एक सवाल, अनेक जवाब
एक अवलोकन से कितने सवाल उठ सकते हैं, उसे समझने के कितने आयाम हो सकते हैं जिन्हें नियंत्रित प्रयोग करके जाँचना-परखना ज़रूरी है। वैज्ञानिक प्रक्रिया के इस पहलू को सवाल-जवाब के सिलसिले से उभारता एक आलेख।
क्या यह सच है कि फ्रीज़र में रखा गरम पानी, ठण्डे पानी की अपेक्षा जल्दी जमता है? अगर यह सच है तो आखिर क्यों?

—इयान पोपे, हैमिल्टन, न्यूज़ीलैंड

यह सवाल ‘न्यू साइंटिस्ट’ पत्रिका में कई बरस पहले एक जिज्ञासु पाठक द्वारा उठाया गया था मगर कभी इसका कोई सन्तोषजनक जवाब नहीं पाया जा सका। इस बार हम इस विवाद को शान्त करने के काफी करीब हैं। बहुत-से लोगों द्वारा दिए गए जवाबों और सही ढंग से किए गए प्रयोगों की बुनियाद पर इस जिज्ञासा को सुलझाने का प्रयास किया गया है। हालाँकि, सुनने में सहजज्ञान के विपरीत जान पड़ने के बावजूद यह सच है कि फ्रीज़र में रखा गया गर्म पानी ठण्डे पानी की तुलना में बर्फ के रूप में जल्दी जमेगा। इस सवाल के सन्दर्भ में प्राप्त जवाबों को हम आपके सामने रख रहे हैं।

—सम्पादक, न्यू साइंटिस्ट

जवाब: बर्फीली पर्त वाले फ्रीज़र में बर्तन के रखे जाने पर स्थापित बेहतर ऊष्मीय सम्पर्क और एक अलग प्रकार की संवहनी धाराओं का बनना जो कि पानी को ज़्यादा तेज़ी से जमने देते हैं, इस प्रभाव के सबसे बेहतर स्पष्टीकरण मालूम पड़ते हैं। कौन-सा प्रभाव ज़्यादा प्रबल होगा यह तो फ्रिज, बर्तन के पदार्थ और वह कहाँ रखा है, जैसी बातों पर निर्भर करेगा।
सवाल पूछने वाला सही है - यह सम्भव है कि ठण्डे पानी की जगह गरम पानी को फ्रिज में रखने से अधिक शीघ्रता से बर्फ प्राप्त की जा सकती है। यदि पानी वाला बर्तन फ्रीज़र पर जमी बर्फ की सतह पर रखा हो तो यह प्रभाव हासिल किया जा सकता है। ऐसे में बर्तन का ताप धीरे-धीरे बर्फ की उस सतह को पिघला देता है जिस पर वह रखा है और बर्तन व बर्फ की सतह के बीच ऊष्मीय सम्पर्क काफी बेहतर हो जाता है। बर्तन और उसके पदार्थ व फ्रीज़र के बीच ऊष्मा में जितना अधिक अन्तर होता है, ऊष्मा का स्थानान्तरण उतना ही तेज़ गति से होता है। यदि बर्तन सूखी सतह पर रखा हो या हवा में लटक रहा हो तो यह प्रभाव सम्भव नहीं।

पहली बार यह प्रभाव सर फ्रांसिस बेकन ने बर्फ पर लकड़ी के खोखले बर्तन का इस्तेमाल कर पाया। मेरा व्यक्तिगत अन्वेषण कहता है कि यदि फ्रीज़र में बर्फ की पर्त काफी मोटी जमी हो तो पानी से बर्फ 20 मिनट की जगह 15 मिनट में ही प्राप्त की जा सकती है। इस तरह बर्फ थोड़ा जल्दी प्राप्त कर पाना ठण्डे देशों की बजाय ऑस्ट्रेलिया के लिए तो एक प्रोत्साहन ही है।

—माइकल डेविस
युनिवर्सिटी ऑफ तस्मानिया, ऑस्ट्रेलिया

जवाब: लेकिन फ्रांसिस बेकन इस प्रभाव पर ध्यान देने वाले पहले व्यक्ति नहीं थे। ‘मिटिओरोलॉजी’ नामक किताब के अन्तर्गत अरस्तु के द्वारा कुछ इसी तरह के प्रभाव का ज़िक्र बहुत ही सामान्य व्याख्याके साथ रखा गया है। यहाँ के रहवासी जब मछली पकड़ने के लिए बर्फ में डेरा डालते थे (पहले वे बर्फ में एक सुराख करते और फिर मछली पकड़ते) तो अपनी छड़ी के चारों ओर गर्म पानी भर देते, इस उम्मीद से कि यह पानी जल्दी जमेगा; इस तरह वे बर्फ की छड़ बना लेते जिसका उपयोग बाद में मछली मारने में किया जाता।

—डेविड एज
हैटॅन, डर्बीशायर, यू.के.

