मिशन कंट्रोल में शोक का एक क्षण, फिर वापस काम जारी...

संदर्भ के 103वे अंक (मई-जून, 2016) में हमने रोज़ेटा और उसके लैंडर फिले, जो अन्तरिक्ष में विज्ञान और तकनीकी के इस्तेमाल का एक शानदार नमूना है, के बारे में एक लेख प्रकाशित किया था। दस साल अन्तरिक्ष में हज़ारों-लाखों किलोमीटर के प्रयाण के बाद 2014 में रोज़ेटा ने चार किलोमीटर विस्तार के एक धूमकेतु (67घ्) पर फिले को सही सलामत उतारा, जो अत्यन्त सराहनीय था। इसके दो साल बाद रोज़ेटा मिशन का अन्त हुआ...

उसका समय पूरा हो गया है। सच में। रोज़ेटा अन्तरिक्ष यान ने अपने कैमरे से आखिरी तस्वीर ले ली है, अपनी आखिरी साँसें खींची हैं और उसका अन्तिम संवाददाता सम्मेलन सम्पन्न हुआ है। एकत्रित हुए वैज्ञानिकों व इंजीनियरों की आहों के एक-से कोरस के बीच मिशन अपने शान्त अन्त तक पहुँचा। इसके तत्काल बाद ही यूरोपीय अन्तरिक्ष ऑपरेशन केन्द्र के सभागार में 300 के करीब एकत्र दर्शकों ने सहज रूप से खड़े होकर मिशन कंट्रोल के उस दल की उत्साहपूर्वक तालियाँ बजाकर वाहवाही की जिसने अपनी देखरेख में इस नाज़ुक मिशन व उसके अन्त से जुड़ी उड़ानों को अंजाम दिया था।
यह एक भावनात्मक क्षण था। 40 मिनटों तक हम रोज़ेटा मिशन से जुड़े विभिन्न वक्ताओं से मिशन के प्रमुख पहलुओं की संक्षिप्त रिपोर्ट सुनते रहे थे। ओसिरिस कैमेरा टीम के प्रमुख अन्वेषक होल्गर सीर्क्स ने धूमकेतु 67घ् के सबसे नए चित्र दिखलाए जो कि सतह की तरफ आखिरी 19 कि.मी. की उड़ान के दौरान लिए गए थे (चित्र-1)। विस्तृत परिदृश्य को खूबसूरती के साथ दिखलाती छवियाँ स्पष्ट व साफ थीं।

तभी, केवल पाँच मिनट रहते, कार्यक्रम की अध्यक्षा ने कहा कि अब हम मिशन कंट्रोल में जाने वाले हैं व उड़ान इंजीनियरों के साथ उस क्षण को देखेंगे जब रोज़ेटा की लैंडिंग होगी। हम इस टचडाउन की लाइव तस्वीरें नहीं देखने जा रहे थे - कम्प्यूटर स्क्रीन पर केन्द्रित कैमेरा संचार संकेतों को दिखला रहा था। जब ये संकेत दिखना बन्द हो गए, तब इस मिशन के अन्तरिक्ष यान संचालन प्रबन्धक सिल्वेन लोडियोटने प्रतीकात्मक तौर पर अपने उस हेडसेट को हटा दिया जिसके माध्यम से रोज़ेटा के इलेक्ट्रॉनिक दिल की धड़कनें वे अब तक लगातार सुनते रहे थे। उन्होंने कहा, “यह रोज़ेटा मिशन का अन्त है,” व साथ ही “शुक्रिया व अलविदा।” वे टीम के अन्य सदस्यों की तरफ मुड़े और एक-दूसरे के गले मिलते समय सबकी आँखें भीगी व नम थीं।
लेकिन विज्ञान कहाँ कभी किसी के लिए रुका है, और एक मिनट के अन्दर जैसे ही सीर्क्स ने आखिरी प्रसारित तस्वीरों का खुलासा किया तो सभी दर्शक हर्षोन्मत्त हो गए। सतह से 360 मीटर की ऊँचाई से ली गई एक तस्वीर पर व्यंग्यपूर्ण मुस्कुराहट के साथ उन्होंने टिप्पणी की कि यह तस्वीर आने वाले काफी समय तक पत्थर गिनने वालों को व्यस्त रखने वाली है।

रोज़ेटा के उतरने से मात्र पाँच सेकण्ड पहले ली गई अन्तिम छवि आऊट-ऑफ-फोकस थी (चित्र-2)। फोकस से बाहर - यह कैसे सम्भव है! असल में कैमरा एक ऐसी तस्वीर खींच रहा था जिसे खींचने के लिए उसे डिज़ाइन नहीं किया गया था व हमें अपरिष्कृत छवि दिखलाई जा रही थी। हो सकता है कि हम कभी-कभी कुछ ज़्यादा ही उम्मीदें लगा लेते हों। विभिन्न आकार व तकरीबन 30-70 से.मी. के कई कोणीय पत्थरों को मिट्टी पर पड़े हुए स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था।

जब भावनाएँ शान्त होंगी तब समय होगा उस विरासत के बारे में विचार करने का जो रोज़ेटा अपने पीछे छोड़ गया है। विज्ञान अपनी इस विरासत से विश्लेषकों व सिद्धान्तकारों को कम-से-कम आने वाले दशक के लिए मशगूल रखेगा। लेकिन उसके बाद क्या? अन्य अन्तरिक्ष मिशन की तरह रोज़ेटा भी आने वाले मिशन के लिए एक तकनीकी और इंजीनियरिंग मंच के रूप में काम करेगा। इलेक्ट्रॉनिक्स, प्रकाशिकी और संचार, व उसके साथ ही डिज़ाइन और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में हुई प्रगति यह सुनिश्चित करेगी कि रोज़ेटा को हमेशा याद रखा जाए, और रोज़ेटा पर धूमकेतु तक भेजे गए उपकरणों के आधार पर नए उपकरण बनाए जाएँगे।
लेकिन शायद रोज़ेटा की सबसे बड़ी विरासत वे छात्र होंगे जो अब भी स्कूल में हैं, जिन्होंने रोज़ेटा और फिले के कारनामों को फॉलो किया है, और जो भविष्य के अन्तरिक्ष मिशनों का हिस्सा बनने का सपना लिए विज्ञान और इंजीनियरिंग जैसे विषय लेने के लिए प्रेरित हुए हैं। और यह सच में एक ऐसी विरासत है जिस पर हमें गर्व होना चाहिए।


मोनिका ग्रेडी: ब्रिटेन की एक मुख्य वैज्ञानिक जो द ओपन यूनिवर्सिटी में प्लैनेटेरी व स्पेस सांइसेस की प्रोफेसर हैं। 
अनुवाद: विवेक मेहता: आई.आई.टी., कानपुर से मेकेनिकल इंजीनियरिंग में पीएच.डी. की है एवं तेज़पुर विश्वविद्यालय, असम में पढ़ा रहे हैं।
यह लेख द कॉन्वर्सेशन के अंक 1 अक्टूबर, 2016 से साभार।