प्रिय पाठको,
हमें उम्मीद है कि आपको ‘संदर्भ’ समय पर मिल रही होगी और आप इसे ज़रूर उलटते-पलटते होंगे। हमारा यह पत्र खास तौर पर उन शिक्षकों के लिए है जिन तक हम पहुँच पा रहे हैं और उनके लिए भी जिन तक आप पहुँच रहे हैं।
हमारे पुराने पाठक इस बात से शायद वाकिफ होंगे कि ‘संदर्भ’ पत्रिका की शुरुआत 1994 में हुई और तब से यह लगातार प्रकाशित हो रही है। यह वो दौर था जब होशंगाबाद साइंस टीचिंग प्रोग्राम (होविशिका) चल रहा था। होविशिका के दौरान एकलव्य मध्य प्रदेश के 15 ज़िलों के लगभग 1000 स्कूलों में काम कर रहा था। उस दौर में तकरीबन 2000 साथी शिक्षकों का साथ मिला है हमें। उन्हीं दिनों ‘शैक्षणिक संदर्भ’ की अवधारणा को मूर्त रूप दिया गया जो होविशिका एवं एकलव्य के अन्य शैक्षणिक कार्यक्रमों से निकलने वाली जिज्ञासाओं और सवालों पर विमर्श व जानकारी का एक मंच बना। ‘संदर्भ’ के लेखों ने हमेशा ही स्कूली पाठ्यक्रम को आगे बढ़ाने का काम किया है। हमने सदैव सीखने-सिखाने को सबकी मिली-जुली प्रक्रिया माना है और इस नाते हमें अपने हर पाठक से इस काम में हिस्सेदारी की ज़रूरत एवं अपेक्षा है।
शुरुआत से ही ‘संदर्भ’ पत्रिका के पाठकों में शिक्षकों का एक बड़ा वर्ग रहा है। शिक्षकों ने लेख लिखकर इसके सामग्री निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हम चाहते हैं कि यह सिलसिला आगे भी यूँ ही चलता रहे।
हम चाहते हैं कि आप लिखें क्योंकि:
* शिक्षक खुद के काम एवं बच्चों के ज़रिए समाज के ज़्यादातर पहलुओं से सीधे रूब डिग्री होते हैं।
* शिक्षण कार्य के दौरान शिक्षक रोज़ ही पाठ्यक्रम एवं पाठ्यचर्या की अपने सन्दर्भों में व्याख्या करते हैं, उन्हें ट्रांज़ैक्ट करने के नए-नए तरीके ढूँढ़ते व उन्हें इस्तेमाल करते हैं। हम चाहते हैं कि वे तरीके व अनुभव औरों तक भी पहुँचें।
* कक्षा के दौरान कई ऐसे वाकये अक्सर ही होते रहते हैं जिन्हें आप दूसरों के साथ साझा करना चाहेंगे - कुछ नया, कुछ मज़ेदार, कभी सवाल, कभी दुविधाएँ...।
* पाठ्यचर्या रूपरेखा 2005 और शिक्षा का अधिकार कानून के बाद शिक्षण व्यवस्था एवं प्रक्रिया में कई बदलाव आए हैं। इन बदलावों के तात्कालिक और दूरगामी परिणाम होंगे और उनके बारे में आप शायद बेहतर जानते हैं। इसलिए हम चाहते हैं कि आप इनसे सम्बन्धित अपने अनुभवों को सबसे साझा करें।
विभिन्न कार्यक्रमों के दौरान जब भी हमारा शिक्षकों, छात्रों, शोधकर्ताओं आदि से मिलना होता है, तो हमसे यह सवाल अक्सर पूछा जाता है कि ‘संदर्भ’ के लिए हम क्या लिखें? और कैसे लिखें?
क्या लिखें?
आइए शुरुआत हम पहले सवाल से ही करते हैं कि आखिर क्या लिखा जाए।
जैसा कि आप जानते हैं, ‘संदर्भ’ में विज्ञान की विविध शाखाओं भौतिकी, रसायनशास्त्र, जीवविज्ञान से लेकर गणित, भाषा, इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, शिक्षणशास्त्र से लेकर लायब्रेरी संचालन, और आपके विविध शैक्षिक अनुभवों आदि अनेकों विषयों पर लेख छपते हैं। हमारे लेखकों में भी बहुत विविधता है। शिक्षक, भाषाविद्, कॉलेज के प्रोफेसर, विषयों के विशेषज्ञ और इनके साथ ही पालक, विद्यार्थी और सामान्य पाठक इत्यादि। अत: आप अपनी रुचि और अनुभव के क्षेत्र को ध्यान में रख लेख लिखकर हमसे साझा कर सकते हैं। हाँ, इतना ज़रूर ध्यान रखना है कि हमारी पत्रिका का पाठक-वर्ग प्रमुखत: मिडल और हाई स्कूल के विद्यार्थी और शिक्षक हैं।
कैसे लिखें?
एक बार यह तय कर लिया कि किस विषय पर लिखना है तो अब अगला सवाल आ टपकता है कि आखिर लिखें कैसे। यह सवाल अक्सर हमारे पास विषय और रुचि रहने के बावजूद हमें लेख लिखने से रोक देता है। पर हम चाहते हैं कि आप यहाँ न रुकें और बेझिझक अपना लेख हमें लिख भेजें।
हमारे एक वरिष्ठ अनुभवी सम्पादक का मानना है कि हमारा लेख लिखना वास्तव में लेख के अन्दर छुपे कुछ सवालों के जवाब देना है। हर लेख, चाहे वो किसी भी विषय पर लिखा जाए, किसी भी शैली में लिखा जाए अपने अन्दर कुछ सहज-से सवाल जैसे क्या, क्यों, कैसे आदि लेकर चलता है और हम इनका जवाब देते हुए लेख को आगे बढ़ा रहे होते हैं।
हमें ध्यान रखना है कि लेख की शुरुआत से लेकर आखिरी तक की लाइन के बीच आपस में एक जुड़ाव बना रहे। अपने विषय से ज़्यादा न भटकें बल्कि उसके इर्द-गिर्द ही बने रहने का प्रयास करें। कोशिश करें कि शु डिग्री में दो विषयों को न मिलाएँ, चाहें तो दो विषयों पर दो अलग लेख बना लें।
तो हमें आपके लेख का इन्तज़ार रहेगा!