जवाब: यह सही नहीं जान पड़ता कि यह प्रभाव बर्तन के शुष्क सतह पर रखे होने या हवा में लटकने की स्थिति में नहीं पाया जा सकेगा...
‘न्यू साइंटिस्ट’ में यह प्रश्न सबसे पहले 1969 में तंजानिया के विद्यार्थी इरैस्टो एमपेम्बा द्वारा उठाया गया था। एमपेम्बा ने खोजा कि अगर आइसक्रीम के मिश्रण को एक बार कमरे के ताप तक ठण्डा करने की बजाय सीधे गर्म मिश्रण के रूप में ही फ्रीज़र में रखा जाए तो मिश्रण ज़्यादा जल्दी जम जाता है। सच को स्वीकार न करने वाली ऐसी ही टिप्पणी जैसी एमपेम्बा को मिली थी, मुझे भी अपने शिक्षक से मिली, जब मैंने उसी विचार कोअपना कक्षा-6 का प्रोजेक्ट बनाया।

सबसे पहले, प्रोजेक्ट दर्शाता है कि पानी चाहे सीधे नल से लिया गया हो या आसुत जल हो, आइसक्रीम के मिश्रण जैसा ही व्यवहार करता है, अत: इसके लिए रासायनिक संगठन इतना महत्वपूर्ण कारक नहीं है। दूसरा, यह दर्शाता है कि गर्म पानी से वाष्पीकरण के चलते पानी के आयतन में आई कमी की इस प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं है। पानी में तापीय-युग्म (thermo-couple) ने यह दर्शाया कि 10 डिग्री से. ताप वाला पानी, 30 डिग्री से. ताप वाले पानी की तुलना में जल्दी हिमांक बिन्दु पर पहुँचा, यह न्यूटन के कूलिंग के नियम के अनुसार भी ठीक है। पर इसके बाद जो पानी (शुरू में) ज़्यादा गर्म था, वह ज़्यादा जल्दी ठोस बनता है।

असल में, फ्रीज़र में 5 डिग्री से. तापक्रम वाले पानी को जमने में सबसे ज़्यादा और 35 डिग्री से. वाले पानी को सबसे कम समय लगता है। इस विरोधाभासी व्यवहार की व्याख्या पानी के वर्टिकल टेम्प्रेचर ग्रेडिएंट गुण के ज़रिए की जा सकती है। पानी की ऊपरी सतह में होने वाले ऊष्मा के क्षय की दर तापमान के समानुपाती होती है। यदि पूरे द्रव के ताप से, सतह का ताप लगातार ज़्यादा रख पाना सम्भव हो तो उस द्रव के ऊष्मा क्षय की दर, ऐसे तरल से ज़्यादा होगी जिसमें ताप समान रूप से वितरित या फैला हुआ हो। यदि पानी किसी छिछले पात्र की बजाय एक लम्बे ऊँचे धातु के बर्तन में हो तो यह विरोधाभासी प्रभाव नदारद हो जाता है। हमारा तर्क है कि धातु के ऊँचे बर्तन होने से धातु की दीवारों से ऊष्मा संचालन के कारण टेम्प्रेचर ग्रेडिएंट का असर कम हो जाएगा।
इस प्रश्न ने निश्चित ही मुझे प्रचलित ज्ञान को सर्वदा सही मानने का अनिच्छुक बना दिया है। खासतौर पर जब उन अवलोकनों की बात हो जो ‘क्या सही है’ इस बारे में हमारी पहले से बनाई गई धारणाओं में फिट नहीं होते।

—जे. नेल केप
पेनीक्युक, मिडलोथियन, यू.के.

जवाब: यह क्लासिक प्रयोग एक ठण्डी, खासतौर पर हवादार रात में खुले में रखी गई दो धातु की बाल्टियों का उपयोग करता है। ठहरा हुआ पानी ऊष्मा का अच्छा चालक नहीं होता इसलिए बर्फ उसकी ऊपरी सतह और किनारों में जमती है। यदि प्रारम्भिक ताप 10 डिग्री से. हो तो बर्तन के बीच वाले हिस्से में बर्फ जमने की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है। खासतौर पर ऊपरी सतह पर तैरती बर्फ तापीय संवहन में बाधा पहुँचाती है। ऐसा कोई ज़रिया नहीं होता जिससे अपेक्षाकृत गर्म पानी, ठण्डी बाल्टी के सम्पर्क में आ पाए और अपनी ऊष्मा बाहर बिखेर सके।
यदि शुरुआती ताप 40 डिग्री से. हो तो पानी के जमने से पहले संवहन तेज़ी से होता है और पूरा-का-पूरा पानी तेज़ी से और एक समान रूप से ठण्डा होता है। हालाँकि, उसमें बर्फ जमने की शुरुआत देर से होती है पर गर्म पानी का पूरी तरह जमना ठण्डे पानी की अपेक्षा तेज़ी से होता है।

