम यह होता है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में शिक्षण प्रक्रियाएँ अत्यन्त पाठ्यपुस्तक केन्द्रित बनी हुई हैं।
इस अनुभव से समझ में आया कि पाठ्यपुस्तक केन्द्रित शिक्षण की बजाए बच्चों की ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया को सतत आगे बढ़ाने में शिक्षक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।


सुनील बागवान: विज्ञान तथा शिक्षा में स्नातक। समाजकार्य में स्नातकोत्तर तथा समाजशास्त्र में एम.फिल.। मुस्कान, लोकमित्र, दिगंतर आदि स्वैच्छिक संगठनों में कार्य किया है। पिछले पाँच वर्षों से अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन, धमतरी, छत्तीसगढ़ में शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत हैं।
सभी चित्र: इशिता बिस्वास: दिल्ली विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर। सृष्टि स्कूल ऑफ आर्ट, डिज़ाइन एंड टेक्नोलॉजी, बैंगलोर से आर्ट और डिज़ाइन में डिप्लोमा। स्वतंत्र चित्रकार एवं डिज़ाइनर हैं। साथ ही, एकलव्य की डिज़ाइन टीम की सदस्य।