यह प्रभाव दिखाई दे इसके लिए विशेष परिस्थितियाँ बहुत ज़रूरी हैं। स्वाभाविक तौर पर यदि प्रयोग के दौरान ठण्डी बाल्टी 0.1 डिग्री से. पर हो और गरम पानी की 99.9 डिग्री से. पर तो इस प्रभाव से प्राप्त होने वाले आश्चर्य की सम्भावना नहीं बनती है। स्मॉल टेम्प्रेचर ग्रेडिएंट के साथ तेज़ संवहन बनाए रखने के लिए ज़रूरी है कि बर्तन पर्याप्त बड़ा हो, लेकिन बाल्टी की सतह से ऊष्मा को जल्दी खींचा जा सके इसके लिए ज़रूरी है कि बर्तन की सतह बहुत ज़्यादा बड़ी न हो। अगर रात को हवा चल रही हो तो उसमें भी पानी के आपस में मिक्स होने से ठण्डा होने की प्रक्रिया में तेज़ी आती है।
घरेलू फ्रीज़र में अपेक्षित या आदर्श परिस्थितियाँ पैदा करना मुश्किल है लेकिन यह आश्चर्यजनक प्रभाव किसी औद्योगिक फ्रीज़र या प्रयोगशाला चेम्बर की परिस्थितियों में आसानी से दर्शाया जा सकता है।

—एलेन कालवर्ड
बिशप्स स्टोर्टफोर्ड, हर्टफोर्डशायर, यू.के.

जवाब: यह बात सही है और इसकी सत्यता की जाँच मैंने प्रयोग के ज़रिए की है। इसकी एक मात्र सीमा यह है कि पानी का बर्तन अपेक्षाकृत छोटा हो ताकि फ्रीज़र की ऊष्मा संवहन कर पाने की क्षमता प्रयोग में बाधा न पैदा करे।
ठण्डे पानी से बर्फ सबसे पहले ऊपरी सतह पर तैरती बर्फ के रूप में बनती है जो बाद में सतह की ओर ऊष्मा के संवहन में बाधक बन जाती है। गर्म पानी पहले बर्तन के किनारों और तली में बर्फ जमाता है जबकि ऊपरी सतह तरल ही बनी रहती है और अपेक्षाकृत गर्म भी, जो लगातार ऊँची दर से विकिरण के ज़रिए ऊष्मा क्षय को जारी रखता है। तापमान में बड़ा अन्तर ज़ोरदार संवहन प्रक्रिया चला पाता है जिससे ऊष्मा सतह की ओर पहुँचती रहती है, भले ही निचले हिस्से का ज़्यादातर पानी जम चुका हो।

—टॉम हेरिंग
केगवर्थ, लिसेस्टरशायर, यू.के.

जवाब: यह महज़ सांस्कृतिक मिथक है। फ्रीज़र में गर्म पानी, ठण्डे पानी की तुलना में शीघ्रता से नहीं जमता। परन्तुगर्म पानी जिसे कमरे के ताप तक ठण्डा किया गया हो, वह उस पानी की तुलना में तेज़ी से जमेगा जिसे कभी गर्म ही न किया गया हो। ऐसा इसलिए क्योंकि गर्म करने के कारण पानी में घुली गैसें मुक्त हो जाती हैं (सामान्यत: नाइट्रोजन और ऑक्सीजन) जिनके होने से बर्फ के क्रिस्टल बनने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।

—टॉम ट्रल
युनिवर्सिटी ऑफ तस्मानिया, ऑस्ट्रेलिया

युनिवर्सिटी ऑफ तस्मानिया के सन्देहवादी टॉम ट्रल शायद घूमते-फिरते पहले पत्र लिखने वाले युनिवर्सिटी ऑफ तस्मानिया के ही माइकल डेविस के फ्रिज तक चक्कर लगा लें तो अच्छा होगा। प्रयोगों से प्राप्त तथ्य दर्शाते हैं कि यह प्रभाव वास्तविक है - पानी में घुली गैसों का न होना एक और कारक हो सकता है जो क्रिस्टल बनने की दर को प्रभावित करे।
इसे प्रभावित करने वाला एक और कारक है जिसकी तरफ हमारे किसी भी पत्र-लेखक ने ध्यान ही नहीं दिया, वह है - सुपर कुलिंग1। हाल ही में किए गए शोध दर्शाते हैं कि चूँकि पानी अलग-अलग तापक्रमों पर जम सकता है, अत: गर्म पानी ठण्डे पानी से पहले भी जमना शु डिग्री कर सकता है। पर इनमें से कौन सबसे पहले पूरा-का-पूरा जमेगा, यह एक अलग मसला है।
-- सम्पादक, न्यू साइंटिस्ट

जवाब: वैज्ञानिक रूप से नियंत्रित परिस्थितियों में यह प्रभाव वास्तविक जान पड़ता है। हम मानकर चलते हैं कि पूरी फ्रीज़िंग या जमने की प्रक्रिया के दौरान फ्रीज़र के भीतर तापमान स्थिर बना रहता है, साथ-ही अन्य प्रभावित करने वाले कारक जैसे बर्तन का आकार, बर्तन के अन्दर और बाहर चल रहीं ऊष्मा के चालन और संवहन की क्रियाएँ आदि भी।

हालाँकि, मैंने महसूस किया कि एक और प्रभावित करने वाला कारक जिसे हम नज़रअन्दाज़ कर देते हैं वह है फ्रीज़र के तापमान में होने वाला बदलाव। फ्रीज़र के भीतर के तापमान का यह बदलाव थर्मोएलिमेंट2 की संवेदनशीलता और नियंत्रण-तंत्र के टाइमर पर निर्भर करता है। आम तौर पर हम मान सकते हैं कि फ्रीज़र के मानक तापक्रम पर ठण्डा करने के लिए जिस ऊर्जा की ज़रूरत होती है, फ्रीज़र उस मानक दर से ही चलता रहता है। यदि ठण्डे पानी का बर्तन इसमें रखा जाए तो इसके चलते ऊर्जा के खर्च में बहुत कम असर पड़ेगा जो ताप की संवेदनशीलता पर कोई प्रभाव नहीं डालेगा। इसकी जगह गर्म पानी का बर्तन आसानी से फ्रिज के सेंसर को एक्टिव कर देगा और फ्रीज़र में कूलिंग तेज़ हो जाएगी और टाइमर की सैटिंग के अनुसार कुछ देर तक कूलिंग तेज़ बनी रहेगी।
घर पर किए गए प्रयोग में यह प्रभाव समझ में नहीं आएगा। मैंने ऐसा ही प्रभाव बिजली वाले भाप-स्नान-घर में भी देखा है। तापीय सेंसर पर पानी के छींटे डाल, उसे बेवकूफ बनाया जा सकता है और ओवन की ताप-दर बढ़ाई जा सकती है।

—मैटी जारवीलेहटो
युनिवर्सिटी ऑफ औलू, फिनलैंड

हाल ही में युनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन, सेंट लुइस, यूएस में चल रहे एक शोध ने नई सम्भावनाओं को जन्म दिया है। पानी में घुले हुए पदार्थ जैसे कैल्शियम और मैग्नीशियम बाईकार्बोनेट, पानी को गर्म करने पर अवक्षेपित हो तली में बैठ जाते हैं। इन्हें किसी भी ऐसे बर्तन में देखा जा सकता है जिसमें कठोर पानी गर्म किया गया हो। जबकि ऐसा पानी जिसे उबाला न गया हो, में ये पदार्थ ऐसे ही घुले रहते हैं। जब ऐसा पानी जमना शुरू होता है और क्रिस्टल बनते हैं तो ये पदार्थ आस-पास के पानी की ओर धकेल दिए जाते हैं। इस तरह जमने से, बचे पानी में इनका घनत्व बढ़ता जाता है जिससे इस पानी का हिमांक नीचे गिर जाता है। यह उसी तरह है जैसे ठण्डे देशों में सर्दी के मौसम में सड़क के पानी को जमने से बचाने के लिए उस पर नमक का छिड़काव किया जाता है। इस शेष बचे पानी को जमने के लिए और ठण्डक की ज़रूरत होगी। इसके अतिरिक्त, चूँकि हिमांक में कमी तरल और उसके चारों ओर के वातावरण के बीच के तापान्तर को कम करती है इसलिए पानी से ऊष्मा-क्षय की गति कम तेज़ या धीमी हो जाती है।

—सम्पादक, न्यू साइंटिस्ट


अँग्रेज़ी से अनुवाद: अम्बरीष सोनी: ‘संदर्भ’ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।
यह लेख ‘न्यू साइंटिस्ट’ पत्रिका द्वारा सन् 2006 में प्रकाशित पुस्तक ‘वाय डोंट पैंगुइन्स फीट फ्रीज़’ से साभार। यह पुस्तक ‘न्यू साइंटिस्ट’ पत्रिका के ‘लास्ट वर्ड’ कॉलम में प्रकाशित विविध प्रश्नों के पाठकों द्वारा भेजे गए जवाबों का संग्रह है ।
पानी के कुछ अन्य विशिष्ट गुणों पर संदर्भ के अंक 13 में प्रकाशित अजय शर्मा का लेख ‘जब पानी उबले’ भी देख सकते हैं।